Hindi Text of RM’s speech at the Foundation stone laying ceremony of ‘Gurukulam and Acharyakulam’ in Haridwar

स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय की इस पुण्य भूमि पर आज आप सभी आचार्यों, गुरुओं व उनके शिष्यों, और आप सभी बहनों और भाइयों के बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। सर्वप्रथम मैं, इस ऐतिहासिक गुरुकुल से जुड़े हुए सभी व्यक्तियों को, गुरुकुल के गौरवशाली 118 वर्ष पूरे होने पर बधाई देता हूं। स्वामी दर्शनानंद जी के विचारों व आदर्शो पर, स्थापित यह महाविद्यालय, जिस प्रकार शिक्षा के तीर्थ के रूप में कार्य कर रहा है, वह अपने आप में प्रशंसनीय है।

मैं, इस गुरुकुल के संस्थापक, स्वामी दर्शनानंद जी को, उनकी जयंती के पावन अवसर पर नमन करता हूं। उनकी जयंती के शुभ अवसर पर, पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट ने इस नवीन गुरुकुल के निर्माण की आधारशिला रखने का जो संकल्प लिया है, उस संकल्प की पूर्ति के लिए उन्हें शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों, जब भी गुरुकुल परंपरा का जिक्र आता है, तो हमारे जेहन में इतिहास के झरोखे खुल जाते हैं, कि कैसे एक समय भारत में गुरु शिष्य परंपरा थी, जहां शिष्य, एक निश्चित आयु तक गुरु के आश्रम में जाकर उनकी सेवा करते हुए शिक्षा ग्रहण करते थे।

यह गुरुकुल की परंपरा शिक्षार्थियों को शिक्षा तो प्रदान करती ही थी, लेकिन साथ ही साथ समाज में शुचिता और नैतिकता का समावेश भी करती थी।

साथियों, आप सब तो जानते ही हैं, भारत में सनातन धर्म के संस्कारों में गोत्र की व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस देश में सप्त ऋषियों के नाम के आधार पर गोत्र का प्रचलन शुरू हुआ। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कहे कि उसका गोत्र भारद्वाज है, तो इसका अभिप्राय यह है कि उसकी पहचान ऋषि भरद्वाज से जुड़ी है।

हम सब किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के दौरान या महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यों के दौरान गोत्र को वरीयता देते हैं। शादी-विवाह में भी गोत्र की पहचान की जाती है। जब हम इस गोत्र व्यवस्था की जड़ तक जाते हैं, तो हमें पता चलता है कि यह भी इस देश के ऋषियों-मनीषियों और गुरुओं की ही देन है। सनातन धर्मावलाम्बियों की पहचान ही गुरुओं के नाम पर आधारित है।

साथियों, गुरु की प्रशंसा आपको भारत के हर शास्त्र में मिल जाएगी। साथियों, कि इस देश में ईश्वर तक के अस्तित्व पर एक बार वाद-विवाद हो सकता है, लेकिन किसी भी शास्त्र में आपको गुरु के अस्तित्व पर कोई मतभेद देखने को नहीं मिलेगा।

भारत में हर शास्त्र, हर धर्म, व हर पंथ गुरु के महत्व को स्वीकार करता है। गुरु के महत्व को सब ने माना है। गुरु-शिष्य की बड़ी विशिष्ट परंपरा रही है हमारे देश में। यह वह देश है, जहाँ गुरुवाणी और गुरुग्रंथ को ईश्वर का दर्जा दे दिया जाता है, तो शिष्य के नाम पर पूरा पंथ प्रारंभ हो जाता है। आप लोग जानते हैं, हमारे देश में जो सिख धर्म है, वह शिष्य शब्द से ही निर्मित है। भारत में कई सारे ऐसे धर्म और संप्रदाय हैं, जो गुरुवाणी के आधार पर ही कायम है। इसलिए मेरा यह मानना है कि यदि भारतीय संस्कृति जीवित है तथा यह सनातन बनी हुई है तो इसकी जीवंतता को बनाए रखने में इस देश के गुरुओं का सबसे बड़ा योगदान है।

हमारी संस्कृति, ईश्वर की महत्ता से भी ज्यादा गुरुओं की महत्ता को स्वीकार करती है।

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी तो यहां तक लिखते हैं, कि-  “गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई । जौ बिरंचि संकर सम होई।।” अर्थात भले ही कोई ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों ना हो, लेकिन गुरु के बिना वह भवसागर को पार नहीं कर सकता।

इस संस्कृति की अवधारणा तो यह है कि संसार में मनुष्य को जन्म भले ही माता-पिता देते हों, लेकिन मनुष्य जीवन का सही अर्थ गुरु कृपा से ही प्राप्त होता है।

साथियों, भारत में इसी गुरुकुल परंपरा ने भारत को शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित किया। आप ध्यान दीजिए, कि आज से लगभग 1000-1500 साल पहले तक इस देश में कितने बड़े-बड़े विश्वविद्यालय थे, जहां गुरुकुल परंपरा प्रचलित थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से लेकर विक्रमशिला विश्वविद्यालय होते हुए नालंदा विश्वविद्यालय तक इस देश में अनेक ऐसे शैक्षणिक संस्थान थे, जिन्होंने शिक्षा की ऐसी अलख जगाई थी, जिससे समूचा विश्व दीप्तिमान होता था। जहां दर्शन, गणित, विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र व कला आदि विद्याओं का ज्ञान दिया जाता था।

साथियों, उसके बाद की स्थिति आप सभी जानते हैं कि किस प्रकार से इस देश में शैक्षणिक गुलामी की एक लंबी श्रृंखला शुरू हुई। आप लोगों ने मैकाले का नाम सुना होगा। मैकाले एक ब्रिटिश अधिकारी था, जिसको ब्रिटेन से भारत इसलिए भेजा गया था ताकि भारतीयों को मानसिक रूप से गुलाम बनाया जा सके। आप कल्पना करके देखिए कि जिस भारत ने दुनिया को वेद जैसे उत्कृष्ट साहित्य दिए, मानव जीवन के गहन दर्शन पर आधारित श्रीमद्भगवद्गीता और  उपनिषद दिए। जिस भारतीय संस्कृति ने दुनिया को medical science से संबंधित चरक संहिता व सुश्रुत संहिता दिया,

जिस संस्कृति ने दुनिया को भास्कराचार्य और आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञ दिए, उस संस्कृति तथा वहां के साहित्य के बारे में मैकाले ने एक बार टिप्पणी की थी, कि “यूरोप की लाइब्रेरी की एक अलमारी भारत के पूरे साहित्य संग्रह से भी श्रेष्ठ है।”

उसके बाद एक रणनीतिक तरीके से मैकाले ने  इस gekjh f”k{kk व्यवस्था का गला घोंट कर एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की, कि उसने हमारी गुरुकुल व्यवस्था को लगभग समाप्ति के कगार तक पहुंचा दिया। उस दौर में ऐसी शैक्षणिक प्रणाली विकसित हुई, जिसमें हमारे युवाओं को ऐसी शिक्षा प्रदान की गई, जो इस देश की सांस्कृतिक भावना के अनुकूल नहीं थी।

न जाने हमारी कितनी पीढ़ियों ने, भारतीय संस्कृति को inferior मानते हुए शिक्षा ग्रहण की। इस inferiority का कुछ ऐसा भाव था, कि हम सिर्फ राजनीतिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी गुलामी के शिकार होते गए। विदेशी आक्रमणकारियों ने जिस शिक्षा व्यवस्था को लागू कराया, उसमें भारत को हिकारत भरी नजरों से देखा गया।

साथियों, जब इस देश में ऐसा माहौल तैयार हुआ था, उस समय उस अंधकार के खिलाफ ज्योति जलाते हुए स्वामी दर्शनानंद जी ने इस गुरुकुल की स्थापना करके जो प्रकाश फैलाया, उससे आज तक हमारी युवा पीढ़ी प्रकाशित हो रही है।

और वर्तमान में भी जो समय चल रहा है, तथा विदेशी संस्कृति के अंधानुकरण से समाज में जिस प्रकार से नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि गुरुकुल आगे आएँ, और समाज में नैतिक मूल्यों का समावेश करें। हमें आधुनिक शिक्षा की जरूरत है, इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। देश में जो व्यवस्था चल रही है, वह मॉडर्न education प्रदान भी कर रही है, पर modern knowledge के साथ-साथ हमारी नैतिक विरासत भी सुरक्षित रहे, इसलिए नए भारत में नए गुरुकुलों का होना आवश्यक है।

साथियों, भारत सरकार नई शिक्षा नीति के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा से ही विद्यार्थियों के मन में नैतिक मूल्यों का समावेश करने के लिए प्रतिबद्ध है। देशभर के अनेक शैक्षणिक संस्थानों में नई शिक्षा नीति को लागू किया जा रहा है, हालांकि यह प्रक्रिया बहुत लंबी है, क्योंकि शैक्षणिक व्यवस्था में कोई भी परिवर्तन अचानक से नहीं आता। इसलिए इस लंबी प्रक्रिया में गुरुकुल अपनी बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। और इसी भूमिका का निर्माण करते हुए जिस प्रकार से पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट एक विशाल एवं श्रेष्ठ गुरुकुल की स्थापना करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, वह निश्चित रूप से हमारे शिक्षा व्यवस्था के लिए शुभ संकेत है।

साथियों, आमतौर पर गुरुकुल का जिक्र आते ही, हमारा ध्यान शिक्षा की प्राचीन पद्धतियों पर चला जाता है। कुछ लोग तो आज भी, किसी नदी किनारे, किसी कुटी में गुरु और शिष्यों की सभा को ही गुरुकुल समझते हैं। गुरुकुलों को विशुद्ध रूप से यज्ञ और तप आदि से जोड़कर देखते हैं। आज भी यह सब बातें सही हैं। पर गुरुकुल इनसे बहुत आगे बढ़ चुके हैं। गुरुकुल भी modern और state of the art हो रहे हैं। यह गुरुकुल स्वयं इस बात का एक बड़ा उदाहरण है। इसलिए अब बदलते भारत, और बदलते समय की माँग है, कि गुरुकुल पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ स्वयं को emerging और cutting edge technology, जैसे AI एवं क्वांटम technology जैसे क्षेत्रों में भी आगे बढ़ाए।

न सिर्फ इन क्षेत्रों में स्वयं को आगे बढ़ाए, बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूंगा, कि गुरुकुल आने वाले समय में AI आदि technologies से भी आगे की सोचें, और ऐसी technologies develop करें, जो राष्ट्र को इस sector में बाकी देशों से अग्रणी बनाए। मेरी यह शुभेच्छा है, कि गुरुकुल इस क्षेत्र में भारत के बाकी शैक्षणिक संस्थाओं के लिए मार्गदर्शक का काम करें। आने वाले समय में गुरुकुल, एक बार फिर से भारत और भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करें, और भारत की नई पहचान बनें।

साथियों, वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से यदि देखें तो सांस्कृतिक विकास में गुरुकुल की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। इसे आप इस प्रकार से समझिए कि, सांस्कृतिक उत्थान की दिशा में सरकार जो प्रयास कर रही है, उन प्रयासों का अर्थ सिर्फ सांस्कृतिक एवं विरासत स्थलों पर infrastructure development से ही नहीं है। जब हम काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बना रहे हैं, जब हम उज्जैन के महाकालेश्वर धाम में infrastructure development पर काम कर रहे हैं, जब हम देश के सारे तीर्थ स्थलों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, जब इस देश में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि हमारा ध्यान सिर्फ सांस्कृतिक स्थलों के infrastructure development पर ही है।

ये सब चीज़ें तो महत्वपूर्ण है ही, इसलिए की भी जा रही हैं, लेकिन हम इससे भी कहीं आगे की सोच रखते हैं। हम सांस्कृतिक संरक्षण यानि cultural preservation से भी आगे सांस्कृतिक संवर्धन यानि cultural development की दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां इस देश की संस्कृति पर गर्व करें। और मेरा विश्वास करिए, इस दिशा में इस देश के गुरुकुल बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं।

मैं इस मंच से बाबा रामदेव जी और आचार्य बालकृष्ण जी का भी आभार व्यक्त करता हूं। जब मैं आप दोनों को देखता हूं तो मुझे एक बात याद आती है।

कुछ समय पहले मैंने सोशल मीडिया में एक तस्वीर देखी थी, जिसमें आप दोनों के बारे में यह बताया गया था कि जब आप दोनों के पास संसाधन नहीं थे, तो आप खुद से जड़ी-बूटियां कूटकर, साइकिल से उसका वितरण करते थे। वहां से जो सफर आप लोगों का शुरू हुआ, वह इतनी बड़ी मंजिल तक पहुंचा है, यह अपने आप में हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है।

बाबा रामदेव जी ने तो जिस प्रकार से योग को जनसुलभ बनाया है तथा इसका प्रसार किया है, वह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी मानवता की सेवा करने जैसा है।

साथियों, eSa tkurk gwW कि इस देश में अनेक लोगों ने कई छोटे-बड़े रोगों के उपचार में बाबा रामदेव के द्वारा सिखाए गए योग का सहारा लिया है। तो आप देखिए कि ज्ञान का उद्गम एक जगह हो रहा है, लेकिन इसका प्रसार कई जगह पर हमें दिख रहा है। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट उत्तराखंड की पहाड़ियों में भले ही स्थित है, लेकिन इसके द्वारा किए जा रहे कार्यक्रमों के लाभार्थी हमें भारत  के सुदूर इलाकों में भी मिलते हैं। सिर्फ भारत ही क्यों, दुनिया के भी अनेक भागों में आपके कार्यक्रमों के लाभार्थी हमें मिलते हैं। भारत के कई घरों में सुबह-सुबह आप टेलीविजन पर बाबा रामदेव के द्वारा सिखाए गए योग कार्यक्रमों को देख सकते हैं।

योग, वैसे तो बहुत गूढ़ विद्या है, बड़ी कठिन चीज है, लेकिन उसको जिस सरलता से जनमानस तक बाबा रामदेव पहुंचा रहे हैं, वह अपने आप में प्रशंसनीय है।

साथियों, बाबा रामदेव जी ने सैकड़ो वर्ष पुरानी हमारी योग परंपरा को practical रूप में जिस तरह से जनमानस के सामने रखा है, वह कोई छोटा काम नहीं है। हालाँकि योग की विद्या हमारे यहां तो सदियों पुरानी है, लेकिन आक्रांताओं के प्रभाव के कारण एक समय ऐसा भी आया कि इसका ज्ञान लगभग लुप्तप्राय हो चुका था।

पर आज तो, बताते हैं, कि लोग घर और पार्क में तो योग करते ही हैं, बस, ट्रेन, मेट्रो और जहाज में भी बैठे-बैठे ध्यान कर रहे होते हैं, या फिर अपने नाखूनों को आपस में रगड़कर बाल काले करने का प्रयास कर रहे होते हैं। यह छोटी बात नहीं है। यह अपने आप में एक क्रांति है।

इसलिए यह बाबा रामदेव जी की विशेष क्षमता है कि उन्होंने इतनी पुरातन व्यवस्था को, आधुनिक समाज के हिसाब से modify करके जनता तक पहुंचाया। साथियों, महर्षि पतंजलि यदि योग दर्शन के inventer थे, तो मेरी नज़र में, योग दर्शन को आधुनिक जनता के बीच में पहुंचाने वाले बाबा रामदेव जी उस दर्शन के re-inventor है।

साथियों, आज योग अगर भारत के घर-घर तक पहुंचा है, तो उसमें बाबा रामदेव का बहुत बड़ा योगदान है। कई बार आपने लोगों के मुंह से यह कहते हुए सुना होगा कि एक अकेला आदमी परिवर्तन नहीं ला सकता, एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, लेकिन बाबा रामदेव इस मुहावरे के विपरीत कार्य करते हुए भी अकेले योग के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहे हैं।

साथियों,  हम भारतवासी जिस भी दर्शन, या वस्तु का प्रतिपादन या निर्माण करते हैं तो वह हम सिर्फ अपने लिए नहीं करते, बल्कि हम पूरी मानवता के लिए करते हैं।

हम “वसुधैव कुटुंबकम” की धारणा पर चलने वाले लोग हैं, हमारे लिए पूरी दुनिया एक परिवार है, हम यदि अपने परिवार के कल्याण के लिए किसी दर्शन का प्रतिपादन करते हैं, तो इसका patent करवा कर नहीं रखते, और न ही हम योग के लाभार्थियों से कोई पैसे charge करते हैं। हमारा तो पूरा विपुल ज्ञान भंडार, समस्त दुनिया को समर्पित है। आज हर वर्ष 21 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाता है। जो योग केवल भारत तक ही सीमित समझा जाता था, आज पूरी दुनिया उसे न सिर्फ स्वीकार कर रही है, बल्कि अपने दैनिक जीवन का हिस्सा भी बना रही है।

अंत में मैं आप लोगों से एक अपने मन की बात भी कहना चाहता हूं। आप सब तो जानते ही हैं कि देव भाषा संस्कृत का हमारे साहित्य में कितना महत्वपूर्ण स्थान है। योग जैसा महत्वपूर्ण दर्शन भी महर्षि पतंजलि ने संस्कृत में ही लिखा था।

भारत में जो विशाल गुरु परंपरा रही है, उनका भी संस्कृत के संवर्धन में बहुत बड़ा योगदान रहा है, लेकिन साथ ही साथ संस्कृत से एक चिंता जनक बात यह भी जुड़ी रहती है कि इसको पढ़ने, लिखने व बोलने वाले लोग लगातार कम होते जा रहे हैं।

देव भाषा की यह स्थिति देखकर कभी-कभी मन को बहुत पीड़ा होती है। इसलिए आप सभी आचार्यों व गुरुओं के बीच में मैं एक सुझाव रखना चाहता हूँ कि जिस प्रकार से आप योग जैसी कठिन विधा को भी इतनी सुलभता से जनता तक पहुंचा रहे हैं, उसी प्रकार आप देव भाषा के संबंध में भी कोई प्रयास करें।

मुझे पूरा विश्वास है, कि इस देश के गुरुकुल ऐसी भूमिका निभाएंगे, tks देश के बाकी शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी अनुकरणीय बनेंगे।

मैं पुनः, श्री दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय को, उसके 118 वर्ष पूरे होने पर बधाई देता हूं। मैं पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को, विशेषकर स्वामी रामदेव जी, और आचार्य बालकृष्ण जी को बधाई देता हूँ। जिस संगठन में, और जिस कार्य में, रामजी, और कृष्णजी स्वयं संलग्न हों, उस कार्य की सफलता में भला कैसा संदेह। मैं आपके गुरुकुल के इस पवित्र project के लिए, अपनी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूं।

अंत में, अपनी बात समाप्त करते हुए मैं आप सभी का एक बार फिर से आभार व्यक्त करता हूं कि आपने इतने महत्वपूर्ण दिन पर, मुझे आप सभी से बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया।