भारत को जहाँ दुनिया Mother of Democracy मानती है, वहीं पाकिस्तान Father of Global terrorism बनकर उभरा है: रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह

Text of RM’s speech at the ‘Amar Ujala Samwad’ in Dehradun.

 

सबसे पहले,  मैं अमर उजाला परिवार का आभार प्रकट करता हूं, कि आपने मुझे इस conclave में आमंत्रित किया। आज आप सबके बीच होना मेरे लिए बहुत खास भी है और एक बहुत आत्मीय अनुभव भी है।

आत्मीय इसलिए, कि आज इस conclave के माध्यम से, फिर एक बार मुझे देवभूमि और तपोभूमि उत्तराखंड में आने का अवसर मिला और जब भी मैं उत्तराखंड आता हूँ मुझे यहाँ एक अपनापन का भाव लगता है। खास इसलिए है, क्योंकि ये अमर उजाला का मंच है। अमर उजाला का नाम सुनते ही मेरे ज़ेहन में कई स्मृतियां ताज़ा हो जाती हैं। मैंने तो सुना है, कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत देश के कई राज्यों में अमर उजाला का इतना असर रहा है, कि मोहल्ले में अगर किसी के पास हर तरह की खबरों का भंडार हो, तो लोग उसे मोहल्ले का ‘अमर उजाला’ कहकर बुलाते हैं। मैं समझता हूँ,  यह अमर उजाला की पहुँच और पकड़ दोनों का प्रमाण है।

आज भी हमारे गांवों और कस्बों में, सुबह की शुरुआत, चाय के साथ अमर उजाला के पन्नों से होती है। आपकी खबरें सिर्फ सूचना मात्र नहीं होतीं, वो समाज की नब्ज को टटोलने वाली प्रभावी पत्रकारिता से जुड़ी होती हैं। आपने लोगों को जागरूक किया है, जोड़ने का काम किया है, और कभी-कभी झकझोरने का भी काम किया है।

जब भी हम राष्ट्रीय सुरक्षा, शांति और स्थिरता की बात करते हैं,  तो अक्सर हमें सैनिकों की बहादुरी, सीमाओं की रक्षा और सरकार की मजबूती दिखाई देती है। लेकिन इसके साथ एक और शक्ति होती है, वह है स्वस्थ और स्वतंत्र पत्रकारिता की। एक स्वस्थ पत्रकारिता सिर्फ सूचना देने वाली शक्ति नहीं होती,  बल्कि वह समाज को सजग बनाने वाली, जोड़ने वाली और चेतना फैलाने वाली एक Stabilising Force भी होती है।

साथियों, चूँकि आज के कार्यक्रम में मुझे ‘राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद’ विषय पर विचार रखने को कहा गया है। इसलिए मैं अपनी बातचीत इसी विषय के इर्द-गिर्द रखूँगा। आज जब राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि cyber और social sectors में भी चुनौती के रूप में सामने है, तो पत्रकारिता एक ‘वाचडॉग’ बनकर कार्य कर रही है। इसलिए हमें यह समझना होगा कि पत्रकारिता केवल एक पेशा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय कर्तव्य है, जो न केवल हमें सूचना देता है, बल्कि हमें देश की सुरक्षा के प्रति हर समय सचेत और सजग भी रखता है।

साथियों, आज का कॉनक्लेव इसलिए भी ख़ास है, क्योंकि यह उत्तराखंड में हो रहा है। उत्तराखंड से तो वैसे भी मेरा एक खास जुड़ाव रहा है। जब मैं उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की ज़िम्मेदारी निभा रहा था, उसी समय उत्तराखंड एक नए राज्य के रूप में भारत के नक़्शे पर आया, और तब से लेकर आज तक, मैंने इसे एक नई पहचान बनाते हुए देखा है। उत्तराखंड न सिर्फ एक राज्य के रूप में आगे बढ़ा है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को भी सहेज कर रख रहा है।

पूरी दुनिया इस पुण्य भूमि को देवभूमि कहती है। यह केवल एकनाम नहीं है, यह एक दिव्य और दैवीय पहचान है। चारों धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ का, एक ही राज्य में होना, अपने आप में एक चमत्कार जैसा ही है।

यह भूमि तो देवभूमि है। यहाँ तो अनेक देवताओं का वास है। पूरे उत्तराखंड में कुछ-कुछ दूरी पर आपको कोई न कोई प्राचीन मंदिर दिख ही जाएगा। मतलब भारतवर्ष के अंदर भी एक ऐसी भूमि है, जहाँ देवता भी आने के लिए लालायित होते हैं। आप सब इस भूमि के निवासी हैं, तो आप तो blessed beyond the blessed हैं।

उत्तराखंड एक पुण्यभूमि तो है ही, साथ ही यह भारत की सामरिक और सैन्य शक्ति का भी हिस्सा है। यह राज्य अन्तराष्ट्रीय सीमा से लगा हुआ है, इसलिए सीमा सुरक्षा की दृष्टि से भी, उत्तराखंड का अपना विशेष महत्व है। आज के समय में जब देश को कई तरह की चुनौतियों  का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में उत्तराखंड जैसे राज्यों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।

यह एक पर्वतीय राज्य जरूर है, लेकिन इसकी भूमिका सिर्फ सांस्कृतिक या आध्यात्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से भी बेहद अहम है। इस राज्य के वीर जवानों ने सीमाओं पर भारत की एकता और अखंडता की रक्षा में अभूतपूर्व योगदान दिया है। यही कारण है कि मेरा इस राज्य से जुड़ाव सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी बेहद खास है। उत्तराखंड न सिर्फ हमें मानसिक शांति की अनुभूति देता है, बल्कि सुरक्षा का भरोसा भी देता है।

साथियों,  उत्तराखंड की वीर भूमि ने हमेशा ऐसे सपूत दिए हैं,  जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। भारतीय सेना में दो रेजिमेंट्स हैं जिनके नाम उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमायूँ क्षेत्र के नाम पर रखे गए हैं। भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत भी उत्तराखंड से ही थे। आज वाले सीडीएस भी इसी उत्तराखंड से आते हैं।

माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में, वैसे तो हमने भारत के हर क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान दिया है,  लेकिन हमारा स्पेशल फोकस सीमावर्ती और पर्वतीय राज्यों के विकास पर रहा है। इसका कारण है कि हमारे सीमावर्ती राज्य राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बेहद अहम हैं और यहाँ रहने वाली जनता हमारे देश के लिए strategic asset हैं।

मैंने देश के गृह मंत्री के रूप में काम किया है और आज रक्षा मंत्री के तौर पर देश को अपनी सेवायें दे रहा हूँ। पिछले ग्यारह वर्षों में, चाहे आंतरिक सुरक्षा की बात हो, चाहे बाहर के दुश्मनों से सुरक्षा की बात हो,  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा चक्र को चाक चौबंद किया है और उसे मजबूती दी है। हमने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हर मुद्दे पर सरकार के Attitude और Action के तरीके, दोनों को बदला है।

यह बदलाव पूरी दुनिया को हाल ही में हुए, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान देखने को मिला है। पहलगाम में हुए आतंकी हमलों में आतंकवादियों ने जिस तरह धर्म पूछकर लोगों को निशाना बनाया, उसने पूरे देश को झकझोरा। वह हमला सिर्फ हमारे लोगों पर नहीं था, वह भारत की सामाजिक एकता पर किया गया हमला था। इसके ख़िलाफ़ भारत ने बड़ी और कड़ी कारवाई करते हुए पाकिस्तान में मौजूद आतंकी अड्डों और उससे जुड़े अन्य इंफ्राट्रक्चर को तबाह कर दिया। यह आतंकवाद के ख़िलाफ़ की गई भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी कारवाई है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ तो अभी हाल की घटना है। जब हम आतंकवादी घटनाओं को देखते हैं, तो मुझे लगता है, हमें इसे समझने के लिए थोड़ा अतीत की ओर भी देखने की जरूरत है। इसे मैं एक उदाहरण से आपको समझाता हूँ।

आप सबने देखा होगा कि जब तक कश्मीर में धारा 370 थी, तब तक सभी यही कहते थे कि कश्मीर भारत में तो है, पर उसका भारत में पूरी तरह इंटीग्रेशन अधूरा है। प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में जब 370 हटाया गया, तब कश्मीर ने भारत के साथ चलना शुरू किया। पिछले साल कश्मीर में 35 लाख से ज्यादा पर्यटक आए थे। ये कोई मामूली बात नहीं है। ये उस भरोसे का संकेत है, जो वहां के लोगों के मन में पहली बार जम्मू एवं कश्मीर की शांति व्यवस्था के लिए बना है।

ये बदलाव सिर्फ भाषणों में नहीं,  बल्कि ज़मीन पर हुआ है। On-ground governance दिख रही है। स्कूल, सड़कें, अस्पताल, और रोज़गार की योजनाएं अब सिर्फ कागजों में नहीं, गांव-गांव में पहुँच रही हैं। जम्मू और कश्मीर को भारत माता का मस्तक कहा जाता है। हमारे प्रयासों से जब यह मस्तक चमकने लगा, तो हमारे पड़ोसियों को वह चमक बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने पहलगाम में आतंकी वारदात को अंजाम दिया।

हालाँकि,  आंतकवादियों को तो भारतीय सेना ने जवाब दे दिया है, लेकिन इस प्रकार की घटनाएँ भविष्य में न हों यह बात भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक बेहद अहम मुद्दा है। इसलिए मैं समझता हूँ, कि अब सिर्फ सरकारों के स्तर पर नहीं, बल्कि जनता के स्तर पर भी, इस बढ़ रहे आतंकवाद के खिलाफ सतर्क होने का समय है।

आतंकवाद मानवता का सबसे बड़ा ‘अभिशाप’ है। यह मानवीय सभ्यता के सबसे अहम मूल्यों का दुश्मन है। आतंकवाद हमारे शांतिपूर्ण सह अस्तित्व और लोकतंत्र के लिए भी एक बड़ा खतरा है। कोई भी सभ्य देश इसे सहन नहीं कर सकता।

आतंकवाद एक विकृत मानसिकता है। यह मानवता पर कलंक है। प्रगति के मार्ग में बाधा है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सुरक्षा का सवाल नहीं है, यह मानवता के मूलभूत मूल्यों की रक्षा की लड़ाई है। यह उस बर्बर सोच के खिलाफ लड़ाई है, जो सभी मानवीय मूल्यों के खिलाफ है।

साथियों, वैसे तो मानवता के सामने जितनी भी भयावह महामारियाँ आईं, वह देर-सवेर खत्म हो ही गईं। आतंकवाद भी एक महामारी है,  इसकी नियति भी यही है। लेकिन इसे अपनी मौत मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। क्योंकि जब तक आतंकवाद है, यह हमारी सामूहिक शांति, विकास और समृद्धि को चुनौती देता रहेगा। हमारे संसाधन इस आतंकवाद रूपी महामारी से लड़ने में बर्बाद होते रहेंगे। इसलिए आतंकवाद की इस समस्या का स्थायी समाधान बहुत ही आवश्यक है।

इतिहास ने बार-बार साबित किया है, कि आतंकवाद का कोई भी लक्ष्य, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे हमेशा हिंसा और डर के बल पर पाने की कोशिश  की जाती है और वह कभी सफल नहीं होती है। यह सोचना भी उचित नहीं है कि कोई आतंकवादी किसी का स्वतंत्रता सेनानी हो सकता है। यह बात मैंने इस्लामाबाद में सार्क गृह मंत्रियों की 2016 में हुई बैठक में पूरी साफ़गोई से रखी थी क्योंकि पाकिस्तान का एक वर्ग आतंकवादियों को फ्रीडम फाइटर साबित करना चाह रहा था।

मैं मानता हूँ कि कोई भी मज़हबी, वैचारिक या राजनीतिक कारण आतंकवाद को जायज़ नहीं ठहरा सकता। आतंकवाद की कोख से कोई क्रांति नहीं पैदा होती है, बल्कि सिर्फ़ बर्बादी और नफ़रत पैदा होती है। किसी भी मानवीय उद्देश्य को कभी भी खून-खराबे और हिंसा के बल पर हासिल नहीं किया जा सकता।

साथियों,  हमने हमेशा देखा है कि पाकिस्तान जैसे देश लगातार आतंकवाद को समर्थन देते आए हैं। यह कितना विरोधाभास है, कि भारत और पाकिस्तान दोनों एक ही समय आज़ाद हुए, लेकिन आज भारत को पूरी दुनिया में जहाँ Mother of Democracy की पहचान मिली है, वहीं पाकिस्तान Father of Global terrorism बनकर उभरा है।

पाकिस्तान ने हमेशा आतंकवादियों को पनाह दी है, अपनी ज़मीन पर उन्हें ट्रेनिंग और कई तरह की मदद दी है। पहलगाम तो सिर्फ एक उदाहरण है, पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के गुनाहों की लिस्ट बहुत लंबी है। पाकिस्तान हर बार आतंकवाद को सही ठहराने की कोशिश में लगा रहता है। इसलिए जरूरी है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में, हम सिर्फ आतंकवादियों को ही नहीं, बल्कि उन्हें मदद करने वाले पूरे Terror Infrastructure को भी खत्म करें।

साथियों,  आतंकवाद को फंडिंग और शरण देने वाले देशों को भी, आज दुनिया से बेनकाब करना जरूरी है। पाकिस्तान को जो पैसा या आर्थिक सहायता मिलती है, उसका एक बड़ा हिस्सा आतंकवाद के कारखाने में खर्च किया जाता है। यह बात पूरी दुनिया के सामने आ रही है। पाकिस्तान को फंडिंग का मतलब है,  आतंकवाद के infrastructure को फंडिंग। इसलिए मुझे लगता है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस विदेशी फंडिंग को बंद करना होगा। पाकिस्तान आतंकवाद की नर्सरी है। इसको खाद पानी नहीं मिलनी चाहिए।

साथियों, मैं मानता हूँ कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक बड़ी जिम्मेदारी किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था पर है,  तो वह है संयुक्त राष्ट्र संघ पर है। लेकिन दुर्भाग्य वश,  हाल के वर्षों में UN के कई निर्णयों पर सवालिया निशान लग गए हैं।

सबसे हालिया उदाहरण है— संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा पाकिस्तान को Counter-Terrorism Panel  का Vice-Chair यानि उपाध्यक्ष बनाया गया है। हैरानी की बात यह है कि यह काउंटर-टेररिज़्म पैनल 9/11 हमले के बाद गठित किया गया था। और हम सब जानते हैं कि 9/11 का हमला किसने किया था। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि उस हमले के मास्टर माइंड को पाकिस्तान ने शरण दी थी। यह तो एक तरह से बिल्ली से दूध की रखवाली करवाने की बात हुई।

यह निर्णय न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि आतंकवाद के मुद्दे पर UN जैसी संस्था की गंभीरता को दर्शाता है। यह कैसे भुलाया जा सकता है कि यह वही पाकिस्तान है जिसकी ज़मीन का इस्तेमाल वैश्विक आतंकवादी संगठनों की पनाहगाह के रूप में होता रहा है।

यह वही देश है जहाँ हाफ़िज़ सईद और मसूद अजहर जैसे घोषित आतंकवादी खुलेआम घूमते हैं और ज़हर उगलते हैं। जहाँ आतंकियों के जनाज़े में पाकिस्तान आर्मी के बड़े अफ़सर फ़ातिहा पढ़ते नज़र आते हैं। अब उसी पाकिस्तान से उम्मीद की जा रही है कि वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक समुदाय का नेतृत्व करेगा, यह किसी क्रूर मज़ाक़ से कम नहीं है? यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की नीयत और नीतियों दोनों पर गहरे सवाल खड़े करता है। यह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई का उपहास है।

मैं समझता हूँ, Global community और United Nations जैसी संस्थाओं को आतंकवाद जैसे मुद्दों पर और भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है, क्योंकि आतंकवाद के ‘पर’ अगर नहीं कतरे गए, तो उससे पूरी दुनिया प्रभावित होगी।

जब हम आतंकवाद के खतरे से मुक्त होंगे, तभी हम पूरी दुनिया में सही मायनों में शांति और प्रगति के साथ-साथ समृद्धि के लक्ष्य की तरफ़ बढ़ सकेंगे। यह सब तो पाकिस्तान की आम जनता भी चाहती है मगर वहाँ के हुक्मरानों ने पाकिस्तान को तबाही के रास्ते पर डाला हुआ है। कोई भी इंसान अपनी जड़ों को उजाड़ना नहीं चाहता, लेकिन चूँकि उनके पास कोई clear direction नहीं है, कोई roadmap नहीं है,  इसलिए पाकिस्तान में आतंकवाद एक धंधा बन चुका है।

पाकिस्तान की कहानी ऐसी ही है, वह हमेशा किसी न किसी बाहरी शक्ति के दबाव में आता रहता है। आज पाकिस्तान की पीठ पर एक नहीं, अनेक बेताल बैठे हुए हैं, जो उसे प्रगति की राह पर जाने ही नहीं दे रहे। भारत चाहता है, कि आतंकवाद पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया से खत्म हो, क्योंकि यह पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती है।

मैंने तो पहले भी पाकिस्तान को सलाह दी थी, और आज फिर कहना चाहता हूँ, कि अगर आपसे पाकिस्तान में आतंकवाद के ख़िलाफ़ प्रभावी कारवाई नहीं हो पा रही है तो भारत की मदद लीजिये। भारत की सेनाएँ आतंकवाद के ख़िलाफ़ सरहद के इस पार और उस पार प्रभावी कारवाई करने में सक्षम हैं। यह तो पाकिस्तान ने भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान देख लिया है। मगर पाकिस्तान है कि एक ज़िद्दी बच्चे की तरह मानता ही नहीं है। इसलिए पूरी दुनिया के लिए यह ज़रूरी है कि पाकिस्तान पर आतंकवाद को लेकर हर तरह का रणनीतिक,  कूटनीतिक और आर्थिक दबाव बनाया जाये।

साथियों, हमारी सरकार ने आतंकवाद से निपटने के साथ-साथ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए नई सोच के साथ नई रणनीति अपनाई है। आज जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, तो उसके सबसे मजबूत स्तंभों में एक है हमारा रक्षा क्षेत्र। जब कोई राष्ट्र अपने सुरक्षा उपकरण, अपने हथियार, अपने लड़ाकू विमान और मिसाइलें खुद बनाना शुरू कर दे, तो वह न केवल खुद पर विश्वास करना सीखता है,  बल्कि दुनिया को भी यह संदेश देता है, कि अब हम ‘आत्मनिर्भर’ हैं,  सक्षम हैं, और किसी के मोहताज नहीं हैं।

भारत आज सिर्फ़ सीमाओं की रक्षा नहीं कर रहा, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था खड़ी कर रहा है, जो हमें सामरिक, आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से मजबूत बना रही है। पहले हम रक्षा उपकरणों के लिए पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर थे, लेकिन आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि भारत डिफेंस के मामले में बड़ी तेज़ी से आत्मनिर्भर बन रहा है।

भारत के रक्षा क्षेत्र में 2014 के बाद से कई उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में, भारत के रक्षा क्षेत्र को मजबूती देना सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में रहा है। उसके लिए पिछले ग्यारह वर्षों में देश का रक्षा बजट, जो     2013-14 में ₹2,53,346 करोड़ था, वह बढ़कर लगभग तीन गुना यानि 2024-25 में ₹6,21,940.85 करोड़ तक पहुँच गया है।

आज भारत की सेनाओं के पास केवल इंपोर्टेड हथियार नहीं, बल्कि इसी देश में बने मिसाइलें, टैंक और अन्य सिस्टम्स एवं प्लेटफॉर्म्स भी हैं। हमारी अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें आज दुश्मन को जवाब देने के लिए तैयार खड़ी हैं, और ये सब भारत में बनी हैं। अब हमारे देश में आईएनएस विक्रांत जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की भी ताकत है।

आपको जानकर सुखद अनुभूति होगी, कि आज भारत का defence export, 2014 की तुलना में, लगभग 35 गुना बढ़ चुका है। साल 2013-14 में भारत से होने वाला डिफेंस एक्सपोर्ट केवल 686 करोड़ का था वह आज 2024-25 में बढ़ कर 23,622 करोड़ तक पहुँच गया है। करीब सौ देशों को हमारे देश में बने डिफेंस प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट किए जा रहे हैं। हमारा यह लक्ष्य है कि इस साल हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट तीस हज़ार करोड़ रुपये और साल 2029 तक पचास हज़ार करोड़ रुपए पहुँच जाये। मुझे पूरा विश्वास है, हम यह लक्ष्य अवश्य प्राप्त करेंगे।

रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए, हमारी armed forces द्वारा, 5 positive Indigenization lists जारी की गई हैं। इनमें शामिल defence equipment, weapon system और platforms की कुल संख्या 509 है। इनका production, अब, अनिवार्य रूप से भारत की धरती पर किया जाएगा। ठीक इसी प्रकार, हमारी DPSUs द्वारा भी, 5 lists जारी की गई हैं। इनमें शामिल strategically-important LRUs, यानि Line Replacement Units, Sub-systems, Spares & Components समेत कुल items की संख्या 5,012 हैं। हम बेहद मज़बूती के साथ, planned तरीके से, आत्मनिर्भर, और सशक्त रक्षा क्षेत्र की तरफ आगे बढ़ रहे हैं।

साथियों, जब हम Make in India की ओर बढ़ रहे थे, तो उस समय हमनें domestic companies के हितों का भी ध्यान रखा। इसीलिए सरकार ने defence capital procurement करने के लिए रक्षा बजट का 75 प्रतिशत, domestic companies से procurement के लिए reserve किया हुआ है। यह domestic companies को promote करने की दिशा में हमारा महत्वपूर्ण प्रयास है।

Domestic companies को promote करने के जो हमारे प्रयास हैं, उन प्रयासों का ही परिणाम है, कि 2014 के आसपास जहाँ हमारा domestic defence production लगभग 40 हजार करोड़ रूपये था, वहीं आज हमारा domestic defence production लगभग 1 लाख 27 हजार करोड़ रूपए के रिकॉर्ड आंकड़े को पार कर चुका है, और यह लगातार आगे बढ़ रहा है। इस साल हमारा टारगेट है कि डिफेंस प्रोडक्शन 1.60 लाख करोड़ रुपए को पार कर जाये। जबकि हमारा लक्ष्य साल 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपए का defence production करने का है।

हम अपने प्रयासों में कितना सफल रहे हैं, इसकी एक झलक आप Operation Sindoor के दौरान देख चुके हैं। वैसे तो रक्षा मंत्रालय समय-समय पर Defence expo कराता रहता है, लेकिन real time defence expo हमने दुनिया को उस operation के दौरान दिखा दिया। मुझे पूरा विश्वास है, कि भारत जल्द ही रक्षा क्षेत्र में पूरी तरहसे आत्मनिर्भरता हासिल करेगा।

एक बात और जो मैं यहाँ कहना चाहता हूं, कि भारत की प्रगति को देखकर, हमारी एकता को तोड़ने की जितनी कोशिशें दुश्मन करेगा, हम उतने एकजुट होते जाएँगे, हम उतने ही विकसित होते जाएँगे।

मैं जम्मू एवं कश्मीर का फिर से उदाहरण देना चाहूँगा। पाकिस्तान के लाख चाहने के बावजूद वह कश्मीर में विकास का पहिया रोक नहीं पाया है। आज हम कश्मीर में उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेलवे लिंक जैसी परियोजना को साकार होते देख रहे हैं। यह रेलवे लाइन नहीं, लगभग 120 वर्षों से पल रही, एक अधूरी उम्मीद थी। यह सपना अब साकार हो गया है। जिन पहाड़ों और दर्रों को पार करना कभी नामुमकिन लगता था, आज वहीं से विकास की रेल दौड़ रही है। जैसे यह सपना साकार हुआ, वैसे ही वह दिन भी अब दूर नहीं, जब पूरा कश्मीर फिर से एक होगा। जो खाई कश्मीर में 1947 के बंटवारे ने बनाई थी, उस पर विकास और बेहतर भविष्य की चाहत का पुल बनेगा, जो पूरे कश्मीर को जोड़ेगा।

साथियों, मैं एक और बात आप सबके बीच कहना चाहूँगा। आज के दौर में जब भी कोई युद्ध या झड़प होती है, तो उसका तरीका पहले की अपेक्षा काफी बदल गया है। अब युद्ध सिर्फ सीमा पर तैनात सैनिक नहीं लड़ते। अब लड़ाई केवल गोलियों और तोपों से नहीं होती। 21वीं सदी में अब information warfare भी लड़ा जा रहा है।

डेटा और information  आज अगर सबसे बड़ी शक्ति है, तो सबसे बड़ी चुनौती भी है। हमने देखा कि कैसे ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की तरफ़ से फर्जी वीडियो, manipulated news और posts के माध्यम से हमारे जवानों का और देशवासियों का मनोबल तोड़ने की साज़िश की गई।

चूँकि ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है, इसलिए मैं यहाँ स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि military actions भले ही रोक दिए गए हों, लेकिन information warfare अभी भी जारी है। और इस युद्ध में सिर्फ सैनिक नहीं, आप भी लड़ रहे हैं। अगर आप एक झूठी खबर को बिना सोचे-समझे शेयर करते हैं, तो अनजाने में आप उस दुश्मन का हथियार बन जाते हैं, जो भारत को भीतर से तोड़ना चाहता है। इसलिए अब समय है, कि हम सब आम नागरिक भी social soldiers बनें। झूठ को पहचानें। अफवाहों को रोकें, और समाज में जागरूकता फैलाएं।

मैं अमर उजाला के इस मंच से मीडिया से भी आग्रह करता हूँ, कि आज की पत्रकारिता में सिर्फ ‘सबसे आगे’ बने रहने की दौड़ न हो, बल्कि ‘सबसे सही’ बनने की ज़िम्मेदारी हो। आजकल “वेरिफ़ाइड” होने की जगह “वायरल” होना पत्रकारिता का मानक बन गया है। इससे बचने की जरूरत है।

मैं युवाओं से भी कहना चाहता हूँ कि आपके हाथों में जो स्मार्टफोन है, वह सिर्फ आपका मनोरंजन नहीं करता, वह आपकी जिम्मेदारी भी है। सरकार तो अपने स्तर पर साइबर सुरक्षा को लेकर बहुत गंभीरता से काम कर ही रही है। लेकिन देश की सबसे बड़ी सुरक्षा तब होगी, जब हर नागरिक खुदको ‘first responder’ माने। मुझे पूरा विश्वास है कि देशवासियो ने, मीडिया के साथियों ने, जो संयम और समझदारी दिखाई है, वह आने वाले समय में और भी अधिक परिपक्व रूप में सामने आएगी।

मैं देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती को पुनः नमन करता हूँ, जिन्होंने इसने देश को अनगिनत सैनिक दिए। जिन्होंने सीमा पर अपनी जान तक न्योछावर कर दी, लेकिन देश की आन-बान-शान पर आंच नहीं आने दी। भारत को सशक्त बनाने में उत्तराखंड ने जो योगदान दिया है, जो बलिदान दिया है, उसे यह देश कभी नहीं भूल सकता।

मैं अमर उजाला को भी धन्यवाद देता हूं, कि आपने देश के युवाओं, देशभक्तों और रचनात्मक सोच रखने वालों को एक ऐसा मंच दिया जहाँ राष्ट्र की बात हो, विकास की बात हो, और आत्मसम्मान की बात हो।

मैं उत्तराखंड की जनता को, यहां के युवाओं को, इस कार्यक्रम के आयोजकों को, एक बार फिर से धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे इस कॉनक्लेव में आमंत्रित किया। अंत में इस कॉनक्लेव की सफलता की कामना करते हुए, मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ।

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।