आज बिहार के शिक्षकों से हो रहे इस ‘वचुर्अलसंवाद’से जुड़ने में मुझे बेहद खुशी हो रही है। राजनीति में आने से पहले मैं आपके ही संसार से सीधा जुड़ा हुआ था।
मुझे जब भी शिक्षकों से बात करने का मौका मिलता है तो मैं वह मौका जल्दी छोड़ता नहीं। जब आप के बीच होता हूं तो मुझे अपनों के बीच होने जैसा सुख मिलता है।
जिस बिहार से आप लोग आते हैं उसे भारतीय संस्कृति में ज्ञान की धरती का दर्जा हासिल है।
बिहार की धरती तो ‘संसारकेसबसेबड़ेशिक्षक’महात्मा बुद्ध से जुड़ी है। बिहार में ही महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुर्इ थी।
राजनीति में सक्रियता के कारण मेरा अब पढ़ाने का क्रम तो छूट गया है मगर जीवन की पाठशाला में पढ़ने का क्रम हमेशा जारी रहता है। फिर भी मेरा मानना है ‘Once a Teacher Always
a Teacher’.
एक शिक्षक की समाज निर्माण में क्या भूमिका होती है, मैं समझता हूं यह आप सभी अच्छी तरह समझते है।
शिक्षक की भूमिका समाज में एक शिल्पी की होती है। शिक्षक से बेहतर कोर्इ शिल्पकार नहीं हो सकता, क्योंकि यह शिक्षक और गुरु ही हैं, जिनके पास आने वाली पीढ़ियों के भवि”य को संवारने की क्षमता, कौशल, और ताकत होती हैं।
इसीलिए तो कहा गया हैं गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है।
शिक्षक और गुरु की महिमा का बखान शब्दों में करना मुश्किल हैं, पर मैं मानता हूँ संत कबीर की वाणी में गुरु की यह व्याख्या सबसे उपयुक्त हैं की “सतगुरुसमकोर्इनहीं,सातदीपनौखण्ड।तीनलोकनपाइये,अरुइकइसब्रह्मणड”। यानी सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रह्मणडो में सद्गुरु के समान हितकारी आप किसी को नहीं पायेंगे।
बिहार की धरती शिक्षा, और गुरु-परंपरा की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है।
बिहार जैसे राज्य में जहाँ शिक्षा प्राप्ति पूरे समाज का एक बहुत बड़ा ध्येय रहा है। इसके बारे में बहुत ज्यादा कहने की जरुरत नहीं है।
जहाँ चाणक्य ने अर्थशास्त्र लिखी, और अपनी शिक्षा से नए सामाजिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय परिदृश्य का निर्माण किया हो, जहाँ नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे हों, उसकी बुनियाद कितनी बेमिसाल होगी यह बताने की जरुरत नहीं है।
मित्रों,
यह तो इतिहास की बात है, पर आज भी जीवन का शायद ही ऐसा कोर्इ क्षेत्र है जिसमें बिहार के युवाओं ने अपना परचम देश में ही नहीं विदेश में भी न लहराया हो। इसकी बड़ी वजह यह रही कि बिहार का गरीब से गरीब परिवार भी अपने बच्चों को सुसंस्कारित शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था जरुर करते हैं।
ये उम्मीद, यह विश्वास कहाँ से आया है? मैं मानता हूँ की यह आप सभी शिक्षको के अथक प्रयास से संभव हो पाया है।
मेरा मानना है कि जब भी किसी को ऐसा ऊंचा स्थान दिया जाता हैं, तो समाज के प्रति उसकी भी जिम्मेदारी कर्इ गुना बढ़ जाती है।
हमे हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए की “बड़ी ताकत के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आती हैं”।
यह भी सच है बदलते वक्त के साथ शिक्षक की भूमिका भी बदली है। आज का युग कंप्यूटर का युग है। हमारे बच्चों और युवाओं के पास हर तरह की जानकारी उपलब्ध है। तो, ऐसे समय में शिक्षक की क्या भूमिका है?
मित्रों,
यहाँ हमे एक बात समझनी होगी, सूचना (Inform) देने और शिक्षित (Educate) करने में बहुत बड़ा फर्क होता।
मेरा मानना है कि सूचना देने (Informed) और शिक्षित करने (Educated) के बीच का जो अंतर है, वहीं से एक शिक्षक की भूमिका प्रारंभ होती हैं।
कंप्यूटर और आधुनिक तकनीक के उपयोग से हमारे युवा विभिन्न विकल्पों के बारे में खुद को Informed तो रख सकते हैं, लेकिन सही विकल्प का चयन करने के लिए हमेशा उन्हें मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ेगी जो केवल एक प्रतिबद्ध शिक्षक उन्हें शिक्षित (Educate) कर के देता हैं।
गांधी जी के अनुसार शिक्षा ही मनुष्य के सर्वांगीण विकास का प्रमुख कारक है। तन, मन, वृद्धि और आत्मा इन चारों की भूख को मिटाने का काम उपयुक्त शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है।
मैं मानता हूं कि शिक्षा एक संपूर्ण दृष्टिकोण है जो व्यापक रूप में मानवीय चेतना के विकास को केंद्र में रखता है। इसे ही हम Holistic Development (बहुमुखी विकास) कहते हैं।
इसी जुलार्इ में केंद्र सरकार ने हमारे बच्चो और युवाओं के इसी Holistic Development (बहुमुखी विकास) को सुनिश्चित करने के लिए नर्इ राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दी। करीब 34 साल के बाद देश में एक नर्इ शिक्षा नीति आर्इ है।
मित्रों,
अब सवाल उठता है कि आखिर नर्इ शिक्षा नीति की जरूरत क्यूं आन पड़ी। जैसा कि आप जानते है कि पिछले तीन दशकों में जीवन के लगभग हर क्षेत्र में काफी बदलाव आया है। ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में हमारा नजरिया पिछली शताब्दी में ही अटका रहा तो, आप नए और व्यापक बदलाव की उम्मीद कैसे करेंगे।
नर्इ शिक्षा नीति इक्कीसवीं शताब्दी के बदलते हुए भारत के साथ मेल खाती है। यह नूतन और पुरातन शिक्षा का समागम भी है। यह नए भारत की नर्इ आकांक्षाओं और जरूरतों के हिसाब से तैयार की गर्इ है।
नर्इ शिक्षा नीति में नया क्या है आपमें से कर्इ लोगों ने अवश्य ही इसका अच्छा अध्ययन किया होगा, मगर जिन्होंने नहीं किया है उन्हें मैं यह बताना चाहूंगा कि नर्इ शिक्षा नीति अब तक सबसे Holistic और Wholesome Education
Policy है।
मित्रों,
जैसा कि आप सब जानते है कि बच्चे इस देश का भविष्य हैं,
और उनका भविष्य बनाने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर ही होती है। बच्चे का भविष्य बनाने का मतलब है, राष्ट्र का भविष्य बनाना। इसलिए बच्चों की शिक्षा पर नर्इ शिक्षा नीति में विशेष ध्यान और बल दिया गया है।
इस नर्इ शिक्षा नीति के आने के बाद भारत के हर बच्चे को चाहे वह स्कूल में हो या कॉलेज में उसे राष्ट्र
निर्माण में अपनी एक सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त होगा।
जैसा कि मैंने पहले कहा कि आज कम्प्युटर के युग में Information
कि इतनी बहुतायत हो गर्इ है कि ज्ञान और बोध के बारे में एक समाज के रूप में हमारे भीतर जागरूकता कम हुर्इ है।
जबकि सही मायनों में ज्ञान किसी को तभी प्राप्त होगा जब Information के साथ-साथ उसका प्रकृति और वातावरण के साथ न केवल संतुलन बने बल्कि उनके साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ता भी बने।
मित्रों, जैसा कि आप जानते हैं कि एकात्म मानववाद दर्शन के प्रणेता की जयंती की पूर्व संध्या है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जो एकात्म मानववाद का दर्शन है वह भी मनुष्य और प्रकृति के बीच सौहार्द का ही हमें बोध कराता है।
जो नर्इ शिक्षा नीति तैयार की गर्इ है उसमें फोकस जहां इस बात पर है कि एक तरफ बच्चे को जानकारी, प्रयोग और कौशल विकास का भान हो वहीं उसे प्रकृति और वातावरण के साथ उसके संबंध का भी ज्ञान हो।
आज जब सारी दुनिया एक बड़े बदलाव से गुजर रही है तो भारत को उसमें अपनी बड़ी भूमिका तय करने का अवसर है। इसलिए हमें इस देश में हर स्तर पर बड़े व्यापक बदलाव की जरूरत भी है।
जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि अब तक हमारे देश की शिक्षा नीति का उद्देश्य हुआ करता था कि ‘What to think’. नर्इ शिक्षा नीति में हमने इसको थोड़ा बदलते हुए ‘How to think’ पर फोकस किया है।
चूंकि अब तक Education System का फोकस ‘Thinking’ पर अधिक केन्द्रित था इसलिए विचार पर हमारा जोर अधिक रहा। अब हमारा फोकस ‘Thoughts’ के साथ-साथ Action की तरफ भी होने जा रहा है।
नर्इ शिक्षा नीति में बच्चों की Learning Process को और बेहतर तथा कारगर बनाने की रूपरेखा तैयार की गर्इ है। इस नर्इ रूपरेखा में शिक्षक और विद्यालय दोनों मिल कर एक वातावरण का निर्माण करेंगे जिसमें बच्चा अपनी प्रतिभा और क्षमता के अनुरूप Learning की प्रक्रिया से जुड़ेगा।
नए भारत में शिक्षा-दीक्षा के नए मुहावरे गढ़े जाएंगे। जहां बच्चों को Activity Based Learning
और Discovery based Learning
की तरफ बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। ताकि हर बच्चे का समुचित और Holistic Development हो सकें।
Holistic Development (बहुमुखी विकास) के लिए यह आवश्यक हैं की हमारे युवा अपने जीवन मूल्यों (Value System) को समझे क्यूंकि मेरा मानना हैं की बिना जीवन मूल्यों के ज्ञान के शिक्षा पूरी तरह से बेकार होती हैं, और ऐसी शिक्षा कभी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का समग्र विकास नहीं कर सकती है।
मित्रों,
हमे अपने बच्चो और युवाओं को अपने जीवन मूल्यों (Value System) को समझ कर अपने जड़ों, अपनी परंपरा और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए और इसके लिए आवश्यक हैं की वे अपनी मातृभाषा को भी अच्छी तरह जाने, समझे तथा बोलें भी।
नर्इ शिक्षा नीति में मातृभाषा को दिए गए महत्व से हमारे युवाओं को इस संबंध में मदद मिलेगी। इसके साथ अन्य भाषाओं का ज्ञान भी व्यक्तित्व में उत्कृष्टता पैदा करता है।
आज हम ऐसे युग में रहते हैं जहाँ अनुसंधान और नवाचार (Research and
Innovation) सफलता और विकास की कुंजी हैं। इसलिए मैं सभी शिक्षिकों से यह आग्रह करूँगा की वे (Research and
Innovation) और Skill Development को और अधिक प्रोत्साहन दें।
भारत में अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग Skill Development की परम्परा रही है। आपको हर इलाके में कोर्इ न कोर्इ हस्तकाला या दस्तकारी की परम्परा मिलेगी।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री जी ने बिहार के भागलपुर की रेशमी साड़ियों की चर्चा की थी। अब तक हमारे देश में जो आधुनिक शिक्षा की परम्परा रही है उसमें इन Traditional Skills को कभी महत्व नहीं दिया गया। नर्इ शिक्षा नीति इन विसंगतियों को दूर करने के लिए बनार्इ गर्इ है।
नर्इ शिक्षा नीति में Syllabus कम करते हुए, बुनियादी ज्ञान और कौशल विकास पर अधिक जोर दिया गया है।
मित्रों,
इक्कीसवीं शताब्दी के अनुरूप यदि हमें शिक्षा को ढालना है तो हमें नर्इ सोच को अपनाना होगा। नर्इ सोच के साथ ही हम नए और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार कर सकते हैं।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी भारत को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं और यह तभी संभव है जब हम अपने युवाओं को आत्मनिर्भर बनाएंगे। और Skill &
Professional Training इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
एक सामान्य लेकिन गलत धारणा है कि व्यावसायिक शिक्षा (Vocational
Education) मुख्यधारा की शिक्षा (Mainstream
Education) से कमतर होती है। नर्इ शिक्षा नीति इस धारणा को बदलना चाहती हैं और इसके लिए Class 6
से ही Vocational Subjects को पढ़ाने की बात कही गर्इ हैं।
यहाँ पर भी हमारे शिक्षको की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
जब एक शिक्षक समाज को इतना कुछ देता है तो यह समाज का भी दायित्व है कि वह अपने शिक्षकों को उनका हक दे।
बिहार के शिक्षकों ने तो बहुत बुरा समय देखा हैं, बहुत संघर्ष किया हैं। मुझे वह समय आज भी याद है जब बिहार के शिक्षक सड़कों पर आए दिन आन्दोलन करने के लिए मजबूर होते थे। कारण क्या होता था? छह महीने से वेतन नहीं मिला? साल भर से वेतन नहीं मिला?
चरवाहा विद्यालय जैसे कांसेप्ट के साथ तालमेल मिलाकर भी काम करना, और तेल पिलावन-लाठी घुमावन, जैसे माहौल में भी उस पीढ़ी को संभाल कर रख लेना अपने आप में बेहद चुनौतीपूर्ण था।
मैं उन दिनों उत्तर प्रदेश के अखबारों में इन घटनाओं को पढ़ता था। एक शिक्षक के नाते मेरा मन भी उद्वेलित हुआ करता था। उस पंद्रह साल में आप शिक्षको के साथ जो अन्याय हुआ उसकी भरपार्इ तो नहीं की जा सकती पर अब हम सबकी यही कोशिश हैं, की किसी भी शिक्षक को उस तरह की कठिनाइयों का सामना फिर से न करना पड़े।
बिहार में मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी शिक्षकों के प्रति प्रारंभ से ही संवेदनशील रहे हैं। बिहार की बात करे तो 2005 से बिहार के सरकारी स्कूलों में लगभग 3-4 लाख शिक्षकों की भर्ती की गर्इ है।
पंचायती राज संस्थानों और शहरी नागरिक निकायों के माध्यम से 2006 से नियुक्त हुए स्कूल शिक्षकों और पुस्तकालयाध्यक्षों के मूल वेतन में 15 प्रतिशत की वृद्धि की गर्इ।
कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) में सरकार के योगदान के साथ, कुल बढ़ोतरी 20 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी और यह 1
अप्रैल, 2021 से प्रभावी होगा और इससे 3.5 लाख से अधिक शिक्षकों को फायदा होगा।
महिला शिक्षक मौजूदा 135 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन के मातृत्व अवकाश की हकदार होंगी। 15 दिन के पितृत्व अवकाश का नया प्रावधान भी किया जा रहा है।
माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षक भी अपनी सेवा के तीन साल बाद तीन साल के अध्ययन अवकाश के हकदार होंगे।
बीपीएससी के माध्यम से बहुत से विश्वविद्यालय प्राध्यापकों की नियुक्ति की गर्इ है, जल्द ही नयी वैकेंसी और आने वाली है।
यह सभी हमारे शिक्षिको के हित में लिए गए महत्त्वपूर्ण फैसले हैं।
मैं अपने सभी शिक्षक मित्रों को बताना चाहता हूं कि चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार हो दोनों ही शिक्षकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। आप सभी से बस यही अपेक्षा करते हैं कि आप अपने छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में निरंतर प्रयासरत रहे।
आपका यह प्रयास हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नए भारत के निर्माण के स्वप्न को साकार करने में बहुत बड़ी भूमिका निभायेगा।
इन्ही शब्दों के साथ में अपना निवेदन समाप्त करता हूं।