नई दिल्ली। 07 जनवरी। मित्रों। आज भाजपा कार्यालय में नेशनल बीजेवाईएम कैंपस एम्बेसडर प्रोग्राम का आयोजन किया गया। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह जी ने कहा – मैं सबसे पहले आप सबको शुभकामनाएं देता हूं। इश्वर से प्रार्थना करता हूं कि देश के सभी युवाओं को योग्यता दें, क्षमता दें जिससे इस भारत को महान भारत बनाने में कामयाबी हासिल हो सके। मित्रों हम उस देश के नागरिक हैं जिस देश में लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या युवाओं की है। यानी हम कह सकते हैं कि इतनी बड़ी यूथ पावर अगर किसी के पास है तो वह भारत के पास है, बाकी किसी देश के पास नहीं है। जिसके पास इतनी बड़ी यूथ फोर्स हो, नेचुरल रिसोर्सेस की कमी न हो, वह देश आज भी पिछड़ा हुआ हो और उसकी गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में हो, गरीब देशों में हो, बेरोजगार देशों में हो तो मैं समझता हूं कि इससे बड़ी चुनौती नौजवानों के लिए और दूसरी कोई नहीं हो सकती है। भाजपा ने बहुत सोच-समझकर भारतीय जनता युवा मोर्चा के माध्यम से हिन्दुस्तान के नौजवानों को पार्टी के साथ जोड़ने का फैसला किया है। क्योंकि बिना इनकी क्षमता का उपयोग किए हम भारत को वह भारत नहीं बना सकते हैं, जिसकी हमलोगों ने कल्पना की है।
भारत में इतिहास के पन्नों को अगर देखें तो पहली बार भारत के संस्कृति का ध्वज पताका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फहराने वाला अगर कोई है तो वह स्वामी विवेकानंद हुए। भारत का पहला ग्लोबल यूथ अगर मुझे किसी को कहना पड़े तो मैं स्वामी विवेकानंद जी को ही कहूंगा। संत महात्माओं के बारे में बात करें तो बड़ा काम जिसने कम आयु में किया है वो शंकराचार्य हैं जिन्होंने 16 वर्ष की ही आयु में मिसाल कायम की।
दोस्तों नौजवानों में अद्भुत क्षमता है। वह केवल अपना भाग्य ही नहीं, बल्कि भारत के भाग्य को भी बना सकते हैं। जैसा अनुराग ठाकुर ने कहा कि भारत को हम विश्व गुरु बनाना चाहते हैं, तो यहीं से मैं अपनी बात की शुरुआत करना चाहता हूं। भारत को अगर आप ‘विश्व-गुरु’ बनाना चाहते हो तो आपकी सोच एक-अंगीय नहीं होनी चाहिए। भारत आर्थिक रूप से केवल विकसित हो जाए तो इसी से केवल विश्व-गुरु नहीं बन सकते हैं। वैसे तो विपक्षी हम पर यह आरोप लगाते हैं कि- भारतीय जनता पार्टी इज अ हिन्दू फंडामेंटलिस्ट पार्टी। लेकिन मैं आप नौजवानों को बताना चाहता हूं कि- भारतीय जनता पार्टी इज द ओनली पार्टी इन द कंट्री, व्हिच इज नॉट अ हिन्दू फंडामेंटलिस्ट पार्टी, बट डिवेलपमेंट ओरिएंटेड नेशनल पोलिटिकल पार्टी। हम चाहते हैं कि भारत का इकोनॉमिक डिवेलपमेंट के साथ स्पिरिचुअल डिवेलपमेंट भी हो। मैं जानता हूं कि आज के इजुकेशनल सिस्टम के माध्यम से स्पिरिचुअरिज्म के बारे में जितनी जानकारी दी जानी चाहिए, वो नहीं दी जा रही है। दोस्तों, मंदिर में जाकर पूजा करना, मस्जिद में जाकर इबादत करना, गिरिजाघर में जाकर सजदा करना, यह अध्यात्म नहीं है। कोई सचमुच पूरी सृष्टि में मन प्रधान प्राणि है तो वह मनुष्य है। इसलिए मनुष्य को भावना प्रधान प्राणि कहा गया है। मैं बता दूं कि पति-पत्नी का रिश्ता भावनाओं का होता है, खून का नहीं होता है। अपने राष्ट्र के साथ जो रिश्ता होता है, वह भावनाओं का होता है, वह खून का नहीं होता है।
मैं याद दिलाना चाहता हूं कि चंद्रशेखर आजाद, जिन्होंने 26 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते, गोलियां चलाते-लचाते जब अंतिम गोली बची तो सोचा कि कहीं अंग्रेजों की विदेशी गोली मेरे शरीर में नहीं लग जाए, इसलिए नेशनल प्राइड की सोच पर अपनी बंदूक की एक बची गोली को अपने सीने में उतार ली। वह क्या था, इस धरती के साथ कोई रिश्ता था ? नहीं, इस राष्ट्र के साथ उनका भावनाओं का रिश्ता था। अशफाक उल्लाह खां, 21 साल की जवानी, हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। मां कहती थी, बेटा शादी कर ले। लेकिन जिस दिन फांसी पर झूलने वाले थे, उस दिन कहा कि मैं निकाह करने जा रहा हूं। मजिस्ट्रेट ने पूछा कि कौन है लड़की जिससे तुम्हारी शादी हो रही है, तो उन्होंने कहा कि फांसी का फंदा मेरी महबूबा है जिसे आज गले से लगाने जा रहा हूं। यही भावनाओं का रिश्ता है, मेरे दोस्त। मन का बड़ा करना इसे ही हमारे यहां ‘अध्यात्म’ कहा गया है। आप जीवन में आनंद भी चाहते हो, केवल ज्ञान तो चाहते नहीं। याद रखिए। छोटे मन से कोई बड़ा नहीं हो सकता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं हो सकता। मन बड़ा होने से सुख कैसे प्राप्त होता है, इसे एक मैथमैटिकल फॉर्म से जानते हैं। मान लीजिए, मन हमारा सर्किल है। सर्किल का जो सरकमफेरेंस (परिधि) है, इसको जैसे-जैसे बढ़ाते जाओगे, ये बड़ा होगा। इसको अगर मैथिमेटिकल इक्वेशन में कहना हो तो मैं कह सकता हूं कि सरकमफेरेंस ऑफ मन इज डायरेक्टली प्रपोर्शनल टू मैग्निच्यूड ऑफ सुख। दुनिया में वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष भारत की धरती से हुआ है। और हमने केवल भारत को ही नहीं, बल्कि विश्व को अपने परिवार का सदस्य माना है। हम भारत को ही नहीं विश्व को भी श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं और यह सोच केवल भारत में है। इसलिए मैं कहता हूं कि मन बड़ा करो तभी भारत को विश्व-गुरु बना सकते हैं।
मैं आपको बता दूं कि हिन्दुस्तान की अकेली राजनीतिक पार्टी है- भारतीय जनता पार्टी, जो सांस्कृतिक धारा के साथ जुड़ी हुई है। इसलिए हमने अपनी आइडियोलॉजी को जो स्वीकार किया है वो कल्चरल नेश्नलिज्म से किया है। आज किसी राजनीतिक पार्टी के पास कोई आइडियोलॉजी नहीं है, कोई दर्शन नहीं है। दर्शन वह है जो मनुष्य को दिशा के साथ दृष्टि भी देती है। दिशा और दृष्टि अगर कोई राजनीतिक पार्टी दे सकती है तो वह भारतीय जनता पार्टी है।
मित्रों, हम केवल सत्ता हासिल करने के साथ नौजवानों को अपने साथ नहीं जोड़ना चाहते। आज राजनीति में बहुत नए-नए एक्सपेरिमेंट्स हो रहे हैं। लेकिन मेरा मानना है कि आज व्यापक सोच, आइडियोलॉजी होनी चाहिए। एक संस्था में कोई कहे कुछ, कोई कहे कुछ तो ऐसे में वह संस्था नहीं चलती है। मेरा मानना है कि मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी पूंजी होती है- विश्वसनीयता। अगर एक बार विश्वसनीयता चली गई तो फिर उस पर यकीन नहीं किया जा सकता।
बहुत सोच-समझकर हमने भाजपा की यूथ विंग बनाई है और जिसे (अनुराग ठाकुर) हमने प्रेसिडेंट बनाया है, वो बहुत ही डायनेमिक है और उनका संसद में भी बढ़िया परफॉरमेंस रहा है। उनके पास बेहतर सोच है। कैंपस एम्बेसडर प्रोग्राम जो इन्होंने तय किया है। जिसके पास काल्पनिक क्षमता होगी, वही इस काम को कर सकता है। कैंपस में हम इसलिए जाना चाहते हैं ताकि हमारा नौजवान गुमराह न होने पाए। मैं भी फिजिक्स से एमएससी हूं। मैं भी टीचर रहा हूं। हमने भी रिसर्च किया है। लेकिन डॉक्टरिएट की डिग्री नहीं ली है। भारत में अगर कोई रीच भाषा है तो वह संस्कृत है। लेकिन आजकल इसका लोप होता जा रहा है। इसलिए मैंने उत्तर प्रदेश का शिक्षा मंत्री रहते हुए वैदिक मैथिमेटिक्स लागू की थी और एक साथ 36 पुस्तकों को हमारे विद्वानों ने लिखी थी।
दोस्तों, ‘राजनीति’ संस्कृति के दो शब्दों से मिलकर बना है- राज और नीति। ‘नीति’ संस्कृति के ‘नेय’ धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है, ‘ले जाना’। यानी सन्मार्ग की ओर ले जाना। ऐसा ‘राज’ जो समाज को सही दिशा की ओर ले जाए, उसे ‘राजनीति’ कहते हैं, लेकिन भारतीय राजनीति इस शब्द को खो चुकी है। आइए हम संकल्प लें कि हम राजनीति में इसका खोया हुआ शब्द और खोया हुआ भाव जब तक वापस नहीं लौटाएंगे, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। और मेरी शुभकामना आप सब के साथ है। इसी सोच के साथ आप बढ़िए। धन्यवाद।