अध्यक्ष महोदय, सबसे पहले मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने मुझे इस सदन में भारतीय संविधान के पचहत्तर वर्ष की यात्रा पूरी होने पर, आयोजित इस चर्चा में भाग लेने का अवसर दिया है। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हम भारतीय संविधान के अमृत महोत्सव के साक्षी बन रहे हैं।
पचहत्तर वर्ष पहले, संविधान-सभा ने, Newly Independent India के लिए, संविधान-निर्माण का महान कार्य सम्पन्न किया था। लगभग तीन वर्षों के ‘Rigorous Debate and Deliberation’ के परिणामस्वरूप हमे हमारा संविधान मिला।
संविधान सभा ने जो संविधान तैयार किया था, वह केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं था, बल्कि जन आकांक्षाओं का प्रतिबिंब था, और उन्हें पूरा करने का माध्यम भी था। It was an expression of the general will of the people. कई सदियों के बाद एक बार फिर से भारत की तकदीर, भारत के लोगों के हाथों में थी। स्वराज का जो सपना, भारत के स्वतंत्रता सेनानियों और आम भारतीयों ने देखा था, वह पूरा हो चुका था।
हम भारत के लोगों ने, 26 नवंबर 1949 के दिन संविधान को अपनाया, अधिनियमित किया, और राष्ट्र को समर्पित किया था। यह वह दिन था, जब भारत के लोग ‘प्रजा’ से ‘नागरिक’ बने थे। ऐसे नागरिक जिनके अपने मौलिक अधिकार थे, और उनके पास एक भारतीय नागरिक होने का गौरव था। ऐसे नागरिक जो अपनी सरकार को चुन सकते थे। उसे बदल सकते थे। अब देश में राजा-रानी का शासन नहीं था, राजतंत्र नहीं था, न ब्रिटिश तंत्र था बल्कि जनता का शासन था, लोकतंत्र था।
अध्यक्ष महोदय, मैं अपनी बात को आगे बढ़ाने से पहले संविधान को अंगीकार करने के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में, इस सदन और समस्त देशवासियों को हार्दिक बधाई देता हूँ। साथ ही भारत की आजादी, और भारत के संविधान निर्माण से जुड़े, सभी महानुभावों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ, और उन सभी को शीश झुका कर नमन भी करता हूँ।
अध्यक्ष महोदय, हमारा संविधान ‘सार्वभौम’ और ‘सर्वसक्षम’ है। हमारे संविधान की ‘सार्वभौमिकता’ और ‘सर्वसक्षमता’ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि जहां एक ओर हमारा संविधान ‘स्टेट’ यानि राज्य की जिम्मेदारियों को विस्तृत रूप से सूचीबद्ध करता है, वहीं नागरिकों को उनके संवैधानिक और मौलिक अधिकार भी प्रदान करता है। अगर एक लाइन में कहें, तो हमारा संविधान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन के सभी पहलुओं को छूते हुए, राष्ट्र-निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है। साथ ही में लोगों के लिए एक Moral Trajectory यानि नैतिक मार्ग भी बनाता है।
इसी प्रकार हमारा संविधान, जहां एक ओर ‘Cooperative Federalism’ सुनिश्चित करता है, वहीं राष्ट्र की एकता को सुनिश्चित करने पर भी बल देता है। हमारा संविधान Legislature, Executive, और Judiciary को, नागरिकों के हितों के लिए मिलजुल काम करने की शक्ति भी प्रदान करता है। साथ ही ‘Checks and Balances’ का भी सिस्टम प्रदान करता है, जिससे सभी संस्थाएं अपने संवैधानिक दायरे में रहकर ही काम करें।
अध्यक्ष महोदय, भारत का संविधान, सिर्फ एक शासन प्रणाली स्थापित करने का कार्य ही नहीं करता है बल्कि भारत के गौरव को पुनर्स्थापित करने का यह एक ‘Roadmap’ भी है। साथ ही यह भारत को विश्व-पटल पर सही स्थान दिलाने का ‘Roadmap’ है, भारत को पुनः आदर्श राष्ट्र बनाने का Roadmap है, यह Roadmap है, विकास का, समता का, न्याय का, स्वतंत्रता का, बंधुता का, राष्ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने का। यह Roadmap है, नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करने का।
अध्यक्ष महोदय, कुछ लोगों द्वारा हमारे संविधान को Colonial Rule यानि ‘उपनिवेशवाद’ का उपहार मान लिया जाता है। या अक्सर हमारे संविधान को पश्चिमी देशों के संविधानों से ली गई अच्छी बातों का संकलन मात्र माना जाता है। अध्यक्ष महोदय, पिछले कुछ वर्षों में देश में एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया गया है कि संविधान एक पार्टी विशेष की देन है। इन सभी बातों में ‘Depth and Breadth’ दोनों की कमी है। अध्यक्ष महोदय, संविधान निर्माण में बहुत से लोगों की भूमिका को जानबूझ कर नकार दिया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि हमारा संविधान, हमारी ‘Civilizational Values’ यानि सांस्कृतिक मूल्यों का ‘Expression’ है।
अध्यक्ष महोदय, हमारा संविधान स्वाधीनता संग्राम के हवन कुंड से निकला, अमृत है। हमारा संविधान स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग से सिंचित, हमारा स्वाभिमान है। यह एक Series Of Historical Events का Outcome है। स्वतंत्र भारत का संविधान कैसा होगा, इस बात पर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई संस्थाओं और विभूतियों ने अपने विचार प्रस्तुत किए थे, जिनमें से बहुत से लोग संविधान सभा के सदस्य नहीं थे। लेकिन उनके विचारों ने भारत के संविधान के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमें याद रखना चाहिए, पंडित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, सरदार भगत सिंह, वीर सावरकर और ऐसे कई महापुरुषों के विचारों ने हमारे संविधान की भावना को मजबूत और समृद्ध किया है।
अध्यक्ष महोदय, हमारे प्रेरणा स्रोत डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का मानना था, कि संविधान, सामूहिक प्रयास (Collective efforts) और सर्व-सम्मति (Consensus) का Result होना चाहिए। हमारा संविधान इसी सामूहिक प्रयास और समझ का नतीजा है। हमारे संविधान के लिखे जाने से छह साल पहले यानि 1944 में, लिखे गए “Constitution of the Hindusthan Free State” नाम के दस्तावेज में कई बड़े नेताओं ने संविधान के बारे में अपने विचार दिए थे। इसमें सभी नागरिकों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की बात भी कही गई थी। इस बात का उल्लेख एक Eminent Jurist श्री अर्घ्य सेनगुप्ता (Arghya Sengupta) ने भी किया है।
अध्यक्ष महोदय, उस दस्तावेज में प्रत्येक नागरिक को अपनी संस्कृति और भाषा की रक्षा करने का अधिकार दिया गया था। सरकार को ‘Religion’ के आधार पर भेदभाव करने से स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया गया था। सार्वजनिक अनुदान प्राप्त करने वाले स्कूलों को ‘Religious Education’ देने की मनाही थी। यह भी स्पष्ट किया गया था कि ‘State’ का कोई ‘Religion’’ नहीं होगा। यानि वह secular होगा, यह बात वे लोग (हिन्दू महासभा) कह रहे थे, जिन्हे काँग्रेस के लोग communal कहा करते थे।
अध्यक्ष महोदय, “Constitution of the Hindusthan Free State” से डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुत प्रभावित थे। अगर हम संविधान सभा की बहस को ध्यान से पढ़ें, तो पता चलता है कि उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए और अलगाववादी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए एक मजबूत संघ (Strong Union) की आवश्यकता पर जोर दिया है। और स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों पर, आधारित एक गणतांत्रिक संविधान की वकालत की है। हमारे वर्तमान संविधान में भी इन्हीं मूल्यों को प्राथमिकता दी गई है, मगर इस बात का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है।
एक पार्टी विशेष द्वारा संविधान निर्माण के कार्य को ‘Hijack’ और ‘Appropriate’ करने की कोशिश हमेशा से की गई है। अध्यक्ष महोदय, भारत में ‘Constitution Making’ के इतिहास से जुड़ी ये सब बातें लोगों से छिपायी गई हैं। इतिहास में जाने पर पता चलता है, कि हमारे देश में इस बात पर व्यापक सहमति थी, कि भारत का भविष्य किस तरह के कानून से निर्धारित होगा।
मैं आज यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि हमारा संविधान किसी एक पार्टी की देन नहीं हैं। भारत का संविधान, भारत के लोगों द्वारा, भारतीय विचारों के साथ, भारत के मूल्यों के अनुरूप बनाया गया, एक ‘Unparalleled Transformative Document’ है।
अध्यक्ष महोदय, पश्चिमी सभ्यता में राज्य की अवधारणा Night Watchman State की थी। Night Watchman State का कान्सेप्ट विश्व प्रसिद्ध विचारक जान स्टुअर्ट मिल के द्वारा दिया गया था, जिसका अर्थ है कि सरकार का दायित्व लोगों की सुरक्षा प्रदान करने तक ही सीमित रहे।
किन्तु हमारे देश में राज-धर्म की बात की गई है। महाभारत के शांति पर्व में, राजा को सिर्फ राज-धर्म लागू करने की शक्ति दी गई है, पर वह राजा, राज धर्म का स्रोत नहीं माना गया है। हमारे यहां राजा भी राज-धर्म से बंधा है। उसकी शक्तियां लोगों के कल्याण के लिए है। समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा करने के लिए है।
अध्यक्ष महोदय, हमारा संविधान ‘Constitutional Machinery’ के जरिए, नागरिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा संविधान नागरिकों के समग्र विकास के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को हटाने तथा समुचित विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा करने के लिए राज्य को निर्देश देता है। संविधान के भाग चार में दिए गए ‘Directive Principles of State Policy’, से यही भावना निकल कर सामने आती है।
अध्यक्ष महोदय, मुझे इस बात का गर्व है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमारी सरकार “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” की भावना के साथ काम कर रही है। हमारी सरकार, भारत के संविधान में निहित धर्म और न्याय की भावना के अनुरूप कार्य कर रही है।
अध्यक्ष महोदय, हमारा संविधान प्रगतिशील है। समावेशी है। परिवर्तनकारी है। हमारे संविधान ने हमें एक ऐसे समाज के निर्माण का ‘Blueprint’ दिया है, जिसमें हर प्रकार से समाज में समरसता हो, सद्भाव हो और समृद्धि हो। जहां देश के शीर्ष पद को प्राप्त करने के लिए जन्म की पहचान मायने ना रखे।
जहां एक गरीब परिवार में जन्म लिया व्यक्ति भी प्रधानमंत्री बन सके। देश का राष्ट्रपति बन सके। संविधान क्रियान्वयन के कुछ वर्षों बाद ही संविधान की मूल भावना को ताक पर रख दिया गया था। लेकिन हमारी सरकार ने संविधान के मूल्यों को खुले और सच्चे मन से स्वीकार किया है। मुझे खुशी है कि हमारी सरकार संविधान की मूल भावना को केंद्र में रखकर जनहित के मार्ग पर आगे बढ़ रही है। हमने ग़ुलामी की मानसिकता को समाप्त करके, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम जैसे नये कानूनों को पारित कराया।
अध्यक्ष महोदय, हमारी सरकार ने समाज के सभी वर्गों, विशेषकर कमजोर वर्गों के लोगों के समुचित विकास को अपना लक्ष्य बनाया। Reform, Perform और Transform के हमारे संकल्प ने, आज भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लाकर खड़ा कर दिया है। आज गरीब लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना की वजह से अपना पक्का मकान मिल रहा है। ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ के अंतर्गत गरीबों को मुफ़्त इलाज मिल रहा है। ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ के माध्यम से अस्सी करोड़ गरीबों को मुफ़्त राशन की सुविधा दी जा रही है।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में हमारी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। सामाजिक न्याय के संवैधानिक आदर्श के अनुरूप Women development के साथ Women led development भी सुनिश्चित करने के लिए हमने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ पास किया है। इससे राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा तथा उनका सशक्तिकरण सुनिश्चित होगा। इसी सोच के तहत अध्यक्ष महोदय, हमारी सरकार ने वर्ष 2018 में ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की उन्नति के लिए साल 2019 में संविधान संशोधन किया गया। इसके लिए हमने आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है।
अध्यक्ष महोदय, समग्र और समावेशी विकास के ये सभी काम हमारे संवैधानिक मूल्यों और आदर्शों का जीवंत रूप हैं। हमारी सरकार ने न सिर्फ संविधान के मूल्यों को केंद्र में रखकर कार्य किया बल्कि संविधान को Letter and Spirit में बखूबी लागू भी किया है। अध्यक्ष महोदय, इस देश में एक ऐसा राज्य भी था, जहां देश का संविधान लागू नहीं होता था, संसद के कानून भी लागू नहीं होते थे। हमने वहाँ भी संविधान को पूरी तरह लागू करके दिखाया। और आज पूरा देश उस निर्णय का सकारात्मक परिणाम देख रहा है।
अध्यक्ष महोदय, हमारे संविधान ने हमें भारतीयता से भी पुनः परिचित कराया है। हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता और संस्कार के प्रति गौरव की भावना का संदेश दिया है। जैसे हमारे संविधान की मूल प्रति के भाग तीन में जिसमें मौलिक अधिकारों का वर्णन है उसमें भगवान श्री राम, माँ सीता जी और प्रभु लक्ष्मण जी की तस्वीर अंकित है।
संविधान की मूल प्रति के मुख पृष्ठ पर अजंता गुफाओं की ‘Paintings’ की छाप मिलती है, और अध्यक्ष महोदय, साथ ही कमल का फूल भी अंकित है। यह कमल का फूल दर्शाता है, कि सदियों की ग़ुलामी के दलदल से बाहर आकर अब एक संप्रभु और लोकतांत्रिक गणराज्य का उदय हो चुका है। हमारा संविधान और उसमें उकेरी गई आकृतियां हमारी सर्वोत्तम विरासत, समृद्ध इतिहास और महान परंपरा की वाहक हैं। इसी परंपरा को हम ‘विकास भी विरासत भी’ की भावना के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।
भारत लोकतंत्र की जननी है। हमारे लोकतंत्र की महानता के बारे में बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान सभा में भी कहा था। And I quote: “There was a time when India was studded with republics, and even where there were monarchies, they were either elected or limited. They were never absolute. It is not, that Indians did not know Parliaments or Parliamentary Procedure.
A study of the Buddhist Bhikshu Sanghas discloses that not only there were Parliaments for the Sanghas but they knew and observed all the rules of Parliamentary Procedure known to modern times”. अध्यक्ष महोदय, हम ऐसी ही महान परंपरा का हिस्सा हैं, और यह हम सभी के लिए गौरव एवं स्वाभिमान की बात है।
हमारा संविधान अथक परिश्रम और विचार-विमर्श का परिणाम है। इसके निर्माण में शामिल सभी महानुभाव महान देशभक्त थे। डॉ बी. आर. अंबेडकर, श्री अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, श्री के एम मुंशी, श्री गोपालस्वामी अयंगर, श्री जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं ने हमारे संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
एच वी कामथ, पी एस देशमुख, आर के सिधवा, शिब्बन लाल सक्सेना, ठाकुर दास भार्गव, के टी शाह और हृदय नाथ कुंजरू जैसी महान विभूतियों ने अपने अनुभव और ज्ञान से हमारे संविधान को समृद्ध किया है। ’Drafting Committee’ के सलाहकार बी एन राऊ और इसके मुख्य मसौदाकार एस एन मुखर्जी अपने असाधारण योगदान के लिए याद किये जाते है।
अध्यक्ष महोदय, अमूमन, जब भी संविधान निर्माण की बात की जाती है तब हम ‘Founding Fathers’ की बात करते हैं। लेकिन आज मैं भारतीय गणतंत्र की उन ‘Founding Mothers’ को भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूँ, जिनका संविधान निर्माण में योगदान उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि हमारे ‘Founding Fathers’ का रहा है।
यहां मैं एक ऐसी पुस्तक का उल्लेख करना चाहता हूं जो संविधान सभा की उन महिला सदस्यों की भूमिका का वर्णन करती है, जिनके योगदान का इतिहास द्वारा उचित मूल्यांकन नहीं किया गया था। Founding Mothers of the Indian Republic: Gender Politics of the Framing of the Constitution नामक यह किताब संविधान सभा की महिला सदस्यों का जीवन चित्रण करते हुए संविधान के निर्माण में उनके योगदान पर प्रकाश डालती है।
जब 24 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान पर जन प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए, तो उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने वालों में 11 महिलाएं भी शामिल थीं। उनके नामों का यहाँ पर मैं उल्लेख करना चाहूँगा। जी.दुर्गाबाई, अम्मू स्वामीनाथन, अमृत कौर, दक्षिणायनी वेलायुधन, हंसा मेहता, रेणुका रे, सुचेता कृपलानी, पूर्णिमा बनर्जी, बेगम कुदसिया, ऐज़ाज़ रसूल, कमला चौधरी और एनी मैस्करीन।
अध्यक्ष महोदय, मैं समझता हूँ, इस सदन और देश के द्वारा अपनी संविधान सभा की इन महान महिला सदस्यों की सामूहिक सराहना की जानी चाहिए।
अध्यक्ष महोदय, भारत का संविधान भारत और भारतीयता के मूल विचार की उपज है। भारतीय संविधान का निर्माण संविधान निर्माण और लोकतंत्र के वैश्विक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना और एक अनूठा अनुभव है। जब अन्य एशियाई और अफ्रीकी देश उपनिवेशवाद से मुक्त हुए थे, तो उनके संविधान ‘Colonial Rulers’ का एक ‘पार्टिंग गिफ्ट’ था। इसके विपरीत, भारतीयों ने अपना संविधान अपने लिए ख़ुद रचा है।
अध्यक्ष महोदय, कई ‘Postcolonial Democracies’ और उनके संविधान ज्यादा लंबे समय तक टिक नहीं पाए। लेकिन भारतीय संविधान तमाम ‘Onslaughts’ और ‘Challenges’ के बावजूद, बिना अपनी मूल भावना को खोए, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निरंतर निभा रहा है।
अध्यक्ष महोदय, मैं मानता हूँ, कि इसकी बड़ी वजह है भारतीय समाज में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता, न्याय-विधि और संविधान के प्रति आदर और सम्मान का भाव।
आज जब हम संविधान के 75 वर्ष पूरे होने का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो मैं इस अवसर पर संविधान की भावना की रक्षा सुनिश्चित करने में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की सराहना करना चाहता हूँ।
संविधान के ‘Custodian’ और ‘Interpreter’ के रूप में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को हम सब स्वीकारते हैं। आज संविधान की रक्षा करने की बात की जा रही है। ये हम सभी का कर्तव्य है। लेकिन हमें यह भी समझने की जरूरत है कि किसने संविधान का सम्मान किया है और किसने अपमान।
इसी संदर्भ में मैं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एच.आर. खन्ना की आत्मकथा ‘Neither Roses Nor Thorns’ नामक किताब से एक पंक्ति उद्धत करना चाहता हूँ, जिसमें उन्होंने साफ-साफ लिखा है, and I quote:
I told my younger sister, “Santosh, I have prepared a judgment which is going to cost me the Chief Justiceship of India.” unquote
साल 1976 में घटी इसी घटना और इन लाइनों का संदर्भ आपमें से अधिकांश लोग जानते होंगे। Justice H.R. Khanna ने ‘ADM Jabalpur v. Shivkant Shukla’ Case में तब की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ ‘Dissenting Judgment’ दिया था।
अध्यक्ष महोदय, जस्टिस खन्ना यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि, किसी भी हालत में सरकार द्वारा किसी नागरिक से उसके जीने का हक़ और अदालत में न्याय माँगने का अधिकार छीन लिया जाए। अपने ‘Dissenting Judgment’ के लिये जस्टिस खन्ना को क्या क़ीमत चुकनी पड़ी है, यह बात भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले अध्याय के पन्नों में अंकित है।
अध्यक्ष महोदय, इसी तरह वर्ष 1973 में भी सभी संवैधानिक मूल्यों को ताक पर रख कर, तब की कांग्रेस सरकार ने Justice J. M. Shelat, K. S. Hegde और A. N. Grover को ‘Supersede’ कर के ‘Seniority’ में चौथे नंबर के जज को भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया था। इन तीनों जजों का सिर्फ़ एक अपराध था, कि वे तीन लोग सरकार के सामने नहीं झुके, उन तीनों जजों ने एक तानाशाह सरकार की शक्तियों को संवैधानिक दायरे में बांधने की कोशिश की थी।
अध्यक्ष महोदय, यहां मैं एक महत्वपूर्ण बात जोड़ना चाहता हूं कि यह किसी व्यक्ति पर हमला नहीं था, यह सिर्फ़ किसी व्यक्ति विशेष के अधिकारों का हनन नहीं था। बल्कि यह संविधान पर हमला था, यह हमारे संविधान को ‘Subvert’ करने का एक महापाप था। मुझे हैरानी होती है, कि आज इस कृत्य को अंजाम देने वाली पार्टी संविधान के संरक्षण की बात करती है।
आज मैं इस सदन में यह कहना चाहता हूँ कि कांग्रेस के लोगों ने अनेक मौकों पर संविधान और संवैधानिक भावनाओं का निरादर किया है। उन्हें कभी भी संस्थानों (Institutions) की ‘Independence’ और ‘‘Autonomy’ हजम नहीं हुई। उन्होंने हमेशा एक ‘Committed Judiciary, Committed Bureaucracy और Committed Institutions’ बनाने का काम किया।
कांग्रेस पार्टी ने हमेशा संविधान को राजनैतिक हित साधने का माध्यम बनाया है। उसकी मूल भावना को तहस-नहस करने का कार्य किया है। अध्यक्ष महोदय, उनके मुंह से संविधान की रक्षा जैसी बातें शोभा नहीं देती हैं।
अध्यक्ष महोदय, आज मैं देखता हूं कि विपक्ष के कई नेता संविधान की प्रति अपनी जेब में रखकर घूमते हैं। असल में उन्होंने बचपन से ही यही सीखा है। उन्होंने पीढ़ियों से अपने परिवार में संविधान को जेब में ही रखे देखा है। लेकिन बीजेपी संविधान को सर माथे पर लगाती है। हमारा ‘Commitment’ संविधान के प्रति पूरी तरह साफ है। हमने कभी भी किसी Institution की ‘Independence’ और ‘Autonomy’ के साथ खिलवाड़ नहीं किया है। संविधान के मूल्य हमारे लिए कहने या दिखाने भर की बात नहीं हैं। संविधान के मूल्य, संविधान के द्वारा दिखाया गया मार्ग, संविधान के सिद्धांत, हमारे मन में, वचन में, कर्म में, हर जगह दिखाई पड़ेंगे।
हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें एक ‘Living Document’ दिया है, जो युगनुकूल परिवर्तन की जरूरत के साथ आगे बढ़ रहा है। बाबासाहेब अंबेडकर सहित अन्य संविधान निर्माताओं ने भी माना था, कि संविधान भविष्य की सभी संभावनाओं को नहीं भांप सकता है। इस लिए उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को इसमें संशोधन करने के अधिकार दिए हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में जो भी संवैधानिक संशोधन किये, उन सभी का उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ संवैधानिक मूल्यों को सशक्त करना था। सामाजिक कल्याण था। लोगों का सशक्तिकरण था।
हमने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया, ताकि भारत की अखंडता सुनिश्चित हो। ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ से महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त किया। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण भी सामाजिक न्याय की भावना से ही प्रेरित था।
70 वर्षों से हमारा पुराना Taxation System’ करोड़ों उद्यमियों के लिए तो एक समस्या था ही, यह देश की एकता में भी बाधा था। हमने GST कानून बनाया। यह कार्य ‘Federalism’ के संवैधानिक सिद्धांत को कायम रखते हुए सभी को साथ लेकर चलने के हमारे प्रयास को दर्शाता है। अब ‘GST, Council’ में राज्यों की सहमति से Tax दरें निर्धारित की जाती हैं। इससे Ease of Doing Business Ranking में सुधार हुआ है। लोगों का जीवन आसान हुआ है।
‘GST Council’ के माध्यम से हमने ‘Cooperative Federalism’ को मजबूत किया है। इस बात को ‘Supreme Court’ ने अपने एक फैसले में भी स्वीकार किया है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश Justice DY Chandrachud ने इस कानून की प्रशंसा करते हुए कहा था कि: “The amendment in the Constitution to reflect and embody the GST is to my mind a classical example of collaborative, cooperative federalism,”
अध्यक्ष महोदय, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था “The Constitution is not just a set of rules; it is the spirit of India seeking its destiny.” मुझे यह कहते हुए हर्ष है कि भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा बाबा साहेब अंबेडकर और संविधान सभा की भावना के प्रति पूरी निष्ठा रखते हुए, संविधान को एक Guiding principle मानकर कार्य किया है।
अध्यक्ष महोदय, कांग्रेस की तरह, हमने संविधान को कभी भी राजनैतिक हित साधने का जरिया नहीं बनाया। हमने संविधान को जिया है। हमने सजग और सच्चे सिपाही की तरह संविधान के खिलाफ की जा रही साजिशों का सामना किया है। और उसकी रक्षा के लिए बड़े से बड़ा कष्ट भी उठाया है।
2003 में जब श्रद्धेय अटल जी प्रधानमंत्री थे तब हमने सुशासन को मजबूत करने के लिए 91वें संशोधन से ‘Minimum Government and Maximum Governance’ की भावना से मंत्रि-परिषद के आकार को सीमित कर दिया। इस संशोधन ने दल-बदल विरोधी कानून के तहत जरूरी बदलाव किये ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सके। और राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा मिले।
अध्यक्ष महोदय, आप आज़ाद भारत का इतिहास देख लीजिए, कांग्रेस ने सिर्फ संविधान संशोधन नहीं किया, बल्कि दुर्भावना के साथ धीरे-धीरे संविधान बदलने का प्रयास किया है। पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री थे तो लगभग 17 बार संविधान में बदलाव किया गया। श्रीमती इंदिरा गांधी जी के समय पर लगभग 28 बार संविधान में बदलाव किया गया।
श्री राजीव गांधी के समय पर लगभग 10 बार संविधान में बदलाव किया गया। मनमोहन सिंह जी के समय पर लगभग 7 बार संविधान में बदलाव किया गया। कांग्रेस सरकारों द्वारा किए गए अधिकांश संवैधानिक संशोधन या तो विरोधियों और आलोचकों को चुप कराने के लिए किये गए या तो गलत नीतियों को लागू करने के लिए किये गए।
आप पहले संविधान संशोधन को ही ले लीजिए। साल 1950 में प्रेस में कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों की आलोचना हो रही थी। ऐसे में तब की कांग्रेस सरकार ने आरएसएस के साप्ताहिक प्रकाशन ऑर्गनाइज़र और मद्रास से निकलने वाली पत्रिका ‘क्रॉसरोडस’ को प्रतिबंधित कर दिया।
इसका विरोध करते हुए के ऑर्गनाइज़र के संपादक श्री के. आर. मलकानी ने लिखा था: “To threaten the liberty of the press for the sole offence of nonconformity to official view… may be a handy tool for tyrants but (is) only a crippling curtailment of civil liberties in a free democracy… A government can always learn more from bona fide criticism of independent-thinking citizens than the fulsome flattery of charlatans.” (शार्लटन्स)
मलकानी जी और आरएसएस ने सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने Censorship आदेश को रद्द किया और सरकार के निर्णय को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
अध्यक्ष महोदय, आज संविधान का राग अलापने वाली कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करने की जगह मई 1951 में ही संवैधानिक संशोधन करके, नागरिकों के ‘Freedom of Speech and Expression’ को कुचल दिया। देश में पहला आम चुनाव भी नहीं हुआ था। कांग्रेस के पास कोई जनादेश नहीं था। लेकिन हड़बड़ी में पहला संविधान संशोधन कर दिया गया, जिससे आलोचकों को चुप किया जा सके और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचला जा सके।
हम सभी जानते हैं कि संविधान निर्माण में, बाबा साहेब अंबेडकर की अग्रणी भूमिका थी। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं, कि संविधान लागू होने के बाद कांग्रेस सरकार द्वारा मौलिक अधिकारों को कमजोर करने के प्रयासों के खिलाफ बाबा साहेब हमेशा लड़ते रहे थे। जब कांग्रेस सरकार ने 1954 में संविधान में चौथा संशोधन लाकर मौलिक अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश की, तो बाबासाहेब आंबेडकर ने इसके खिलाफ कहा था:
And I quote: “I am sorry to say that this attitude of treating the fundamental rights with contempt, as though they were of no consequence, that they could be trodden upon at any time with the convenience of the majority or the wishes of a Party chief, is an attitude that may easily lead to some dangerous consequences in the future. And I therefore feel very sorry that even a matter of this sort, namely, the infringement of, or the deviation from, fundamental rights, is being treated by the Party in power as though it was a matter of no moment at all.” Unquote
अध्यक्ष महोदय, काँग्रेस और इसके नेताओं द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने के जिस ‘Attitude’ की बात बाबा साहेब ने की थी, ‘Congress’ ने उसी ‘Attitude’ को सत्ता में होने के दौरान बार-बार दोहराया है। मैं कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए कुछ ऐसे संवैधानिक संशोधनों का उल्लेख करना चाहता हूँ, जिनके द्वारा संविधान और उसमें निहित भावना को ही नष्ट किया गया।
साल 1975 में हुए 38वें संविधान संशोधन से आपातकाल लगाने के निर्णय को ‘Non-Justiciable’ बनाने की कोशिश की गई। Election Law Amendment Bill लाया गया, जिसका एकमात्र उद्देश्य उन सभी Electroral Malpractices को ‘Immunity’ देना था, जिनके कारण श्रीमती इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनौती दी गई थी।
अध्यक्ष महोदय, एक निंदनीय संशोधन जो अंततः Lapse हो गया, वह था 1976 में किया गया 41वां संवैधानिक संशोधन विधेयक। इस संशोधन का उद्देश्य प्रधानमंत्री, राज्यपालों और राष्ट्रपति को पद ग्रहण करने से पहले और उनके कार्यकाल के दौरान किए गए सभी कार्यों के लिए आपराधिक मुक़दमे से Immunity प्रदान करना था। अध्यक्ष महोदय, इसका मतलब यह था, कि सबसे जघन्य अपराध करने वाला व्यक्ति भी, अगर एक दिन के लिए भी संवैधानिक पद पर बैठ जाए तो उसके सभी अपराध माफ।
संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग यहीं नहीं रुका। 28 अगस्त 1976 को, 42वां संविधान संशोधन पेश किया गया था, जिसमें प्रावधान था कि किसी भी कानून की संवैधानिकता केवल सात न्यायाधीशों द्वारा ही तय की जा सकती है, और किसी भी कानून को केवल दो-तिहाई बहुमत से ही रद्द किया जा सकता है। अध्यक्ष महोदय, क्या यह सब एक तानाशाह द्वारा अपने निजी स्वार्थ के लिए संविधान को विकृत करने का भरसक प्रयास नहीं था?
अध्यक्ष महोदय, “Basic Structure” के सिद्धांत को नकारने के लिए, 42वें संविधान संशोधन के द्वारा यह प्रावधान किया गया था, कि ‘Article 368’ के तहत किया गया प्रत्येक संवैधानिक संशोधन वैध होगा। जैसा कि आप जानते है कि आर्टिकल 368 के माध्यम से संविधान में संशोधन की व्यवस्था दी गयी है। संशोधन में लोकसभा का कार्यकाल भी बढ़ाकर छह (6) साल कर दिया गया। अध्यक्ष महोदय, क्या यह पूरे संविधान को एक तानाशाह के उद्देश्यों की पूर्ति का एक माध्यम मात्र बनाने का षड्यन्त्र नहीं था? क्या यह सब जनता को फिर से प्रजा बनाने की साजिश नहीं थी? आज उसी पार्टी के लोग संविधान का इस्तेमाल दुष्प्रचार के लिए कर रहे हैं।
अध्यक्ष महोदय, हमारा संविधान, आपातकाल और भ्रष्ट सरकारों के सामने भी मजबूती से खड़ा रहा है। अध्यक्ष महोदय, हमारे संविधान में समय के साथ कई संशोधन हुए हैं। लेकिन संविधान की मूल भावना आज भी बनी हुई है। यह हमेशा बनी रहेगी। कांग्रेस चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन हम कभी भी संविधान के मूल चरित्र को बदलने नहीं देंगे। आप इतिहास देखें, हमने आपातकाल के काले दिनों में भी संविधान के मूल चरित्र को चोट पहुंचाने के हर प्रयास का मजबूती के साथ विरोध किया था। लाखों की संख्या में संविधान के सिपाहियों ने जेल की यातनाएं सही। मैं स्वयं इन यातनाओं का भुक्तभोगी रहा हूँ।
अध्यक्ष महोदय, कांग्रेस ने न कभी संविधान, न संवैधानिक मूल्यों, न संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान किया है। कांग्रेस के नेताओं ने हमेशा ‘Personal Interest’ को ‘Constitutional Values’ और ‘Institutional Dignity’ के ऊपर रखा है। ये एक ‘Documented fact’ है कि 1973 में तीन ‘Senior Most Judges’ को ‘Supersede’ करने के फैसले से तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वी. वी. गिरी सहमत नहीं थे।
पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी जिद, हठ और राजनैतिक दंभ के कारण राष्ट्रपति के पद का भी सम्मान नहीं किया। आज संविधान के तथाकथित हितैषी ये भूल जाते हैं, कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने पचास बार Article 356 का दुरुपयोग करके, चुनी हुई सरकारों को गिराने का कार्य किया था।
अध्यक्ष महोदय, सौ बात की एक बात जब भी कांग्रेस के नेताओं को सत्ता और संविधान में से एक को चुनना था, उन्होंने हमेशा सत्ता को चुना।
अध्यक्ष महोदय, संविधान के Article 44 में Uniform Civil Code लागू करने की बात की गई है। Supreme Court ने Sarla Mudgal v. Union of India case में कहा था:
“Pandit Jawahar Lal Nehru, while defending the introduction of the Hindu Code Bill instead of a uniform civil code, in the Parliament in 1954, said “I do not think that at the present moment the time is ripe in India for me to try to push it through”. It appears that even 41 years thereafter, the Rulers of the day are not in a mood to retrieve Article 44 from the cold storage where it is lying since 1949.
The Governments – which have come and gone – have so far failed to make any effort towards “unified personal law for all Indians”. The reasons are too obvious to be stated. The utmost that has been done, is to codify the Hindu law.
When more than 80% of the citizens have already been brought under the codified personal law there is no justification whatsoever to keep in abeyance, any more, the introduction of “uniform civil code” for all citizens in the territory of India.”
अध्यक्ष महोदय, Uniform Civil Code तो कांग्रेस क्या ही लाती, उन्होंने तो Supreme Court के Judgements को भी पूरी तरह नकार दिया।
अध्यक्ष महोदय, आप याद कीजिए शाहबानो केस जो कि भारत में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए यह एक ऐतिहासिक निर्णय था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा महिला शाहबानो के पक्ष में फ़ैसला सुनाया था। इस फ़ैसले के ज़रिए, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि मुस्लिम महिलाएं भी गुज़ारा भत्ता पाने की हकदार हैं।
लेकिन तुष्टीकरण के रास्ते चलते हुए तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने कानून बनाकर इस जजमेंट को पलट दिया।
इस लिए जब काँग्रेस के लोग जो हमेशा तुष्टीकरण की राजनीति करते आए हैं, वे जब “मोहब्बत की दुकान” की बात करते हैं, तो हंसी आती है।
अध्यक्ष महोदय, 75 वर्षों के बाद, आज हमें अपने संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को एक बार फिर से दोहराना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, भारत का संविधान भारतवासियों की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए, एक सशक्त माध्यम साबित हुआ है।
आज जब हम अपने संविधान के 75 साल पूरे होने के साक्षी बने हैं, तो हमें अधिकारों से एक कदम आगे बढ़कर अपने कर्तव्यों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, भारतीय संस्कृति में धर्म का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। धर्म के अनेकों अर्थ हैं, पर इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण हैं कर्तव्य। हमारे धर्म ग्रंथों में धर्म का अर्थ मूलतः कर्तव्य ही है। धर्म शब्द ऋग्वेद में छप्पन बार आता है। और लगभग सभी स्थान पर इसका उपयोग कर्तव्य के अर्थ और सन्दर्भ में ही किया गया है। अध्यक्ष महोदय, भारत की संस्कृति में उसके धर्म, मूल्य, इतिहास सभी में कर्तव्यों के निर्वहन की बातें की गयी हैं।
अध्यक्ष महोदय, भारत एक लोकतांत्रिक देश है, और किसी भी लोकतंत्र में उसका संविधान ही उसका सबसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़, या यूं कहें “Sacred Document” माना जाता है। यही कारण है कि सर्वोच्च पदों पर बैठे सभी व्यक्तियों को इस संविधान में मौजूद शपथ को पद ग्रहण करने से पहले दोहराना पड़ता हैं।
“मैं अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा”।
अध्यक्ष महोदय, यह केवल कुछ शब्द नहीं हैं बल्कि भारत के लोकतंत्र की अंतरात्मा हैं। यह एक संवैधानिक दायित्व होने के साथ-साथ एक नैतिक दायित्व भी है। यह अक्सर कहा जाता है कि भारत विविधता का देश है। भारत विभिन्न धर्मों, विश्वासों, मान्यताओं, रीति-रिवाजों और परंपराओं का देश है। लेकिन इस जीवंत विविधता के बीच जो हमें एक सूत्र में बांधता है, वह हमारा संविधान है।
अध्यक्ष महोदय, ग्रैनविल ऑस्टिन ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘The Indian Constitution: Cornerstone of the Nation’ में लिखा है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने भारतीय संविधान में राष्ट्र के आदर्शों और उसे प्राप्त करने के लिए Institutions और Procedures दोनों को एक समान महत्व दिया है। जिन आदर्शों को उन्होंने सबसे अधिक महत्व दिया वे हैं: राष्ट्रीय एकता और अखंडता, लोकतांत्रिक और समता-मूलक समाज।
अध्यक्ष महोदय, हमारे संविधान निर्माताओं ने, इन्हें प्राप्त करने के लिए सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन का रास्ता अपनाया। पर उनके ज़ेहन में एक बात स्पष्ट थी कि यह सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन केवल संवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थानों का उपयोग करते हुए, लोकतांत्रिक भावना के साथ लाया जाए।
ग्रैनविल ऑस्टिन ने अपनी किताब में एक महत्त्वपूर्ण बात लिखी है। वो बात यह थी कि संविधान निर्माताओं का यह विश्वास था की सामाजिक एकता, सामाजिक क्रांति, और लोकतंत्र को अलग-अलग नहीं हासिल किया जा सकता है बल्कि यह एक “Seamless Web” के तीन अलग-अलग “Strand” हैं। And I quote : Without national unity, democracy would be endangered and there could be little progress toward social and economic reform. And without democracy and reform, the nation would not hold together. With these three strands, the framers had spun a seamless web.
अध्यक्ष महोदय, हमारे संविधान ने हमेशा नागरिक और राज्य, व्यक्ति और समाज के बीच एक “Harmonious Balance” बनाने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। एक प्रसिद्ध Jurist (Former Chief Justice of USA John Marshall) ने कहा था “Constitution is framed for ages to come, but its course cannot always be tranquil” जिसका अर्थ है कि संविधान की रचना सदियों के लिए होती है मगर उसकी यात्रा चुनौतीपूर्ण होती है।
अध्यक्ष महोदय, हमारे संविधान निर्माता आजादी के आन्दोलन के आदर्शों से प्रेरित थे। वे सभी दूरदर्शी थे लेकिन भविष्य में आने वाली सभी चुनौतियों और उनके समाधानों को संविधान में सम्मिलित करना संभव नहीं था। पिछले साढ़े सात दशकों में संविधान को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पर हम सबको इस बात का गर्व होना चाहिए, कि यह हमारे संविधान की ‘Spirit of Resilience’ ही है कि हम उन सभी चुनौतियों का सामना पूरी दृढ़ता से कर पाए हैं।
पिछले 75 वर्षों में ऐसे कई अवसर आए हैं जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसलों के माध्यम से लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की व लोकतंत्र को मजबूत किया। और इन सभी ऐतिहासिक फैसलों के पीछे जो आदर्श, जो सोच और जो मापदंड थे वे सभी हमारे संविधान में निहित हैं। भारतीय संविधान वह आदर्श था, जिसके माध्यम से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अस्तित्व में आया था।
यह एक ‘चार्टर’ था जिसने एक प्राचीन सभ्यता को आधुनिकता और बड़े सामाजिक व आर्थिक सुधार के मार्ग पर अग्रसर किया। और पिछले 75 वर्षों से हमारा संविधान इस भूमिका को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभा रहा है।
अध्यक्ष महोदय, पिछले 75 सालो में, संविधान की मूल भावना से ही प्रेरणा लेते हुए हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया, पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित किया, संघीय संरचना को मजबूत किया, और लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की है।
इस सन्दर्भ में मेरा यह मानना है कि इन सभी निर्णयों के पीछे जो ‘Guiding Principles’ थे वह हमारे संविधान निर्माताओं के आदर्श और दृष्टिकोण थे जो भारत के संविधान में निहित है। भारत का संविधान सात दशकों से अधिक समय से न सिर्फ शानदार तरीके से काम कर रहा है, बल्कि तमाम झंझावातों को झेलने के बाद भी साल दर साल मजबूत होता रहा। मेरा मानना है कि इसकी बड़ी वजह थी, इसमें निहित “Constitutional Morality”.
अध्यक्ष महोदय, डॉ आंबेडकर ने संविधान सभा में 4 नवम्बर, 1949 को अपने भाषण में इसी Constitutional Morality पर अपने विचार रखते हुए प्रसिद्ध विचारक George Grote को Quote करते हुए कहा था, “Constitutional Morality was the inseparable condition of a government at once free and peaceable”.
हमारे संविधान को इस “Constitutional Morality” से रेखांकित करने के लिए हमें डॉ अम्बेडकर और संविधान सभा के प्रत्येक सदस्य के प्रति आभारी होना चाहिए। 26 नवंबर, 1949 से ठीक एक दिन पहले डॉ अम्बेडकर ने संविधान सभा में एक भाषण दिया था, जिसे ‘The Grammar of Anarchy’ speech के नाम से जाना जाता हैं। डॉ अम्बेडकर ने उसमें कहा था: मुझे लगता है कि कोई संविधान कितना भी अच्छा हो, वह बुरा बन सकता है, अगर जिन लोगो पर उसे चलाने की ज़िम्मेदारी है, वह अच्छे न हों।
उसी तरह कोई संविधान कितना भी बुरा हो वह अच्छा साबित हो सकता है, अगर उसे चलाने वाले लोगों की भूमिका सकारात्मक हो।
अंत में बाबा साहब आंबेडकर द्वारा कही गई एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात मैं आप सभी के बीच रखना चाहता हूं। उन्होंने कहा था कि:
“By independence we have lost the excuse of blaming the British for anything going wrong. If hereafter things go wrong, we will have nobody to blame except ourselves”
इस बात को हमें हमेशा याद रखना है। हमारा संविधान सबसे उत्कृष्ट दिमागों की कड़ी मेहनत और दृष्टि का परिणाम है। हमारा संविधान हर मामले में एक महान दस्तावेज़ है। यह हमारे “founding fathers” और ‘founding mothers’ का हम सभी को सबसे बड़ा उपहार है।
अब, यह हमारा कर्तव्य है कि हम यह सुनिश्चित करें कि हम संविधान की पवित्रता को कभी भंग न होने दे और यह संवैधानिक यात्रा अनवरत जारी रहे इसके लिए पूरी शक्ति से काम करें।
…और यह कर्तव्य हमारे किसी भी अन्य दायित्व से बड़ा होना चाहिए। इन्ही शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ। आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
जय भारत, जय हिन्द, जय संविधान।