श्री राजनाथ जी द्वारा अध्यक्षीय उद्बोधन-राष्ट्रीय परिषद, नई दिल्ली (18/01/14)

पिछली राष्ट्रीय परिषद में हम सब इसी दिल्ली में लगभग दस माह पूर्व मिले थे। इस बीच गंगा में बहुत पानी बह चुका है। परंतु जल की यह धारा शांत और निर्विकार नहीं है। इन लहरों में परिवर्तन की बेचैनी साफ दिख रही है। देश के जनमानस में परिवर्तन की लहरें हिलोरें ले रही हैं। ये लहरें सिर्फ सत्ता परिवर्तन के निमित्त नहीं, बल्कि भारत की साख, संवैधानिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और जनसामान्य की आशाओं पर हो रहे वज्रपात से निपटने के लिए है।

बदलाव की आशा से जनसामान्य किस ओर देख रहा है इसकी झलक हमें हाल ही में संपन्न राज्य विधानसभा चुनावों में मिल चुकी है। हमने चारों राज्यों में शानदार सफलता हासिल की है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हमारी सत्ता में तीसरी बार वापसी हुई है जो अपने-आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसके लिए मैं सहजता, सरलता और जनसेवा के प्रतीक मध्य प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान को बधाई देता हूँ तो वहीं अत्यंत विषम परिस्थितियों में देश के दुर्गम क्षेत्रों में से एक छत्तीसगढ़ में लगातार कमल खिलाने वाले कर्मठता के प्रतीक मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को भी बधाई देता हूँ। साथ ही मैं इन प्रदेशों में पार्टी के समस्त कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूँ, जिन्होंने अपने अथक प्रयत्न से यह इतिहास बनाने में भूमिका निभाई।

वहीं अपनी संघर्षशीलता, सांगठनिक कौशल एवं दक्ष प्रबंधन के द्वारा राजस्थान की मरुभूमि में कमल खिलने वाली श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया को भी बधाई देता हूँ और राजस्थान प्रदेश के समस्त भाजपा कार्यकर्ताओं को इस अभूतपूर्व बहुमत के लिए भी बधाई देता हूँ।

दिल्ली में भी डॉ. हर्षवर्धन के नेतृत्व में हम सबसे बड़े दल के रूप में उभरे परंतु बहुमत से कुछ कदम के फासले पर रह गए। जहां भारतीय जनता पार्टी ने अपनी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं आने दिया वहीं अन्य दलों ने सिद्धांतों और संकल्पों को ताक पर रखकर भाजपा को रोकने के लिए एक अवसरवादी गठजोड़ किया, जैसा कि हम भारत की राजनीति में पिछले कई दशकों से देखते रहे हैं। भाजपा को सबसे बड़ा दल बनाने के लिए मैं डॉ. हर्षवर्धन एवं प्रदेश के सभी कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूं। इस अभूतपूर्व जनादेश के लिए मैं इन चारों राज्यों की जनता के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।

विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिले भारी जनसमर्थन ने यह साबित किया है कि जनता भाजपा के सुशासन को खुले दिल से स्वीकार कर रही है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनावी सफलता की चर्चा तो मैंने कर दी परन्तु हमें गुजरात और गोवा की भाजपा सरकारों के शानदार परफॉरमेंस को भी नहीं भूलना चाहिए। इन प्रदेशों की जनता श्री नरेन्द्र मोदी और श्री मनोहर पर्रीकर के नेतृत्व वाली सरकारों के कामकाज की प्रशंसा मुक्त कंठ से कर रही है।

मैं देश के वैज्ञानिकों का भी आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन का निर्माण करके GSLV P-5 का सफल परीक्षण करके और मंगलयान के द्वारा अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई छलांग लगाई है और भारतीयों के मन में व्याप्त निराशा के अंधकार में गौरव की अनुभूति का एक अवसर भी दिया है।

मित्रों, अब देश लोकसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। वैसे तो देश में हर पांच वर्ष के बाद चुनाव आते हैं, परन्तु आगामी लोकसभा चुनाव अपने आप में देश के भविष्य का निर्धारण करने वाला एक निर्णायक चुनाव है। क्योंकि 2004 में आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली हमारी सरकार ने भारत को उँचाई के जिस मुकाम पर पहुँचाने का काम किया था, विगत दस वर्षों में कांग्रेस नेतृत्व की सरकार ने उस सारे काम का मानो काम-तमाम कर दिया है। यह बहुत चिंताजनक बात इसलिए है, क्योंकि जब 21वीं सदी का पहला सवेरा भारत में भाजपा नेतृत्व की सरकार में देखा था तो भारत आकाश में नई उँचाइयों की ओर बढ़ रहा था। दुनिया की तमाम बड़ी-बड़ी कंपनियां और संस्थान भारत आने को ललायित थे रोजगार के करोड़ों अवसर सृजित हो रहे थे। सारे विश्व में भारत की प्रगति के लिए ^^The Indian success story** कहा जाता था।

आज हालात पूरी तरह उलट गए हैं। दुनिया भर के निवेशकों और बड़ी-बड़ी कंपनियों मे भारत से बाहर जाने की होड़ लगी है। अतः अब  यह कहा जा रहा है The Indian sucess story is over.

हम सभी जानते है कि जब तक आपने शुरूआत न की हो सम्भावनाऐं बहुत दिखती है परन्तु जब शुरूआत होने के बाद यदि पतन का दौर आ जाये तो पूरी साख पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। लोगों का आप की क्षमता पर विश्वास खत्म होने लग जाता है फिर उस खोए हुए विश्वास को पुनः पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। भारत के साथ कुछ वैसा ही हो रहा है। इसलिए  आगामी चुनाव यह तय करेगा कि भारत के प्रति दुनिया का खोया हुआ विश्वास वापस लौटेगा या नही? मैं यह मानता हूं कि भाजपा सत्ता में आएगी तो दुनिया का भारत में विश्वास पुनः लौटेगा। The Indian Success story is not over, it is waiting for BJP to come into Power.

आंतरिक पक्ष में देखे तो देश के आम आदमी को महंगाई ने कुचलकर रख दिया है। भ्रष्टाचार ने स्वतंत्र भारत के इतिहास के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। भ्रष्टाचार तो पहले भी कई सरकारों में बहुत हुआ है। श्री नरसिंह राव की अल्पमत वाली कांग्रेस सरकार रही हो या श्री राजीव गांधी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार, इन सभी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। परन्तु वर्तमान यूपीए सरकार ने न सिर्फ भीषण भ्रष्टाचार किया बल्कि उस भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए निर्लज्जता की सीमाएं पार करते हुए न सिर्फ सरकारी तंत्र का दुरूपयोग किया बल्कि सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं को छिन्न-भिन्न करने का काम किया।

वैसे तो आप सभी को यह सारे प्रकरण याद होंगे फिर भी दो-तीन प्रमुख बिन्दु आवश्य हमारे ध्यान मे रहने चाहिए। इस सरकार ने अपनी स्थापना के साथ प्रधानमंत्री के पद और कैबिनेट की गरिमा को कम कर दिया। अभी हाल ही मे प्रधानमंत्री महोदय ने सत्ता के दो केन्द्रों की बात स्वीकार भी कर ली।

जुलाई 2010 में 2जी मामले पर जेपीसी बनाने के मुद्दे पर पूरा का पूरा मानसून सत्र सरकार की हठधर्मिता की भेंट चढ़ गया। अतः सरकार ने न्यायालय के हस्तक्षेप पर जेपीसी गठित की और जेपीसी की रिपोर्ट के साथ जो कुछ किया गया और वह पीएसी, जिसके सामने प्रधानमंत्री ने स्वयं उपस्थित होने की बात कही थी, उस पीएसी की रिपोर्ट को प्रस्तुत न होने देने के लिए कांग्रेस ने सपा और बसपा जैसे भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे दलों के साथ जो दुरभिसंधि की उसे सारे देश ने देखा। भारत के इतिहास मे इससे पहले कभी संसद और संसदीय कमेटियों की व्यवस्था को इस ढंग से धवस्त करने का प्रयास नहीं हुआ जैसा कि इस सरकार के समय हुआ।

कोयला घोटाला के विषय मे सीबीआई का दुरूपयोग, फिर सर्वोच्च न्यायालय मे गलत हल्फनामा और फिर न्यायालय द्वारा मांगे जाने पर फाइलें खो जाना देश के इतिहास में अभूतपूर्व शर्मनाक घटना थी। भ्रष्टाचारियों को बचाने की इस निर्लज्जता से लेकर महंगाई के विषय को लेकर मंत्रियों की असंवेदनशील टिप्पणियों तक जो कुछ भी घटित हुआ उसने आम आदमी का विश्वास पूरी की पूरी व्यवस्था पर से उठा दिया।

अंतर्राष्ट्रीय और आंतरिक परिस्थितियों के साथ साथ देश की सुरक्षा को लेकर सीमाओं पर और देश के अन्दर जो कुछ इन दस वर्षों में घटित हुआ है उसे देखकर कोई भी समझदार और राष्ट्रभक्त नागरिक विचलित हो जायेगा। विगत तीन चार वर्षों में चीन ने यहां सैकड़ों बार सीमा पर अतिक्रमण किया। जब-तब लद्दाख से लेकर अरूणाचल तक दादागिरी दिखाता रहा और भारत सरकार निरीह बनी रही और वहीं पाकिस्तान हमारे जवानों का सिर काटकर ले जाता रहा, उसके जश्न मनाने के वीडियो भी दिखे। भारत के आम आदमी का खून खौला, मगर भाजपा के अलावा किसी भी राजनैतिक दल का खून खौलता नजर नहीं आया।

आंतरिक सुरक्षा के मुददे पर देश के सभी गैर एनडीए राजनैतिक दल आतंकवाद के विरूद्ध कठोर कानून बनाने के हक में नहीं हैं जबकि आतंकवाद की घटनाओं मे भारी बढ़ोतरी हुई है। यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत दुनिया में आतंकवाद से सर्वाधिक पीड़ित देश है पर दुनिया का इकलौता देश है जो कि बगैर आतंकवाद विरोधी कानून के आतंकवाद से लड़ रहा है।

कहने का तात्पर्य यह है अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से लेकर देश की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा तक, संवैधानिक व्यवस्थाओं के क्षरण से लेकर प्रचंड भ्रष्टाचार और महंगाई तक ऐसा प्रतीत होता है कि मानो पूरी व्यवस्था ही धवस्त हो गई है। ऐसे में आम आदमी का व्यवस्था पर से विश्वास उठना स्वाभाविक है।

हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों मे भाजपा को शानदार सफलता हासिल हुई है और कांग्रेस लगभग लुप्तप्राय हो गई है। आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपनी पराजय मन ही मन स्वीकार कर ली है। परन्तु कांग्रेस राजनीतिक की बहुत चतुर और चालाक खिलाड़ी है। हम सब ने देखा कि दस साल तक कांग्रेस ने सरकार मे एक मुखौटे की ओट लेकर पीछे से सारी शक्ति का संचालन और देश का दोहन किया। अब कांग्रेस की रणनीति यह है कि अगले चुनाव मे किसी भी प्रकार से भाजपा को बहुमत के नजदीक पहुचने से रोका जाये इसके लिए उसने कुछ और शक्तियों की ओट लेकर भाजपा के विरूद्ध दुष्प्रचार शुरू किया है।

मित्रों, देश के अंदर और बाहर की खतरनाक परिस्थितियों से निपटने के लिए और आम आदमी के कष्ट काटने और धवस्त हो रही संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने  के लिए देश मे एक मजबूत सरकार चाहिए। परन्तु कांग्रेस ऐसा नही चाहती। क्योंकि यदि भाजपा की मजबूत सरकार आ गई तो गुजरात, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़ की भांति शायद कांग्रेस के भविष्य पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाये। अतः भाजपा एक ‘‘मजबूत’’ सरकार चाहती है पर कांग्रेस एक ‘‘मजबूर’’ सरकार चाहती है ताकि 1977, 1989 और 1996 की भांति उस सरकार को एक-दो वर्षो मे अस्थिर करके सत्ता में वापसी की कोई जुगत बैठाई जा सके। आज देश बहुत विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर ने भी कहा है कि यदि देश मे एक कमजोर सरकार आई  तो आर्थिक स्थिति और खराब हो सकती है। स्वाभाविक है कि महंगाई और बेरोजगारी से निजात सिर्फ एक मजबूत सरकार ही दे सकती है और मजबूत सरकार आज की परिस्थिति मे सिर्फ भाजपा ही दे सकती है।

मित्रों आप सभी 1977 से लेकर हाल में सम्पन्न विधानसभा चुनावों तक देख चुके हैं। कांग्रेस का विकल्प सिर्फ और सिर्फ भाजपा है। भाजपा के अलावा किसी भी अन्य दल को दिया गया वोट, चाहे वह कांग्रेस विरोध की कितनी ही दुहाई दे रहा हो, कांग्रेस के विरूद्ध हमसे ज्यादा तीखी भाषा का प्रयोग कर रहा हो, कभी भी कांग्रेस से हाथ मिला सकता है। आज भारत की राजनीति में एक युगांतर स्थापित हो रहा है। एक जमाना था जब कांग्रेस भारत की राजनीति के केन्द्र में थी और शेष सभी दल कांग्रेस को रोकने के लिए प्रत्यक्ष या प्ररोक्ष रूप से सामूहिक प्रयास करते थे। आज युग बदल रहा है, आज कांग्रेस समेत देश के कुछ अवसरवादी दल भाजपा को रोकने के लिए प्रत्यक्ष या प्ररोक्ष रूप से हाथ मिला रहे हैं। स्वाभाविक है कि भारत की राजनीति के केन्द्र मे अब भाजपा स्थापित हो चुकी है। अब भारत की राजनीति में कांग्रेस के युग का अंत और भाजपा युग का आरंभ हो चुका है। मैंने गत वर्ष दिल्ली की राष्ट्रीय परिषद मे यह कहा था भारत की राजनीति मे 20वी सदी कांग्रेस की थी अब 21वीं सदी भाजपा की होगी। एक वर्ष के घटनाक्रम ने देश की राजनीति के इसी दिशा मे बढने के संकेत दिये है अतः कांग्रेस मुक्त भारत के लिए एकमेव विकल्प भाजपा ही है।

मैं ईमानदारी से यह स्वीकार करता हूं कि आज देश में कांग्रेस ने जो हालात पैदा कर दिये हैं उससे देश के आम आदमी में एक गहरी हाताशा, निराशा  और कुंठा व्याप्त हो गई है। परन्तु यह भी एक यथार्थ है कि किसी भी व्यक्ति के धैर्य, धर्म और विवेक की परीक्षा उसी समय होती है जब वह सर्वाधिक हताशा और कुंठा के समय में हो। कांग्रेस पार्टी अपने कुछ सहयोगी दलों के द्वारा इस हताशा और कुंठा का प्रयोग देश को भाजपा नेतृत्व की मजबूत और सक्षम सरकार देने से रोकने के लिए कर रहे हैं। मैं देश की जनता से दो टूक कहना चाहूंगा कि यदि कांग्रेस की पीछे से लड़ाई लड़ने की रणनीति सफल हो गई तो देश में एक अस्थिरता उत्पंन होगी। देश और विदेश के उदाहरण ये प्रमाणित करते हैं कि ऐसी अस्थिरता में से या तो कोई ऐसा नेतृत्व उभरेगा जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूब जायेगा, अथवा ऐसा नेतृत्व उभर सकता है जो वोट बैंक की राजनीति के लिए सारे सामाजिक तानेबाने को छिन्न-भिन्न करने लगेगा अथवा ऐसा नेतृत्व उभर सकता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खतरनाक समझौते करने लगेगा अथवा ऐसा नेतृत्व उभर सकता जो अपरिपक्वता और अपनी छवि बनाने के चक्कर मे लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने लगे। हमे यह ध्यान रखना होगा कि ‘‘लूट का बंटवारा’’ करने वाले लोग तो जाने चाहिए परन्तु ‘‘भानुमती का पिटारा’’ लेकर सरकार चलाने वाले लोग भी नहीं आने चाहिए।

मुझे भारत की जनता की परिपक्वता और विवेक पर पूरा भरोसा है कि वह ऐसी किसी परिस्थिति को जन्म नहीं देगी बल्कि देश की सभी समस्याओं का समाधान करने में समक्ष श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को निर्णायक ताकत देगी। इन सारी समस्याओं का समाधन भाजपा के पास है।

इसका समाधान क्या है? इसका समाधान किसी एक मुददे मे नही, किसी एक तरीके में नहीं बल्कि एक बहु-आयामी क्षमता के साथ एक जांचें, परखें और खरे नेतृत्व के द्वारा हो सकता है जो देश को चार चीजें दे सकें।

1.    सुशासन

2. विकास

3. स्थिरता

4. सुरक्षा

परन्तु आज के भारत की स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है।

भारतीय अर्थव्यवस्था:

विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का ‘संक्रमण काल’ से गुजरना कोई बहुत अस्वाभाविक बात नहीं है। परन्तु जब कोई सरकार लगातार गलत आर्थिक नीतियों पर गलत नीयत के साथ चलती रहे तो अर्थव्यवस्था का यह ‘संक्रमण’ एक गंभीर ‘संक्रामक रोग’ में परिवर्तित हो जाता है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। इस रोग का कारण सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि राजनैतिक है।

एन.डी.ए. सरकार के समय 8 फीसदी से भी अधिक गति से घूमने वाला देश के विकास का पहिया आज यू.पी.ए. शासन में 5 फीसदी से नीचे की सुस्त रफ्तार पर आ गया है। आर्थिक सुस्ती के संकेत यू.पी.ए. सरकार के दुबारा सत्ता सम्भालने के बार से ही प्रारम्भ हो गये थे मगर पांच साल बीतने को हैं सरकार सिर्फ ‘कागजी घोड़े’ दौड़ाती रही और हवाई घोषणायें करती रही।

आज जब विश्व की लगभग सभी बड़ी अर्थव्यवस्थायें Revive कर रही हैं, वहां भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने अभी भी ‘Survive’ करने का संकट मुंह बाये खड़ा है। पिछले हफ्ते जो आर्थिक आंकड़े सरकार ने जारी किए हैं उसको देखते हुए इस बात की चिंता होती है कि महीने दर महीने जब आर्थिक आंकड़े एक निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं तो कम से कम एक ‘अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री’ के अन्दर कुछ कर दिखाने की तड़पन क्यों नहीं दिखाई देती?

पिछले हफ्ते नवम्बर माह के ‘IIP आंकड़े’ जारी किए गये और हमें जानकारी प्राप्त हुई कि इस महीने में भी औद्योगिक उत्पादन बढ़ने के बजाय 2.1 फीसदी की दर से घट गया है। यह सिर्फ एक महीने की बात नहीं है। अप्रैल 2013 से यदि हम हर महीने के औद्योगिक उत्पादन का औसत निकालें तो देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ने की अपेक्षा लगातार घटा है।

जब विश्वव्यापी मंदी 2008-09 में छाई थी तो भी भारत की अर्थव्यवस्था तबाह नहीं हुई क्योंकि यहां की ‘घरेलू मांग’ ने विकास के पहिए को थामें रखा। यू.पी.ए. सरकार ने अर्थव्यवस्था की इस मजबूती का लाभ उठाने के बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना बेहतर समझा और अब जो आर्थिक आंकड़े आ रहे हैं उसमें यह साफ पता चलने लगा है कि ‘Domestic Demand’ भी अब घटने लगी है। औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों में Consumer Non Durables के उत्पादन में आई 22 फीसदी की तेज गिरावट इशारा कर रही है कि भारतीय उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति घट रही है।

यू.पी.ए. सरकार समझती है कि बाजार में उवदमल money supply बढ़ने से यह मांग में वृद्धि कर सकती है। यदि सिर्फ पैसे की आमद से ही बाजारों और अर्थव्यवस्था में रौनक आनी होती तो भारत में विकास की दर में गिरावट आने की बजाय वृद्धि होती। आंकड़े बताते है कि वर्ष 2006 में भारत में कुल मुद्रा आपूर्ति या उवदमल money supply महज 25000 अरब रुपये थी जो दिसम्बर 2013 आते-आते बढ़ कर लगभग चार गुना यानि 92000 अरब रुपये हो चुकी है। इसके बावजूद न तो बाजार में मांग बढ़ी है और न ही देश की विकास दर में वृद्धि हुई है।

मुद्रा आपूर्ति में हुई इस वृद्धि ने यदि किसी चीज को बढ़ाया है तो वह महंगाई और भ्रष्टाचार को और इसे बढ़ावा देने में यदि किसी का हाथ है तो वह कांग्रेस नेतृत्व की यू.पी.ए. सरकार का है। अर्थव्यवस्था के नियम कहते हैं कि महंगाई एक मौद्रिक समस्या है जो मांग और आपूर्ति से प्रभावित होती है। लेकिन भारत में महंगाई एक राजनैतिक समस्या है जो कांग्रेस सरकार की देन है।

भारत की मौजूदा महंगाई के तार कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से सीधे जुड़े हैं। अभी हाल ही में टर्की के कुछ अर्थशास्त्रियों ने एक अनूठा शोध किया है जिसके माध्यम से महंगाई और भ्रष्टाचार के संबंध का पता चलता है। इन अर्थशास्त्रियों ने Transparency International के आंकडों तथा मंहगाई के आंकडों का तुलनात्मक अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है कि भ्रष्टाचार का महंगाई पर भारी असर पड़ता है। वर्ष 2006 में Transparency International के मुताबिक भारत की पारदर्शिता रैंकिंग 70 थी जो अब 94 पहुंच गई है। यही वह कालखण्ड है जब महंगाई ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना पूरा कब्जा जमाने में सफलता पाई है। महंगाई देश की जनता को सीधे-सीधे प्रभावित कर रही है फिर भी यू.पी.ए. शासनकाल में मंहगाई के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाही नहीं हुई।

यू.पी.ए. सरकार का आर्थिक प्रबंधन भी बेहद निराशाजनक रहा है। इसकी झलक पहले हमें भारत के बढ़ते Current Account Deficit में मिली जो एक समय 90 बिलियन डालर से अधिक पहुँच गया था। यू.पी.ए. सरकार के बढ़ते Current Account Deficit ने भारतीय रुपये की कमर तोड़ दी और उसे डालर के मुकाबले बहुत जल्द सीनियर सिटिजन की श्रेणी में पहुंचा दिया। डालर के मुकाबले रुपये में आई गिरावट से निर्यात को जो बढ़ावा मिलना चाहिए था वह भी प्राप्त नहीं हुआ है।

सरकार यह दावा कर रही है कि इस वित्त वर्ष में चालू खाता घाटे को 60 विलियन डालर तक सीमित रखा जायेगा मगर जिस तरह से सरकार अपने ही दावों को झुठलाती रही है उसे देखते हुए इस सरकार के किसी भी दावे पर यकीन करना मुश्किल है।

पिछले साल बजट प्रस्तुत करते समय वित्तमंत्री ने दावा किया था कि वित्त वर्ष 2013-14 में वित्तीय घाटे (Fiscal Deficit) को 5.42 लाख करोड़ से अधिक नहीं बढ़ने दिया जायेगा। जबकि हालत यह है कि नवम्बर 2013 में ही वित्तीय घाटे के बजट अनुमानों का 94 फीसदी हिस्सा खर्च हो चुका है और अभी चार महीनों का सरकार का हिसाब किताब बाकी है।

हाल ही में केन्द्र सरकार ने विदेशी कर्ज के जो आंकड़े जारी किए हैं वह और भी भयावह तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। मार्च 2013 को भारत का कुल विदेशी कर्ज 390 बिलियन डॉलर था जो सितम्बर 2013 में बढ़कर 400 बिलियन डॉलर को पार कर गया है। विदेशी कर्ज के भुगतान के लिए भारत का मौजूदा विदेशी मुद्रा भण्डार लगातार सिकुड़ता जा रहा है।

भारत के बढ़ते विदेशी कर्ज ने अन्तर्राष्ट्रीय जगत में भारत की साख घटायी है। आज प्रमुख विकासशील देशों में भारत का विदेशी कर्ज का बोझ सर्वाधिक है। जहाँ फिलीपींस, इंडोनेशिया और टर्की जैसे देशों का Debt to GDP Ratio पचास फीसदी से भी नीचे है, वहां भारत का Debt to GDP ratio लगभग सत्तर फीसदी (67.9%) है। इन परिस्थतियों को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजंसियाँ जैसे ‘मूडीज’ भारत की कर्ज आदयगी की क्षमता पर संदेह जता रही हैं।

भारत की सुस्त विकास दर, ताबड़तोड़ मंहगाई और केन्द्र की निर्णय प्रक्रिया में विलम्ब के कारण देशी-विदेशी निवेशकों का भारत से मोह भंग हो रहा है। भारत सरकार के खुद के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं। मौजूदा वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में थ्क्प् में 15 फीसदी की गिरावट हुई है।

यू.पी.ए. सरकार FDI को आकर्षित करने के लिए बिना सोच विचार किए एक के बाद एक क्षेत्र खोलती जा रही है। हाल ही में केन्द्र सरकार ने Railways को FDI के लिए खोल दिया, जबकि यह एक सरकारी उपक्रम है। आर्थिक नीतियों को तय करते समय संसद और विपक्ष को विश्वास में लिया जाना चाहिए मगर केन्द्र सरकार द्वारा मनमानी की जा रही है। यही मनमाना रवैया विनिवेश के मामलों में भी दिखाया जा रहा है। इससे अनिश्चितता बढ़ती है। बजट के दौरान सरकार ने 44000 करोड़ का विनिवेश लक्ष्य रखा था मगर वह बमुश्किल 3000 करोड़ ही जुटा पाई है।

देश की अर्थव्यवस्था को पुनः रास्ते पर लाने का संकल्प भाजपा को लेना होगा। चूंकि अगले तीन-चार महीनों में लोकसभा चुनाव होने हैं इसलिए हमें इस देश के सामने एक स्पष्ट और प्रभावी ‘दृष्टि पत्र’ और ‘संकल्प पत्र’ रखना होगा जिसमें इस देश की Economy को Revive करने वाले महत्वपूर्ण सुझाव हो।

आज जनता यह जानना चाहती है कि सत्ता में आने पर हम देश की अर्थव्यवस्था को कैसे गति देंगे? इसलिए इस राष्ट्रीय परिषद में आये सभी प्रतिनिधियों का यह दायित्व बनता है कि हम सब देश की इन समस्याओं की ही चर्चा न करें बल्कि उनके समाधान के जो सुझाव यहां दिये जायेंगे उनकी भी चर्चा आम जनता के मध्य करें। ताकि भाजपा के पास क्या समाधान है इससे भी आम जनता अवगत हो सके।

भाजपा विकास के मौजूदा आर्थिक मॉडल में काफी खामियां देखती हैं। हमारा यह मानना है कि विकास की मौजूदा रफ्तार और प्रसार इस देश के बहुत बड़े वर्ग को पीछे छोड़ देती है। आज देश में दूरियां बढ़ी हैं, आर्थिक विषमतायें बढ़ी है औंर देश की आर्थिक स्वायत्तता घटी हैं। इन परिस्थितियों में भाजपा को ऐसी आर्थिक नीतियां लागू करनी होगी जो दूरियां मिटायें, विषमताओं को समाप्त करें, उद्यम और उद्योग को बढ़ावा दे, किसानों का हित लाभ करें और देश के करोड़ों युवाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करें।

यह काम आसान नहीं है, मगर यह भी सच है कि यह काम केवल भाजपा के आर्थिक दर्शन और उसके नेतृत्व द्वारा ही सम्भव है। आर्थिक विकास के लिए सत्ता में आने पर Infrastructure Development यानि आधारभूत संरचना का विकास हमारा मुख्य ध्येय होगा।

यदि हमें बड़ा और महान देश बनाना है तो उसका ढांचा भी बड़ा बनाना होगा। अटलजी ने इस देश में पहले ‘Infrastructure Revolution’ का नेतृत्व किया था। उस समय देश का जल-भूतल परिवहन मंत्री होने के कारण अटल जी की इस महान परियोजना के श्रीगणेश का सौभाग्य मुझे मिला था और मुझे अटल जी की उस विराट दृष्टि को नजदीक से देखने का मौका मिला था। वह मिशन अभी अधूरा है। उसे पूरा करने की यह महती जिम्मेदारी अब हमारे भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी निभायेंगे। हमारी सरकार का प्रयास होगा कि अगले पांच वर्षों में GDP  के अनुपात में infrastructure में निवेश दोगुना किया जा सके।

शासन में आने पर भाजपा बेकाबू हो रहे Current Account Deficit और Fiscal Deficit को नियंत्रित करेगी। अटलजी के शासन काल में भारत Current Account Surplus वाली अर्थव्यवस्था बन गई थी। हम पुनः भारत को Current Account Deficit अर्थव्यवस्था की जगह Current Account Surplus अर्थव्यवस्था बनायेंगे। चालू खाता घाटा कम करने के लिए हम निर्यात को बढ़ावा देंगे। अनावश्यक विदेशी आयात को घटाने और भारतीय वस्तुओं के निर्माण और निर्यात को बढ़ाने के लिए समेकित योजना सरकार बनने के साथ ही हम लायेंगे।

विकसित देश की श्रेणी में आने के लिए हमें देश में ‘Manufacturing’ को बढ़ावा देना होगा। हमारे पास सस्ता और कुशल श्रम है फिर भी हम उसकी उपलब्धता का लाभ नहीं ले पा रहे हैं क्येांकि देश में निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने की इच्छा शक्ति मौजूदा सरकार में नहीं है। हमारा लक्ष्य होगा कि देश की GDP  में Manufacturing का हिस्सा बढ़ाकर 20 फीसदी में अधिक कर दें।

इस देश की आधारभूत संरचना के निर्माण में सिर्फ देश के ही संसाधनों का ही नहीं बल्कि विदेश में भी मौजूद बड़ी संख्या में अनिवासी भारतीयों का भी हम सहयोग लेंगे। चीन के आर्थिक विकास की गाथा चीन की जनता के साथ-साथ विदेशों में बसने वाले चीनी मूल के लोगों ने भी लिया था।

भारत के Infrastructure में निवेश करने के लिए धन जुटाने के लिए देश में एक विकसित ‘Bond Market’ की जरुरत है जहां विभिन्न संस्थायें और एजेंसियाँ आधारभूत संरचना के विकास के लिए धन जुटा सकेंगी।

भारत में बढ़ते शहरीकरण और शहरों पर बढ़ रहे दबाव की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भाजपा एक नया ‘Urban Renewal Plan’ बनायेगी जिससे हमारे देश के सभी नगरों की क्षमता और संभावनाओं का पूरा विकास हो सके।

किसी भी सरकार की असली परीक्षा उसकी निर्णय क्षमता, पारदर्शिता और तत्परता से होती है। इसके अभाव में आर्थिक प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। यू.पी.ए. सरकार का उदाहरण हमारे सामने है जिसके कारण देश में project clearances में विलम्ब, संसाधनों का अनुचित प्रयोग, भ्रष्टाचार और project की कीमतें बढ़ने जैसी समस्याएं आईं। भाजपा इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए पर्यावरण, औद्योगिक विकास और भूमि से संबंधित मामलों के तुरन्त निस्तारण की व्यवस्था देगी।

करों का सरलीकरण एवं राहत:

भारत में आम आदमी टैक्स के बोझ के तले दबा हुआ है। ऐसी कोई चीज नर्हीं है जिस पर सरकार ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कर न लगा रखा हो। भाजपा सिद्धान्त रुप से इस बात सहमत है कि आम आदमी से टैक्स का बोझ कम होना चाहिए।

सरकार बनने पर हम ईमानदारी से टैक्स भरने वाले भारतीयों के लिए टैक्स का बोझ और उलझनें दोनों कम करने का प्रयास करेंगे। हम टैक्स ढांचे में व्यापक परिवर्तन करेंगे ताकि यह व्यवहारिक हो सके, सरकार को राजस्व और करदाताओं के लिए सुविधा बढ़ सके। आयकर देने वाले वेतनभोगी मध्य वर्ग को अच्छी खासी राहत देने के लिए भाजपा संकल्पबद्ध है।

काले धन की समस्या:

विगत लम्बे समय से भ्रष्टचार के चलते देश की पूंजी का एक बहुत बड़ा हिस्सा काले धन के रुप में बदल गया है और विदेशी बैंकों में जमा है। इस विषय को सर्वप्रथम 2009 के लोकसभा चुनावों से पहले आदरणीय आडवाणी जी ने उठाया था और यह कहा था कि यदि हमारी सरकार बनी तो हम विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने की व्यवस्था करेंगे। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि इस विषय को राजनैतिक क्षेत्र के बाहर भी बाबा रामदेव एवं श्री अण्णा हजारे जैसे कई गणमान्य महानुभावों ने भी अपना मुखर समर्थन दिया है। हम आज भी आडवाणी जी के उस संकल्प के प्रति प्रतिबद्ध हैं। यदि हमारी सरकार बनी तो हम विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लायेंगे।

कृषि और किसान:

कृषि और किसान के प्रति हमारा दृष्टिकोण जनसंघ के जमाने से ही स्पष्ट रहा है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी कहा करते थे हमारा लक्ष्य है ‘हर खेत को पानी, हर हाथ को काम’। भाजपा भी जनसंध की उसी नीति का पालन कर रही है।

मौजूदा सरकार की नीतियां किसान विरोधी है। हाल ही में देश के कई राज्यो में गन्ना किसान आन्दोलित हुए हैं क्योंकि उन्हें अपनी फसल का वाजिब मूल्य नहीं मिल रहा है। मैं उप्र का उदाहरण यहां देना चाहूंगा वहां किसान को प्रदेश सरकार प्रति क्विंटल गन्ने का समर्थन मूल्य मात्र 280 रूपये दिया है। उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान आन्दोलन कर रहे हैं परन्तु उन्हें लाभकारी मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है। इसके लिए सरकार को एक व्यावहारिक फॉर्मूला तत्काल खोजना चाहिए।

मैं स्वयं किसान परिवार से हूं और किसान का दर्द मैं बखूबी समझता हूं। उसकी समस्या का सबसे बड़ा कारण कम आय और उस कम आय की भी अनिश्चितता है। यदि हमारी सरकार बनी तो हम किसानों के लिए –

खेत के अनुसार किसानों की आय सुनिश्चित करने के लिए कृषि आय बीमा योजना लागू करेंगे।

हर किसान परिवार के कम से कम एक व्यक्ति को वैकल्पिक रोजगार का एक अवसर अवश्य उपलब्ध करायेंगे।

सारे विश्व में लगातार लोकप्रिय हो रही जैविक खेती जोकि परंपरागत भारतीय खेती का एक हिस्सा है उसके प्रचार प्रसार के लिए विशेष कार्यदल बनायेंगे।

विश्व व्यापार संगठन एवं खाद्य सुरक्षा:

हाल ही मे बाली में WTO की मीटिगं में भले ही खाघ सुरक्षा को लेकर आने वाली मुसीबतो को थोड़ी देर के लिए टाल दिया हो मगर भारत की खाघ सुरक्षा पर संकट के बादल अभी भी मंडरा रहे है। बाली में सरकार ने भारत को सब्सिडी के मामले में WTO के प्रावधानों का सामना करने से तब तक ही बचाया है जब तक सब्सिडी का कोई permanent solution नहीं निकलता। केन्द्र सरकार को चाहिए था कि वह इस समस्या का permanent solution निकालती क्योंकि कृषि पर WTO का 10 फीसदी सब्सिडी का जो प्रावधान है वह पहले ही पार हो चुका है। इसका असर किसानो को मिलने वाले न्युनतम समर्थन मूल्य पर पडेगा क्योंकि 10 फीसदी की तुलना में 24 फीसदी की वृद्धि पहले ही हो चुकी है।

यदि कृषि उत्पादों के समर्थन मूल्य नहीं बढ़ाये जा सकेंगे और Input Cost बढता रहेगा तो किसान किसानी कैसे करेगा? क्यों नहीं बाली में ही यूपीए सरकार न इस मद्दे पर WTO को अपना नजरिया स्पष्ट किया?

दरअसल यूपीए सरकार ने WTO में अपने देश के किसानों के भविष्य के लिए संघर्ष नही किया सिर्फ समस्या को चुनावी वर्ष देखकर कुछ दिनों के लिए टाल दिया है। अब समय आ गया है कि देश मे किसान हितैषी सरकारें ही सत्ता शासन की बागडोर सम्भाले और यह  काम केवल भाजपा ही कर सकती है।

किसान बाजार:

किसानों को उनकी उपज के बेहतर मूल्य दिलाने के लिए पूरे देश मे ‘किसान बाजार’ को बढावा दिया जाना चाहिए ताकि उपभोक्ता और किसान के बीच मे बिचैलियों को समाप्त किया जा सके। जो प्याज दीपावली के समय इतनी ऊंची कीमतों पर बिका कि आम आदमी परेशान हो गया परन्तु किसान को तो उसका 10 प्रतिशत भी नहीं मिला। यदि ‘किसान बाजार‘ जैसी सीधी क्रय-विक्रय की व्यवस्था हो तो उपभोक्ता और किसान दोनों को लाभ होगा। पहले देश के हर शहर में सब्जी बाजार लगते थे, साप्ताहिक हाट लगती थी जहां किसान सीधा उपभोक्ता को सामान बेचता था।

आधुनिकता और व्यापारी हितों के दबाव मे साप्ताहिक बाजारें, सब्जी बाजारें और हाट क्रमशः समाप्त होती जा रही हैं। अब इक्कीसवी शताब्दी में ‘किसान  बाजार’ हर नगर और कस्बे में चलाने की जरूरत है क्योंकि organized retail से न तो किसानों को लाभ होगा और न ही उपभोक्ताओं को।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमरीका जैसे देश जहां वालमार्ट का कब्जा है वहां भी ‘किसान बाजारों’ की स्थापना का चलन लगातार बढ़ रहा है। 1970 मे जहां पूरे अमरीका मे मात्र 370 किसान बाजार थे वहां आज उनकी संख्या 2010 के आंकड़ों के मुताबिक 7000 किसान बाजारों से अधिक हो चुकी है। आस्टेªलिया मे 1999 मे एक भी किसान बाजार नही था वहां आज 150 किसान बाजार है। अमेरिका में किसान बाजारों के माध्यम में 1 लाख 36 हजार किसान सीधे उपभोक्तओं को अपनी  उपज और उत्पाद बेच रहे हैं।

भाजपा सत्ता में आने पर पूरे देश में ‘किसान बाजारों’ को बढ़ावा देगी जहां किसान सीधे अपना उत्पाद उपभोक्ताओं को बेच सकेगा। इससे किसानों को बेहतर दाम और उपभोक्ताओं को सस्ता माल मिलेगा और खाद्य वस्तुओं की जो महंगाई पिछले कई वर्षों से आम आदमी की कमर तोड़ रही है उससे निजात मिल सकेगी।

जनस्वास्थ्य:

किसी भी राज्य में आम आदमी के लिए चार चीजें सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व होता है। सुरक्षा, न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य। भारत के पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय मानकों से बहुत कमजोर है। जबकि अच्छी स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधा प्राप्त करना हर नागरिक का अधिकार होना चाहिए। हम देश के हर गरीब नागरिक के लिए स्वास्थ्य का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान करेंगे।

आर्थिक विषमता:

भारत में विगत 10 वर्षों में एक बहुत बड़ी समस्या जिसके भविष्य में सामाजिक दृष्टि से खतरनाक परिणाम हो सकते हैं वह है आर्थिक विषमता। समाज के एक वर्ग का उत्तरोत्तर साधन सम्पन्न होते जाना और एक वर्ग का मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित रहना एक बहुत चिंताजनक स्थिति है। हम अपनी सरकार आने पर आर्थिक संसाधनों के सर्वस्पशी वितरण को सुनिश्चत करेंगे।

गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाले करोड़ों लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति राज्य का दायित्व है। हमारी सरकार इस वर्ग को सरकारी सहायता का मोहताज न रखते हुए इन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए एक व्यापक रोजगार योजना बनायेंगे। हम बीपीएल समूह के लिए एक विशेष रोजगार योजना बनायेंगे, ताकि गरीब का हाथ बेबसी के साथ अनुदान मांगने के लिए उठने की आवश्यकता न रहे बल्कि आत्मविश्वास के साथ काम करने के लिए उठने योग्य बन सके।

यू.पी.ए. सरकार का भ्रष्टाचार:

केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार के भ्रष्टाचार से पूरे देश की जनता पीड़ित है। साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये से भी अधिक के घोटालों को अंजाम देने वाली यह सरकार भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के नाम पर उन पर परदा डालने का काम कर रही है।

बहुचर्चित 2जी घोटाले में गठित संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट में विपक्ष के नेताओं द्वारा जो लिखित ‘Note of Dissent’ दिये गये उन्हें संपादित करके एक अनुकूल रिपोर्ट बनाई गई। इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि जिन मुद्दों को आधार बनाकर यह J.P.C. गठित की गई थी उन पर कोई निर्णय देने के बजाय उसकी रिपोर्ट उन सवालों से बचकर निकल जाती है। भ्रष्टाचार के मामलों को ढकने के लिए लोकतन्त्र की संस्थाओं और परम्पराओं का ऐसा खुला दुरुपयोग शायद ही कहीं देखने को मिले।

इसी तरह मुम्बई में ‘आदर्श हाऊसिंग सोसायटी’ घोटाले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग की रिपोर्ट कांग्रेस के इशारे पर महाराष्ट्र सरकार द्वारा खारिज कर दी गई क्योंकि उसके एक दो नहीं चार-चार भूतपूर्व मुख्यमंत्री इस घोटाले में आरोपित थे। महाराष्ट्र सरकार ने रिपोर्ट प्रस्तुत करने के दो घण्टे पहले ही कैबिनेट की बैठक कर न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। भ्रष्टाचार के मामले को दबाने का ऐसा उतावलापन संदेह को पक्का करता है। और उसके बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा जैसी हास्यास्पद पुनर्समीक्षा की गई उससे यह साफ हो गया कि महाराष्ट्र सरकार से लेकर कांग्रेस के युवा उपाध्यक्ष तक सब महज एक नाटक खेल रहे थे।

कोयला घोटाला जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय की सीधी संलिप्तता थी उसकी जांच में जो फाइलें अहम हैं उनमें से कई फाइलें ‘अदृश्य’ हो गई है। ‘अदृश्य’ इसलिए क्येांकि यू.पी.ए. सरकार यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि गायब हुई फाइलें वास्तव में गायब कर दी गई हैं। चूंकि गायब फाइलों का ‘अदृश्य’ होना सामान्य घटना नहीं है अब प्रधानमंत्री को ही सामने आना चाहिए। आखिर मामला सीधा उनसे जुड़ा हुआ है। फाइलों के गायब होने और प्रधानमंत्री की चुप्पी से कोयला घोटाले पर से पर्दा नहीं उठ पा रहा है।

कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री के ‘मौन व्रत’ ने देश को सिर्फ 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान ही नहीं कराया है बल्कि उनकी चुप्पी के कारण देश में कोयला खनन की प्रक्रिया बाधित हुई है। इसके कारण देश को हर साल लाखों टन कोयला महंगी दर पर विदेशों से आयात करना पड़ रहा है। जबकि भारत के पास कोयले के इतने भण्डार हैं कि 200 वर्ष तक हमें कोयला आयात करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगा।

देश की बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदाओं को कांग्रेस सरकार ने बहुत भ्रष्ट तरीके से लूटा है। भविष्य में इसे रोकने के लिए हमारी सरकार प्राकृतिक सम्पदाओं के उपयोग और आवंटन के लिए एक सुव्यवस्थित एवं पारदर्शी नीति बनायेगी।

लोकपाल और कांग्रेस का पाखण्ड:

संसद के शीतकालीन सत्र में बर्षों से प्रतीक्षारत ‘लोकपाल विधेयक’ चर्चा के बाद पारित हो गया। भारतीय संसदीय इतिहास की यह ऐतिहासिक घटना थी मगर जिस तरीके से कांग्रेस द्वारा ‘लोकपाल’ पारित कराने का श्रेय लेने की कोशिश हुई वह मर्यादा के अनुकूल नहीं था। लोकपाल को पारित कराने का प्रयास अटलजी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने भी किया था। वह अटल जी ही थे जिन्होंने अपनी तरफ से प्रस्ताव रखा कि प्रधानमंत्री पर को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए।

भारत में लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए एक बड़ा सामाजिक आन्दोलन हुआ जिसका नेतृत्व सुप्रसिद्ध समाजसेवी अण्णा हजारे ने किया। यदि लोकपाल बिल पारित होने का श्रेय किसी एक व्यक्ति को दिया जा सकता है जो वह अण्णा हजारे को दिया जा सकता है और यदि किसी संस्था को दिया जाना चाहिए तो वह इस देश में लोकतंत्र का मन्दिर माने जानी वाली ‘भारतीय संसद’ को दिया जाना चाहिए। एक जिम्मेदारी विपक्षी दल के रुप में भाजपा ने ‘लोकपाल बिल’ पारित कराने में सरकार को पूरा समर्थन दिया मगर भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस जो पाखण्ड रहा है वह काफी हास्यपद और मर्यादाओं के प्रतिकूल है।

भाजपा का यह मत है कि खाली ‘लोकपाल विधेयक’ पारित हो जाने भर से देश में भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगेगी। भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी लड़ाई में लोकपाल सिर्फ एक अंग है। यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में वातावरण बनाना है तो देश में कई और विधेयक पारित कराने की आवश्यकता है जिनमें Goods Services Guarantee Bill, Whistleblower Protection Bill, Protection of Corruption (Amendement) Bill.

लोकपाल के प्रति भाजपा सिर्फ बयानबाजी नहीं करती बल्कि ठोस कार्य करती है। मैं याद दिलाना चाहता हूं कि देश में जनलोकपाल लाने वाली यदि कोई पहली राज्य सरकार थी तो वह जनरल खण्डूड़ी के नेतृत्व वाली उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार थी।

 

आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा:

यू.पी.ए. शासनकाल में देश की आन्तरिक एवं बाह््य सुरक्षा का ताना बाना बिखर गया है। पटना में मुख्य प्रतिपक्षी राजनीतिक दल द्वारा आयोजित रैली में बम विस्फोट की घटना हो जाना यह साबित करती है कि न तो केन्द्र सरकार ने और न ही बिहार की प्रदेश सरकार ने आतंकवादियों से मिल रही चुनौतियों को गम्भीरतापूर्वक लिया है।

चूँकि राज्य कानून एवं व्यवस्था बरकरार रखने के लिए जिम्मेदार है और आतंकवाद एक राष्ट्रव्यापी समस्या है इसलिए इस समस्या का निदान किसी एक राज्य की क्षमता के बाहर हैं। इसके बावजूद केन्द्र सरकार द्वारा इस परिस्थिति की संवेदनशीलता को समझते हुए कोई राष्ट्रीय नीति या योजना बनाने के बजाय ऐसी नीतियाँ बनाने की कोशिश की जाती है जो संघीय ढांचे के ही खिलाफ होती है।

सबसे बड़ा संकट इस बात का है कि कुछ राजनीतिक दल आतंकवाद के खिलाफ अभियान को भी ‘साम्प्रदायिकता’ के चश्में से देखते हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते इन दलों में आतंकवाद से सहानुभूति जताने की होड़ लगने लगती है तो राष्ट्रहित और आन्तरिक सुरक्षा दोनों की खतरे में पड़ जाते हैं।

मैं सिर्फ एक उदाहरण इसी दिल्ली के बटाला हाऊस एनकाउंटर का उदाहरण देना चाहता हूं। बटाला हाऊस एनकाउंटर के मुद्दे पर देश के लगभग सभी गैर-एनडीए दल, इसमें सबसे पुराने दल से लेकर सबसे नए दल तक और सबसे भ्रष्ट कहे जाने वाले दलों से लेकर शुचिता के स्वयंभू मसीहा होने का दावा करने वाले दलों तक सभी कांग्रेस के सुर में सुर मिलाकर आतंकवाद के आरोपियों के साथ सहानुभूति दिखाते और शहीद जवानों की शहादत का मजाक उड़ाते हुए नजर आये। मैं यह बात पूरी जिम्मेदारी से कहना चाहता हूँ कि यदि कांग्रेस पार्टी ने आतंकवाद को वोट बैंक के तराजू में न तोला होता आज आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमारे सुरक्षा बलों का पलड़ा बहुत भारी होता।

आन्तरिक सुरक्षा की भांति देश की बाहय सुरक्षा भी यू.पी.ए. सरकार की भ्रामक और दिशाहीन नीतियों के कारण बेहद कमजोर हो चुकी है। पाकिस्तान और चीन ने यू.पी.ए. सरकार की कमजोरी का फायदा उठाकर भारतीय सेनाओं के मनोबल पर गहरे आघात किए है। पिछले साल पाकिस्तान की सेना ने भारत में घुसकर हमारे सैनिकों के सिर काटे, सैकड़ों बार सीमा पर ‘सीजफायर’ का उल्लंघन किया और आतंकवादियों को भारत की सीमा में घुसने में मदद की। पाकिस्तान के साथ यूपीए सरकार की विदेश नीति 2007 में हवाना से लेकर शर्म-अल-शेख तक पाकिस्तान के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर समर्पण करने की रही।

चीन की सेनाओं ने भी भारतीय भूभाग में आये दिन घुसपैठ करने को अपना अधिकार समझ लिया है। चीन की सेनाओं द्वारा लगातार भारतीय क्षेत्र में सैकड़ों घुसपैठें की गई। इसके बावजूद अक्टूबर महीने में डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन जाकर एक Border Defence Cooperation Agreement (BDCA) पर हस्ताक्षर कर दिये। इस सीमा समझौते में Clause 06  यह साफ साफ कहता है कि घुसपैठ की स्थिति में दोनों सेनायें एक दूसरे को खदेड़ने का काम नहीं करेगी। यह कैसा विचित्र समझौता है? प्रधानमंत्री ने हमारी सेनाओं के हाथ बांध दिए और यह अपेक्षा की जा रही है कि भारत की बाहय सुरक्षा चाक चैबंद रहेगी।

वर्ष 2014 भारत की आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा के लिए कई गम्भीर चुनौतियाँ लेकर आ रहा है। चूँकि इसी साल अफगानिस्तान से अमरीकी फौजों समेत NATO सेनाओं की वापसी हो जायेगी इसलिए इस बात का पूरा खतरा है कि अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन जिनमें अल कायदा भी शामिल है वे अब भारत की ओर अपना रुख कर सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1989 में जब अफगानिस्तान से सोवियत फौजें वापिस हुई थीं तो नब्बे के दशक में भारत में आतंकवादी घटनाओं में जबरदस्त वृद्धि हुई थी और भारत की जनता को अपने सीने पर सैकड़ों घाव झेलने पड़े।

यदि हमारी सरकार आई तो राष्ट्रीय सुरक्षा के इस परिदृश्य को ध्यान में रख कर हम कड़े कदम उठायेंगे और कूटनीतिक दक्षता का प्रयोग करके अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप वातावरण बनायेंगे।

नक्सली आतंकवाद:

मित्रों सामान्यतः आतंकवाद सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिक पनपता है परन्तु नक्सली आतंकवाद एक ऐसी समस्या है जो देश के केन्द्रीय इलाकों में बहुत गम्भीरता से अपने पांव पसार रही है। गत वर्ष छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं की हत्या कर दी। भाजपा इस घटना की घोर निंदा करती है और केन्द्र सरकार से और सभी राजनैतिक दलों से यह अनुरोध करती है कि वे आपसी मतभेद भुलाकर नक्सली समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रीय नीति बनायें। नक्सली आतंकवाद को केवल कानून व्यवस्था के नजरिये से अथवा प्रशासनिक आधार पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसके लिए प्रशासनिक कठोरता के साथ-साथ राजनैतिक इच्छाशक्ति, आर्थिक विकास और सामजिक संवेदना सभी को ध्यान में रखकर एक व्यापक नीति बनानी होगी। इस संदर्भ में हमारी छत्तीसगढ़ सरकार के कार्य प्रशंसनीय रहे हैं। हमारी केन्द्र में सरकार बनी तो हम नक्सलीय आतंकवाद से निबटने के लिए एक समेकित नीति बनायेंगे।

पड़ोसी देश एवं अन्तर्राष्ट्रीय संबंध:

भारत के पड़ोसी देशों के साथ अच्छे और सौहार्दपूर्ण संबंध हो, इस बात से शायद ही कोई शान्तिप्रिय व्यक्ति असहमत होगा। भाजपा भी इस बात की पक्षधर है मगर कूटनीति की बिसात पर हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को दांव पर नहीं लगाया जा सकता। मुसीबत इस बात की है कि यू.पी.ए. सरकार ढुलमुल और लचर विदेश नीति को अपनी कूटनीति का अन्तरंग हिस्सा बना लिया है।

वर्ष 2014 भारत के लिए नई कूटनीतिक संभावनाओं के द्वार खोल रहा है। इन संभावनाओं का पूरा लाभ उठाने के लिए केन्द्र में एक ऐसी सरकार चाहिए जो सभी पड़ोसी देशों के साथ अपने राष्ट्रीय हितों का संर्वधन करते हुए सौहार्दपूर्ण संबंध बना सके। भाजपा के पास भारत के राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने का एक कूटनीति खाका तैयार है। भाजपा सत्ता में आने पर सबसे पहले अपने पड़ोसियों से बेहतर संबंध बनाने की शुरुआत करेगी।

 

अफगानिस्तान:

चूंकि 2014 भारत की सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है इसलिए इस संकट की घड़ी में भारत को अफगानिस्तान का पूरा साथ देना चाहिए। पिछले साल अपनी अमरीका यात्रा के दौरान विस्तार से अफगानिस्तान के संबंध में भारत की चिंताओं को चर्चा की थी। अब अफगानिस्तान के प्रति अमेरिका का दृष्टिकोण भी परिवर्तित हो रहा है।

यही कारण है जो अमरीकी प्रशासन पहले 2014 में पूरी अमरीकी सेना को अफगानिस्तान से हटाने पर आमादा था वह अब कुछ संख्या में अपने सैनिकों को अफगानिस्तान में सिद्धांत रुप में राजी हो गया है। भारत सरकार को अफगानिस्तान के प्रमुख Stake holders और अमरीकी प्रशासन के साथ मिलकर वहां जो भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता हो वह उपलब्ध करायी जानी चाहिए। चीन की सम्पनियां अफगानिस्तान में बड़ी तेजी से पैर पसार रही हैं। भारत सरकार को भी अफगानिस्तान में भारतीय निवेश बढ़ाने के लिए यहां के सरकारी एवं निजी उपक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।

बांग्लादेश:

भाजपा बांग्लादेश में चुनावों के बाद से जारी हिंसा के दौर और वहां हो रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओं के उत्पीड़न की कठोर निंदा करती है। हाल ही में बांग्लादेश में हुए आम चुनावों में शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग को दुवारा सत्ता प्राप्त हुई है। अवामी लीग की सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में कट्टरपंथी एवं भारत विरोधी शक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करके एक सकारात्मक संदेश दिया था।

अवामी लीग की सरकार दुबारा बनने पर भाजपा वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना को बधाई देती है और उनसे यह अपेक्षा रखती है कि जिस सक्रियता और तत्परता से उन्होंने कट््टरपंथी शक्तियों का दमन किया है वैसी ही तत्परता से वह वहां रह रहे अल्पसंख्यकों की जान माल की रक्षा करने तथा उनके पूजा घरों की सुरक्षा करने में भी दिखायेगी। बांग्लादेश के साथ भूमि हस्तातंरण के विषय पर संबंधित राज्यों की जनभावनाओं का ध्यान भारत सरकार को रखना चाहिए।

नेपाल:

एक दशक से भी अधिक समय से राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहे नेपाल में हालात बदलते दिखाई दे रहे हैं। नेपाल की नव-निर्वाचित संविधान सभा की बैठक इसी महीने की 22 तारीख को आहूत की गई है और इसके साथ ही राजनीतिक अनिश्चितता का वातावरण समाप्त होता दिखाई देने लगा है।

भारत को नेपाल में सक्रिय भारत विरोधी शक्तियों से सावधान रहने की आवश्यकता है। भाजपा यह आशा करती है कि नेपाल की नव-निर्वाचित सरकार भारतीय हितों की अनदेखी नहीं करेगी और जो भी भारत विरोधी शक्तियाँ वहां से अपने मिशन को अंजाम दे रही हैं उन्हें नेपाल की सीमाओं से बाहर का रास्ता दिखायेगा।

म्यांमार:

पिछले एक-दो वर्षों में म्यांमार की विश्व मंचों पर स्वीकार्यता बढ़ी है। वहाँ आई शान्ति और स्थिरता का लाभ भारत अपने पूर्वोत्तर राज्यों को बेहतर ‘Connectivity’ देकर उठा सकता है। म्यांमार में आधारभूत ढांचे के निर्माण के लिए वहां की सरकार कोशिश कर रही है। भारत को अफगानिस्तान की तरह म्यांमार के पुननिर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

भारत-म्यांमार अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के माध्यम से काफी बड़ी मात्रा में अनौपचारिक व्यापार और स्मगलिंग होती है। भारत सरकार को म्यांमार के साथ लगी सीमा पर ‘व्यापार चैकियां’  का निर्माण करके दोनों तरफ के लोगों को व्यापार करने का सुअवसर प्राप्त करना चाहिए।

पिछले दिनों भाजपा की मणिपुर शाखा द्वारा भारत म्यांमार सीमा पर लग रही बाड़ में काफी बड़ी मात्रा में भूभाग म्यांमार की तरफ छूटने का प्रकरण जानकारी में लाया गया था। इस बारे में मैंने प्रधानमंत्री को एक पत्र भी लिखा था कि सीमा पर बाड़ लगाने का काम करने से पहले म्यानमार के साथ भारत सरकार को अपना सीमा विवाद सुलझाना चाहिए।

श्रीलंका:

श्रीलंका के साथ भारत के मधुर संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है। मगर जब से यूपीए सरकार ने सत्ता संभाली है, दोनों देशों के बीच परस्पर अविश्वास बढ़ा है। आये दिन भारतीय मछुवारों को श्रीलंका की सेना द्वारा गिरफ्तार किया जाता है क्योंकि दोनों देशों के बीच मछुवारों की गतिविधि और मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर स्पष्टता नहीं है।

इसी तरह श्रीलंका में रह रहे तमिल मूल के लोगों के राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हितों के संरक्षण के लिए जिस तरह का कूटनीतिक कौशल होना चाहिए, यूपीए सरकार की नीतियों में उसका सर्वथा अभाव दिखा है।

पाकिस्तान:

आजाद भारत के इतिहास में इस देश को सबसे अधिक घाव देने की कोशिश अगर किसी देश ने की है तो उसका नाम पाकिस्तान हैं। न जाने कितनी बार भारत की तरफ से पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर बनाने की कोशिशें हुई हैं मगर उसके परिणाम अभी तक प्रतिकूल रहे हैं। अब वह समय आ गया है कि पास्तिान के साथ हमारा व्यवहार उसके आश्वासनों यानि कथनी से नहीं बल्कि उसकी करनी के अनुरुप होना चाहिए। पाकिस्तान में नई सरकार के गठन के बाद उम्मीद बंधी थी कि नवाज शरीफ के नेतृत्व में शायद कोई नई शुरुआत हो मगर अफसोस पाकिस्तान अपना पुराना ढर्रा और रवैया बदल नहीं पा रहा है। शायद यू.पी.ए. सरकार की ढुलमुल ‘पाकिस्तान नीति’ का ही यह असर हो कि पाकिस्तान ने अपने रवैये को बदलने की जरुरत भी नहीं समझी।

एक तरफ यू.पी.ए. सरकार यह दावा करती है कि हम पाकिस्तान के साथ कोई वार्ता नहीं कर रहे तो दूसरी तरफ दोनों देशों के प्रधानमंत्री, मंत्री और अफसरों के स्तर पर लगातार बैठकें हो रही हैं। आज ही (18 जनवरी) भारत-पाक विदेश मंत्रियों की बैठक प्रारम्भ हो रही है। सरकार की तरफ से सफाई दी जा रही है कि इसे ‘Dialogue’ यानि ‘बातचीत’ की श्रेणी में न रखा जाये। अजीब बात है कि जब मंत्री मिलेंगे, अफसर मिलेंगे तो क्या मुंह पर पट्टी बांधकर बैठेंगे। किसकी आंखें में धूल झोकी जा रही है?

यू.पी.ए. सरकार आखिर क्यों पाकिस्तान से ‘Most Favoured Nation’ का तमगा हासिल करने के लिए लालायित है। यदि पाकिस्तान भारत के साथ बेहतर करने को इच्छुक होता तो वह कब का ‘MFN ‘ Status भारत को अपने आप दे चुका होता। पाकिस्तान को अपने रवैये में बदलाव लाना चाहिए ताकि 2014 के बाद जब भारत में नई सरकार का गठन हो तो वह कुछ नई बात कर सके।

जिस दिन भारत में भाजपा की सरकार गठित होगी भारत की ‘पाकिस्तान नीति’ में स्पष्टता और परदर्शिता आयेगी। पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश दिया जायेगा कि यदि वह भारत से हाथ मिलाना चाहता है तो उसे पहले अपनी सोच को बदलना होगा। सिर्फ चेहरे बदलने से अविश्वास का माहौल नहीं बदल सकता।

चीन:

पाकिस्तान की तरह चीन भी भारत के लिए तमाम तरह की समस्यायें पैदा कर रहा है। सीमा पर चीनी सैनिकों की घुसपैठ की चर्चा मैंने पहले की मगर सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि चीन भारत के सभी पड़ोसी देशों में एक भारत विरोधी वातावरण का निर्माण कर रहा है। आज पाकिस्तान ही चीन के प्रभाव में नहीं है बल्कि भूटान जैसे देश में भी चीन ने भारत विरोधी शक्तियों को सक्रिय कर दिया है। आज चीन का विदेशी व्यापार 4 ट्रिलियन डालर पार चुका है जो भारत की कुल अर्थव्यवस्था से भी दुगुना है। चीन की आर्थिक ताकत उसकी सामरिक महत्वकांक्षाओं को जगा रही है।

चीन इन परिस्थितियों को समझते हुए पिछले कुछ वर्षों से लगातार भारत को सामरिक मोर्चे पर कमजोर करने में लगा हुआ है। चीन की सरकार भारत सरकार पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव डाल रहा है और यू.पी.ए. सरकार उसका प्रतिवाद तक नहीं कर पा रही है। भारत चीन संबंधों में सुधार और स्पष्टता तभी आयेगी जब देश में एक निर्णायक सरकार सत्ता में होगी। जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तो भारत और चीन के बीच अपेक्षाकृत काफी बेहतर संबंध थे।

यह बात मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं। केवल एक उदाहरण; भारत और चीन के संबंधों में 1962 के युद्ध के बाद यदि केवल एक अवसर ऐसा था जब चीन ने भारत के पक्ष में अपना कोई दावा वापस लिया हो तो वह था 2003 में प्रधानमंत्री वाजपेयी की चीन यात्रा के समय जब चीन ने सिक्किम पर से अपना दावा वापस लिया। यह भाजपा सरकार की कूटनीतिक दक्षता का एक स्वर्णिम उदाहरण था।

संयुक्त राज्य अमरीका:

1998 में केन्द्र में हमारी सरकार आने बाद हमने अमरीका की इच्छा के विरूद्ध पोखरण विस्फोट किया था और इसके बावजूद 2004 में जब हमारी सरकार हटी तो अमेरिका के साथ भारत के संबंधों का वह सबसे स्वर्णिम दौर था। परन्तु यूपीए सरकार के शासनकाल में अमेरिका के साथ भारत के संबंध शिखर से सतह पर पहुंच गये प्रतीत होते हैं।

हाल ही में अमरीकी धरती पर जिस तरह भारतीय महिला राजनयिक ने उत्पीड़न की घटना सामने आई है वह इसका ज्वलंत उदाहरण है। इस घटना पर अमरीका का रवैया सरासर अनुचित और आलोचना के योग्य है।

बांग्लादेश के संदर्भ में अमेरिका पाकिस्तान से राय मांग रहा है परन्तु भारत से राय नहीं मांग रहा है। यह बात बहुत आपत्तिजनक है।

यदि अमेरिका भारत को मित्र देश और रणनीतिक साझीदार मानता है तो उसका व्यवहार उसी गरिमा के अनुरूप होना चाहिए और भारत सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह भारत की गरिमा के अनुरूप इन संबंधों को बनाकर रखें। परन्तु अभी तक यह सरकार इसमें पूर्णतः असफल दिखायी पड़ी।

भाजपा का अंतर्राष्ट्रीय प्रसार:

विश्वभर में फैले हुए अप्रवासी भारतीय और भारतवंशी समुदाय के मध्य भारतीय जनता पार्टी की नीति और क्षमता की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है। गत वर्ष अमेरिका यात्रा के दौरान मैने इसे अनुभव भी किया। वहां मैंने हमारे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र भाई मोदी के प्रति अप्रवासीय समुदाय के जबरदस्त आकर्षण को भी देखा।

आज अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भाजपा को चाहने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। Overseas Friends of BJP (OFBJP) की शाखाएं विगत एक वर्ष में कनाडा से आस्ट्रेलिया तक और दुबई से लेकर कई यूरोपीय एवं अफ्रीकी देशों तक गठित हुई हैं। इसी जनवरी माह में पहली बार OFBJP अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन करने में सफल हुई है।

युवा वर्ग:

किसी भी देश के लिए उसके युवा उसकी सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ी शक्ति होते हैं। यदि हमें भारत की भविष्य संवारना है तो उसमें युवाओं की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। युवा बदलाव चाहता है और इस बार बेहतर भविष्य की तलाश में वह भारी संख्या में मतदान भी करने वाला है। स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षण से लेकर उसके रोजगार तक की चिंता सरकार को करनी चाहिए। पिछले एक दशक में युवाओं को निराशा हाथ लगी है कि क्योंकि उनके लिए रोजगार के अवसर सूख गये हैं। युवाओं को काम नहीं मिलेगा तो समाज में अस्थिरता बढ़ेगी।

भाजपा सत्ता में आने पर युवकों में व्याप्त निराशा को समाप्त कर हम नए उत्साह का संचार करेंगे। देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए हमें निर्माण उद्योग, पर्यटन, आयात-निर्यात, कृषि एवं खाद्य प्रस्संकरण, आई.टी. एवं स्वरोजगार को प्रोत्साहन देने में बड़ी मात्रा में निवेश करना होगा।

दसवीं कक्षा के बाद से ही युवाओं की अभिरुचि के अनुसार उन्हें ‘Skill Training’ देने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए ताकि दसवीं कक्षा से ही उन्हें पता चले कि राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका कहां है।

खेलकूद में युवाओं की प्रतिभा को समुचित अवसर देने के लिए हम एक खेल विकास नीति बनायेंगे ताकि 10 वर्षों के भीतर भारत को एक ‘स्पोर्टस सुपर पावर’ या क्रीडा क्षेत्र की महाशक्ति के रूप में स्थापित किया जा सके।

उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए पूरे देश में सभी विश्वविद्यालयों का मान व स्तर बढ़ाया जायेगा और वहां ‘शोध एवं विकास’ की एक स्वस्थ परम्परा पनपे इसके लिए सभी विश्वविद्यालयों में ढांचागत सुधार की आवश्यकता है। उच्च शिक्षा केवल डिग्री हासिल करने का माध्यम नहीं बने इसलिए बारहवीं कक्षा के बाद ‘Vocational Training’ देने वाले शिक्षण संस्थानों का पूरे देश में जाल बिछाया जाना चाहिए।

हम रोजगार केन्द्रित निवेश को प्रोत्साहित करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि देश के हर एक परिवार को कम से कम एक व्यक्ति को अर्थपूर्ण रोजगार प्राप्त हो सके।

महिला:

युवाओं की भांति महिलाओं की भी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में महती भूमिका है। दुर्भाग्यवश भारत में महिला सशक्तिकरण का दायरा सिर्फ राजनीतिक सशक्तिकरण तक ही सीमित होता जा रहा है। इस देश में महिलाओं को राजनीतिक सशक्तिकरण के साथ समाजिक सशक्तिकरण की भी आवश्यकता है। कांग्रेस की यू.पी.ए. सरकार ने महिलाओं को दोनों ही मोर्चे पर कमजोर रखा है।

दस वर्षों तक शासन करने के बावजूद यू.पी.ए. सरकार महिला आरक्षण विध्ेायक पारित नहीं करा पाई। यदि जनमत के दबाव में सरकार लम्बे अन्तराल के बाद लोकपाल बिल पारित कर सकती है तो महिला आरक्षण विधेयक पर भी सरकार क्या ऐसे ही दबाव का इंतजार कर रही है?

महिलाओं के प्रति अपराधों में हाल के वर्षों में जिस तरह की तेजी आई है उसमें भाजपा काफी चिंतित है। हमने यह अनुभव किया है कि सिर्फ कानून बना देने भर से बलात्कार एवं अत्याचार थमने वाले नहीं। इसके लिए सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ानी होगी ताकि समाज में नैतिक मूल्यों की पुर्नस्थापना हो सके। इन तत्वों का पाठ्यक्रम और शिक्षा में भी समावेश आवश्यक है। तभी महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण का स्थायी समाधान संभव हो सकेगा।

अनुसूचित जाति:

आजादी के 67 वर्षों के बाद आज भी अनुसूचित जनजाति समुदाय के 75 प्रतिशत से अधिक लोग जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं। वे न सिर्फ गरीब व अशिक्षित हैं बल्कि सामाजिक सम्मान से भी वंचित हैं। आज भी अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित अधिकांश पद इसलिए रिक्त रह जाते हैं क्योंकि उस वर्ग के प्रत्याशियों के पास न्यून्तम शिक्षा भी नहीं होती। यह बहुत चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है। इस वर्ग का विकास केवल एक राजनैतिक विषय नहीं है, बल्कि इसके लिए आर्थिक सशक्तिकरण की सुविचारित योजना के साथ-साथ सामाजिक मनोविज्ञान के बदलाव का प्रयास भी आवश्यक है। भाजपा सत्ता में आने पर इन दोनों पक्षों पर पूरी जिम्मेदारी से प्रयास करेगी।

आदिवासी:

जब हमारी केन्द्र में सरकार थी तो हमने ही सबसे पहले अनुसूचित जनजाति के लिए अलग मंत्रालय बनाने का कार्य किया था। अनुसूचित जनजाति को राष्ट्र की विकास की गति के साथ मिलाने के लिए हम सरकार आने पर पुनः प्रभावी कदम उठायेंगे और आदिवासी वनवासी जनसंख्या वाले राज्यों के लिए एक साझा विकास कार्यक्रम की रुपरेखा भी बनायेंगे।

आदिवासी समुदाय की विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर एवं उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए हम एक विशेष विभाग बनाने का कार्य करेंगे। आदिवासी समुदाय के ऐतिहासिक महापुरुषों की भूमिका को भी जनमानस में अपेक्षित स्थान दिलाने के लिए हम विशेष प्रयास करेंगे, ताकि आदिवासी समुदाय अपनी पहचान और स्वाभिमान के साथ राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मिलित हो सके।

तेलंगाना और कांग्रेस:

जिस यू.पी.ए. सरकार ने सत्ता में आते ही तेलंगाना के गठन का वादा किया था वह पांच साल की अवधि बीतने को आई है फिर भी तेलंगाना का निर्माण नहीं कर पा रही है। प्रमुख विपक्षी दल के रुप में हमने अपना खुला समर्थन इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार को दे रखा है फिर भी सरकार अपनी अन्दरूनी राजनीति के कारण इस पर अंतिम निर्णय नहीं ले पा रही है।

तेलंगाना पर कांग्रेस के पाखण्ड के कारण तेलंगाना और सीमान्ध्र दोनों क्षेत्रों में असंतोष और आक्रोश आज उस सीमा तक बढ़ गया है जिसने संपूर्ण आन्ध्र प्रदेश के लिए एक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का निर्माण कर दिया है। कांग्रेस इसके समाधान की बजाय अपने राजनैतिक समीकरणों को साधने में अधिक रूचि ले रही है।

भाजपा केन्द्र में सरकार बनने के बाद तेलंगाना के निर्माण के साथ-साथ आन्ध्र प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की समस्याओं के समुचित समाधान करने के लिए एक ‘Action Plan’ बनायेगी।

पूर्वोत्तर राज्य:

असम में हिंसा की आग अभी ठण्डी भी नहीं हुई थी कि नगालैंड में जातीय हिंसा भड़कने की खबरें आयी हैं करीब 16 लोग नगालैंड की हिंसा में मारे गये हैं और सैकड़ों की संख्या में लोगों को अपना घर बार छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर होना पड़ा है। गृह मंत्रालय को चाहिए वह तत्काल स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए वहां हिंसा रोकने के सभी प्रभावी कदम उठाये और दूसरे प्रदेशों में शरण लेने वाले नगा शरणार्थियों की सुरक्षित घर वापसी का प्रयास करे।

पूर्वोत्तर राज्यों में बेहतर सड़कें बनाने का काम अभी भी कच्छप गति से चल रहा है। लगभग सभी पूर्वोत्तर राज्यों की सड़कें बेहद खस्ताहाल हैं। उनकी अनेदखी नहीं की जानी चाहिए। विशेष रुप से कई देशों के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र की सीमायें लगी हुई हैं इसलिए इस इलाके में विश्व स्तरीय सड़कों की मौजूदगी भारत के सामरिक हितों के लिए भी बेहद आवश्यक हैं अब जब भारत ने पानागढ़ (पश्चिम बंगाल) में 17 Moutain Corps को गठित करने का फैसला लिया है तो BRO (Border Road Organisation) को पूर्वोत्तर राज्यों के सभी सीमावर्ती इलाकों में सड़कों का निर्माण दु्रत गति से प्रारम्भ कर देना चाहिए।

दुर्भाग्यवश संसाधनों की कमी न होने के बावजूद यू.पी.ए. सरकार BRO को जितना धन आवंटित करती है उसे खर्च करने में ही काफी विलम्ब हो जाता हैं। एक तरफ चीन अरुणाचल प्रदेश से सटे इलाके झमाग (Zhamag) में तिब्बत से एक all weather road तवंक से जोड़ कर अपने को भारत की सीमा तक जोड़ चुका है। वहां दूसरी तरफ यू.पी.ए. सरकार सीमा पर सड़कें बनाने के मद में आवंटित बजट को ही खर्च नहीं कर पा रही है।

भाजपा सत्ता में आने पर पूर्वोत्तर के सीमावर्ती इलाकों में विश्वस्तरीय सड़कों का निर्माण कराने का कार्य प्राथमिकता के आधार पर करेगी।

जम्मू कश्मीर:

जम्मू कश्मीर का विषय कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों के कारण स्वतंत्रता के बाद से आज तक समस्याओं में उलझा रहा है। अपनी कमजोर नीति और धारा 370 जैसे प्रावधानों के चलते कांग्रेस ने कश्मीर को राष्ट्र की विकास की धारा के साथ शामिल होने से वंचित रखा है।

भारतीय जनता पार्टी जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानती है, वहां से भारत विरोधी शक्तियों को किसी भी प्रकार की छूट देने के विरुद्ध है और कश्मीर के गरीब आवाम तक विकास की उस रोशनी को पहुँचाने के कृतसंकल्प है, जिससे वह आजादी के 67 साल के बाद भी महरुम हैं।

कांग्रेस और उसके कुछ सहयोगी दलों के द्वारा कश्मीर की स्थिति पर उठाये जा रहे प्रश्नों की भाजपा कठोर शब्दों में निंदा करती है। कश्मीर को विषय हमारे लिए राष्ट्र की अखंतडता से जुड़ा होने के साथ-साथ भावनात्मक दृष्टि से पार्टी के साथ भी विशेष प्रकार से जुड़ा हुआ है क्योंकि कश्मीर के लिए ही हमारे संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था।

 

पी.एम. पद के भाजपा प्रत्याशी श्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध दुष्प्रचार:

पिछले साल देश की जनता को यूपीए शासन काल के कुशासन से मुक्ति दिलाने के लिए भाजपा ने एक योजनाबद्ध तरीके से अपनी चुनावी रणनीति के तहत, देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता जिन्हें सफलतापूर्वक शासन भी चलाने का अनुभव है, ऐसे श्री नरेन्द्र भाई मोदी को पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया। भाजपा द्वारा की गई इस घोषणा से पूरे भारतवर्ष में नई आशा और विश्वास का संचार ही नहीं हुआ बल्कि विदेशों में भी एक सकारात्मक संदेश गया।

भाजपा और उसके प्रधानमंत्री प्रत्याशी के विरुद्ध कांग्रेस राजनीतिक संघर्ष में अपने को बेहद बौना और कमजोर महसूस कर रही है। इसलिए कांग्रेस द्वारा दुष्प्रचार और कानूनी दावपेचों का सहारा लिया जा रहा है। कानूनी लड़ाई में भी कांग्रेस की पराजय हो रही है।

इससे खिसियाई कांग्रेस श्री नरेन्द्र मोदी पर लगातार हमले कर रही है। अपनी प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री ने मोदीजी को लेकर जो टिप्पणी की वह न तो किसी तथ्य पर आधारित थी और न ही वह उनके पद की मर्यादा के अनुकूल थी। गुजरात दंगों के मामले में श्री मोदी को क्लीन चिट SIT ने सुप्रीम कोर्ट को सौपी अपनी रिपोर्ट में 2011 में ही दे दी थी। कुछ दिन पहले अहमदाबाद की अदालत ने भी उनके खिलाफ हर आरोप को खारिज कर दिया। इसके बावजूद सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री ने जिस रूप में उनका चित्रण किया वह गैर-जिम्मेदाराना और भर्त्सना के योग्य है।

कांग्रेस आज से नहीं कई सालों से मोदी जी को वोट बैंक राजनीति के रास्ते में बदनाम करने में लगी हुई है। गुजरात में 2002 में जो कुछ भी हुआ वह बेहद दुःखद था। परन्तु कुछ मायनों में इन दंगों को रोकने के लिए तत्कालीन गुजरात सरकार ने जो प्रयत्न किये उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं हो सकती। जैसे उस समय संसद पर हमले के प्रतिक्रिया स्वरूप भारत की सेनायें सीमा पर थीं परन्तु स्थिति बिगड़ने के चैबीस घंटे के अंदर केन्द्र सरकार से चटपट अनुमति लेकर सेना को उतार दिया गया। गुजरात सरकार द्वारा दंगा भड़कने के बाद की गई प्रभावी कार्रवाई के बावजूद आज तक कांग्रेस की गोद में खेल रहे संगठनों के द्वारा जिस-जिस प्रकार के भी आरोप लगाये गये उनकी जांच के लिए गुजरात सरकार ने पूरा सहयोग किया। हमारी सरकार ने कभी नहीं कहा कि फाइलें खो गई हैं या सबूत गायब हो गये हैं। कई प्रमुख आरोपियों को कड़ी सजायें भी हुई।

जिस ढंग से विगत 11 वर्षों से नरेन्द्र भाई की Witch hunting की गई है वह सर्वथा अनुचित है। यदि एक मामले में कोर्ट बरी करे तो सरकार कोई न कोई दूसरा प्रपंच तैयार रखती है। दूसरी तरफ 1984 के दंगों में कांग्रेस ने आज तक कितने लोगों को सजा करवाई है। उल्टे उनके नेताओं पर तो सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट तक लगा दी।

अभी कुछ दिन पहले जो यह तथ्य प्रकाश में आया है कि आपरेशन ब्लू स्टार के समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ब्रिटेन की मदद ली थी इस विषय में भी सरकार को अपनी स्थिति जनता के सामने स्पष्ट करनी चाहिये।

साम्प्रदायिक दंगा एवं लक्षित हिंसा विधेयक:

यह एक विडंबना है कि लगभग सभी गैर एनडीए दल यह मानते हैं कि आतंकवाद जैसी विश्वव्यापी समस्या जिससे अमेरिका और पश्चिमी देश भी पूरी तरह नहीं लड़ पा रहे हैं, उससे लड़ने के लिए कोई विशेष नियम नहीं चाहिए। उससे लड़ने के लिए तो चोरी, डकैती, गुंडागर्दी, मारपीट और उठाई गिरी, जेबकतरने जैसे अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता की धाराएं ही पर्याप्त है। परन्तु छेड़-छाड़ से शुरू होकर मारपीट से बढते हुए हिंसात्मक रुप लेने वाले सांप्रदायिक दंगों के लिए भारतीय दंड संहिता की धाराएं अपर्याप्त हैं और इसके लिए एक नया कानून बनना चाहिए। इस विडंबना को देश की जनता को देख रही है।

साम्प्रदायिक हिंसा के नाम पर सरकार द्वारा जो बिल लाने का प्रयास किया जा रहा है वह देश के साम्प्रदायिक ताने-बाने को ध्वस्त करने का वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित एक कुत्सित प्रयास है।

ऐसा में इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जब केन्द्र सरकार के गृह मंत्री ऐसा बयान दें कि अमुक समुदाय के युवकों के विरूद्ध कार्रवाई में सावधानी बरती जाय, देश के इतिहास में पहली बार गृह मंत्रालय ने मुजफ्फरनगर दंगों में मारे गये लोगों की सूची साम्प्रदायिक आधार पर जारी की जाय, तो क्या केन्द्र सरकार स्वयं साम्प्रदायिक दंगों को मजहबी रंग देकर खतरनाक राजनीति नहीं कर रही है? ऐसी सरकार से क्या निष्पक्ष साम्प्रदायिक हिंसा विरोधी कानून की अपेक्षा की जा सकती है?

उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगों की राजनीति:

यूपीए की सहयोगी समाजवादी पार्टी की सरकार में उत्तर प्रदेश में विगत पौने दो वर्षों में सैकड़ों साम्प्रदायिक दंगे और झड़पें हुई। स्वयं उत्तर प्रदेश सरकार 30 से अधिक साम्प्रदायिक दंगे होना स्वीकार करती है। केन्द्र सरकार इस पूरे समय में हाथ पे हाथ धरे उत्तर प्रदेश सरकार को मौन समर्थन देती रही है।

इसकी चरम परिणति हाल ही के मुजफ्फरनगर दंगों में देखने को मिली। देश के प्रमुख टीवी चैनल द्वारा दिखाये गये स्टिंग आपरेशन से साफ हुआ कि यदि समाजवादी पार्टी की सरकार की वोट बैंक की राजनीति की मंशा नहीं होती तो मुजफ्फरनगर के दंगों को आसानी से रोका जा सकता था। परन्तु उससे भी अधिक दुखद बात यह है कि दंगों पर नियंत्रण से लेकर मुकदमें कायम करने, मुकदमें वापस लेने, राहत पहुंचाने तक सब कुछ वोट बैंक की साम्प्रदायिक नीति से ही प्रेरित दिखाई पड़ा। यदि न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं होता तो न जाने उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति कहां पहुंच जाती।

इतना ही नहीं 2007 में उत्तर प्रदेश की अदालतों में बम विस्फोट के आरोपियों पर से भी मुकदमें वापस लेने का प्रयास उत्तर प्रदेश सरकार ने किया जिसे न्यायालय ने रोक दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर वोट बैंक की राजनीति भारत के इतिहास में कभी देखने को नहीं मिली।

इन सबके साथ उत्तर प्रदेश की सरकार के असंवेदनशील रवैये पर भी मुझे आश्चर्य है कि मानवता और साम्प्रदायिक सौहार्द्र के उन झंडाबरदारों के मुंह में क्यों दही जमा रहा जो गुजरात के मामले पर चीत्कार मचा रहे थे। इसलिए मुजफ्फरनगर का दंगा देश के प्रशासनिक, राजनैतिक, संवैधानिक के साथ-साथ सामाजिक और बौद्धिक जगत के लिए भी एक यक्ष प्रश्न खड़ा करता है। मैं देश के बौद्धिक जगत के एक वर्ग से जो भाजपा के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त है यह अनुरोध करता हूँ कि वे राजनैतिक पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर और किसी के भी प्रति राग और द्वेष के बिना अपनी भूमिका का सम्यक निर्वहन करना शुरू करें तो देश में बेहतर सामाजिक सोहार्द्र कायम हो सकेगा।

कार्यकर्ताओं से अपील:

आज भारत का लोकतंत्र जिस कुंठा, हताशा और निराशा से गुजर रहा है उससे इस लोकतंत्र को बचाने का दायित्व हमारा है। भारत में विश्व पटल पर एक समृद्ध, सामथ्र्यवान और सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित होने की सारी क्षमता विद्यमान है। उसे साकार करना हमारा दायित्व है, आज हमारे द्वार पर यह चुनौती और अवसर दोनों ही दस्तक दे रहे हैं।

अभी कुछ दिन पूर्व स्वामी विवेकानन्द सार्ध शताब्दी (150 वर्ष) के कार्यक्रम समाप्त हुए हैं। मैं याद दिलाना चाहूंगा कि स्वामी विवेकानन्द ने 1901 में कहा था कि मैं देख रहा हूं भारत माता प्राचीन शक्ति से युक्त होकर दिव्य आभा के साथ संपूर्ण विश्व का मार्ग दर्शन करने के लिए पुनः सिंहासनारूढ़ होने जा रही है। मैं आप सबसे यह पूछता हूं कि क्या हम सब मिलकर स्वामी विवेकानन्द के इस स्वप्न को साकार नहीं कर सकते हैं। इन सपनों को साकार करने के लिए एक कर्मयोगी जैसी लगन की आवश्यकता होगी। मैं यह मानता हूं कि यदि हम सब प्रण कर लें तो 2014 से यह स्वप्न साकार रूप लेना प्रारंभ करने वाला है।

अतः 2014 का वर्ष असाधारण वर्ष है। यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन का ही नहीं भारत की भावी पीढि़यो को प्रभावित करनेवाला और समकालीन भारत के भविष्य तय करने वाला वर्ष साबित होगा। संपूर्ण ताकत और जोश के साथ मैदान में उतरने का वक्त आ गया है। रणभेरी बज उठी है। नगाड़े निमंत्रण दे रहे हैं। अब न विश्राम का समय है न ही किसी भी असमंजस का।

मित्रों, संक्रांति का सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ चला है। पहाड़ों की बर्फ पिघलने का समय आ रहा है। मौसम बदलने वाला है। खिली धूप निखर रही है। कुछ ही महीनों में ग्रीष्म ऋतु में प्रखरता से चमकते सूर्य और तेजी से बहती हवाओं का समय आ रहा है, हम सब अपने सम्मिलित प्रयास से इसे प्रचंड आंधी में बदल सकते हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि तमाम झंझावातों के बीच अंततः भाजपा देश को एक नई रोशनी देने में सफल होगी।

‘अब हवायें ही करेंगी, रोशनी का फैसला

जिस दिए में जान होगी, वह जला रह जायेगा।’

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