Text of RM’s speech at the Commissioning Ceremony of INS Sandhayak in Visakhapatnam

आज, विशाखापत्तनम में, survey vessel large class के पोतों में सबसे पहले पोत, “INS संधायक” की commissioning समारोह में, आप सबके बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है।

 

साथियों, भारतीय नौसेना के लिए, आज का दिन ऐतिहासिक है। INS संधायक का हमारी नौसेना में शामिल होना, निश्चित रूप से हमारी नौसेना की, इस पूरे क्षेत्र में शांति व सुरक्षा को बनाए रखने में सहायता करेगा।

 

मैं भारतीय नौसेना को, INS संधायक प्राप्त होने की बधाई देता हूं।

 

साथियों, आज जब मैं आप सबके बीच उपस्थित हुआ हूं, तो मैं आप सभी Naval warriors से, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में हमारी नौसेना की भूमिका, तथा INS संधायक के ऊपर कुछ बातें करना चाहूंगा।

 

साथियों, जहां तक मैं समझता हूं, शिक्षा हो या सुरक्षा, यानि education हो या defence and security, उसके विकास के मुख्यतः 3 stages होते हैं। हम शिक्षा का उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए कोई बच्चा है, तो बचपन में उस बच्चे की शिक्षा का तथा उसके पालन-पोषण का ध्यान उसके घर वाले रखते हैं। घर वाले उसकी देखभाल करते हैं। घर वाले उसे पढ़ाते हैं। घर वाले उसे यह बताते हैं, कि क्या-क्या पढ़ना है। लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वह इस स्थिति में पहुंच जाता है, कि वह अपना ध्यान खुद रखने लगता है।

 

एक समय उसकी ऐसी स्थिति आती है, कि वह अखबारों से, इंटरनेट के माध्यम से या अलग-अलग किताबों से खुद से ही पढ़ने लगता है। यानी कि उम्र में बड़े होने पर वह अपने पालन-पोषण तथा अपनी शिक्षा-दीक्षा का ख्याल खुद से रखने में सक्षम हो जाता है।

इसके बाद एक तीसरी स्टेज भी आती है, जिसमें वह बच्चा पूर्ण वयस्क बनता है। उस स्थिति में वह अपनी क्षमता से दूसरों को शिक्षा देता है, समाज में शिक्षा का प्रसार करता है ।

 

कहने का अर्थ पहला स्टेज हुआ दूसरों पर निर्भर होने का, दूसरा स्टेज हुआ आत्मनिर्भर होने का, और तीसरा स्टेज हुआ अपनी आत्मनिर्भरता के साथ-साथ दूसरों की भी सहायता करने का।

 

ठीक यही चीज किसी देश की सुरक्षा के मामले में भी देखी जाती है। जब कोई देश अपने विकास के शुरुआती चरण में होता है, तो वह अपनी सुरक्षा के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहता है। चाहे वह किसी संधि के माध्यम से दूसरे देश पर निर्भर रहे, या फिर हथियारों के आयात के माध्यम से दूसरे देशों पर निर्भर रहे।

 

लेकिन जैसे-जैसे विकास के क्रम में वह देश विकसित होने की ओर अग्रसर होता है, वैसे-वैसे उस देश के अंदर यह क्षमता आने लगती है, कि वह अपनी सुरक्षा खुद से करने में सक्षम हो जाता है। और इसके बाद हमें तीसरी स्टेज भी देखने को मिलती है, जब वह देश इतना शक्तिशाली हो जाता है, कि वह अपनी सुरक्षा तो करता ही है, साथ ही साथ अपने friendly nations की सुरक्षा करने में भी सक्षम हो जाता है।

 

साथियों, पहले स्टेज से तीसरे स्टेज तक पहुंचने में हमें कई सारे परिवर्तन देखने को मिलते हैं, लेकिन उन परिवर्तनों में एक बहुत ही बारीक चीज पर मैं आप सभी का ध्यान आकर्षित कराना चाहूंगा। इन तीनों ही stages में हमें क्षमता का अंतर तो दिखता ही है। जहां एक तरफ पहले स्टेज पर आप खुद की रक्षा नहीं कर पाते, वहीं तीसरे स्टेज तक पहुंचते-पहुंचते आप इतने सक्षम हो जाते हैं, कि आप दूसरों की भी रक्षा कर सकते हैं। तो क्षमता का अंतर तो यहां पर है ही, लेकिन क्षमता की इस वृद्धि के साथ-साथ एक अन्य बड़ा factor काम करता है, वह नीयत का, यानि हमारी intention का है।

 

अपनी, तथा अपने परिवार व समाज की रक्षा करना, हर व्यक्ति व समाज का एक survival instinct होता है, उसकी स्वाभाविक प्रकृति होती है। मानव सभ्यता की शुरुआत हुई तो वह इसी survival instinct के आधार पर हुई। तब के समय मनुष्य जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करता था। पर जैसे-जैसे सभ्यताओं का विकास होता गया, वैसे-वैसे रक्षा के मानक भी अलग-अलग होते गए। लेकिन सुरक्षा के मूल में मनुष्य और समाज का ध्यान सिर्फ स्वयं की सुरक्षा तक ही सीमित रहा। क्योंकि स्वयं की सुरक्षा करना हर व्यक्ति या समाज के लिए उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी होती है।

 

लेकिन जब आप इस जिम्मेदारी से ऊपर उठकर स्वयं के साथ-साथ दूसरों की भी सुरक्षा करते हैं, तब आपकी नीयत का अंतर दिखता है। जब आप अपनी सुरक्षा से ऊपर उठकर दूसरों की सुरक्षा करते हैं, तो यह आपके संस्कार दिखाते हैं, आपकी संस्कृति को परिलक्षित करते हैं। हमारे शास्त्रों में एक श्लोक का उल्लेख आता है-

विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परपीडनाय।

खलस्य साधोर् विपरीतमेतद्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥

अर्थात् दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये, और शक्ति दूसरों का दमन करने के लिये होती है। जबकि सज्जन विद्या का उपयोग ज्ञान में, धन का उपयोग दान में, और शक्ति का उपयोग दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं।

 

इस सूक्ति को यदि भारत के परिप्रेक्ष्य में रखकर समझा जाए, तो आप पाएंगे कि स्वतंत्रता के बाद हमें अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अनेक मोर्चे पर हम कठिनाइयों का सामना कर रहे थे, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में हम लगातार अपनी सुरक्षा के लिए आगे बढ़ते रहे। हमने अनेक आघातों से अपनी सुरक्षा की और आज विकास के क्रम में हम इतने आगे बढ़ चुके हैं, खासकर यदि मैं अपने naval power की बात करूं, तो हमारी नौसेना इतनी सशक्त हो चुकी है, कि हम हिंद महासागर तथा हिंद प्रशांत क्षेत्र में security के मामले में first responder बन गए हैं।

साथियों, यदि वैश्विक व्यापार की बात की जाए, तो हिंद महासागर तो वैसे भी एक hotspot के रूप में गिना जाता है। अदन की खाड़ी, गिनी की खाड़ी आदि कई choke points हिन्द महासागर में मौजूद हैं, जहां से होकर बड़ी मात्रा में अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता है। इन choke points पर अनेक खतरे भी बने रहते हैं, लेकिन जो सबसे बड़ा खतरा बना रहता है वह समुद्री लुटेरों का है।

 

बीते दिनों, आप जानते हैं, कि किस प्रकार से समुद्री लुटेरों ने अरब सागर में, हमारे coast से लगभग 2000 किलोमीटर दूर, एमवी लीला नॉरफॉक नामक एक जहाज को हाईजैक करने का प्रयास किया। लेकिन भारतीय नौसेना ने अपनी सूझबूझ व साहस का परिचय देते हुए उस जहाज को लुटेरों के चंगुल से सुरक्षित बाहर निकाला। अभी हाल ही में आईएनएस इंफाल की कमिश्निंग सेरेमनी थी। उसमें मैंने कहा था, कि जो लोग नापाक गतिविधियां कर रहे हैं, उन्हें हम सागर के तल से भी ढूंढ निकालेंगे, और कठोर कार्रवाई करेंगे। उस बात को मैं आज फिर से दोहराता हूं। समुद्र में चोरी-डकैती और तस्करी से जुड़े लोगों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, यह नए भारत का प्रण है।

 

साथियों, ऐसे अनेक अवसर हिंद महासागर क्षेत्र में आते रहते हैं, जब हमारी नौसेना द्वारा सिर्फ भारतीय जहाजों की ही नहीं, बल्कि विदेशी जहाजों की सुरक्षा का भी उदाहरण सामने आता है। एक तरह से यह हम सबके लिए गर्व का विषय है, कि हिंद महासागर क्षेत्र में हमारी भारतीय नौसेना की वजह से न सिर्फ सुरक्षित व्यापार संभव हो पा रहा है, बल्कि इस पूरे region में peace and prosperity को भी बढ़ावा मिल रहा है।

 

साथियों, आपने अभी बीते सप्ताह की एक और खबर पर भी ध्यान दिया होगा, जब अदन की खाड़ी में एक ब्रिटिश जहाज, ड्रोन हमले का शिकार हुआ, और उस जहाज में रखे तेल के टैंकर्स पर आग लग गई। इस घटना के तुरंत बाद उस जहाज ने इमरजेंसी कॉल की, और उस कॉल का जवाब देते हुए भारतीय नौसेना ने जिस तरह से आग को बुझाने में सफलता प्राप्त की, उसकी पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है। दुनिया के अनेक रक्षा विशेषज्ञ इसे एक महाशक्ति के उदय होने की पृष्ठभूमि बता रहे हैं।

 

साथियों, यही हमारी नीयत है, और यही हमारा संस्कार है। इसी की बात मैं आपसे कर रहा था। विकास के क्रम में अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर रहने से लेकर, दूसरों की सुरक्षा करने तक का जो सफर है, उसमें सबसे बड़ा अंतर नीयत का ही है। यदि आपकी नीयत अच्छी है, यदि आपकी संस्कृति में ऐसे तत्व है, तभी जाकर आप दूसरों की सुरक्षा निस्वार्थ भाव से कर सकते हैं।

 

और हमें यह स्वीकार करने में बेहद गर्व होता है कि भारत की संस्कृति ऐसी है कि हम अपनी सुरक्षा के साथ-साथ दूसरों की भी सुरक्षा करते हैं। हिंद महासागर, तथा हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में हो रही अनेक घटनाएं इस बात का उदाहरण हैं, कि किस प्रकार हमारी नौसेना बेहद मजबूती के साथ न सिर्फ अपनी सुरक्षा कर रही हैं, बल्कि दूसरों की भी सुरक्षा उसी तत्परता के साथ कर रही हैं।

 

साथियों, हमारी इसी नीयत का ही प्रभाव है कि हम अपनी बढ़ती शक्ति के साथ-साथ सिर्फ इस क्षेत्र से ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से अराजकता को मिटाने के लिए संकल्पित है। हम चाहते हैं कि freedom of navigation, freedom of trade and commerce बना रहे, दुनिया के अलग-अलग देशों के बीच अबाध व्यापार सुनिश्चित हो। हमारी बढ़ती शक्ति का उद्देश्य है, कि हम rules based world order को सुनिश्चित करें। हमारी बढ़ती शक्ति का उद्देश्य है, कि हम हिंद महासागर तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में illegal and unregulated fishing को भी रोकें। हमारी नौसेना की बढ़ती शक्ति, इस क्षेत्र में narcotics व human trafficking को भी रोक रही है।

 

हमारी नौसेना, इस क्षेत्र में न सिर्फ piracy को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि हम इस पूरे क्षेत्र को शांत व समृद्ध बनाने के लिए भी committed हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे इस उद्देश्य की प्राप्ति में “INS संधायक” एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

 

साथियों, जब मैं यहाँ नीयत की बात कर रहा हूँ, तो बहुत सोच-समझकर कर रहा हूँ। नीयत बहुत बड़ी और महत्त्वपूर्ण चीज़ है। और साथ ही यह नियति से, यानि destiny से बहुत गहराई से जुड़ी है। जिसकी जैसी नीयत, उसकी वैसी नियति। यह अकारण नहीं है, कि आज हम नियति के शहर, यानि ‘City of destiny’, विशाखापत्तनम में हमारी नीयत की बात कर रहे हैं। हम जिस साफ-सुथरी, और विश्व-शांति की नीयत के साथ अपनी नौसेना को मजबूत कर रहे हैं, यही नीयत विश्व-शांति के उन्नायक के रूप हमारी नियति बनेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

 

साथियों, यदि मैं specifically “INS संधायक” की बात करूं, तो हम सब जानते हैं, कि यह एक survey vessel है। इसका मुख्य कार्य, इस पूरे region में survey करना होगा। इसका मुख्य उद्देश्य इस पूरे region को जानना होगा। अब, जब जानने की बात आती है, तो आप सबको मालूम है, कि हमारी संस्कृति में जानने को, और जानने की उत्सुकता को बहुत महत्व दिया गया है।

 

चाहे वह खुद को जानना हो, प्रकृति को जानना हो, ईश्वर को जानना हो या फिर अपने आसपास बिखरे हुए ज्ञान को जानना हो, हमारी संस्कृति में जानने के तत्वों का हमेशा से सम्मान किया गया है। आप जितना अधिक जानते जाएंगे, उतना ही आप मजबूत होते जाएंगे, तथा उतना ही आप विवेकपूर्ण भी होते जाएंगे। ज्ञान हमारी सबसे बड़ी ताकत होती है साथियों। ‘Knowledge is power’. अगर हमारे पास ज्ञान है, तो हमारे पास शक्ति है। हमारे पास ज्ञान है, तो हमारे पास संभावनाएँ हैं। और हमारे पास ज्ञान है, तो हमारे पास सर्वस्व है।

 

यह हमारी संस्कृति की विशेषता है, कि वह हमें जानने को प्रोत्साहित करती है। कठोपनिषद में वर्णित यम-नचिकेता संवाद आप देख लीजिए, वहां नचिकेता की उत्सुकता थी, उनकी जानने की इच्छा ही थी जो नचिकेता को अमर कर गई। ठीक इसी प्रकार आप श्रीमद भगवदगीता को देख लीजिए, यह अर्जुन के जानने की उत्सुकता ही थी, जिसने भगवदगीता जैसे बड़े ग्रंथ की रचना का आधार रच दिया।

 

साथियों, ठीक इसी प्रकार, जिस तरह से अपने आप को जानना आवश्यक है, इस तरह से अपने surroundings को जानना भी अत्यंत आवश्यक है। आप अपने आसपास के क्षेत्रों से यदि भली-भांति परिचित होंगे, तभी आप अपने साथ-साथ दूसरों की सुरक्षा करने के उद्देश्यों की पूर्ति कर पाएंगे।

 

साथियों, समुद्र अथाह है, समुद्र विशाल है, और हम उसके जितने अधिक से अधिक तत्वों को हम explore कर पाएंगे, उतना ही हमारे knowledge में विस्तार होगा तथा उसी मात्रा में हम मजबूत भी होते जाएंगे। जितना अधिक हम समुद्र को जानेंगे, जितना अधिक हम उसकी ecology को जानेंगे, जितना अधिक हम उसके फ़्लोरा-फ़ौना को जानेंगे, उतना ही हम अपने उद्देश्यों की पूर्ति के नजदीक पहुंचते चले जाएंगे। जितना अधिक हम समुद्र को जानते जाएँगे, हम उतने ही सार्थक रूप से अपने strategic interests की पूर्ति कर पाएंगे।

 

इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि “INS संधायक”, भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महाशक्ति की भूमिका को और बल प्रदान करेगा। मैं भारतीय नौसेना को “INS संधायक” की commissioning पर अपनी तरफ से ढेर सारी बधाई देता हूं। मैं, इस पोत के निर्माणकर्ता, GRSE के सभी कार्मिकों, उसके Scientists, Engineers, Machinists और उसके officials को भी अपनी बधाई देता हूँ। आप सभी की लंबे समय की मेहनत, और समर्पण आज साकार हुआ है। “INS संधायक” की जानने की क्षमता, और भारतीय नौसेना का पराक्रम, यह दोनों चीजें मिलकर, हिंद महासागर क्षेत्र में निश्चित रूप से भारत को एक edge प्रदान करेगी।

 

अंत में एक बार फिर से, आप सभी को अपनी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं देते हुए, मैं अपना निवेदन यहीं पर समाप्त करता हूं।

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय हिंद!