आज, ‘कारगिल विजय दिवस’ के पावन अवसर पर, आप सभी के बीच उपस्थित होकर मुझे बेहद खुशी हो रही है। सबसे पहले मैं, भारत माता के उन जाँबाज सपूतों को नमन करता हूँ, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। मैं उन वीर सपूतों को नमन करता हूँ, जिन्होंने राष्ट्र को सर्वप्रथम रखा, और उसके लिए अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे। मैं उन वीरों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ, जिनके सर्वोच्च बलिदान के कारण कश्यप मुनि, ललितादित्य और भगवान बुद्ध की आभा से प्रदीप्त इस पावन धरती पर आज हम ‘विजय दिवस’ मना रहे हैं।
मैं, ऑपरेशन विजय की सफलता के 24 वर्ष पूरे होने पर, समस्त देशवासियों को बधाई देता हूँ।
साथियों, आज कारगिल की इस वीर भूमि पर, आप सभी सैनिकों के बीच उपस्थित होकर मैं जिस गौरव की अनुभूति कर रहा हूं, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। कारगिल की इन सुंदर पहाड़ियों में आप लोगों के साथ समय बिताना मेरे लिए बड़ा सुखद है।
साथियों, आज भारत रूपी जो विशाल भवन हमें दिखाई दे रहा है, वह हमारे वीर सपूतों के बलिदान की नींव पर ही टिका है। भारत नाम का यह विशाल वटवृक्ष, उन्हीं वीर जवानों के खून और पसीने से अभिसिंचित है। अपने हज़ारों सालों के इतिहास में, इस देश ने अनेक ठोकरें खाईं हैं, पर अपने वीर जवानों के दम पर यह बार-बार उठा है। जैसा कि कहा गया है, कि Our greatest glory is not in never falling, but in rising every time we fall. अर्थात, ‘हमारी महानता कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि गिरने के बाद हर बार उठ जाने में है।’ बार-बार ठोकर खाकर भी यह देश संभला है, और इसने अपने वैभव को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया है।
सन 1999 की घटना भी, भारत के ठोकर खाने, सँभलने, और संभलकर नई ऊँचाइयों की ओर छलांग लगाने की ही एक अहम घटना है।
भारत माँ के ललाट की रक्षा के लिए, 1999 में कारगिल की चोटी पर देश के सैनिकों ने वीरता का जो प्रदर्शन किया, जो शौर्य दिखाया, वह इतिहास में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा। आज हम खुली हवा में साँस इसलिए ले पा रहे हैं, क्योंकि किसी समय minus temperature में भी, हमारे सैनिकों ने ऑक्सीजन की कमी के बावजूद अपनी बंदूकें नीची नहीं की। आज कारगिल में भारत का ध्वज पूरे गौरव के साथ इसलिए लहरा रहा है, क्योंकि 1999 में कारगिल के युद्ध में, भारत के सैनिकों ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए, दुश्मनों की छाती में अपना तिरंगा लहरा दिया था। कारगिल की वह जीत पूरे भारत की जनता की जीत थी। भारतीय सेनाओं ने, 1999 में कारगिल की चोटियों पर जो तिरंगा लहराया था, वह केवल एक झंडा भर नहीं था, बल्कि वह इस देश के करोड़ों लोगों का स्वाभिमान था।
साथियों, कारगिल युद्ध भारत के ऊपर एक थोपा गया युद्ध था। उस समय देश ने पाकिस्तान से बातचीत के माध्यम से मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया। स्वयं अटल जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके कश्मीर सहित अन्य मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया था। लेकिन पाकिस्तान द्वारा हमारी पीठ में खंजर घोंप दिया गया। पाकिस्तान ने अपने कुत्सित इरादों से, गद्दारी का एक नया आयाम गढ़ते हुए कारगिल की उन चोटियों के पास अपने सैनिकों को भेज दिया, जिन चोटियों पर भारत का अधिकार था। आप कल्पना कर सकते हैं, कि उस समय स्थिति क्या थी? दुश्मन ऊंचाई पर, पहाड़ की चोटियों पर था। दुश्मन को tactical military advantages थे। मौके पर दुश्मन की स्थिति काफी मजबूत थी। उनकी तादाद भी बहुत ज्यादा थी। अगर उनके गोला बारूद और सैनिकों की संख्याओं को कागजों पर लिखा जाता, तो यह कहा जा सकता था कि उनकी स्थिति बहुत मज़बूत थी। लेकिन मैंने कहीं एक शे’र पढ़ा था, कि-
जंग में कागज़ी अफरात से क्या होता है।
हिम्मतें लड़ती हैं, तादाद से क्या होता है।
हमारी सेना के शौर्य ने, और हमारे commanders के युद्ध कौशल ने, उस विपरीत परिस्थिति में भी “ऑपरेशन विजय” का नाम चरितार्थ किया।
साथियों, सारा खेल इसी इच्छाशक्ति का है। जिसकी इच्छाशक्ति ज्यादा मजबूत है, वही विजयी होता है। चाहे युद्ध मनुष्यों के बीच हो, या पशुओं के बीच। 1999 में जब कारगिल की चोटी पर दुश्मन बैठे थे, तो पूरी दुनिया में इस बात पर चर्चा शुरू हुई, कि पाकिस्तान ने कारगिल की चोटी पर अपना कब्जा जमा लिया है। क्या भारत अपनी उस जमीन को वापस हासिल कर पाएगा? यदि भारत अपनी उस जमीन को वापस हथियाने की कोशिश करेगा, तो पाकिस्तान जैसे nuclear power का क्या reaction होगा? मतलब पाकिस्तान की तरफ से भारत जैसे देश को, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने nuclear weapons की धमकी देकर एक प्रकार से blackmail करने का प्रयास किया गया। भारत की इच्छाशक्ति पर प्रश्न उठाया गया था। क्या भारत के अंदर इतनी इच्छाशक्ति है, कि वह अपनी जमीन को पाकिस्तान जैसे nuclear weapon state से वापस ले पाएगा?
ऐसी अलग-अलग अटकले लगाई गईं, अलग-अलग प्रश्न पूछे गए, और “ऑपरेशन विजय” के दौरान भारतीय सेना ने उन तमाम प्रश्नों का माकूल जवाब दिया। हमने सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को यह संदेश दिया, कि जब बात हमारे राष्ट्रीय हितों की आएगी, तो हमारी सेना किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगी। हम आज भी अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह committed हैं, सामने चाहे कोई भी हो। जनता को इस बात का पूरा भरोसा है, कि भारत सरकार अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगी। बात चाहे कारगिल की हो, या फिर अन्य incidents की, हमारी सेना ने हमेशा बताया है, कि जंग nuclear bombs से नहीं लड़ी जाती, बल्कि जंग, शौर्य और अदम्य इच्छाशक्ति के बल पर लड़ी जाती है। यही इच्छाशक्ति, और राष्ट्र के प्रति स्वाभिमान की भावना ही भारतीय सैनिकों को बाकी लोगों से अलग करती है।
वैसे देखें तो, युद्ध का क्या है? वह तो भाड़े की सेना लेकर भी लड़े जा सकते हैं। आप सभी जानते होंगे, कि एक प्रकार की सेना ऐसी होती है, जिसे mercenaries के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत वैसे सैनिक आते हैं, जो पैसे के लिए किसी राजा की तरफ से लड़ते हैं। लेकिन mercenaries के साथ एक सबसे बड़ी समस्या यह आती है, कि उनके अंदर वह इच्छाशक्ति नहीं होती, जो इच्छाशक्ति एक नागरिक के अंदर अपने राष्ट्र को बचाने की हो सकती है। मुझे आप लोगों को यह बताने की आवश्यकता नहीं है, कि हाल के दिनों में दुनिया के कुछ हिस्सों में mercenaries की loyalty किस प्रकार से संदेह के घेरे में रही है। Mercenaries के लिए आपका राष्ट्र व आपकी संस्कृति महत्वपूर्ण नहीं होती है, बल्कि उनके लिए पैसे महत्वपूर्ण होते हैं।
दूसरी तरफ, जब हम अपने देश की सेना की बात करते हैं, तो हम देखते हैं कि यहां चीजें बिल्कुल उलट हो जाती हैं। हमारी सेनाएँ उस कोटि की सेनाएँ हैं, जो अपने राष्ट्र, सभ्यता और संस्कृति की सुरक्षा के लिए देशप्रेम की भावना से युक्त होकर तैयार होती हैं। यहाँ पैसा उतना मायने नहीं रखता है। यहाँ मायने रखता है मातृभूमि की सुरक्षा। आप सोच कर देखिए, कोई भी व्यक्ति पैसे के लिए क्यों मौत के साथ खेलेगा? भारतीय सेना के जवानों के सामने ऐसे खतरे आते रहते हैं, जहां उनका सामना मौत से होता रहता है। लेकिन वह बिना डरे, बिना रुके सिर्फ इसलिए मौत से भिड़ जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि उसका अस्तित्व उसके राष्ट्र से है। कैप्टन मनोज पांडे के उस उद्घोष को भला कौन भूल सकता है, जब उन्होंने कहा था कि “यदि मेरे फर्ज की राह में मौत भी रोड़ा बनी, तो मैं मौत को भी मार दूंगा।” ऐसी वीरता के सामने तो दुनिया की कोई भी शक्ति नहीं टिक सकती, तो भला पाकिस्तान की क्या बिसात थी।
आप कल्पना करिए, कि वह कैसा दृश्य होगा, जब दुश्मन पहाड़ की चोटी पर बंदूक ताने खड़ा है, और नीचे से हमारे सैनिक चोटी तक जाने का प्रयास कर रहे हैं। ऊपर से गिरता हुआ एक कंकड़ भी विशाल पत्थर की भांति प्रहार करता होगा। एक ऐसी स्थिति, जहां कदम कदम पर मौत से सामना हो रहा है। सिर्फ कल्पना मात्र से हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन उस स्थिति में भी ऐसी कौन सी मनोदशा थी हमारे सैनिकों की, जो उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही थी। दरअसल उसके पीछे, हमारी संस्कृति, और इस धरती के महान पूर्वजों के संस्कार प्रेरणा का कार्य कर रहे थे। वो सैनिक जानते थे कि व्यक्ति का शरीर क्षणभंगुर होता है, लेकिन राष्ट्र का अस्तित्व सनातन होता है, अमर होता है। इस सनातन राष्ट्र के अंग के रूप में यदि वो अपना बलिदान भी देते हैं, तो भी वे अमरत्व को प्राप्त हो जाएँगे। उन्हें विश्वास था, कि उनका भौतिक अस्तित्व भले ही नष्ट हो जाए, लेकिन इस राष्ट्र का अस्तित्व बरकरार रहेगा; और आने वाली पीढ़ियां उनके बलिदान को अपनी स्मृतियों में संजोए रखेंगी। इसलिए वे अपने भौतिक अस्तित्व को मिटाकर भी, इस राष्ट्र के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आगे बढ़ते गए।
किसी समय हम, महान कवि और नाटककार जयशंकर प्रसाद जी की पंक्तियाँ पढ़ते थे। उनमें कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार थीं, कि-
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ, विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के, रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो, बढ़े चलो!
यानी हमारे समाज में पूर्वजों के शौर्य और पराक्रम, और उनकी कीर्ति की असंख्य रश्मियाँ बिखरी पड़ी हैं। तुम सभी मातृभूमि के वीर सपूत हो। दुश्मनों के समुंदर में उतरकर उन्हें ऐसे नष्ट कर दो, जैसे बड़वाग्नि समुद्र के जल को वाष्पित कर देता है। आज जब मैं इन पंक्तियों के बारे में सोचता हूँ, तब इसका एक अलग महत्त्व समझ में आता है।
आमतौर पर हम देखते हैं, कि जीवन और समाज से कला और साहित्य प्रभावित होता है। पर कई बार ऐसा देखने को मिलता है, कि साहित्य अपने समय से कहीं आगे की व्याख्या कर देता है। इस कविता को पढ़कर ऐसा लगता है, जैसे कारगिल युद्ध के लगभग सात दशक पूर्व भी कवि, कारगिल के युद्ध को और हमारे सैनिकों के शौर्य को अपनी आँखों के सामने देख रहा था। आप जब उन पंक्तियों को पढ़ेंगे, तो ऐसा लगेगा जैसे साहित्यकार पर वास्तव में कोई दैवीय आशीर्वाद होता है, जिसके तहत वो भविष्य की घटनाओं को भी वर्तमान में रहते हुए देख लेते हैं।
साथियों, भारत की तरफ चली हर एक गोली को हमारे सैनिकों ने अपनी फौलादी छातियों से रोक दिया। कारगिल युद्ध, भारत के सैनिकों की वीरता का प्रतीक है, जिसे सदियों तक दोहराया जाएगा। असम के कैप्टन जिंटू गोगोई, जिन्होंने “बद्री विशाल की जय” के उद्घोष के साथ हमला किया, और कालापत्थर को दुश्मन से आज़ाद कराया। केरल के लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन, जो दुश्मन की भीषण गोलीबारी के बीच 15,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंचने में कामयाब रहे। पंजाब के लेफ्टिनेंट. विजयंत थापर, जिन्होंने युद्ध में जाने से पहले अपने घरवालों को खत लिखा था, कि अगर फिर से मेरा जन्म हुआ तो मैं एक बार फिर सैनिक बनना चाहूंगा और अपनी मातृभूमि के लिए मैदान-ए-जंग में लडूंगा। राजस्थान के सूबेदार मंगेज सिंह, जिन्होंने घायल हालत में ही बंकर के पीछे पाकिस्तानी सैनिकों पर जमकर कई राउंड फायरिंग की, और 7 दुश्मनों को ढेर किया। ऐसे ही न जाने कितने ही वीरों ने अपने देश के गौरव को बचाए रखने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।
हमें यह भी याद रखना चाहिए, कि कैसे युद्ध के दौरान Flight Lieutenants Gunjan Saxena और Srividya Rajan दुश्मनों के खिलाफ अद्भुत साहस का परिचय दे रही थीं। उनके शौर्य ने यह संदेश दिया, कि जब बात देश की सीमाओं की सुरक्षा की आती है, तो इस देश की बेटियाँ भी किसी से कम नहीं हैं। उनके इस जज़्बे को देश ने recognise किया और आगे चलकर defence में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के रास्ते खुले।
यह सभी सैनिक भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से थे। कोई सैनिक सुदूर नॉर्थ ईस्ट के किसी गाँव से था, कोई भारत के पश्चिमी और पूर्वी भागों से था, तो कोई भारत के दक्षिणी भाग से। इन सब की भाषाएँ अलग-अलग थीं, कोई आसामी भाषा बोलता था तो कोई मलयाली भाषा, कोई पंजाबी बोलता था तो कोई बंगाली। कमोबेश इनके पर्व-त्यौहार भी अलग-अलग थे, कोई बीहू मनाता था, कोई ओणम मनाता था, तो कोई लोहड़ी मनाता था। लेकिन भाषा, पर्व-त्यौहार और अनेक विविधताओं के बावजूद, ये सैनिक जब भारत के लिए लड़े, तो इनकी पहचान एक हो गई। इन सैनिकों ने देश की अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रखने के लिए, तथा मां भारती के गौरव को बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी; और इतिहास में अपना नाम अमर कर गए। ऐसे में यह विजय दिवस, हमें उस गीत की याद दिलाता है, जिसे कवि प्रदीप ने लिखा था, और सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने भावपूर्ण ढंग से गाया था। वह गीत है-
कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला, हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुर्बानी।
इनमें से कई ऐसे सैनिक थे जिनकी कुछ दिनों पहले शादी हुई थी, कई ऐसे सैनिक थे जिनका विवाह भी नहीं हुआ था, कई ऐसे सैनिक थे, जो अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले थे। लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत जीवन की उन सारी परिस्थितियों का सामना करते हुए, राष्ट्र के अस्तित्व को बचाने का प्रयास किया, क्योंकि उनके मन में यह भावना थी, कि- तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।
वह सभी सैनिक अपने जीवन की सफलता, इस राष्ट्र के वैभव के चरमोत्कर्ष में देख रहे थे। उन्हें विश्वास था कि उनका बलिदान बेकार नहीं जाएगा। और साथियों, आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि हमने उनके विश्वास को तोड़ा नहीं है। उन जवानों का बलिदान बेकार नहीं गया है। आज कारगिल में भारत का ध्वज पूरे वैभव के साथ लहरा रहा है। आज भी माएँ अपने बच्चों को जब वीरता की कहानियां सुनाती हैं, तो उनकी कहानियों में कैप्टन मनोज पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा और इन जैसे न जाने कितने वीरों का जिक्र होता है। हमने इन वीरों को थाती बना कर रखा है, और आने वाली न जाने कितनी पीढ़ियां इनके शौर्य से प्रेरणा लेती रहेंगी। भगवान श्री कृष्ण ने भी, भगवदगीता में अर्जुन को एक योद्धा के धर्म के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था-
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं, जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्माद–उत्तिष्ठ कौन्तेय, युद्धाय कृतनिश्चयः।।
“अर्थात्, हे अर्जुन, या तो तुम युद्ध में बलिदान देकर स्वर्ग को प्राप्त होगे अथवा विजयश्री प्राप्त करके पृथ्वी का राज्य भोगोगे। इसलिए हे अर्जुन तुम युद्ध के लिए कृतनिश्चयी होकर खड़े हो।” अगर कैप्टन विक्रम बत्रा जैसे कारगिल के हमारे शूरवीर, यह कहते हैं कि ‘मैं या तो तिरंगा लहराकर आऊँगा, या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊँगा’, तो मैं मानता हूँ वह श्रीकृष्ण के उस शाश्वत संदेश को चरितार्थ कर रहे होते हैं। भारत माता के उस सपूत के लिए तिरंगे में लिपटकर आना स्वर्ग प्राप्त करने से कम नहीं है। इसी प्रकार तिरंगा लहराकर आना, यानी विजय प्राप्त करके आना अपने आप में समस्त सुखों से बड़ा है। गीता का वह संदेश, वह संस्कार, परंपरागत तरीके से हमारे सैनिकों के भीतर चला आ रहा है ।
साथियों, आज जब हम सभी विजय दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए हैं, तो इस अवसर पर मैं देशवासियों से एक और बात करना चाहूंगा। और वह बात है कि कारगिल युद्ध से हम सीख क्या लें! आप सब जानते हैं, कि कारगिल का युद्ध लगभग 2 महीने के आसपास चला था। युद्धों की यह प्रवृत्ति होती है, कि उनका duration हमारे हाथ में नहीं होता। हमने इतिहास में ऐसे अनेक युद्ध देखे हैं, जो कुछ दिनों में भी समाप्त हुए हैं, और ऐसे अनेक युद्ध भी देखे हैं, जो कई वर्षों तक लड़े गए हैं। लेकिन हाल के वैश्विक घटनाक्रम पर यदि हम नजर डालें, तो हम पाएंगे कि लगभग 1 वर्ष से अधिक समय से यूक्रेन और रूस के बीच में युद्ध जारी है। इस युद्ध के तौर-तरीकों का आकलन मुझे लगता है, भारतीय सेना ज्यादा अच्छे तरीके से कर रही होगी।
इस युद्ध से हम क्या सीख सकते हैं, यह काम हमारे strategic affairs experts अच्छे तरीके से कर रहे होंगे। लेकिन मैं इस युद्ध के एक महत्वपूर्ण बिंदु पर आपसे बात करना चाहूंगा। इस युद्ध की जब शुरुआत हुई, तो कुछ समय के बाद हमने पाया कि यूक्रेन की लगभग पूरी army तबाह हो चुकी थी, और Russian army का भी एक बड़ा हिस्सा क्षत-विक्षत हो गया। उसके बाद से लेकर अभी तक यदि युद्ध चल रहा है, तो वह इसलिए चल पा रहा है कि इस युद्ध में वहां की जनता की भागीदारी ज्यादा देखने को मिल रही है। कहने का अर्थ यह है कि वहाँ की बड़ी संख्या में जनता, training लेकर सेना में शामिल होकर युद्ध लड़ रही है।
वैसे सामान्यतः तो यही होता है, कि सेना जनता की प्रतिनिधि के रूप में लड़ाई करती है। युद्ध में सिर्फ सेना ही नहीं लड़ती बल्कि कोई भी युद्ध दो राष्ट्रों के बीच होता है; उनकी जनता के बीच होता है। आप देखिए, कि किसी भी युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से सेनाएँ तो भाग लेती ही हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से आप देखें, तो उस युद्ध में किसान से लेकर डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक व कई सारे पेशों के लोग शामिल होते हैं। आप 1965 के युद्ध को ही देख लीजिये, जब हमारे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के एक आह्वान पर, पूरे देश ने अपनी सेना के लिए एक वक्त का उपवास रखना शुरू कर दिया था। इसलिए मेरा यह मानना है कि युद्ध, सेनाओं के साथ-साथ, indirect रूप से जनता भी लड़ती है।
लेकिन हाल के दिनों में युद्ध जिस तरह से लंबे खिंचते जा रहे हैं, आने वाले समय में जनता को सिर्फ indirect रूप से ही नहीं, बल्कि direct रूप से भी युद्ध में शामिल होने के लिए तैयार रहना चाहिए। मेरा यह मानना है, कि जनता को इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा, कि जब भी राष्ट्र को उनकी आवश्यकता पड़े, वह सेना की सहायता के लिए तत्पर रहें। इसलिए मैं देश की जनता से यह कहना चाहता हूँ, कि जिस प्रकार से हर एक सैनिक भारतीय है, उसी प्रकार से हर एक भारतीय को भी एक सैनिक की भूमिका निभाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
साथियों, हमारी सरकार ने, भारत की सुरक्षा के लिए सेना को, दुश्मनों के घर में घुसकर मारने की खुली छूट दी है। ऐसा नहीं है कि हमारी सेना के पास पहले यह क्षमता नहीं थी। हमारी सेना पहले भी इतनी ही शक्तिशाली थी, बस कमी थी तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की। और मैं आप लोगों को, इस मंच से विश्वास दिलाना चाहता हूँ, कि केंद्र सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति में पिछले कुछ समय में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। सरकार पूरी तन्मयता से अपनी सेना के साथ खड़ी है। देश की जनता, और देश की संसद अपने सैनिकों पर पूरा भरोसा करती है।
साथियों, आज, कारगिल विजय दिवस पर मैं एक बात हमारे देशवासियों से जरूर कहना चाहूँगा। वह यह, कि राष्ट्र का मान-सम्मान और इसकी प्रतिष्ठा हमारे लिए किसी भी चीज़ से ऊपर है, और इसके लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं। मैं यह याद दिलाना चाहता हूँ, कि हम उन बजरंग बली के उपासक हैं, जो सूर्य को भी चुटकियों में निगलने की क्षमता रखते हैं। पर साथ ही हम बजरंग बली की भाँति ही मर्यादित और धर्म से अनुशासित भी हैं। 26 जुलाई 1999 को, युद्ध जीतने के बाद भी हमारी सेनाओं ने अगर LoC पार नहीं किया, तो वह इसलिए, कि हम शांतिप्रिय हैं, भारतीय मूल्यों के प्रति हमारा विश्वास है, और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति हमारा commitment है। उस समय अगर हमने LoC पार नहीं किया, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम LoC पार नहीं कर सकते थे। हम LoC पार कर सकते थे, हम LoC पार कर सकते हैं, और जरूरत पड़ी तो भविष्य में LoC पार करेंगे। मैं इसे फिर से दोहराना चाहूँगा, कि हम LoC पार कर सकते थे, हम LoC पार कर सकते हैं, और जरूरत पड़ी तो भविष्य में LoC पार करेंगे; इसका मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूँ।
मैं कारगिल युद्ध में शहीद हुए सभी वीर सैनिकों के परिवारों, और शुभचिंतको को आश्वस्त करना चाहता हूँ, कि हम उनके बलिदान को, उनकी याद को कभी धुंधला नहीं पड़ने देंगे। National War Memorial हमारी इस commitment का प्रतीक हैं। अमर चक्र पर जल रही अमर ज्योति, हमारे लिए किसी भी धार्मिक यज्ञ की अग्नि से अधिक पवित्र हैं। आज भी लाखों लोग उस मेमोरियल को देखने आते हैं, और अपनी नम आँखों से शूरवीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं, कि : ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।
साथियों, हम यह जानते हैं, कि जब तक आप सीमाओं पर हमारी रक्षा कर रहे हैं, भारत की ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत भी किसी के अंदर नहीं हो सकती है। सिर्फ कारगिल ही नहीं, बल्कि आज़ादी से लेकर आज तक कई बार, समय-समय पर आप लोगों के शौर्य ने देश का मस्तक ऊंचा किया है। मुझे विश्वास है, कि आगे भी आप सब इसी प्रकार देश की सीमाओं की रक्षा पूरी तन्मयता के साथ करते रहेंगे। इसी के साथ अब कुछ और न कहते हुए, मैं एक बार फिर, आप सभी को कारगिल विजय दिवस की बधाई देते हुए, अपनी बात समाप्त करता हूँ।
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द!