Text of RM’s speech at “Times Network India Economic Conclave”

India Economic Conclave के इस session में, आपने मुझे आमंत्रित किया, इसके लिए मैं आयोजकों को धन्यवाद देता हूँ।

India Economic Conclave, different sectors के लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण मंच प्रदान करता है; जिसमें वे आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, तथा India के economic aspirations और actions पर चर्चा करते हैं।

हर बार की तरह इस बार भी आयोजकों ने इस session में जो theme रखी है, वह theme भी बेहद attractive है। India: The Emerging Third Superpower.

मैं अपनी बात सबसे पहले इस theme से शुरू करना चाहूँगा, जिसकी अभी मैंने बात की। साथियों, भारत की economy कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है, इससे आप सभी अवगत हैं। Morgan Stanley का नाम आप सब जानते ही हैं। Morgan Stanley ने 2013 में, एक phrase coin किया था, ‘Fragile 5’ economies का। Fragile का मतलब, आप लोग जानते हैं, जल्दी टूट जाने वाला, जल्दी बिखर जाने वाला होता है। यानी दुनिया की ऐसी economies, जो बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थीं, उनके लिए यह term use किया गया था; और उनमें एक नाम हमारे देश भारत का भी था। आज 10 साल बाद वही Morgan Stanley, अपनी report में यह कहता है कि 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी economy होगा।

इसलिए यह theme तो अपने स्थान पर बिल्कुल सही है, कि भारत एक emerging economy के रूप में जल्दी ही GDP के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुँचने वाला है। लेकिन मैं आप लोगों से अपने मन की बात कहूँ, कि मैं theme में लिए गए words, न तो ‘third position’ को लेकर उत्साहित हूँ, और न ही emerging superpower को लेकर।

आज के, immediate perspective में तो यह दोनों ही words भारत के लिए सही हो सकते हैं, लेकिन जब हम long term perspective में देखें, तो मैं समझता हूँ कि भारत एक emerging नहीं, बल्कि एक Resurgent Superpower है। हम वापस अपने rightful place को regain कर रहे हैं। हम दुनिया के economic नक्शे पर वापस अपना स्थान पाने की ओर बढ़ रहे हैं।

साथियों, यह कोई बहुत ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब भारत दुनिया के नक्शे पर एक economic superpower के रूप में जाना जाता था। Records बताते हैं, कि 17th century तक आते-आते दुनिया की GDP में एक चौथाई से अधिक हिस्सा भारत का हुआ करता था। यह देश इतना आत्मनिर्भर था, यहाँ production इतने बड़े पैमाने पर हुआ करता था, कि हम अपनी तो अपनी, बाहर देशों की भी जरूरतें पूरी करते थे। चूंकि उस समय अधिकांश trade gold के माध्यम से हुआ करता था, इसलिए कह सकते हैं कि gold mining चाहे जहाँ हो, gold coin जारी चाहे जहाँ हो, पर वह अंतत: पहुँचता भारत में ही था। दुनिया भर से लोग हमारे वैभव और सम्पदा से आकर्षित होकर भारत आते थे।

परंतु कालांतर में देश के इस वैभव पर ग्रहण लगा और कुछ ऐसी चीजें हुई, जिसने हमारे इतिहास को बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया। इनमें से कुछ का ज़िक्र मैं करना चाहता हूँ, जैसे कि पहली चीज थी military weakness, और दूसरी थी political slavery.

साथियों, भारत का इतिहास इस बात का उदाहरण है कि जब-जब भारत में सेनाएँ कमजोर हुई हैं, तब तब आक्रांताओं ने भारत को नुकसान पहुंचाया है। सेना किसी भी राष्ट्र के सिर्फ borders की सुरक्षा नहीं करती, बल्कि वह उस देश की culture, economy और एक प्रकार से उस देश की entire civilization की सुरक्षा करती है। इसलिए एक सरकार के रूप में हमने यह सुनिश्चित किया है, कि हमारी सेनाएँ सशक्त हों, उनके पास अत्याधुनिक हथियार हों और उनमें youthfulness बनी रहे। हमने हर वो कदम उठाया है जिससे भारत की military strength बढ़े और हम वापस भारत को एक superpower बना पाएँ।

Political slavery ने drain of wealth के माध्यम से हमारी economy को कमज़ोर किया। इसके साथ ही उसने हमारी आत्मनिर्भरता और cultural pride को भी बेहद नकारात्मक रूप से प्रभावित किया, जिसके बारे में आप सभी जानते हैं और बहुत ज्यादा इस पर बात करने की जरूरत नहीं है।

लेकिन समय अब करवट ले रहा है। हम उस political slavery से बाहर आ चुके हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी ने इस बार लाल किले की प्राचीर से देश को जो पंच प्रण दिए थे, उसमें एक प्रण यह भी था, कि हमें गुलामी की मानसिकता को निकाल फेंकना है। और आज देश पूरी तरह गुलामी की मानसिकता को हटाकर एक मज़बूत नेतृत्व के साथ वापस अपना स्थान पाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।

साथियों, भारत के लिए, मैं समझता हूँ यह पुनर्जागरण का दौर है, यह एक global superpower के रूप में भारत की पुनर्स्थापना का समय है। अँधेरा छट चुका है, और नए भारत का नया सूर्योदय हो रहा है। इसलिए मैं emerging superpower से इत्तेफाक नहीं रखता, बल्कि मैं भारत को एक Resurgent superpower के रूप में देखता हूँ।

साथियों, आपने दुनिया के different platforms से यह बात सुनी होगी, कि 21वीं सदी भारत की सदी है। 21वीं सदी को भारत की सदी बताने का एक सबसे बड़ा कारण यह भी है, कि तमाम hurdles के बावजूद आज भारत economic दृष्टिकोण से दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले बेहद तेज गति से आगे बढ़ रहा है। जब से 2014 में नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में सरकार बनी, तब से हमारा यह प्रयास रहा है कि हमारी government policy देश में economic growth को ज्यादा से ज्यादा facilitiate करे।

बात चाहे direct tax reforms की हो या फिर GST की, हमने देश की economic growth के लिए एक optimum and tax payer friendly regime लाने का पूरा प्रयास किया है। हमारे ये प्रयास रंग भी ला रहे हैं। बीते financial year में आपने देखा होगा, कि Income tax हो या फिर GST, इनका जितना collection हुआ है उसके बारे में कभी सोचा भी नहीं गया था।

आप सभी एक अच्छी-खासी economic समझ रखने वाले लोग हैं, आप तो जानते ही हैं कि यदि कोई business house किसी देश में invest करता है, तो वह देश की पूरी economic, social और political opportunities एवं challenges का अच्छे से analysis करता है, उसके बाद ही वह उस देश में निवेश करता है। आज भारत में ease of doing business बढ़ाने पर सरकार ने बल दिया है, इसलिए विदेशी निवेशक भारत को एक आकर्षक स्थान के रूप में देख रहे हैं। सिर्फ economy ही नहीं, बल्कि जब आप economy के अलावा बाकी के sectors को देखेंगे, तो आप पाएंगे कि हमने उनमें एक revolutionary transformation किया है।

Education में आप देखिये कि हमने नई शिक्षा नीति के माध्यम से किस प्रकार learning and skilling को multidimensional way में address किया है। हमने शुरुआत से ही बच्चों को उनकी skill development के साथ-साथ उन्हें नैतिक रूप से भी सशक्त बनाने की दिशा में कार्य करना शुरू किया है।

Health sector पर जब आप नजर डालेंगे, तो आप पाएँगे कि कोविड-19 pandemic के दौरान किस प्रकार हमने दुनिया का सबसे बड़ा vaccination drive चलाते हुए 200 करोड़ से अधिक वैक्सीन अपनी पूरी जनता को लगाया। इसके अलावा हमने आयुष्मान भारत के माध्यम से करोड़ों beneficiaries को cover करते हुए पूरे health sector में एक transformational change लाने का कार्य किया है।

अगर मैं बैंकिंग सेक्टर की बात करूँ तो आप देखेंगे कि जहाँ दुनिया भर में कई देशों में, यहाँ तक कि विकसित देशों में भी banks की performance अच्छी नहीं है, वहीं भारत के banks बेहद मजबूत स्थिति में हैं। 2014 में अनेक banks NPA के बोझ तले दबे हुए थे। हमने बैंकों की performance को improve करने के लिए administrative level पर कई initiatives उठाए। Banks को merge करके, या फिर उनका privatization करके  हमने उनका revival किया। उन प्रयासों का ही नतीजा है कि आज हमारे बैंको का Gross NPA काफी निचले स्तर पर है।

इसके अलावा, हमने इस देश की एक और बड़ी समस्या पर सरकार में आते ही focus किया। जब हम सरकार में आए, तो हमने देखा कि देश में कानूनों का एक बहुत बड़ा जाल बिछा हुआ था। और वह जाल इतना बड़ा था कि उसमें फंस कर न तो इस देश में बहुत ज्यादा innovation हो पाते थे, और न ही देश में investor friendly environment बन सका था। इसलिए हमारी सरकार ने ‘Minimum government, maximum governance’ के सिद्धांत को follow करते हुए, 2 हजार से अधिक पुराने कानूनों को समाप्त करने का काम किया। इस process के माध्यम से हम लाल फीताशाही को कम करते हुए inspector राज के खात्मे की ओर बढ़ रहे हैं।

देश का रक्षा मंत्री होने के नाते, अगर मैं भारत के defence sector की ओर आप सभी का ध्यान आकर्षित करूँ, तो आप देखेंगे कि पिछले कुछ वर्षों में हमने India के defence sector में transformative change किया है। माननीय प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से हमने आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ defence sector में भारत को self-reliant बनाने की दिशा में कार्य किया है। हम पहली ऐसी सरकार हैं, जिसने हथियारों के आयात के लिए खुद पर ही प्रतिबंध लगाया है। हमने सेनाओं की ओर से 411 items की, एवं Defence PSUs की 4,666 items की positive Indigenization Lists जारी की है। इसमें शामिल Line-replaceable unit, हथियार, गोले बारूद, मिसाइल और अन्य रक्षा साजो सामान शामिल हैं, जिनका निर्माण अब केवल और केवल हमारे ही देश में होगा।

हमने make in India और Defence corridors जैसे initiatives के माध्यम यह सुनिश्चित किया, कि हम भारतीय सेनाओं के use के लिए अत्याधुनिक हथियार भारत में ही निर्मित करें, और यदि संभव हो तो हम उसे निर्यात भी करें। आज आप देख सकते हैं, कि हम अपने इन प्रयासों में सफल भी हुए हैं, जिसे इस आँकड़े से समझा जा सकता है कि आज हमारा domestic defence production का आँकड़ा भी 1 लाख करोड़ रूपए पार कर चुका है। अगर मैं export की बात करूँ, तो आज से 7-8 साल पहले defence equipment का export, जहाँ कुल जमा हजार करोड़ रुपए भी नहीं हुआ करता था, वह आज लगभग 16 हज़ार करोड़ रुपए हो गया है।

Defence export के मामले में अभी हमें और कई रास्ते तय करने हैं। लेकिन यह एक बहुत बड़े लक्ष्य की ओर हमारा पहला कदम है। हमने defence manufacturing में भी start-ups के माध्यम से new ideas को invite किया है। जैसा कि आप सब जानते हैं कि भारत में unicorns की संख्या 100 से अधिक हो चुकी है, लेकिन इनमें भी एक अच्छी खासी संख्या उन Start-ups की है जो सिर्फ और सिर्फ defence R&D या manufacturing क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

साथियों, अगर बात infrastructure development की करें, तो आप देखिए कि किस प्रकार हमने भारत में सड़कों का एक जाल बिछा दिया है। Border areas में स्थित हमारे जिन गाँवों को आज तक ignore किया गया, हमने उन्हें भी सड़कों के माध्यम से देश के बाकी क्षेत्रों से जोड़ा है। अगर आप airports की संख्या पर गौर करें तो 2014 की तुलना में आज हमारे पास दोगुने से अधिक airports हैं।  हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति भी हवाई जहाज से यात्रा कर सके, इस संकल्प के साथ हम आगे बढ़ रहे हैं। रेलवे में आप देख सकते हैं, कि किस तरह से हमने world class infrastructure का निर्माण किया है। Railway stations के निर्माण से लेकर वन्दे भारत जैसी trains चलाकर Indian railways की तस्वीर बदल दी है। PM गतिशक्ति के तहत हम देश के roads और railways को seaports से जोड़ रहे हैं। सिर्फ transportation ही नहीं बल्कि communication को भी priority देते हुए हम पूरे देश के हर पंचायत को broadband से जोड़ने का संकल्प लेकर चल रहे हैं। जल्द ही हम इस लक्ष्य को भी प्राप्त कर लेंगे। इसके अलावा बीते दिनों आपने देखा कि हमने देश में 5G launch किया। यह डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ाया हुआ हमारा अब तक का सबसे बड़ा कदम है।

साथियों, मैं चाहता हूँ कि हमारा देश इतना सुंदर हो, हमारे यहाँ के parks, मैदान, roads, monuments इतने सुंदर और साफ हों, कि अगर कोई भारतीय दूसरे देश में जाए, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या जापान जाए, और वहाँ advanced railway stations देखें, fly-overs का जाल देखे, parks, मैदान, roads, monuments देखे, तो कहे कि ये तो दिल्ली, लखनऊ, बेंगलूरू और हैदराबाद जैसा है।

साथियों, कुल मिलाकर कहे तो हम देश के लगभग सभी sectors पर फोकस करते हुए, 2047 तक विकसित भारत की इमारत खड़ी करने का कार्य कर रहे हैं।

साथियों, जब भी हम कोई मंजिल निर्धारित करते हैं, अपने लिए कोई उद्देश्य तैयार करते हैं; तो यूँ तो उसके साथ कई सारी समस्याएँ आती हैं, लेकिन उनमें भी 2 सबसे बड़ी चुनौती सामने आती है। पहली तो यह होती है, कि हो सकता है दुर्भाग्य से हम वह लक्ष्य उस समय सीमा में प्राप्त ही न कर पाएँ।

लेकिन जो दूसरी बड़ी चुनौती होती है, वह यह होती है, कि जब हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं, तो हमें वह लक्ष्य उतना प्रासंगिक नहीं लगता। हम यह सोचने लगते हैं कि क्या इसी उद्देश्य के लिए हमने इतनी मेहनत की थी? इसलिए हमारे लिए यह बेहद आवश्यक है, कि हम वैसे ही मंजिल अपने लिए निर्धारित करें, वैसा उद्देश्य स्वयं के लिए तय करें जिसकी प्राप्ति के बाद हमें संतुष्टि मिले।

इसलिए आज मैं उन मुद्दों पर भी आपसे चर्चा करना चाहूँगा कि हमारे लक्ष्य कैसे होने चाहिए; हमारे उद्देश्य कैसे होने चाहिए? मैं कहीं पढ़ रहा था, कि ‘Be careful with your dreams, they might come true’. इस बात को समझने की जरूरत है। हमें यह तय करने की जरूरत है कि हमें कैसे भारत का सपना देखना है। अगर मैं दूसरे शब्दों में कहूँ तो मैं आपसे अपने सपनों के भारत पर चर्चा करना चाहूँगा। इसे आप एक प्रकार से manifesto for 2047 भी कह सकते हैं। मैं आपसे इस मुद्दे पर बात करना चाहूँगा कि मैं 2047 तक भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक भविष्य को किस प्रकार से देखना चाहता हूँ।

यदि हम भारत के सामाजिक विकास की बात करें, तो मैं एक ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ, जहाँ समाज में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। वैसे तो संविधान आज भी यह व्यवस्था करता है, कि देश में धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो लेकिन हमारा विकसित भारत इस theory से भी एक कदम आगे होना चाहिए। जहाँ कोई किसी भी जाति में जन्म ले, उसे स्वयं के विकास के लिए बराबर अवसर मिले। जहाँ जाति के आधार पर किसी को अवसरों से वंचित न रखा जाए। ऐसी कोई भी मजबूरियाँ, ऐसी कोई भी बेड़ियाँ जो Human dignity को कमजोर करती हैं, वो टूटनी चाहिए; जहाँ Human dignity को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाय।

साथियों, मेरे मन में एक बात कई दिनों से है। हमारे सामने कई बार ऐसी खबरें आती हैं जिसे पढ़ या सुनकर हमारा हृदय द्रवित हो उठता है। उदाहरण के लिए, आपने भी देखा होगा, कि कोई व्यक्ति अपने परिजन के निधन के बाद उसकी लाश को साइकिल पर ढोते हुए जा रहा है; और कई बार तो साइकिल भी नसीब नहीं होती मृतक का शरीर कंधे पर ले जाए जाने की खबर आती है। बड़ी ही हृदय विदारक घटना होती है यह, पर हमारे समाज की दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है यह; जिसे हमें स्वीकार करना होगा, और यह स्वीकरण ही इससे निजात के रास्ते खोलेगा।

इसलिए जब मैं 2047 के भारत की कल्पना करता हूँ, तो उसमें मैं ऐसी किसी भी स्थिति के तीन स्वरूप देखता हूँ-

पहला कि, मेरे भारत में कोई भी इतना अक्षम न हो, कि अपने किसी परिजन के मरने पर उसे लाश को साईकिल पर या कंधे पर ढोकर ले जाना पड़े।

दूसरा यह कि, यदि दुर्भाग्य से कोई इतना सक्षम न हो तो सरकारी व्यवस्था इतनी मज़बूत, और संवेदनशील हो, कि उस व्यक्ति के स्थान पर व्यवस्था यह कार्य करे।

तीसरा यह, कि कई बार दूर-दराज के क्षेत्रों में जहाँ सरकारी तंत्र नहीं पहुँच पाता, तो वहाँ समाज में इतना भाईचारा, हो कि अगर किसी व्यक्ति पर ऐसी आपदा आ जाए, तो समाज का जो भी पहला व्यक्ति उसे देखे, वह अपने बाकी काम छोड़कर उस व्यक्ति की सहायता करे।

भाइयों-बहनों, मैं इस प्रकार का, संवेदना से परिपूर्ण समाज देखता चाहता हूँ।

इसके अलावा जो चीज मैं अपने विकसित भारत में देखना चाहता हूँ, वह है महिलाओं की बराबर भागीदारी। साथियों, कोई राष्ट्र बिना अपनी आधी आबादी को साथ लिए तरक्की नहीं कर सकता। हमें नारी शक्ति को उनका अधिकार देना होगा, हमें उन्हें वह अवसर देने होंगे जिस अवसर से उन्हें लम्बे समय से वंचित रखा गया था।  अभी आपने देखा होगा Civil Services exam के परिणाम में किस तरह से बेटियों ने बाजी मारी है। Top 25 में से 14 women candidates का होना देश के सुनहरे भविष्य के प्रति एक बड़ा संकेत है। हम जितने ज्यादा अवसर हमारी बेटियों को देंगे, जितनी सुविधाएं बेटियों पर केंद्रित करेंगे वे हमें उससे कई गुना लौटा कर देंगी। वो देश को और नई ऊंचाई पर ले जाएँगी।

इस बार लाल किले की प्राचीर से माननीय प्रधानमंत्री जी ने भी देश को यह संदेश दिया कि अगर हमें विकास के नए आयाम गढ़ने हैं तो हमें अपने देश की महिलाओं को साथ लेकर चलना होगा। हमें अपनी बेटियों को पर्दा से निकालकर प्रतिस्पर्धा में लाना होगा। इस आयोजन में मैं महिलाओं की presence भी देख रहा हूँ। मैं आपसे सीधा संवाद करते हुए, फिर से कहता हूँ कि आप लोगों को गुलामी के प्रतीक पर्दा की नहीं, बल्कि बराबरी के प्रतीक प्रतिस्पर्धा की कामना करता हूँ, तभी महिलाएं स्वयं का भी विकास कर पाएँगी और राष्ट्र निर्माण में भी अपनी भूमिका निभा पाएँगी।

तीसरी बात जो मैं करना चाहूँगा, वह रोजगार से संबंधित है। हमें एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जो रोजगार के उचित अवसर उत्पन्न करे। अभी हाल ही में आपने सुना होगा कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन गया है। इस जनसंख्या से हमें लाभ तो होगा, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है कि हमें इस विशाल जनसंख्या को एक high quality life देने के लिए अपने economic infrastructure की capacity को और enhance करना होगा। हमारे पास युवाओं की एक विशाल संख्या होगी, उनके अनगिनत सपने होंगे, बहुत ऊंची उड़ान भरने की उनकी जिद होगी, इसलिए हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हम ऐसा environment तैयार करें जो उनकी उड़ान को और ऊँचाई दे पाए।  मैं चाहता हूँ कि हमारे युवा शिक्षित हों, स्वस्थ हों, उनमें काबिलियत develop की जा सके। और उन्हें उनकी काबिलियत के अनुसार रोजगार के अवसर मिल सके।

साथियों, हमें एक ऐसी economic growth चाहिए होगी जिसमें हमारे पास एक Efficient market economy हो, जिसमें लोगों के पास economic freedom हो, कोई भी व्यवसाय शुरू करने का freedom, कोई भी नौकरी करने का freedom, ताकि वो बड़े सपने देख सकें, innovative ideas सोच सकें।

इसके अलावा हमें उन लोगों के बारे में भी सोचना होगा जो किसी बीमारी वश, physical या mental illness के कारण या फिर किसी पारिवारिक कारणों से दुर्भाग्य से अपने सपनों को पूरा न कर पाए हों। उनके standard of life को maintain करने के लिए भी हमें अपनी तरफ से उचित प्रयास करने होंगे। मैं इसे दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमें एक welfare state का निर्माण करना होगा। एक ऐसा welfare state जो अपनी जनता के लिए high quality nutrition, housing, Education एवं healthcare की व्यवस्था कर सके। इस तरह की ‘social safety net’ Provide कराने के लिए public और private दोनों ही sectors को मिल कर कार्य करना होगा।

यदि मैं भारत के राजनीतिक भविष्य की बात करूँ, तो मेरी यह इच्छा है कि जैसे-जैसे हम भविष्य में आगे बढ़ते जाएँ, वैसे-वैसे ही हमारा लोकतंत्र सुदृढ़ होता जाय। Criminalisation of Politics खत्म होती जाय, और हमारा देश credible politics के मार्ग पर आगे बढ़े। राजनीति को जनता की सेवा का एक माध्यम समझा जाय। साथियों हमारे देश में कई सारे राजनीतिक दल हैं। जाहिर सी बात है, राजनीतिक दल लोकतंत्र की धुरी होते हैं। बिना political parties के democracy survive ही नहीं कर सकती। लेकिन हमारे देश के कई राजनीतिक दलों में हमें यह देखने को मिलता है कि वह किसी विचारधारा पर प्रेरित राजनीति नहीं करते हैं बल्कि उनकी राजनीति किसी व्यक्ति व किसी परिवार व किसी जाति के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। मैं समझता हूं कि एक विकसित भारत में ऐसी राजनीति का कोई स्थान नहीं रहना चाहिए। राजनीति, परिवार, धर्म और जाति के आधार पर न होकर विचारधारा और मूल्यों के आधार पर केंद्रित हो।

आजकल आप देख सकते हैं कि किस तरह से लोग स्थानीय निकाय के चुनावों में भी अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। मैं ऐसे ही भारत का निर्माण चाहता हूँ, जहां हमारी local bodies भी पर्याप्त रूप से सशक्त हों। जहां राज्य सरकारें local bodies तक power का appropriate transfer करें। ठीक उसी प्रकार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच भी ऐसे संबंध हो जो cooperative federalism को बढ़ावा दें। सरकार और नागरिक के संबंध भी इतने अच्छे हों कि जहाँ सत्ता की तरफ से नागरिकों के अधिकारों का सम्मान हो तो वहीं नागरिक भी समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।

इसके अलावा जब हम सांस्कृतिक रूप से भारत के भविष्य की कल्पना करते हैं, तो हमारे मन में एक ऐसा भारत आना चाहिए जहाँ के नागरिक अपनी संस्कृति और अपनी सभ्यता पर गर्व करें। जहाँ हमारे प्राचीन मूल्यों का सम्मान हो; साथ ही नए विचारों का स्वागत हो। जहाँ महिलाओं और बुजुर्गों का सम्मान हो। मैं भारत की संस्कृति को गंगा की तरह प्रवाहमान देखना चाहता हूँ। आप देखिए कि गंगा में न जाने कितनी छोटी-बड़ी नदियाँ मिलती हैं, different sources से जल आकर गिरता है लेकिन इसके बावजूद गंगा का एक unique existence बना हुआ है। मैं भारतीय संस्कृति को भी उसी रुप में देखना चाहता हूँ जहाँ हम दूसरी जगहों से भी अपने लिए अच्छे विचार लें लेकिन अपनी संस्कृति को बनाए रखें। हमारे यहाँ कहा भी गया है, कि – नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:” अर्थात सभी ओर से हमारे लिए कल्याणकारी विचार आएं।

सांस्कृतिक रूप से मैं एक ऐसे भारत का निर्माण चाहता हूँ, जहाँ हमारी शास्त्रीय और लोक कलाओं को वही सम्मान मिले, उनका वही स्थान हो जो स्थान विश्व की श्रेष्ठतम कलाओं को मिलता है। यदि कोई माइकल जैक्सन के dance steps के बारे में जाने, तो वह हमारे भरतनाट्यम और कथकली जैसे शास्त्रीय नृत्यों की भी जानकारी रखे। सिंफनी, ओपेरा और बीथोवेन के music को जो स्थान मिलता है, वही स्थान हमारे शास्त्रीय संगीतों को भी मिले। हमारे कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत की धुन पर पूरी दुनिया गुनगुनाए। हाँ, हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि ये सब प्रयास सिर्फ सरकार के जिम्मे न हो, सरकार तो अपने स्तर पर प्रयास कर ही रही है लेकिन मैं इसमें एक व्यापक जन सहभागिता चाहता हूँ।

मैं चाहता हूँ कि BTS के बारे में जानने वाला हमारा युवा, तानसेन को भी उतना ही जाने। नेपोलियन के बारे में पढ़ने वाला हमारा युवा समुद्रगुप्त की विजय यात्रा के बारे में भी जाने। शेक्सपियर के हैमलेट को पढ़ने वाला हमारा युवा, भरतमुनि के नाट्यशास्त्र और कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम को भी उतना ही जाने।

हम संस्कृति के स्तर पर दुनिया से विचारों का आदान-प्रदान करते रहे। आप देख सकते हैं कि किस प्रकार से योग और आयुर्वेद को हमने एक वैश्विक पहचान दिलाने का प्रयास किया है। हम लगातार भारत की सांस्कृतिक पहचान को एक नई ऊंचाई पर पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं और मैं भविष्य में भी वैसे ही भारत को देखना चाहता हूँ जहाँ उसकी एक सांस्कृतिक संप्रभुता, यानी Cultural sovereignty हो।

अंत में, मैं इस बात का जिक्र करना चाहूँगा कि हमारा विकसित भारत, शेष दुनिया के लिए कैसा होना चाहिए। साथियों, हम जब से स्वतंत्र हुए तब से ही हम दुनिया भर में racism, colonialism, साम्राज्यवाद और युद्ध की विभीषिका जैसी global evils के ख़िलाफ आवाज़ उठाते आए हैं। लेकिन कुछ ऐसी universal values भी हैं, जो किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए होती है। इसलिए एक विकसित भारत के रूप में हमारी जिम्मेदारी इससे कहीं अधिक बढ़कर होगी। Spider-man movie का एक dialogue आपने सुना ही होगा- With great power comes great responsibility.

इसलिए जब हम एक super power के रूप में दुनिया के सामने आएँगे, तो हमें यह ensure करना होगा कि democracy, धार्मिक स्वतन्त्रता, मानव की गरिमा और वैश्विक शांति जैसे जो universal values हैं, वो पूरी दुनिया में क़ायम हो सके। हाँ, हमें यह भी ध्यान में रखना होगा, कि हम अपने विचार किसी पर न थोपें।

आप रोमन साम्राज्य के दौर से लेकर आज तक देखें, तो आम तौर पर जो dominant power होती है, वह राजनीतिक या आर्थिक रूप से सबको अपने ढाँचे में ढालती है। या कम से कम उस दिशा में प्रयास तो करती ही है। लेकिन हमारी संस्कृति इससे अलग है, हम यह मानते हैं कि हर सभ्यता के विकास का अपना तरीका होता है। हम दूसरों पर अपने विचार थोपते नहीं हैं। हमें इस भाव को superpower बनने के बाद भी बनाए रखना होगा। हम superpower होकर भी एक नई रवायत शुरू करेंगे कि हम किसी को inferior और superior दृष्टिकोण से नहीं देखेंगे। हम चाहे यूरोप के किसी विकसित देश के साथ हों या फिर अफ्रीका के किसी विकासशील देश के साथ, हम दोनों से ही परस्पर सम्मान और बराबरी का भाव रखेंगे। हमें अपने इस स्वभाव को विकसित राष्ट्र बनने के बाद भी बनाए रखना है।

साथियों, अब तक हम देखते आए हैं, कि आज तक humanity का evolution इस तरीके से हुआ है, कि कोई अद्भुत क्षमता या विचारों वाला व्यक्ति आता है, और मानवता को एक स्वप्न दिखाता है, और जब मानवता उनके सपनों को समझ लेती है, तो उनके बताए रास्ते पर चलती है और सभ्यताओं का निर्माण होता है। लेकिन वह दूसरे दौर की बातें थी कि  कोई एक व्यक्ति सपने देखता था और पूरी civilization उस आदमी के सपनों को follow करती थी। तब मानवता ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को उस तरीके से स्वीकार नहीं किया था जिस तरह से आज किया है। आज दौर बदल गया है। वो कहते हैं न, कि वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है….. आज का समय लोकतंत्र का है। मैं यह नहीं चाहता कि मैं सपने देखूं और आप उस पर काम करें; या आप सपने देखें और कोई तीसरा उस पर काम करे।

यह देश जितना मेरा है उतना आपका भी है, इसलिए मैं तो चाहता हूं कि आइए साथ मिलकर एक नए भारत के लिए सामूहिक स्वप्न देखें। और जब उन सपनों पर आम राय हो जाय तो मिलकर उनको पूरा करने की तरफ आगे बढ़ें। इसलिए मैं ये नहीं कहूँगा कि I have a dream, बल्कि मैं यह कहूँगा कि, Let’s have a dream.

आइये, मिलकर स्वप्न देखें एक ऐसे भारत का, जहां कश्मीर से कन्याकुमारी, और कच्छ से कामरूप तक के लोगों में राष्ट्र निर्माण की एक समान चेतना व्याप्त हो। जहाँ बिना किसी भेदभाव के सभी भारतवासी, भाईचारे की समतल ज़मीन पर एक साथ बैठ सकें। जहां एक छोटी सी दूब, यानि घास का तिनका भी उसी गर्व के साथ सीना चौड़ा करके खड़ा हो सके, जिस गर्व के साथ खड़ा होता है कोई विशाल बरगद। जहाँ समाज के आखिरी छोर पर खड़ा व्यक्ति भी यह महसूस करे कि यह देश उसका भी है, इस राष्ट्र के निर्माण में उसका भी योगदान है।

आइये, स्वप्न देखें एक ऐसे भारत का, जहाँ हमारी generations का आकलन उनकी जाति व धर्म से नहीं, बल्कि उनके ज्ञान और चरित्र से हो। जहाँ हर भारतीय को सभी मानवाधिकार सुलभ हों, और उनके अंदर भी उनके कर्तव्यों के प्रति निष्ठा हो।

आइये स्वप्न देखें एक ऐसे भारत का जहाँ कोई भूखा न रहे, जहाँ कोई गरीब न रहे, जहाँ सबको रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ एक गरिमामयी जीवन मिले। जहाँ शासन-तंत्र के सूरज की रौशनी बस पहाड़ों की चोटियों तक ही न पहुँचें, बल्कि निचली खाइयों में भी बराबर पहुँचें; यानि व्यवस्था सबके लिए समान हो।

आइये, स्वप्न देखें एक ऐसे भारत का, जो इतना शक्तिशाली हो, कि वह स्वयं की रक्षा तो करे ही। साथ ही वह अपने अहंकार पर भी विजय पाते हुए, दुनिया में कहीं भी हो रहे किसी अन्याय के ख़िलाफ पूरी ताकत के साथ खड़ा हो सके।

आइये, स्वप्न देखें एक ऐसे भारत का, जहाँ धर्म में राजनीति नहीं, बल्कि राजनीति में धर्म हो, और जनता की सेवा को हर राजनेता अपना धर्म समझे। हर भारतवासी को अपने देश पर, अपनी संस्कृति पर गर्व हो।

हमें अमृतकाल की समाप्ति तक एक ऐसे ही भारत का निर्माण करना होगा जिसमें हमारी आने वाली पीढ़ियाँ फल-फूल सकें; और मेरा विश्वास है, कि हमारा आने वाले भारत कुछ ऐसा ही होगा।

इसके साथ ही, अब मैं और कुछ न कहते हुए अपनी बात यहीं पर समाप्त करना चाहूँगा। इस कार्यक्रम की सफलता की कामना करते हुए, एक बार फिर, आयोजकों को अपनी तरफ से आभार व्यक्त करना चाहूँगा, कि उन्होंने मुझे इस चर्चा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद! जय हिंद।