Hindi Text of RM’s speech in ‘Swarnim Bhavishya Conclave’, Dehradun

आज, देश के प्रतिष्ठित मीडिया समूह, ‘अमर उजाला’ द्वारा, भारत के स्वर्णिम भविष्य विषय पर आयोजित इस समारोह में आकर मुझे बेहद ख़ुशी हो रही है। मैं आयोजकों का धन्यवाद करना चाहूँगा, कि आपने मुझे इस समारोह में आमंत्रित किया।

Media के क्षेत्र में, अमर उजाला ने देश की जनता का जो विश्वास हासिल किया है, उसके लिए भी मैं अमर उजाला की सराहना करता हूँ। अमर उजाला के बारे में जो बात मुझे सबसे ख़ास लगती है, वह यह, कि अमर उजाला देश के बौद्धिक लोगों के बीच जितना लोकप्रिय है, देश के अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे लोगों के बीच भी यह उतना ही लोकप्रिय है। बड़े अकादमिक संस्थानों की libraries हों, या फिर चौराहे पर चाय-पान की गुमटी, अमर उजाला के पन्ने बड़े ही चाव से लोगों के हाथों से पलटे जाते दिखाई देते हैं। अपनी सूचनाओं और उनके विवेचन-विश्लेषण से अमर उजाला समाज में जागृति के उजाले का प्रसार कर रहा है। मैं पुनः इसकी प्रशंसा  करता हूँ।

साथियों, इस कार्यक्रम का जो विषय है, यानि भारत का स्वर्णिम भविष्य; यह topic दिखने और सुनने में जितना महत्त्वपूर्ण लगता है, अपनी गहराई में यह और भी विशिष्ट है। जैसे-जैसे हम इस topic के भीतर जाते हैं, हमें पता चलता है कि भारत का स्वर्णिम भविष्य सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने वाले मुद्दों में से एक है। आज जब हमारा देश, दुनिया का सबसे populous nation बन चुका है, दुनिया की one sixth population भारत में है; ऐसे में भारत के स्वर्णिम भविष्य का अर्थ दुनिया का स्वर्णिम भविष्य है।

आपने दुनिया के बड़े platforms से कई वक्ताओं को, कई बुद्धिजीवियों को, यहाँ तक कि कई राष्ट्राध्यक्षों को भी यह कहते हुए सुना होगा, यदि 19वीं सदी इंग्लैंड की थी, 20वीं सदी यूएसए की थी, तो 21वीं सदी भारत की होने वाली है। हमने जाकर दुनिया में लोगों पर यह दबाव नहीं डाला कि आप हमारे पक्ष में बयान दीजिए। दुनिया में अलग-अलग क्षेत्रों से संबंध रखने वाले लोगों ने खुद ही भारत को देखा, जाना, समझा और पाया कि भारत का भविष्य स्वर्णिम है। भारत पर दुनिया का जो विश्वास बना है, वह इसलिए, क्योंकि भारत ने अपनी आजादी से लेकर अब तक जो प्रगति की है, उसे दुनिया एक विलक्षण उदाहरण के रूप में देखती है।

मैं आपके सामने भारत के स्वर्णिम भविष्य पर चर्चा करूँगा, लेकिन उससे पहले मैं आपसे इस बारे में चर्चा करना चाहूँगा, कि आजादी के समय से लेकर आज तक भारत की जो विकास यात्रा रही है, वह किस प्रकार से गतिमान रही है। अभी कुछ ही समय पहले मेरे एक पुराने पड़ोसी और मित्र मुझसे मुलाक़ात करने मेरे पास आए। उनसे मुलाक़ात करने का अर्थ एक बार फिर, इतिहास का आँखों के सामने से गुजर जाना था। नाम बताने की जरूरत तो मैं नहीं समझता हूँ, मानकर चलिए कि उनका नाम रामभरोसे है। जिस स्थान से मैं belong करता हूँ, यानि बनारस के पास चंदौली, वहीं मेरे पड़ोस में रामभरोसे जी रहते थे। आप सोच रहे होंगे कि ये रामभरोसे जी कौन हैं, और यहाँ कहाँ से आ गए। आप अभी इनसे परिचित नहीं हैं; लेकिन जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ूँगा, वैसे-वैसे आपको रामभरोसे जी के बारे में मालूम होता जाएगा। मैं स्वतंत्र भारत की यात्रा को, रामभरोसे जी, उनके बेटे कमल, और उनके grand children आशा, किरण और अजय के जीवन वृत्तांत के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहूँगा।

साथियों, कहानी कुछ ऐसी है, कि 1947 में जब भारत गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर एक संप्रभु राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हुआ; उसी समय भारत के एक remote village में रामभरोसे जी, और उनकी बहन का एक साथ जन्म हुआ। उनके पिता, जो बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आते थे, वो कलकत्ता शहर की किसी मिल में छोटी-मोटी नौकरी करते थे। वहाँ से जो थोड़े-बहुत पैसे उन्हें मिलते, उससे वो अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। इन दोनों बच्चों के जन्म के साथ ही एक और घटना घटी, जिसके चलते लोगों को यह समझ नहीं आ रहा था कि वे खुशियाँ मनाएँ या शोक मनाएँ। हुआ यूं, कि इनकी माता जी, जो लंबे समय से धुएँ के कारण होने वाले lung cancer से जूझ रही थीं, delivery के दौरान ही बड़ी serious हो चलीं। उस समय रामभरोसे के पिता जी नौकरी करने कलकत्ता गए थे। तब आज की तरह Connectivity और Communication की सुविधा न थी। उन तक समय से खबर भी नहीं पहुँच पाई, और जब तक उन्हें खबर मिली, वो घर आए, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

अच्छी चिकित्सा की सुविधा, गाँव के 20-25 किलोमीटर के दायरे में नहीं थी। ऐसे में बच्चों के जन्म के दौरान ही उनकी माँ का देहांत हो गया। जाते-जाते उनकी माता जी के अंतिम शब्द यही थे, कि ‘कभी हमारे भी दिन फिरेंगे क्या? रामभरोसे जी के घर पर दुःखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। उनकी माताजी के देहांत के बाद उनका परिवार बिखर सा गया। रामभरोसे का जन्म तो फिर भी सुकून देने वाला था, पर उनके साथ एक लड़की का जन्म; बड़ा खटका लोगों को। कौन करेगा-धरेगा इस लड़की का सब कुछ? उसका पालन पोषण और आगे चलकर उसका शादी-ब्याह। कुछ लोगों को तो उस लड़की का जन्म ही अभिशाप लगा; जिसके जन्म के बाद इतनी बड़ी विपत्ति आई। आगे चलकर उसका नाम पत्ती रखा गया, जो वास्तव में विपत्ति का ही बदला हुआ रूप था। लेकिन किसी तरह रामभरोसे के पिताजी ने, रामभरोसे और उनकी बहन का पालन-पोषण किया। उनके पिताजी ने उसके बाद गाँव में ही खेती को अपनी आजीविका बना ली।

जैसे-तैसे रामभरोसे के जीवन की गाड़ी आगे बढ़ी। उन्होंने तो थोड़ी-बहुत कामचलाऊ पढ़ाई की भी, पर पत्ती की किस्मत में तो यह भी न था। जैसी कि मान्यता थी, कि पढ़-लिखकर कौन सा लाट साहेब बन जाएगी। परदेस से returned पिता जी ने पत्ती की शिक्षा के बारे में सोचा भी, तो आस-पास कहीं कोई स्कूल-कॉलेज नहीं; जहां उसे पढ़ने के लिए भेजा जा सके। इसलिए बस दिन-भर चूल्हा-चौका और गाय-भैंस के लिए चारे-पानी की व्यवस्था करना ही पत्ती की नियति बन गई।

रामभरोसे जी के जीवन के शुरुआत के 15-16 साल तो बिना किसी राजनीतिक समझ के ही गुजर गए। बचपन में उन्हें कुछ खास रूचि नहीं थी कि देश में क्या हो रहा है, सरकार क्या कर रही है? रामभरोसे जी अपने दोस्तों के साथ खेलने-कूदने में व्यस्त रहते थे।

दुर्भाग्य से 1964 में जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० नेहरू जी का देहांत हुआ, तब देश के गली-मोहल्ले में जो चर्चा शुरू हुई उसने रामभरोसे जी के अंदर थोड़ी सी राजनीतिक समझ जगाई। उस दिन उनको लगा, कि वास्तव में कुछ बहुत बड़ी बात हुई है। इससे पहले उनको देश की राजनीति से कोई खास मतलब नहीं था। लेकिन बाद में उन्होंने देश-दुनिया को देखा और चीज़ें जाननी समझनी शुरू कीं।

उन्होंने यह भी समझा, कि अंग्रेजों से आजाद होने के बाद जिस भारत के बारे में दुनिया के विभिन्न बुद्धिजीवियों ने जो खोखली भविष्यवाणियाँ की थी, उन तमाम अटकलों पर देश की जनता ने विराम लगा दिया था। जब हमारा देश आजाद हुआ तो दुनिया के अनेक intellectuals ने खुलेआम यह भविष्यवाणी की थी, कि यह देश, जिसका इतना बड़ा विभाजन हुआ है, यह महज कुछ ही वर्षों में कई भागों में टूट कर बिखर जाएगा। भारत के बारे में यहाँ तक कहा गया कि यहाँ पर इतनी घनघोर अशिक्षा है, कि democracy यहाँ survive ही नहीं कर पाएगी। बचपन में रामभरोसे जी को भले ही बहुत समझ न थी, लेकिन उन्होंने इतना तो देख लिया था कि इस देश के लोगों में एक कभी न टूटने वाली एकता है, जो दुनिया के किसी भी विश्लेषक के इस प्रकार के किसी भी अनुमान को ध्वस्त करने की क्षमता रखती है।

रामभरोसे जी अब अपने पिताजी के साथ खेती-गृहस्थी में उनका हाथ बँटाने लग गए। हालाँकि किसानों की हालत कोई बहुत अच्छी नहीं थी, उस समय किसानों के लिए फसलों की पैदावार भी उतनी अच्छी नहीं होती थी। लेकिन जैसे-तैसे रामभरोसे और उनके पिताजी अपना जीवन यापन कर लेते थे।

चूँकि पैदावार उतनी अच्छी नहीं होती थी; और खेती के लिए गाँव के महाजन से कर्ज लेना पड़ता था। उस कर्ज को चुकाने के लिए ब्याज इतना ज्यादा हुआ करता था कि मूलधन तो छोड़िये, वह ब्याज चुकाने में ही उनके पिताजी की अधिकांश income चली जाती थी। ऐसे में रामभरोसे और उनके पिताजी दिन रात बस काम करने की मशीन बन चुके थे, और उनका जीवन सूदखोरों का ब्याज भरने वाला बन चुका था। यह स्थिति भला कितने दिनों तक चलती। रामभरोसे जी के पिताजी यह स्थिति झेल न सके। उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और उनका भी देहांत हो गया। उधर एक दिन उनकी बहन सुबह-सुबह नित्य क्रिया के लिए, घर से दूर खेत-मैदान में गईं, जहां उन्हें किसी कीड़े ने काट लिया, और वह दुनिया को अलविदा कह गईं। रामभरोसे जी ने अपने जन्म से लेकर अब तक इतने दुःख झेल लिए थे कि उनका कलेजा फट रहा था। पर रामभरोसे जी ने चीज़ें समय के ऊपर छोड़ दीं; और मुसीबत की घड़ी को भी रामभरोसे जी झेल गए।

इसी बीच रामभरोसे जी के जीवन में एक बड़ी घटना घटी। उस समय के हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने, देश की जनता से सप्ताह में एक दिन का उपवास रखने की अपील की। रामभरोसे भले ही उतने सम्पन्न नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने प्रधानमंत्री का, अपने नेता का मान रखते हुए देश के लिए हर सप्ताह एक दिन के उपवास का प्रण लिया। उनके जैसे लाखों लोगों के उपवास ने न केवल देश के किसानों का, बल्कि देश के जवानों का भी मनोबल बढ़ाया, और देश ने 1965 का युद्ध जीतते हुए शास्त्री जी के ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे को चरितार्थ किया। जिस दिन राष्ट्र अपनी विजय का उत्सव मना रहा था, वह दिन रामभरोसे जी के जीवन का एक बहुत बड़ा दिन था। उस दिन उनको एहसास हुआ कि इस राष्ट्र के निर्माण में उनका भी योगदान है।

इसके कुछ समय बाद पूरा देश कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति का साक्षी बना। जो भारत अनाज के लिए कभी दूसरे देशों पर निर्भर हुआ करता था, हरित क्रांति के बाद वही भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने लगा। रामभरोसे जी के परिवार पर भी इस हरित क्रांति का प्रभाव पड़ा। उनकी फसलों की पैदावार अच्छी होने लगी। उनके परिवार की income भी थोड़ी बहुत बढ़ी। इसी बीच उनका विवाह हुआ, और कुछ समय बाद उन्हें एक पुत्र, ‘कमल’ भी हुआ।

रामभरोसे जी का परिवार तो बढ़ ही रहा था, तो उधर देश भी अपनी विकास की गति को बढ़ा रहा था। Education, Medical, Agriculture, Industry, Finance, Science & technology; यानि लगभग हर क्षेत्र में भारत ने आगे बढ़ना शुरू किया। इसी बीच रामभरोसे जी के जीवन में एक और खुशी का क्षण आया जब उन्हें जगह-जगह रेडियो पर एक बार फिर भारतीय सेनाओं के शौर्य की चर्चा सुनने को मिली। जहाँ देखिए, वहीं हमारी सेनाओं की चर्चा। 1971 में हमारी सेनाओं ने अपने पराक्रम से पाकिस्तान को एक बार फिर पटखनी दी, और यह पटखनी ऐसी थी कि पाकिस्तान ही हमेशा हमेशा के लिए टूट गया। हालांकि रामभरोसे को ज्यादा मालूम तो नहीं था, कि वेस्ट पाकिस्तान या ईस्ट पाकिस्तान क्या है, पर उन्हें इतना मालूम था कि कुछ तो ऐसा हुआ है, जिसने हमारा सर गर्व से ऊँचा किया है। और सर गर्व से ऊँचा अनुभव करने की यही जो भावना है मित्रों, यही किसी भी समाज और राष्ट्र का प्राण होती है। राष्ट्र और समाज के प्रति स्वाभिमान की यह जो बलवती भावना होती है, मैं समझता हूँ यही किसी राष्ट्र को ज़िंदा रखती है, जो हमारे देशवासियों के भीतर कूट-कूट कर भरी हुई है।

हालांकि इसके बाद उन्होंने ऐसा भी कुछ देखा, जिसके चलते देश को शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ा, और वह था देश में emergency का भयानक दौर । भारत में जगह-जगह से लोकतंत्र को बचाने की आवाज उठ रही थी। उस समय रामभरोसे जी को लोकतंत्र की परिभाषा भी नहीं पता थी, लेकिन वह इतना तो अवश्य समझते थे कि एक ऐसी व्यवस्था तो इस देश में है, जहाँ जनता हर 5 साल पर कुछ लोगों को अपने ऊपर शासन करने के लिए नहीं बल्कि अपनी सेवा करने के लिए चुनती है। रामभरोसे जी यह देख पा रहे थे कि जिन लोगों को उन्होंने चुना है, वो emergency के दौरान जो कर रहे हैं, वो गलत कर रहे हैं। यह वह समय था जब पहली बार रामभरोसे जी ने देश में तब के समय हो रही गतिविधियों के खिलाफ बोलना शुरू किया था। हालांकि अनेक लोगों ने, उन्हें उनकी आवाज को नीची रखने के लिए ही कहा, पर उन्हें कहीं भीतर ही भीतर यह अनुभव हो रहा था, कि तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण। रामभरोसे जी ने सोचा, कि जब आंदोलन रूपी समुद्र की लहरें उन्हें आमंत्रित कर रही हैं तो वे किनारे पर बैठ कर आराम कैसे कर सकते हैं? और वे पूरे दम-खम के साथ लोकतंत्र के आंदोलनकारी लहरों में उतर गए। धीरे-धीरे यह समय भी निकला, और देश ने लोकतंत्र की यात्रा का एक नया दौर देखा। इस बीच रामभरोसे जी ने भारत में कई प्रधानमंत्रियों का भी समय देखा।

देश जब 21वीं सदी में प्रवेश करने से सिर्फ कुछ ही कदम दूर था, उस समय उन्होंने देश के बाजारों में कई नए-नए उत्पाद देखें। उन्होंने बाजारों में अनेक कुछ ऐसे उत्पाद देखे, जिससे अब तक वह अनजान थे। इसके अलावा उन्होंने भारत में कई सारी नई-नई कंपनियों का आगमन होते देखा। और उन्हें रेडियो और समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला कि भारत में liberalisation, privatisation and globalisation reforms हो चुके हैं। अब भारत का बाजार दुनिया के बाकी देशों के बाजार से जुड़ चुका है। अब भारत के सामान दुनिया में, और दुनिया के सामान भारत में दिखेंगे। अब तक रामभरोसे जी राजनीतिक रूप से इतने mature तो जरूर हो चुके थे, कि वह इन सुधारों की अहमियत भी समझने लगे थे।

इसके कुछ समय बाद ही, उन्होंने देखा कि देश किस प्रकार स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग के माध्यम से उत्तर से दक्षिण, और पूरब से पश्चिम तक आपस में जुड़ रहा है। संयोग से, जब स्वर्णिम चतुर्भुज की संकल्पना हो रही थी, उस समय Ministry of Surface Transport का कार्यभार मैं ही देख रहा था। Connectivity के अभाव में रामभरोसे जी के पिता जी, उनके जन्म के समय शहर से गाँव पहुँच तक नहीं पाए थे। पर आज highways और roadways से होते हुए पूरा का पूरा गाँव अपनी जरूरत के अनुसार शहर पहुँचने में सक्षम हो रहा है। रामभरोसे जी के जीवन में एक और गर्व का क्षण 1998 में तब आया, जब उन्हें यह पता चला, कि भारत अब एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन चुका है, और दुनिया का कोई भी देश अब भारत की तरफ आँख उठाकर भी देखने से पहले सौ बार सोचेगा। उन्होंने श्रद्धेय अटल जी के नेतृत्व में केंद्र में एक मजबूत सरकार देखी। 21वीं सदी में कदम रखते ही उन्होंने भारत को जिस तरह से चमकते देखा, उनका विश्वास दृढ़ हो गया कि आने वाले कुछ सालों में भारत बहुत तरक्की करने वाला है। इसी बीच उनका बेटा कमल बड़ा हुआ, और शादी करके नौकरी करने के लिए दिल्ली आ गया।

समय बदला, सरकार बदली। लेकिन जो चीज अपरिवर्तनीय रही, वह थी भारत के विकास की गति। उन्होंने देश को, US के साथ civilian nuclear deal करते हुए भी देखा। मगर साथ ही रामभरोसे जी को धीरे-धीरे यह भी realize हुआ कि देश चलाने के लिए जिन लोगों को उन्होंने चुना है, वो किस प्रकार आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। देश की इस स्थिति से व्यथित रामभरोसे जी ने, 60 से ज्यादा की उम्र होने के बावजूद भ्रष्टाचार विरोधी कई आंदोलनों में अपनी भागीदारी भी निभाई। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की एक पंक्ति है, कि सौभाग्य सब दिन सोता है; देखें, आगे क्या होता है। यानि मनुष्य का सौभाग्य हमेशा सोया नहीं रहता है। और आगे यह हुआ, कि रामभरोसे जी जैसे करोड़ों लोगों के जीवन में वो खुशी का क्षण आया, जब 2014 में माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में देश में एक ऐसी सरकार आई, जिस प्रकार की सरकार रामभरोसे जी लाना चाहते थे। 2014 में आई इस सरकार में देश को आशा की एक किरण दिखाई दी; वहीं दूसरी ओर रामभरोसे के बेटे, यानि कमल को भी परिवार में एक आशा और एक किरण दिखाई दी। उनके यहाँ एक-एक करके दो लड़कियों का जन्म हुआ जिनमें से एक का नाम आशा, और एक का नाम किरण हुआ। कुछ समय बाद इन बहनों का एक भाई ‘अजय’ भी इस दुनिया में आया। आगे की कहानी मैं रामभरोसे जी के grand-children के माध्यम से ही बताना चाहूँगा।

साथियों, आशा और किरण लगभग 10 साल की होने को हैं। उनके जीवन के इन शुरुआती 10 वर्षों को देखकर रामभरोसे जी के अंदर एक सुकून का भाव आता है। उन्हें यह महसूस हो रहा है कि जो quality of life उनके परिवार की पुरानी पीढ़ी की लड़कियों और महिलाओं को नहीं मिल पाई, उससे बेहतर जीवन इन दोनों बच्चियों को मिल रहा है। रामभरोसे जी यह देख पा रहे हैं, कि कैसे जन-धन योजना के माध्यम से उनके और उनके पूरे परिवार को देश के banking system से जोड़ दिया गया है। जो कर्ज़ उन्हें पहले महाजन से लेना पड़ता था, वही क़र्ज़ अब उन्हें बैंक देता है, वो भी बेहद मामूली ब्याज दर पर। उन्होंने अपनी पत्नी को चूल्हे पर, धुआँ सहते हुए, खाना बनाते हुए देखा है। अपनी माँ को तो उन्होंने, चूल्हे के धुएँ के कारण बीमार हो जाने पर दुनिया में आने से पहले ही खो दिया था। पर सरकार की योजनाओं से वह अपनी बहू को गैस सिलेंडर पर खाना बनाते देख रहे हैं। उन्हें यह अनुभव हो रहा है, कि उनके घर की महिलाओं के दिन फिर रहे हैं

रामभरोसे जी यह देखकर फूले नहीं समाते, कि जब उनका बचपन था, तो उन्होंने देश के 565 रियासतों का एकीकरण देखा था, और आज जब उनकी पोतियों का बचपन है, तो वो बच्चियाँ और उनका पौत्र अजय, 370 की समाप्ति के बाद कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एक होते देख रहे हैं। रामभरोसे जी का हृदय यह देखकर प्रसन्नता से भर जाता है, कि अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के जिस मंदिर निर्माण का सपना वो देखा करते थे, वह सपना उनके grand-children अपनी आँखों से पूरा होते हुए देख पा रहे हैं।

पिछले दो-तीन वर्षों की बात करें, तो रामभरोसे जी ने शताब्दियों में एक बार आने वाली कोरोना जैसी भीषण महामारी से देश को उबरते हुए भी देखा है। वैसे तो वे 70 साल पार कर चुके थे, और Covid का खतरा उन्हें औरों की अपेक्षा अधिक था, पर समय से vaccine की doses लग जाने के कारण वे Covid को हराने में सफल रहे। वे इस बात के साक्षी रहे हैं, कि सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने vaccine निर्माण करके वो काम कर दिया, जो दुनिया के कई विकसित देश भी नहीं कर पाए। उन्होंने पूरे देश में 200 करोड़ से अधिक vaccine doses लगते हुए देखा।

उन्होंने अपनी जीवन यात्रा में यह भी महसूस किया, कि कैसे एक समय जहाँ सरकारी योजनाओं के 100 पैसों में से उन तक सिर्फ 15 पैसे पहुँच पाते थे, वहीं विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से आज direct उनके bank account में पूरे 100 के 100 पैसे पहुँचते हैं। रामभरोसे जी ने देश को सफ़ेद कबूतर छोड़ने से लेकर, सर्जिकल स्ट्राइक करने तक का सफर भी देखा है। रामभरोसे जी ने इस देश को, अनाज का आयातक होने से लेकर, अनाज के निर्यातक होने तक का सफर भी देखा है।

साथियों, आज रामभरोसे जी की उम्र लगभग 75 वर्ष से अधिक हो गई है। रामभरोसे जी ने अपने जीवन में ऐसे अनेक परिवर्तन देखे हैं, जिसने उनके जीवन को सकारात्मक और नकारात्मक रूप से कई बार प्रभावित किया है। मैंने जब इस कहानी की शुरुआत की थी, तो मैंने आपसे बोला था कि जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ेगी आप रामभरोसे जी को पहचानने लगेंगे। मुझे लगता है शायद आपने रामभरोसे जी को पहचान लिया होगा। यहाँ रामभरोसे जी कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरी भारत की जनता है। यहाँ रामभरोसे जी भारतीय समाज के आखिरी छोर पर खड़े हुए वह व्यक्ति हैं, जो सरकारों की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। देश ऐसे रामभरोसों से भरा पड़ा है, जिन्होंने नि:स्वार्थ भाव से जीवन भर इस देश की सेवा की है।

साथियों, रामभरोसे जैसे करोड़ों लोग अब यह अनुभव करने लग गए हैं, कि देश की प्रगति अब राम भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती है। बल्कि देश की प्रगति अब हमें अपने पुरुषार्थ से करनी होगी। 2047 तक हमें एक विकसित भारत का निर्माण करना है। हमें एक स्वर्णिम भारत बनाना है। जब हम एक विकसित और स्वर्णिम भारत की बात करते हैं, तो यह आवश्यक हो जाता है, कि जिस ओर हम बढ़ना चाहते हैं, उसके संबंध में हमारे पास एक अच्छा roadmap हो। इसलिए मैं चाहता हूँ, कि मैं आपसे उन मुद्दों पर भी बात करूँ, कि एक विकसित भारत कैसा होना चाहिए। मैंने इससे पहले भी विभिन्न मंचों पर कई बार यह कहा है, कि हमारा भारत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक रूप से पूरी तरह से सशक्त होना चाहिए; और इसकी शुरुआत हो चुकी है।

साथियों, रामभरोसे के grand-children आज जिस school में जा रहे हैं, वह स्वयं में समानता का एक पर्याय है। उनकी class में अनेक जातियों और धर्मों के बच्चे education लेने आते हैं; बावजूद इसके, उनकी class में इनके आधार पर कभी भी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं देखा जाता है। धर्म और जाति के आधार पर किसी को अवसरों से वंचित नहीं रखा जाता है। यह हमारे स्वर्णिम भारत की एक तस्वीर प्रस्तुत करता है। हमें एक ऐसे ही भारत का निर्माण करना है, जो अपनी सामाजिक एकता के लिए दुनिया भर में एक उदाहरण के रूप में जाना जाए।

आज आशा, किरण और अजय को अपनी rich cultural heritage पर बेहद गर्व महसूस होता है। पहले बच्चों को यह पढ़ाया जाता था, कि भारत की धरती पर जाने कितने आक्रांता और लुटेरे आए, और चले गए। भारत कमजोर लोगों का देश हुआ करता था। पर आज इन बच्चों को यह सच बताया जा रहा है, कि भारत कमज़ोर लोगों की धरती नहीं रही है, बल्कि यह धरती वीरों से भरी पड़ी है। आज ये बच्चे उन गुमनाम नायकों के बारे में भी उतना ही जानते हैं, जितना कि इतिहास के known warriors को। ये बच्चे जितना महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी को जानते हैं, उतना ही लचित बोरफुकन, और भगवान बिरसा मुंडा को भी जानते हैं। ये बच्चे आज जितना रानी लक्ष्मीबाई को जानते हैं, उतना ही रानी गाइडिन्ल्यू को भी जानते हैं। सांस्कृतिक रूप से हम एक ऐसे ही भारत का निर्माण कर रहे हैं, जहाँ हमारे बच्चे अपनी वैभवशाली संस्कृति से गर्व से जुड़ सकें।

यदि मैं आर्थिक रूप से एक विकसित भारत के निर्माण की बात करूँ, तो मुझे ऐसा लगता है कि हम जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं कि आने वाले समय में हम दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे। हालाँकि Purchasing Power Parity, अर्थात् PPP के आधार पर तो हम already दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, लेकिन कई अर्थशास्त्री भारत की विकास की गति को देखकर इस बात को समझ चुके हैं, कि जब रामभरोसे की दोनों grand-daughters आशा और किरण, 13 वर्ष की होंगी तब तक, यानि 2027 तक हम nominal GDP के मामले में भी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे। और सब ठीक रहा, तो आशा और किरण के 32-33 years के होने तक, यानि 2047 तक आते-आते हम दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आएँगे।

साथियों, जीडीपी को मैं सिर्फ एक आंकड़ा समझता हूँ। निश्चित रूप से इस आँकड़े का बढ़ते जाना भारत के लिए अच्छी बात है, लेकिन एक विकसित भारत को हमें इससे कहीं ऊपर उठकर देखने की जरूरत है। मेरे अनुसार हमारे भारत का एक ऐसा स्वर्णिम भविष्य हो, जो GDP के मामले में तो दुनिया में सबसे आगे रहे ही, साथ ही हम अपनी परंपरा और संस्कृति से भी समुचित रूप से जुड़े रहें। आर्थिक रूप से हमारा देश एक ऐसा देश हो, जहाँ कोई गरीब न रहे, जहाँ हमारे देश का हर परिवार अपनी minimum जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो।

पहले रामभरोसे जी का परिवार कच्चे मकान में रहता था, लेकिन आज उनका परिवार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत, शौचालय युक्त एक पक्के मकान में रह रहा है। शौचालय के अभाव में किसी समय उन्हें अपनी बहन को खो देना पड़ा था। पर उन्हें इस बात की खुशी है, कि सरकार के प्रयासों से उनकी आगामी पीढ़ियाँ अब बुनियादी सुविधाओं से सम्पन्न हैं। हमें अपने देश के आर्थिक विकास की रूपरेखा भी कुछ ऐसी ही बनानी है, कि जिसमें हम समाज के हर व्यक्ति के उद्धार की दिशा में कार्य कर सकें।

इसके अलावा, हमें अपने विकसित भारत में महिलाओं के लिए वह अवसर उपलब्ध कराने होंगे, जिसकी वे हकदार हैं। भारत ने उस दिशा में अपना प्रयास शुरू कर दिया है, लेकिन हमें उन प्रयासों को और गति देने की जरूरत है। आज, जब रामभरोसे अपनी पोती की अच्छी पढ़ाई-लिखाई देख रहे हैं, Science में उसका interest देख रहे हैं, तो उन्हें यह भरोसा हो चला है कि उनकी बिटिया आने वाले समय में एक बड़ी डॉक्टर भी बन सकती है। उन्होंने पहले ही यह योजना बना रखी है, कि इलाज की जिस सुविधा के अभाव में उनकी माँ उनके जन्म के समय ही दुनिया छोड़ गईं, वह सुविधा वह अपने गाँव-मुहल्ले तक उपलब्ध कराएंगे। उनका यह सपना सच हो, इसके लिए सरकार ने एक ओर आयुष्मान भारत जैसी योजना तो चला ही रखी है; साथ ही देश भर में medical seats में लगातार बढ़ोतरी भी कर रही है, जिससे आने वाले समय में अनेक आशाओं की डॉक्टर बनने की आशा पूरी हो सके।

इसी तरह, जब उसकी बहन किरण से यह पूछा जाता है, कि वो क्या करना चाहती है, तो वह छोटी सी बच्ची अपनी समझ के अनुसार यही बोलती है, कि उसे सिपाही बनना है। किरण सैनिक school में जाना चाहती है तो सरकार देशभर में सैनिक schools की संख्या बढ़ा रही है। साथ ही सैनिक schools के द्वार अब लड़कियों के लिए भी खोल दिए गए हैं; ताकि हमारी किरणों के सपने पूरे हो सकें। आज सेना में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है, Siachin की height से लेकर Indian ocean की depth तक हमारी नारी शक्ति भारत की सुरक्षा में अपना योगदान दे रही हैं। जिस तरह से महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भविष्य में किरण देश के Army, Navy या Air Chief के रूप में सामने आए। मेरा यह मानना है, कि भारत की आभा, महिलाओं की सफलता की कांति से ही स्वर्णिम हो सकती है। जहाँ इस देश की महिलाओं को यह आभास हो, कि वो भी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, यहाँ तक कि सेना में भी सर्वोच्च पदों पर पहुंच सकती हैं। हमारा विकसित भारत महिलाओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित, और उन्हें प्रचुर मात्रा में अवसर देने वाला होना चाहिए। हम यह मानकर चल रहे हैं, कि आने वाले समय में कभी कोई बेटी समाज और परिवार के लिए अभिशाप बनकर पैदा नहीं होगी। किसी बच्ची का नाम अगर ‘पत्ती रखा भी जाएगा; तो वह विपत्ति का नहीं, संपत्ति का पर्याय होगा; समाज के लिए asset का पर्याय होगा।

देश का रक्षा मंत्री होने के नाते अगर मैं सैन्य दृष्टिकोण से भारत के स्वर्णिम भविष्य का roadmap आपके सामने रखूँ, तो मैं यही कहना चाहूंगा, कि हमारे पास एक ऐसा भारत होना चाहिए, जो रक्षा क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो। एक ऐसा विकसित भारत, जिसके पास defence related अत्याधुनिक technologies हों। आशा और किरण के भाई अजय से, जब उसके जीवन के सपने के बारे में पूछा जाता है, तो वह बच्चा defence scientist बनकर देश की सेवा करना चाहता है। हमें अजय के सपने को भी ध्यान में रखना है। निश्चित रूप से हमने उस दिशा में प्रयास किया है। हमने नए IITs, NITs की स्थापना की है, तथा इनमें सीटों की संख्या में वृद्धि की है। इसके अलावा हमने Defence sector में i-DEX और TDF जैसे initiatives से innovative ideas को आमंत्रित किया है। हमारे इन प्रयासों से आज भारत, arms importer से एक leading arms exporter बन गया है। हमने यह प्रयास इसलिए किये, ताकि अगर भविष्य में अजय defence scientist बनता है, तो उसे यह महसूस हो कि उसकी प्रतिभा और उद्यम का फल भारतीय सेना को मिल रहा है। अजय जैसे बच्चों के पौरुष से ही हमें एक ऐसा भारत बनाना है, जिसकी ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत भी उसके शत्रुओं को न हो। एक ऐसा भविष्य, जिसमें भारत क्षेत्रीय ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति का अग्रदूत बनकर उभरे।

इसके अलावा, राजनीतिक रूप से भी हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर रहे हैं, जहाँ राजनीति अपराधों से मुक्त हो तथा राजनीतिक दल जाति, धर्म व परिवार के आधार पर न होकर विचारधाराओं के आधार पर खड़े हों। एक ऐसा भारत जहाँ आशा, किरण या अजय का कोई दोस्त बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के भी राजनीति की जमीन पर अपने पाँव रख सके, और अपने आप को मजबूती से खड़ा कर सके। जहाँ उन्हें सिर्फ इसलिए राजनितिक अवसरों से वंचित न रखा जाय, क्योंकि वह किसी विशेष परिवार या कुल से नहीं आते। हमें राजनीतिक रूप से एक ऐसे सशक्त भारत का निर्माण करना है, जहाँ हमारे नेता, जनता की सेवा को ही अपना धर्म समझें। जहां सत्ता सुख के लिए नहीं, बल्कि सेवा के लिए हासिल की जाय।

साथियों, हमें एक ऐसा विकसित भारत बनाना है, जो आशा, किरण और अजय की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब हो। जहाँ रामभरोसे जी को इस बात का सुकून हो, कि उनके पोते और पोतियों का भविष्य, भारत के भविष्य की तरह ही स्वर्णिम है। हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है, जहाँ का समाज, भविष्य में और भी ज्यादा अटूट होने वाला है; उस समाज में और भी ज्यादा एकता आने वाली है। जहाँ देश आर्थिक व राजनीतिक दृष्टिकोण से तो सशक्त हो ही, साथ ही हम एक राष्ट्र के रूप में इतने शक्तिशाली भी हों, कि हम दुनिया में कहीं भी हो रहे अन्याय के विरुद्ध खड़े हो सकें। मुझे यह कहते हुए खुशी होती है, कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमारा देश, इस दिशा में बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है।

अभी कुछ दिन पहले, अमर उजाला में रामभरोसे जी ने यह पढ़ा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मोदीजी से autograph माँगा है, तो रामभरोसे जी को autograph का मतलब भी नहीं पता था। उन्होंने अपनी पौत्री आशा से इसका अर्थ पूछा, तो आशा ने कहा कि autograph वह इंसान देता है, जिसने जीवन में कुछ अविस्मरणीय हासिल किया हो। यह सुनकर रामभरोसे जी को अपने प्रधानमंत्री और अपने देश पर गर्व हुआ। वो सोचने लगे कि वास्तव में इस समय दुनिया में कितनी तेजी से भारत की धाक बढ़ी है। और सिर्फ माननीय प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि उनके नेतृत्व में पूरा देश अविस्मरणीय उपलब्धियाँ हासिल कर रहा है।

इसी तरह रामभरोसे जी ने यह भी देखा, कि पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री ने हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के पैर छुए, तो भारत के प्रति दुनिया के इस झुकाव को देखकर, भारतीय संस्कृति के इस प्रसार को देखकर उनका ह्रदय प्रसन्नता से भर गया। रामभरोसे जी जानते हैं कि पापुआ न्यू गिनी के PM ने सिर्फ मोदीजी के पैर नहीं छुए, बल्कि उन्होंने इसके माध्यम से भारत की समस्त जनता का आभार व्यक्त किया कि किस प्रकार भारत मुसीबत के समय पापुआ न्यू गिनी के साथ खड़ा रहा। रामप्रसाद जी इस बात का भी अर्थ समझते हैं कि अगर ऑस्ट्रेलिया के PM भारत के प्रधानमंत्री को BOSS कह रहे हैं तो वह सिर्फ मोदीजी का ही नहीं, बल्कि पूरे भारत का सम्मान है। आने वाले समय में हमारे देश का यह सम्मान बढ़े, यह सुनिश्चित करना हम सब की ज़िम्मेदारी है।

अमर उजाला के इस महत्त्वपूर्ण मंच से, मैं अपना विश्वास प्रकट करता हूँ; कि इस देश का युवा, इस देश की सरकार और इस देश का हर एक संस्थान, आपके सपनों को पूरा करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने वाला है। यह देश 21वीं सदी में आए हुए इस अवसर को भुनाएगा, और मुझे पूरा विश्वास है कि सिर्फ 21वीं सदी ही नहीं, बल्कि आने वाली सदियाँ भी भारत की होने वाली हैं।

इस अवसर पर और अधिक कुछ न कहते हुए, मैं एक संदेश के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा, और वह संदेश है कि, मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा!’ यानि भारत का भविष्य स्वर्णिम बनाने के लिए, किसी एक के नहीं, बल्कि सबके प्रयासों की समान आवश्यकता होगी। हमें अपने स्वर्णिम past पर बड़ा गर्व है; और जैसा कि विलियम फाँकनर का प्रसिद्ध कथन है, कि “The past is never dead. It’s not even past.”, यानि अतीत कभी भी ख़त्म नहीं होता है; यहाँ तक कि वह कभी अतीत भी नहीं होता है; वह कभी बीतता भी नहीं है, वह किसी न किसी रूप में हमारे साथ जुड़ा रहता है। ऐसे में हम अपने स्वर्णिम अतीत को अपने भविष्य से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा देश इस प्रयास में पूरी मजबूती के साथ जुटा है, और आगे भी जुटा रहेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

मैं एक बार फिर, ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए, अमर उजाला को धन्यवाद देते हुए, अपना निवेदन समाप्त करता हूँ।

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

जय हिंद!