आज ‘Indian Institute of Management’,
रांची के Convocation यानि दीक्षांत समारोह में,
आप सभी के बीच उपस्थित
होकर मुझे बेहद खुशी हो रही है।
सबसे पहले इस
वर्चुअल दीक्षांत समारोह में मुझे आमंत्रित करने के लिए IIM रांची के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर शैलेन्द्र सिंह जी का
धन्यवाद देना चाहूंगा।
अपनी शिक्षा-दीक्षा
पूरी करने के बाद, डिग्री प्राप्त करना किसी भी विद्यार्थी का
बड़ा सपना होता है। उसमें भी IIM रांची जैसे प्रतिष्ठित
संस्थान से यह उपाधि मिलना तो और भी गर्व की बात है। इसलिए आज इस संस्थान से
डिग्री प्राप्त कर रहे, सभी छात्रों को मैं
बहुत-बहुत बधाई, और उनके आगामी जीवन के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
अभी हाल ही में आप
लोगों ने अपना 12वां स्थापना दिवस मनाया है। पिछले 11
वर्षों से यह संस्थान, ‘Hard work’, ‘Honesty’, और ‘Humility’
से,
राष्ट्र निर्माण में जो
योगदान दे रहा है, वह सराहनीय है। इस संस्थान के alumni भी Management और Corporate Excellence के नये और ऊंचे मापदंड
स्थापित कर रहे हैं. यह उनकी खुद की योग्यता के साथ-साथ इस संस्थान के Excellence को भी दर्शाता हैं.
साथियों,
एक संस्थान के रूप में
प्रबंधन का संबंध, झारखंड से भले ही 12 वर्ष पहले जुड़ा हो,
पर कौशल के रूप में यह
जुड़ाव सदियों पुराना है। Ancient
period में
इस क्षेत्र का संबंध, मगध, मौर्य एंपायर और चाणक्य
से रहा है, जो प्रबंधन में आज भी इतिहास के शीर्ष नामों में से
एक हैं। आप सब इसका इतिहास जानते हैं। मैं अधिक विस्तार में नहीं जाऊंगा। बस इतना
कहूंगा, कि कुशल प्रबंधन से ‘शून्य’
से ‘शिखर’
तक की यात्रा कैसे तय
की जा सकती है, यह नाम उसकी एक मिसाल हैं।
इसलिए आज भी जब जब
मैनेजमेंट की बात होती है, बिना इन नामों के वह
बात अधूरी लगती है। हम इतिहास की सीख का, वर्तमान में उपयोग करते
हुए, भविष्य की राह निर्मित करें। यह भी प्रबंधन का एक
विशेष अंग है। यह संस्थान इस मंत्र के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है, ऐसा मेरा विश्वास है।
साथियों,
समय के साथ पूरी मानवता
को प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। वर्तमान में कोविड के संकट ने,
सभी स्तरों पर,
वह चाहे व्यक्तिगत हो,
सामूहिक हो,
सांस्थानिक अथवा
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर हो, प्रबंधन की परीक्षा ली
है। यानी survival के इस exam
में,
वही लोग सफल हुए हैं,
जिनका प्रबंधन अत्यंत
मजबूत रहा। बड़ी खुशी की बात है, कि हमारा देश भी उनमें
से एक है।
यह सोचने वाली बात है,
कि जिस महामारी के
सामने अच्छे-भले, बड़े, और साधन संपन्न राष्ट्र धराशाई हो गए…,
आर्थिक और तकनीकी रूप
से संपन्न होने के बावजूद, उन्होंने इस संकट के
सामने घुटने टेक दिए…, उन्हें भारी मात्रा में
जानमाल का नुकसान भी उठाना पड़ा। उनके मुक़ाबले
हमारे देश ने,
सीमित संसाधनों के
बावजूद, अपेक्षाकृत कम नुकसान उठाया। न केवल कम नुकसान,
बल्कि प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमने, इस आपदा को अवसर में भी
बदला। हम उन क्षेत्रों में भी अपने पैरों पर खड़े होने की दिशा में आगे बढ़े,
जो अब तक अछूते थे।
Masks,
PPE Kits, वेंटिलेटर, और अन्य उपकरणों का, न हमने केवल पर्याप्त
मात्रा में उत्पादन किया, बल्कि जरूरत पड़ने पर
बाहर देशों को, उनके निर्यात भी किए। शिक्षा,
स्वास्थ्य,
अर्थव्यवस्था,
उद्योग और कृषि के
क्षेत्र में, हम अनेक बड़े देशों की अपेक्षा बेहतर रहे।
टेक्नोलॉजी के उपयोग को हमने अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया,
और नए जोश और उत्साह के
साथ फिर से अपनी यात्रा शुरू कर दी। आज का यह दीक्षांत समारोह,
उसी का एक उदाहरण है।
आज जब COVID-19 ने हमारी Physical Interaction को सीमित कर दिया है, तो यह Technology ही हैं जो हमे एक दूसरे से जुड़े रहने में मदद कर रही है।
और हमें याद रखना चाहिए कि ये सभी Technologies उन कुछ Innovative Minds के अथक परिश्रम का परिणाम हैं जो
हमारे जीवन को आसान बनाने के लिए उत्सुक और समर्पित थे।
और यह युवाओं के लिए सबसे बड़ा Inspiration है। आप को भी मानवता की भलाई के
लिए अपनी कल्पना शक्ति यानी “Power of Imagination” का उपयोग करना होगा।
COVID-19 के दौरान आपने देखा होगा कि कैसे
हमारी Medical Fraternity ने Tirelessly और Selflessly लोगों की सेवा की। यह साबित करता
है कि आप की सर्वश्रेष्ठ योग्यता हमेशा विपरीत परिस्थितियों में और लोगों की सेवा
करते समय ही सामने आती हैं।
Convocation का अर्थ होता हैं की आप Campus की इस
दुनिया से निकल कर Real Life Challenges का सामना करने के लिए तैयार हैं। ऐसे में आप
सब को Inspiration की आवश्यकता
पड़ेगी।
और यह मेरा
दृढ़ विश्वास है की किसी भी चीज से अधिक आपका गौरवशाली अतीत, आपकी समृद्ध परंपरा हैं जो आपको प्रेरित कर सकती है।
अभी कुछ दिन
पहले ही हम सब ने राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया है। इस दिन को उस महान गणितज्ञ
श्रीनिवासन रामानुजन के सम्मान में मनाया
जाता है,
जिसने अनंत की खोज की। एक ऐसे गणितज्ञ, जिसने महज 32 साल के जीवन में गणित की 4 हजार से ज्यादा ऐसी थ्योरम पर रिसर्च की, जिन्हें समझने में दुनियाभर के गणितज्ञों को भी सालों लगे।
लेकिन मैं
अपने युवा दोस्तों को याद दिलाना चाहता हूँ कि इतना Brilliant Mind भी असफलताओं से अछूता नहीं रह पाया था।
वह 12वीं में दो बार फेल हुए थे। पर आज उसी स्कूल में जिसमे वह
पढ़े थे, उसका नाम उनके नाम पर ही है।
इसीलिए मैं
हमेशा कहता हूँ “No
Success is Final and no Failure
is Fatal” (फेटल).
कोई भी सफलता
अंतिम नहीं होती है और कोई भी विफलता घातक नहीं होती।
हम में से
ज्यादातर लोग, असफल होने पर इतने निराश
हो जाते हैं कि हार मान लेते हैं। लगता हैं कि ऐसा क्यों हुआ? लेकिन हमें यह समझना होगा कि सफलता तक पहुँचने का रास्ता
अक्सर असफलता की गलियों से ही गुजरता हैं। दुनिया में कोई भी सफल व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जिसने असफलता
का सामना न किया हो।
नेल्सन
मंडेला का नाम तो आप लोगो ने सुना ही होगा। उनकी कही एक बात आपको बताता हूँ।
उन्होंने कहा था, “अपने नसीब का मालिक मैं खुद हूँ – अपनी आत्मा का कप्तान मैं
खुद हूँ!”
इसी वाक्य
ने नेल्सन मंडेला को साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति के पद तक पहुँचाया और वे करोड़ों
लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने। अगर उनके जीवन पर नजर डाले तो आपको एक लंबे समय
तक किया गया संघर्ष नजर आएगा। मंडेला ने करीब 27 साल तक संघर्ष किया और अपनी आधी जिंदगी उन्होंने जेल में
गुजारी।
क्या आप सोच
सकते है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास रहने के लिए कमरा नहीं था और इसलिए वो
दोस्तों के घर पर फर्श पर सोता था, वो व्यक्ति दुनिया की सबसे सफल मोबाइल और कम्प्यूटर कंपनी का संस्थापक बन
सकता है? जी हाँ मैं Apple
कम्पनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स की बात कर रहा हूँ।
एक समय तक उनके
पास रहने के लिए घर और खाने के लिए पैसे नहीं थे। एक समय तो ऐसा भी आया की उन्हें
अपनी खुद की ही कंपनी से निकाल दिया गया। लेकिन अपने निरंतर प्रयासों के द्वारा
उन्होंने अपने सपने को साकार किया।
ऐसे अनगिनत Examples हैं। सब यही सिखाते हैं कि दृढ़ता और धैर्य सफल व्यक्ति के
जीवन में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
हमारी सारी
कमज़ोरिया हमारे दिमाग में ही होती हैं।
इस सन्दर्भ
में आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ।
एक बार एक
व्यक्ति एक शहर घूम रहा था। अचानक वह एक सर्कस के बाहर रुक गया और वहां रस्सी से
बंधे हुए एक हाथी को देखने लगा और सोचने लगा की जो हाथी जाली, मोटे चैन या कड़ी को भी तोड़ देने की शक्ति रखता है वह एक
साधारण रस्सी से बंधे होने पर भी क्यों कुछ नहीं कर रहा हैं।
उस व्यक्ति
नें तभी देखा कि हाथी के पास में एक ट्रेनर (Trainer) खड़ा था। यह देखकर उस व्यक्ति ने ट्रेनर से पुछा यह हाथी
अपनी जगह से इधर उधर क्यों नहीं भागता या रस्सी क्यों नहीं तोड़ता है? ट्रेनर ने जवाब दिया की जब यह हाथी छोटा था तब से हम इसी
रस्सी से बांधते थे।
तब यह बार-बार
इस रस्सी को तोड़ने की कोशिश करता था पर कभी तोड़ नहीं पाया और इस कारण हाथी को यह
विश्वास हो गया कि रस्सी को तोड़ना असंभव हैं।
आज जबकी वह इस
रस्सी को तोड़ने की ताकत रखता है फिर भी वह यह सोच कर कोशिश भी नहीं कर रहा है कि जब
पूरा जीवन मैं इस रस्सी को तोड़ नहीं पाया तो अब क्या तोड़ पाऊंगा।
यह सुनकर वह
व्यक्ति दंग रह गया।
उस हाथी की तरह
ही हम भी कई बार असफल होने के बाद कोशिश करना छोड़ देते हैं। आने वाले समय में आप
सब अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे जहाँ सफलताओं के साथ असफलताए भी होंगी। जो भी हो कोशिश
हमेशा जारी रखियेगा।
आने वाले
समय में जब नयी चुनौतियां आपके समक्ष होंगी तो आपका आत्मविश्वास और जो ज्ञान आप सब
ने यहाँ से अर्जित किया है वही आप का Moral Compass होगा, आगे बढ़ने में आपका सहायक होगा।
यहाँ एक और
महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूँ। आपमें से बहुत से ऐसे छात्र होंगे जिनको वह काम
करने का मौका तुरंत मिल जाएगा जिस काम को आप पसंद करते है। पर कुछ लोग ऐसे भी
होंगे जिन्हें यह सौभाग्य शायद न मिले। उनके लिए मैं यह कहूँगा की जो भी काम मिले
उसमें खुशी खोजियेगा। मैं मानता हूँ जो लोग अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं वह
पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं।
We all are
not so lucky, to do what we like. The idea is, to like what we do.
आज आप सब इस
बहुत ही प्रतिष्ठित संस्थान से ग्रेजुएट होकर नयी चुनौतियों का सामना करने जा रहे
है तो मैंआप को बताना चाहता हूँ की आशंका के पलो में अपने इतिहास के
स्वर्णिम पन्नो को ज़रूर पढियेगा।
हमारा इतिहास
जीवन के बहुमूल्य पाठों का भण्डार है।
आपकी आधुनिक
शिक्षा को आपके गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेने में बाधक नहीं होना चाहिए। जैसे
की विज्ञान की पढ़ाई का मतलब यह नहीं की आप ईश्वर में आस्था न रखे और यहाँ पर मैं
एक बार फिर से रामानुजन का ज़िक्र करना चाहता हूँ।
उन्होंने
कहा था “An equation is meaningless to me unless it expresses a
thought of God”.
सदियों से भारत ने
ज्ञान और आत्म-खोज के नये मापदंड स्थापित किए है। चाहे वह भौतिक विज्ञान या
सामाजिक विज्ञान हो, आध्यात्मिक ज्ञान हो, हर फील्ड में नए कीर्तिमान स्थापित किए है।
Bodhayan ने पाइथागोरस प्रमेय (Pythagoras Theorem) पाइथागोरस से 300 साल पहले ही खोज लिया था।
एक प्रसिद्ध
रूसी इतिहासकार के हिसाब से भारत प्लास्टिक सर्जरी में क्राइस्ट के जन्म होने से
पहले ही निपुणता हासिल कर चुका था। भारत ऐसा पहला देश था जिसने एक सुचारू रूप से
चलने वाला अस्पताल स्थापित किया था।
भारत आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, बोधायन, चरक, सुश्रुत, नागार्जुन, कणाद से लेकर सवाई जयसिंह तक वैज्ञानिकों की एक लंबी परंपरा
का साक्षी रहा हैं। प्रसिद्ध जर्मन खगोलविज्ञानी कॉपरनिकस से लगभग 1000 वर्ष पूर्व
आर्यभट्ट ने पृथ्वी की गोल आकृति और इसके अपनी धूरी पर घूमने की पुष्टि कर दी थी।
इसी तरह
आइजक न्यूटन से 1000 वर्ष पूर्व ही ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त
की पुष्टि कर दी थी। यह एक अलग बात है कि किन्हीं कारणों से इन सब खोजों का श्रेय
पाश्चात्य वैज्ञानिकों को मिला।
Astronomy में भास्कराचार्य का विशिष्ट योगदान है। बारहवीं शताब्दी
में उन्होंने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ और ‘करण कुतुहल’ नामक दो ग्रंथों की रचना की थी। भास्कर ने एक तो गोले की
सतह और उसके घनफल को निकालने के जर्मन ज्योतिर्विद केपलर के नियम का पूर्वाभ्यास
कर लिया था।
दूसरे
उन्होंने सत्रहवीं शताब्दी में जन्मे आइजैक न्यूटन से लगभग 500 वर्ष पूर्व Gravitation Theory यानि गुरुत्वाकर्षण
के सिद्धांत को जन्म दिया था।
विज्ञान में
भारत की उपलब्धियों की लिस्ट बहुत लम्बी है पर भारत अन्य क्षेत्रों में भी कोई
पीछे नही था। अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन इन सब विषयो में
भी हमारा देश Pioneer रहा है।
चाणक्य के
अर्थशास्त्र को उदाहरण के तौर पर ले लीजिये। अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र का ऐसा
व्यापक एवं स्पष्ट ग्रन्थ है जिसमें केवल राजनीतिक चिंतन ही नहीं बल्कि कूटनीति की
विधियों,
राज्य की नीतियों, क़ानून एवं प्रशासन, अर्थव्यवस्था के संगठन आदि का भी ज्ञान प्राप्त होता है।
आज जब हम सब
New India के निर्माण के लिए काम कर रहे है तो हम सब के लिए ज़रूरी है की अपनी
धरोहर को समझे। इतिहास के मूल्यों को समझ कर भविष्य की ओर बढ़े।
साथियों,
किसी भी देश का भविष्य,
उसके youth
पर निर्भर होता है।
हमारा youth, हमारे देश की सबसे विशाल ताकत है। मेरा हमेशा
मानना रहा है, कि युवा बदलाव का सबसे बड़ा उत्प्रेरक,
और सबसे शक्तिशाली स्रोत
होता है। ‘Invention’, ‘Innovation’ और ‘Ideas’ के दम पर युवा,
किसी भी चुनौती का
सामना करने, और उन्हें अवसर में बदलने की क्षमता रखते हैं। देश
के विकास, और नव राष्ट्र निर्माण के लिए,
प्रबंधन के क्षेत्र में
भी युवाओं की, इन्हीं क्षमताओं की आवश्यकता है। जिस राष्ट्र से
हमें इतना कुछ प्राप्त हुआ है, उसे return करने के लिए भी हमें उसी ऊर्जा से आगे
आना चाहिए।
एक और महत्वपूर्ण बात, कि
इस राष्ट्रीय प्रबंधन का पाठ हमें कोई बाहर से पढ़ाने नहीं आया था।
यह हमारी Inherited विरासत है, जिसे हमें न केवल संजोकर रखना
है, बल्कि
उसे आगे भी बढ़ाना है।
यह
विरासत हमें न केवल living, बल्कि non-living things से
भी रिश्ते जोड़ना सिखाती है। चेतन ही नहीं बल्कि जड़ से भी रिश्ते जोड़ना सिखाती है।
आज भी हम अपने घरों में देखते होंगे, जो चीजें हमारे लिए अनुपयोगी हो जाती
हैं, हमारे
माता-पिता उन्हें भी संभालकर रख लेते हैं।
और वे चीजें आगे काम भी आती हैं।
आज
हम इसे sustainable development का
एक अंग मानते हैं। मेरा तो मानना है साथियों, कि
माता-पिता नामक प्राणी, इस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रबंधक होते
हैं, जो
बिना किसी डिग्री के परिवार जैसी संस्था का प्रबंधन करते हैं। हमें उनसे भी बहुत
कुछ सीखने की जरूरत है।
साथियों, हम भारत को एक
सुपर पॉवर बनाना चाहते हैं। देश को सुपर पावर
बनाने के लिए, शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग
आदि के क्षेत्र में हमें और भी कुछ बड़ा हासिल करने की जरूरत है। इन क्षेत्रों में
जितना potential हमारे देश के अंदर है,
उसका अभी पूरा उपयोग
नहीं हुआ है ।
साथियों, जब हम भारत को सुपर पॉवर बनाने की बात करते हैं तो
हमे देश के सभी राज्यों में विकास के potential का भी ध्यान रखना होगा। अब उदहारण के तौर पर झारखंड को ही लें, तो यहाँ विकास की अपार संभावनायें
हैं। यहाँ Minerals and Metals की capital है, प्राकृतिक सौंदर्य है,
क्या नहीं है ? विकास हो परन्तु उस क्षेत्र के environment, society और culture की Cost पर नही होना चाहिए।
इन दोनों ही चुनौतियों
का सामना करने के लिए, हमारे युवा प्रबंधकों को आगे आना होगा। जो लोग
यहां से हैं, वे तो जानते ही हैं, और जो अन्य राज्यों से विद्यार्थी आए हैं, मैं चाहता हूं कि वह भी
यहां की स्थानीयता को जाने और समझें। इसमें संस्थान भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाएँ।
साथियों, मैं यह भी कहना चाहूंगा कि Text books की पढ़ाई तो हम करते
ही हैं साथियों, हमें अपने जीवन और समाज को भी पढ़ने का हुनर होना चाहिए। कुछ समस्याओं
का समाधान, केवल स्थानीयता से ही संभव होता है। हमें उसे
जान-समझकर व्यवहार में लाने की जरूरत है।
आप लोकल कम्युनिटीज से
मिलें, किसानों, उद्यमियों से मिलें। उनके कार्य
व्यवहार को देखें, और उनसे सीखेँ, कि कैसे कम संसाधनों
में भी, बेहतर प्रबंधन हो सकता है। सीमित संसाधनों में भी
बेहतर कर सकने की क्षमता ही, आपके व्यक्तित्व को
निखारती है।
साथियों,
आज entrepreneurship की परिभाषा बदल रही
है। ‘local entrepreneurship’ धीरे-धीरे केंद्र में आ
रही है,
जिसमें Globalisation के साथ-साथ Localisation, निजता के साथ-साथ sense of Community पर भी बल दिया जा रहा
है। हम सौभाग्यशाली हैं, कि हमारे देश में यह
अवधारणा लंबे समय से मौजूद है। इसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
टेक्नोलॉजी के माध्यम
से आप न केवल Local
Products, बल्कि Local लोगों के कौशल को भी बाहर लाएं,
और उनका प्रसार करें। ‘वोकल फॉर लोकल’
आज के समय की मांग है।
इन्हीं सब को ध्यान में रखते हुए ‘नेशनल एजुकेशन पॉलिसी’
में भी,
लोकल भाषाओं,
संस्कृतियों,
कलाओं के संरक्षण
संबंधी शिक्षा के प्रावधान किए गए हैं।
आज,
जब हमारा देश,
वैश्विक पटल पर हर
क्षेत्र में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज़ करा रहा है, हमें अपने प्रबंधन को
और मज़बूत, और ज़मीनी बनाना होगा। इसके लिए हमें प्रबंधन में,
अनुसंधान को भी बढ़ावा
देने की ज़रूरत है।
Developed
देशों में बकायदा इन चीज़ों
के लिए रिसर्च किए जा रहे है। text
books के
साथ साथ realistic होकर problem
solving पर ध्यान दिया जाता है। हम इन best practices को भी अपने पाठ्यक्रम
में शामिल करें, और उसके अनुसार आगे बढ़ें। यह हमारे छात्रों,
संस्थानों और हमारे देश,
सबके लिए हितकर होगा।
हमारी
शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल यह उठता है कि हम साल दर साल Graduates तो पैदा कर रहे है पर Employable
Graduates नहीं। हम इस समस्या को
समझते है। पर अन्य कारणों के साथ इस समस्या की वजह यह भी है कि हमारी Education system का
फोकस नौकरी हासिल करने पर अधिक था।
आज तक हम
अपने युवाओ को सिर्फ Job seekers बना रहे थे, पर अब हम उन्हें Job creators
बनाना चाहते है। आज हम अपने युवाओ को केवल Manpower के रूप में नहीं देखना
चाहते है। हम उनको Skilled Manpower के रूप में देखना चाहते
है। ऐसा युवक बनाना चाहते है जो भौतिक के साथ-साथ अध्यात्मिक दृष्टि से भी समृद्ध हो। तभी व्यक्तित्व का Comprehensive
Development संभव है।
v मित्रों हमारी सरकार की योजनाओं जैसे मुद्रा योजना ने Employment generation का एक नया Paradigm बहुत कम समय में तैयार किया हैं। It Empowered Youth to become Job Creators.
v स्टैंड अप इंडिया स्कीम को देखिये। इसका उद्देश्य First Generation Entrepreneurs को स्थापित करने में मदद करना है।
v आज हमारे सामने कई चुनौतियां हैं। और आज शिक्षा का उद्देश्य मुख्य रूप से इन चुनौतियों का सामना करने के लिए हमारे युवाओं को प्रशिक्षित होना चाहिए।
इसके
साथ ही हम, यह भी ध्यान रखें कि हमारा अपना जीवन संतुलित
रहे। बड़ी बड़ी चीज़ें manage करते
करते हमारा अपना management कब
खराब हो जाता है, पता भी नहीं चलता है। आपने भी अपने आसपास
ऐसे कई उदाहरण जरूर देखे होंगे। इसलिए हमें, अपने
Personal और
प्रोफेशनल लाइफ के बीच बैलेंस बनाकर चलना है।
मुझे
पूरा विश्वास है कि हमारे युवा साथी, जीवन
में प्रबंधन के हर एक स्तर पर खरे उतरेंगे। अपने साथ अपने समाज,
राष्ट्र
के कल्याण को भी लेकर चलेंगे और संस्थान के Motto
‘बहुमुख विकासो
गंतव्य:’ को साकार करेंगे।
हमेशा याद रखियेगा मनुष्य
अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।
व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि वह
विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।
अंत में कहना चाहूंगा कि आज का कार्यक्रम शिक्षान्त समारोह नहीं है, दीक्षान्त समारोह है। शिक्षा से ज्ञान की प्राप्ति होती है परन्तु दीक्षा से संस्कार की प्राप्ति होती है।
जीवन में केवल ज्ञान ही अपने में पर्याप्त नहीं है, ज्ञान के साथ-साथ युवक को संस्कारित भी होना चाहिए। कुछ जीवन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए। यह दीक्षा माता, पिता या गुरूजनों से ही प्राप्त होती है। दीक्षा से चरित्र निर्माण भी होता है।
एक
बार
स्वामी
विवेकानंद
जी
विदेश
के
दौरे
पर
थे।
वहां
पर
स्वामी
जी
की
वेशभूषा
देखकर
एक
व्यक्ति
ने
उनसे
पूछा
स्वामी
जी
आप
अपने
कपड़ों
को
बदल
क्यों
नहीं
देते
ताकि
आप
भी
एक
Gentleman की तरह
दिखार्इ
दे।
उस
समय
जो
स्वामी
विवेकानंद
जी
का
जवाब
था
वह
‘आत्मनिर्भर
भारत’
की
एक
झलक
देता
है।
उन्होंने
कहा
कि
महोदय
In
your country tailor makes the man, but in our country character makes the man.
मेरे
युवा
साथियों
स्वामी
विवेकानंद
जी
की
यही
बात
आपको
अपने
जीवन
में
उतारनी
है।
आपको
ज्ञान,
धन
और
संपदा
के
साथ-साथ अपनी
Character
Building पर भी
उतना
ही
ध्यान
देना
है।
इन्ही शब्दों के साथ आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए
अपनी बात समाप्त करता हूँ साथ ही मैं आप सभी को आने वाले नए साल की बधाई भी देता
हूँ।