Hindi Text of RM’s speech at Malayalee Association Event, New Delhi

सबसे पहले मैं, All India Malayalee Association के chairman, Babu panicker जी को धन्यवाद देना चाहूँगा, कि आपने मुझे इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया। मैं AIMA को, उसके formation day पर अपनी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएँ देता हूँ। AIMA समाज के different sectors में जिस प्रकार से proactive होकर कार्य कर रहा है, उसके लिए भी मैं AIMA की सराहना करता हूँ।

 

साथियों, सामाजिक उत्थान में NGOs, और Civil Society Organizations का क्या योगदान होता है, इस पर बहुत कुछ कहने की जरूरत मैं नहीं समझता हूँ। सरकारें, जो कि समाज की प्रतिनिधि होती हैं, वे अपने-अपने स्तर पर जनता के कल्याण के लिए प्रयास तो करती ही रहती हैं, लेकिन सरकार सिर्फ स्वयं की ताकत से जनता तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाती। प्रत्येक सरकार, चाहे वह केंद्र की सरकार हो, या फिर राज्य की सरकारें, यदि उनको जनता तक पूरी पहुंच बनानी है, तो उसमें NGOs, और Civil Society Organizations का बहुत बड़ा रोल होता है। मेरा हमेशा से मानना रहा है, ऐसी संस्थाएँ सरकार और जनता के बीच एक ब्रिज का कार्य करती हैं। ये जनता और सरकार को एक दूसरे से जोड़ती हैं। एक संस्था के रूप में AIMA ने, जिस प्रकार केरल में different sectors में लोगों के betterment के लिए कार्य किया है, जिस प्रकार AIMA देश भर में हमारे Keralites बंधु-बांधवों के लिए कार्य कर रहा है, वह प्रशंसा के योग्य है।

 

2018 की बाढ़ की त्रासदी को भला कौन भूल सकता है, जब सरकार, प्रशासन और different NGOs ने अपनी सीमाओं से ऊपर उठकर केरल के लोगों के लिए काम किया था। उस दौरान AIMA ने जो सक्रिय भूमिका निभाई थी, मुझे लगता है वह आज भी हम सभी के लिए एक प्रेरणा का कार्य करता है। आप सब एक संस्था के रूप में जो कार्य कर रहे हैं, वह कार्य कोई साधारण कार्य नहीं है, वास्तव में यह एक असाधारण कार्य है।

 

साथियों, आज आप लोगों के बीच आकर ऐसा लग रहा है, जैसे मैं केरल में ही आ गया हूँ। केरल सिर्फ कहने भर के लिए God’s own country नहीं है, यह सिर्फ theory नहीं है, बल्कि वास्तविकता में भी यही देखने को मिलता है, कि केरल पर मानो कोई ईश्वरीय कृपा है। मेरा तो केरल आना-जाना लगा रहता है, मुझे तो कई बार ऐसा लगता है, कि जैसे किसी न किसी बहाने ईश्वर मुझे कोई न कोई काम पकड़ा ही देते हैं कि “जाओ, केरल के लोगों से मिल कर आओ, उनसे बात करके आओ।” आखिर किस का मन नहीं करेगा ऐसे राज्य में जाने का, ऐसे लोगों से मिलने का। एक ऐसा state जिसके सिर पर western ghats की छाया पड़ रही हो, जिसके पैरों में अरब सागर की लहरें हिलोरे मार रही हों, जहाँ के evergreen forests उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हों, जहाँ के लोगों की रूचि जितनी कृषि और उद्योग में होती है, उतनी ही नृत्य और संगीत में भी। ऐसी जलवायु वाले सुंदर राज्य में भला कौन नहीं जाना चाहेगा। जितना करीब से मैं केरल को जान पाया हूं, मैंने यही समझा है कि यह राज्य जितना प्राकृतिक रूप से सुंदर है, यहाँ के लोगों का मन भी उतना ही ज्यादा खूबसूरत है। यदि ऐसे राज्य को God’s own country नहीं कहेंगे तो भला किसे कहेंगे?

 

साथियों, भारत का आज जो स्वरूप है, इसके निर्माण में केरल का बहुत बड़ा योगदान है। जब मैं भारत कह रहा हूँ तो आप मेरा आशय समझ पा रहे होंगे। भारत से मेरा आशय एक ऐसे राष्ट्र से है, जो आज एक आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक शक्ति के रूप में पूरी दुनिया के समक्ष पूरे वैभव के साथ खड़ा है। Economic front पर आप देख सकते हैं, कि GDP के मामले में भारत आज दुनिया की टॉप 5 economies में अपना स्थान रखता है। कई विशेषज्ञ और संस्थाएँ तो 2027 तक भारत के top 3 में पहुँचने की भविष्यवाणी कर चुके हैं। मेरा तो यह भी मानना है, कि जब भारत अपनी आजादी का 100वाँ वर्ष मना रहा होगा, तब उस समय तक, अर्थात 2047 तक हम दुनिया की सबसे बड़ी economy के रूप में सामने आएँगे।

 

इसके अलावा आप सांस्कृतिक स्तर पर देखिए, कि भारत की संस्कृति आज दुनिया भर में स्वीकारी जा रही है। Covid के समय social distancing के लिए हाथ जोड़कर greet करने की बात हो, या फिर योग को वैश्विक पहचान मिलने की बात हो, पूरी दुनिया में आज हमारी संस्कृति के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है।

 

यदि मैं राजनीतिक स्तर पर बात करूं, तो आप देख सकते हैं कि आज पूरी दुनिया में भारत की धाक कितनी बढ़ी है। पूरी दुनिया हमें सम्मान की दृष्टि से देखती है। माननीय प्रधानमंत्री जी जिस भी देश में जाते हैं, उस देश में उनका भव्य स्वागत किया जाता है। वास्तव में वह स्वागत सिर्फ माननीय प्रधानमंत्री जी का ही नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक ताकत का होता है। भारत आज दुनिया की एक महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ रहा है। इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण हमारी विशाल सांस्कृतिक विरासत, और संविधान द्वारा प्रदत्त हमारी राजनीतिक एकता है। भारत के इस सांस्कृतिक विरासत तथा राजनीतिक एकता के इस रूप की कल्पना 2 लोगों के बगैर तो की ही नहीं जा सकती; और संयोग देखिये, वो दोनों ही केरल से थे।

 

केरल जगतगुरू आदि शंकराचार्य की जन्मभूमि है। आठवीं शताब्दी में जब भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना धूमिल हो रही थी, तो इसी केरल की धरती से निकलकर जगद्गुरु शंकराचार्य ने भारत को धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक कर दिया था।

 

आप सोचिये, आज के समय में भी, जब परिवहन के साधन इतने विकसित हो चुके हैं, सड़कें, trains और flight के माध्यम पूरा देश आपस में जुड़ा हुआ है, फिर भी आप देखिए, कि हम अपने जीवन में कितनी यात्राएँ कर पाते हैं? काम-धंधे के लिए तो हम फिर भी कुछ यात्राएँ कर लेते हैं, पर अपने देश के समाज और संस्कृति को जानने, समझने और उसकी बेहतरी के लिए हम कितनी यात्राएँ कर लेते हैं? कहने का अर्थ यह है कि बिना किसी special purpose के मनुष्य लीक से हटकर कुछ करना पसंद नहीं करता।

 

तो आप कल्पना करिये, कि आठवीं शताब्दी में जब उतने साधन नहीं थे, तब शंकराचार्य केरल के कालड़ी गाँव से निकलते हैं, और पूरे भारत को अपने पैरों से नाप देते हैं। दक्षिण से निकलकर उत्तर, पश्चिम, पूरब प्रत्येक दिशा में उन्होंने अध्यात्मिक चेतना की एक अलख जगाई। आप सोचिये, आखिर उनकी इस विशाल यात्रा के लिए उन्हें हिम्मत कहाँ से मिली? उन्हें प्रेरणा कहाँ से मिली? ऐसे में मैं यह कहना चाहूँगा, कि भारत को सांस्कृतिक एकता की चेतना यदि शंकराचार्य से मिली, तो शंकराचार्य को यह चेतना केरल की भूमि से मिली। इसी भूमि ने उन्हें वह प्रेरणा दी, जिससे वह इतना महान कार्य कर पाए।

उसके बाद समय का चक्र आगे बढ़ा। हमने देखा कि भारत में कई सारे अलग-अलग वंशजों ने अलग-अलग क्षेत्रों पर शासन किया। दिल्ली सल्तनत, मुगलिया सल्तनत,  मराठा साम्राज्य का भी अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभुत्व रहा। लेकिन समय हर दम एक जैसा नहीं रहा, धीरे-धीरे भारत में इन साम्राज्यों की स्थिति थोड़ी सी कमजोर पड़नी शुरू हुई, और फिर अंग्रेजों के आने के बाद इन राजे रजवाड़ों की स्थिति तो और fragile हो गई।

 

जब हम आजादी के तुरंत बाद के भारत पर नज़र डालते हैं, तो हम पाते हैं कि कमोबेश वही स्थितियां तब भी थीं जो आठवीं सदी में थीं। एक तरफ जहां 8वीं सदी में भारत सांस्कृतिक रूप से अलग-थलग पड़ा हुआ था, तो वहीं आजादी के बाद भारत राजनीतिक रूप से टूटने की कगार पे था। जब ऐसा लग रहा था कि स्वतंत्रता के बाद ही भारत कई सारी रियासतों में टूट जाएगा, उस समय लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ मिलकर श्री वीपी मेनन जी ने राष्ट्र के एकीकरण का जो कार्य किया, उसके लिए भारत की वर्तमान पीढ़ी और भविष्य की तमाम पीढ़ियाँ उनकी ऋणी रहेंगी।

 

साथियों, सरदार पटेल भारत के लौह पुरुष कहे जाते हैं, वो स्वयं में एक योग्य व्यक्ति थे, लेकिन कोई भी नायक कितना भी योग्य क्यों न हो, वह अपने सेनापति के बिना successful नहीं हो सकता। वीपी मेनन ने पटेल के सेनापति के रूप में कार्य किया था। सरदार पटेल और वीपी मेनन की एक दूसरे के प्रति, और भारत की एकता के प्रति, निष्ठा ने भारत को राजनीतिक रूप से पुनः एक कर दिया।

 

आठवीं शताब्दी में शंकराचार्य ने अगर भारत के वैचारिक software को develop किया था, तो आज़ादी के बाद श्री वीपी मेनन जी ने उस भारत के hardware को develop किया। जगतगुरू आदि शंकराचार्य जी ने यदि भारत की आत्मा निर्मित की थी, तो वीपी मेनन जी ने भारत के शरीर के विकास में अपनी भूमिका निभाई। ऐसे अनेक उदाहरणों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है। भारत के सर्वांगीण विकास में हमारे मलयाली भाइयों-बहनों का जो योगदान है, उसे शब्दों में पिरो पाना लगभग असंभव है।

 

जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक भारत अनेक विविधताओं से भरा पड़ा है। भारत अनेक जातियों, संप्रदायों और धर्मों का संगम है। यदि हम भारत को एक समुंदर मान लें, जिसमें कई सारी नदियां आकर गिरती हैं, तो हमें यह देखने को मिलता है कि भारत के इस सांस्कृतिक संगम में केरल से भी एक बहुत महत्वपूर्ण धारा आती है।

 

जैसा कि मैंने अभी जिक्र किया, सनातन संस्कृति की एक धारा केरल से आदि शंकराचार्य के रूप में निकली, जिसने समूचे भारत की आध्यात्मिकता को पोषित किया। सिर्फ सनातन ही नहीं बल्कि दुनिया के बाकी धर्मों के भी पोषण में केरल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपमें से शायद बहुत लोगों को यह पता होगा, कि भारत में सबसे पहले ईसाई धर्म की शुरुआत केरल से ही हुई थी। बताते हैं कि जीसस क्राइस्ट के जो 12 प्रमुख शिष्य थे, उनमें से उनके एक शिष्य सेंट थॉमस भारत आए थे। माना जाता है कि सेंट थॉमस ने केरल में उस समय 7 चर्च बनवाए थे जिसने भारत में ईसाई धर्म की नींव रखी। यानि जो यूरोप आज Christianity का गढ़ है, वहाँ भी पहुँचने से पहले Christianity केरल में पहुँच गयी थी।

 

सिर्फ क्रिश्चियनिटी ही नहीं बल्कि भारत में इस्लाम के भी प्रसार में केरल का एक बहुत बड़ा योगदान हमें देखने को मिलता है। शायद आप सब जानते हों, कि भारत में सबसे पहली मस्जिद कहीं बनी थी, तो ‘चेरामन जुमा’ नाम की वह मस्जिद केरल के त्रिशूर में ही बनी थी। ऐसे में केरल को God’s own country की उपाधि उचित ही दी गई है।

 

साथियों, केरल भारत के सांस्कृतिक नक्शे पर अपनी एक अलग ही पहचान रखता है। अभी उत्तर भारत मानसून की बारिश में भीग रहा है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि मॉनसून की पहली बरसात सबसे पहले केरल में ही होती है। जिस प्रकार मानसून की पहली बूँद सबसे पहले केरल पर पड़ती है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति को भी अगर बारिश मान लें, तो इसकी पहली फुहार हमेशा से केरल पे ही पड़ती आई है। जिस प्रकार मानसून केरल से निकलकर पूरे भारत में जाता है, उसी प्रकार भारत में विभिन्न धर्मों की सांस्कृतिक यात्रा केरल से ही शुरू होकर भारत के विभिन्न हिस्सों में जाती है।

 

आधुनिक भारत का इतिहास, खासकर स्वतंत्रता संग्राम में केरल की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। केरल के गांधी “के कलप्पन” को भला कौन नहीं जानता है। असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक भारत के पूरे स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश की आजादी के लिए तो अपना जीवन लगाया ही, इसके साथ ही एक समाज सुधारक के रूप में भी उन्होंने न सिर्फ केरल के बल्कि समूचे भारत के वंचितों के हक के लिए लड़ाई लड़ी। इनके अतिरिक्त भी, केरल के अनेक स्वतन्त्रता सेनानी रहे हैं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में केरल की धरती से अपना महनीय योगदान दिया।

 

केरल की एक और स्वतंत्रता सेनानी के विषय में मैं आपसे बात करना चाहूँगा, लेकिन उससे पहले मुझे इस संदर्भ में एक प्रसंग याद आ रहा है। यह प्रसंग है 1938 का, भारत का स्वतंत्रता संघर्ष अपने चरमोत्कर्ष पर था और उस समय केरल में किसी मुद्दे को लेकर राज्य भर में प्रदर्शन हो रहे थे। इसी बीच एक बार प्रदर्शनकारियों का एक दल त्रावणकोर के शाही महल की तरफ बढ़ा। चूँकि वो शाही महल था, तो जाहिर सी बात है उसकी सुरक्षा भी उसी अनुसार होगी। जब वो प्रदर्शनकारी शाही महल के नजदीक आ गए तो अचानक वहाँ ड्यूटी पर तैनात पुलिस ऑफिसर ने भीड़ पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया। अचानक से बंदूकें तन गईं, चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई।

 

तभी उस भीड़ में से एक महिला निकल कर सामने आई और उसने पुलिस वालों से यह कहा कि “इनकी लीडर मैं हूँ, सबसे पहले मुझे गोली मारो।” उस महिला की निडरता और उनका जुनून देखकर पुलिस अधिकारी को अपना आदेश वापस लेना पड़ा। वह महिला कोई और नहीं बल्कि त्रावणकोर की अक्कम्मा चेरियन थीं। ये वही अक्कम्मा चेरियन थीं, जिन्होंने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए अपनी शिक्षिका की नौकरी भी छोड़ दी, जिन्हें महात्मा गांधी ने “केरल की झांसी की रानी” की उपाधि दी थी। केरल की पुण्य भूमि ऐसे वीरों और वीरांगनाओं से भरी पड़ी है।

 

साथियों, सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम ही नहीं, बल्कि केरल में जब सामाजिक सुधार की बात आती है, तो सदानंद स्वामी जी से लेकर पद्मनाभन पालपु तक ऐसे न जाने कितने नाम हमारे सामने आते हैं, जिन्होंने जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए, समाज में समानता लाने के लिए तथा महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया। केरल की धरती पर सामाजिक समानता के लिए कार्य वाले ऐसे ही एक और महापुरुष का जिक्र मैं आपके सामने करना चाहूँगा। वो महापुरुष हैं, श्री नारायण गुरु जी। उन्होंने शिवगिरी मठ की स्थापना करके,  समाज के निचले तबके के लोगों को शिक्षा, दर्शन एवं साइंस एंड टेक्नोलॉजी से जोड़कर उनकी उन्नति के लिए कार्य किया। यह बस कल्पना ही की जा सकती है कि उस समय जब देश के सामने कई सारे अलग-अलग मुद्दे थे तब भी श्री नारायण गुरु जी ने अपनी दूरदर्शिता से इस बात पर जोर दिया था कि शिक्षा ही समाज के वंचितों के उत्थान का एकमात्र माध्यम है।

 

मुझे याद है अभी पिछले ही वर्ष, यानि 2022 के अंत में जब मैं केरल गया था, तो मुझे शिवगिरी मठ द्वारा आयोजित तीर्थदान में शामिल होने का सौभाग्य मिला था। उस तीर्थदान के दौरान मैंने देखा कि कैसे शिवगिरी मठ आज भी गुरु जी के ओरु जाति, ओरु माथम, ओरु दैवम (अर्थात “एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर) के उपदेश को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य कर रहा है। श्री नारायण गुरुजी के ये संदेश, भारत की “वसुधैव कुटुंबकम” की अवधारणा का प्रतिनिधित्व करते हैं; कि हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं, इसलिए हमारे बीच भेदभाव जैसी कोई चीज नहीं होनी चाहिए। श्री नारायण गुरूजी के आशीर्वाद से हमारी सरकार भी उनके उपदेशों को प्रेरणास्रोत मानते हुए “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास व सबका प्रयास” के रास्ते पर चल रही है। हम अपनी नीतियों से और अपने कार्यों से समाज में वही समरसता लाने का प्रयास कर रहे हैं, उसी सपने को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं जो सपना एक समय में केरल के हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने देखा था। और मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि इस दिशा में सरकार को Grassroot level पर लगातार AIMA जैसे संस्थानों का भी सहयोग मिल रहा है।

 

केरल हमेशा से ही भारत के प्रत्येक हिस्से से किसी न किसी कारण से जुड़ा ही रहा है। मेरा तो यहां तक मानना है कि केरल की उपस्थिति भारत के प्रत्येक घर में है। अब आप यहाँ आश्चर्य कर सकते हैं कि केरल भारत के प्रत्येक घर में कैसे हैं? मैं अभी आपको इसका अर्थ समझाता हूँ। आप लोग राजा रवि वर्मा के बारे में जरूर जानते होंगे। राजा रवि वर्मा भारत के इतिहास के सबसे महान painters में से एक हैं। ऐसा माना जाता है कि आज जो देवी-देवता हमारे समक्ष चित्र के रूप में दिखते हैं, जो माता सरस्वती हमारे सामने वीणा बजाती हुई दिखती हैं; ये तस्वीरें मूलतः राजा रवि वर्मा द्वारा ही बनाई थीं, या फिर उनकी कृतियों से प्रभावित रही हैं। उन्होंने ही सबसे पहले हिंदू देवियों की paintings को केरल की प्रसिद्ध और सुंदर कांजीवरम साड़ी और गहने के साथ कैनवास पर उतारा था। आज राजा रवि वर्मा की बनाई गई उन paintings, या उनसे प्रभावित कृतियों की उपस्थिति भारत के प्रत्येक हिन्दू घर में है। और उन paintings के माध्यम से ना सिर्फ राजा रवि वर्मा, बल्कि पूरा केरल भारत के हर घर में बसता है।

 

साथियों, केरल सदियों से न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ा रहा है। बाहर की दुनिया से जुड़े होने का कारण ही केरल के समाज में उपस्थित सहिष्णुता और cosmopolitan Perspective को मलयालियों की एक बड़ी विशेषता मानी गई। केरल सिर्फ अपने सहिष्णुता के लिए ही नहीं जाना जाता बल्कि केरल का इतिहास अपनी अनुपम युद्धशैली के लिए भी जाना जाता है।

 

हालांकि युद्ध कौशल ही नहीं, बल्कि केरल के निवासी अपनी नृत्य कला के लिए भी पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। कथकली और मोहिनीअट्टम जैसे नृत्यों में जिस प्रकार शरीर के अंगों और कलाओं के माध्यम से भारत की प्राचीन कथाओं को दर्शाया जाता है, उस विधा ने पूरी दुनिया में केरल की भव्यता को बढ़ाया है। आज सिर्फ शिक्षा ही नहीं, बल्कि नृत्य और अन्य कलाओं में भी केरल भारत के अग्रणी राज्यों में से एक है; और केरल की विविधता ने हमारी राष्ट्रीय विविधता को नई पहचान दी है।

 

साथियों, जब मैं यहाँ विविधता की बात कर रहा हूँ, तो मैं भारत की भाषाई विविधता और एकता के बारे में भी बात करना चाहूँगा। आपने देखा होगा, कि कई बार National identity को linguistic identity से जोड़कर देखा जाता है। अर्थात भाषा के आधार पर यह तय होता है कि किसी राष्ट्र का स्वरूप क्या होगा? आप अगर western countries पर नजर डालें, तो आप पाएंगे कि, वहाँ national identity और linguistic identity अकसर co-incident हैं, अर्थात हर देश की एक linguistic identity है और प्राय: एक ही language के आधार पर वे राष्ट्र जुड़े हुए हैं। जैसे आप स्पेन में स्पेनिश language देख सकते हैं, जर्मनी में जर्मन language देख सकते हैं, पुर्तगाल में Português language देख सकते हैं। मेरे कहने का अर्थ यह है कि west मे linguistic identity को ही एक national identity के रूप में पेश किया जाता है।

 

लेकिन भारत के मामले में ऐसा नहीं है। यह हो सकता है, कि किसी भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या कहीं ज्यादा हो, और किसी भाषा को बोलने वाले कहीं कम हों, लेकिन यहाँ भाषा के आधार पर national identity का निर्धारण नहीं होता। भारत में न जाने कितनी भाषाएँ हैं, उन सब का अपना एक विशेष महत्व है। उसमें भी मलयालम की तो बात ही अलग है। इसका अपना एक बड़ा समृद्ध इतिहास है। एक भाषा के रूप में मलयालम को भारत की विभिन्न भाषाओं के संगम के रूप में जाना जाता है। मलयालम को एक शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलना भी इसके महत्व को दर्शाता है। प्राचीन काल के ‘रामचरितम’ से लेकर मणिप्रवाल literature, और महाकवि रामानुजन एष़ुत्तच्छन ने मलयालम भाषा और साहित्य की जो धारा बहाई, वह समय के साथ लगातार विस्तृत होती गई। आधुनिक युग में मलयालम साहित्य को 6 ज्ञानपीठ पुरस्कारों का मिलना इस विस्तार का प्रमाण है। साथियों, अपनी भाषा से किसी भी मनुष्य का एक आत्मिक लगाव होता है। मलयालम जैसी एक इतनी प्राचीन भाषा, जिसका सैकड़ों वर्षों का साहित्यिक इतिहास रहा हो, उसकी मौलिकता आज भी जिस प्रकार से बनी हुई है, मुझे लगता है उसके लिए केरल के हमारे साथियों की सराहना होनी चाहिए। कहने का अर्थ भारत की भाषाई विविधता में मलयालम भाषा की समृद्ध व मूल्यवान विरासत अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। हम हर भाषा को national identity से जोड़कर देखते हैं। आप इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं, कि भारत में मौजूद जो अलग-अलग भाषाएँ हैं, वे अलग-अलग रंग के धागे हैं, और ये सारे धागे जब आपस में जुड़ जाते हैं, तो एक Indian identity के एक carpet का निर्माण होता है, एक खूबसूरत कालीन बनता है। और उस कालीन में ऐसा नहीं है कि जो individual धागे हैं, वो अपना अस्तित्व खो देते हैं, बल्कि वास्तविकता तो ये है कि वो रंगीन धागे ही मिलकर उस कालीन का निर्माण करते हैं। इसलिए मैं समझता हूँ कि भारत एक ऐसा खूबसूरत कालीन है, जहाँ अलग-अलग धागे खुद का अस्तित्व बनाए रखते हुए उसका निर्माण करते हैं। आप AIMA को ही देखिये, इसके नाम में India भी है, और मलयाली भी है। तो ऐसा नहीं है कि यहाँ India और मलयाली अलग हो रहे हैं, बल्कि यहां पर हम देखते हैं कि एक साथ मिलकर ये एक नई Identity का निर्माण कर रहे हैं। मुझे लगता है कि ऐसी अनोखी विशेषता सिर्फ हमारे ही देश में देखने को मिल सकती है।

 

मेरे प्यारे साथियों, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि देश अमृत काल में प्रवेश कर चुका है। भारत की आजादी के 75 वर्ष से अधिक हो चुके हैं और जब हम इस अमृत काल की समाप्ति पर होंगे, अर्थात जब हम 2047 में भारत की आजादी का 100वां वर्ष मना रहे होंगे तो उस समय तक हमने स्वयं के लिए कई लक्ष्यों को निर्धारित किया है। 2047 तक के लिए सबसे बड़ा लक्ष्य तो स्वयं माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश को दिया है, और वह लक्ष्य है, 2047 तक एक विकसित भारत के निर्माण का।

 

जाहिर सी बात है, हम यहां एक विकसित भारत के निर्माण की बात कर रहे हैं; किसी एक राज्य या किसी particular क्षेत्र की नहीं। इसलिए पूरे भारत की इस विकास यात्रा में हमें सारे राज्यों का व सारे institutions का सहयोग चाहिए होगा। निश्चित रूप से एक राज्य के रूप में केरल, और वहां के निवासियों के रूप में हमारे मलयाली भाई-बहन भारत के विकास में अपना योगदान अब तक जैसा करते आए हैं, वैसा आगे भी करते रहेंगे। लेकिन हमें इससे एक कदम आगे बढ़कर AIMA जैसे Civil Society Organizations, और NGOs को भी इस प्रयास से जोड़ना होगा।

 

मुझे पूरा विश्वास है, कि आने वाले समय में AIMA और सरकार, आपस में ऐसे ही एक दूसरे का सहयोग करते हुए प्रत्येक युवा को, प्रत्येक किसान को, प्रत्येक गरीब को और प्रत्येक वंचित को सरकार की हर योजना से जोड़ेंगे और न सिर्फ केरल बल्कि एक समृद्ध भारत के विकास की ओर आगे बढ़ेंगे। हम अपने आपसी प्रयासों से यह सुनिश्चित करें, कि हम 2047 तक एक विकसित भारत के निर्माण की ओर तेजी से अपने कदम बढ़ाएँ। इस दिशा में AIMA जैसे संगठनों का सहयोग हमें हमेशा प्राप्त होता रहेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

 

इस अवसर पर, अब और कुछ न कहते हुए, मैं एक बार फिर से आप सभी का आभार प्रकट करता हूँ कि आपने मुझे यहाँ बुलाया और, मुझे आपलोगों से एक बार फिर मिलने का और बात करने का अवसर मिला। मैं AIMA को उसके भविष्य के प्रयासों के लिए ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ देते हुए, अपनी बात समाप्त करता हूँ।

धन्यवाद, जय हिंद!