रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 2024 तक पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने के लिए रक्षा विनिर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाए जाने का आह्वान किया है। नयी दिल्ली में शुक्रवार को ग्लोबल बिजनेस समिट को संबोधित करते हुए श्री सिंह ने कहा कि 2025 तक विनिर्माण क्षेत्र के एक हजार अरब डॉलर का हो जाने की क्षमता है। सरकार डिजिटल अर्थव्यवस्था और मानव पूंजी को बढ़ावा देने की नीतियों के साथ ही अपने महत्वाकांक्षी कार्यक्रम मेक इन इंडिया के माध्यम से इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रयासरत है।
रक्षा उद्योग से उभरते अवसरों का भरपूर लाभ उठाने का अनुरोध करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश की चुनौतियों से निबटने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों और रक्षा उद्योग के बीच बेहतर समन्वय के लिए कई ढ़ांचागत सुधार किए गए हैं। उन्होंने इस संदर्भ में मेक इन इंडिया के तहत उठाए गए कई कदमों का उल्लेख करते हुए बताया कि इसके तहत घरेलू रक्षा उद्योग को रक्षा क्षेत्र में टेंडर हासिल करने, औद्योगिक लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया आसान बनाने, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने, रक्षा निर्यात को आसान बनाने, रक्षा आफसेट नीति को सुव्यवस्थित बनाने, परीक्षण और प्रयोग की सरकारी सुविधाओं को निजी क्षेत्र के लिए खोलने, दो रक्षा कॉरिडोर बनाने तथा स्टार्टअप्स और लघु एंव मझौले उद्यमों के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने जैसे उपाय किए गए हैं।
श्री सिंह ने कहा “हमने जिस रक्षा उत्पादन नीति की परिकल्पना की है उसमें 2025 तक देश के एयरोस्पेस तथा रक्षा वस्तुओं और सेवा क्षेत्र को 26 अरब डॉलर का बनाने के लक्ष्य को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। नवाचार, तथा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने तथा वैश्विक आपूत्रि श्रृंखला में अपने लिए एक जगह बनाने के भारत के प्रयासों पर इसका व्यापक असर होगा। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनने तथा वैश्विक स्तर पर अभिनव तथा संरचनात्मक रूप से ज्यादा कुशल बनने के संदर्भ में रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र बड़ी भूमिका निभा सकता है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि यूं तो रक्षा उत्पादन का प्रमुख लक्ष्य सशस्त्र सेनाओं की जरूरतों को पूरा करना है लेकिन इसके साथ ही इसके निर्यात को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वह अपने निर्यात को अपने कुल कारोबार के 25 प्रतिशत तक बढ़ाएं। इसके लिए सरकार अगले पांच वर्षों के दौरान मित्र देशों को रिण और अनुदान देने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अगले पांच वर्षों में 5 अरब डालर के रक्षा उत्पादों और सेवाओं के निर्यात का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पाने में सरकार की मदद करने के लिए निजी क्षेत्र को हर संभव सहायता दी जाएगी।
स्वचालित मार्ग से विदेशी निवेश की सीमा को पहले के 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने तथा सरकारी अनुमति से ऐसे निवेश की सीमा 49 से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने के सरकार के निर्णय पर प्रकाश डालते हुए श्री सिंह ने कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमाएं बढ़ाने के इस फैसले का असर दिखने लगा है। दिसंबर 2019 तक रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में 3155 करोड़ रूपए से ज्यादा का निवेश हुआ। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे आने वाले समय में जब कुछ और बड़े कार्यक्रम लागू किए जाएंगे तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में और तेजी आएगी।
रक्षा मंत्री ने कहा कि सरकार के प्रयास केवल सुधारों तक सीमित नहीं है बल्कि वह रक्षा विनिमार्ण क्षेत्र में निवेश बढ़ाने तथा उसे आत्म निर्भर बनाने के लिए एक उत्प्रेरक और संरक्षक के रूप में भी काम करना चाहती है। उन्होंने कहा “ रक्षा अनुसंधान एंव विकास के क्षेत्र में निजी कंपनियों को पैठ बनाने में वक्त लगेगा ऐसे में इसे प्रोत्साहित करने के लिए हमने डीआरडीओ के माध्यम से निशुल्क प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा , 450 पेंटेटों तक निशुल्क पहुंच, परीक्षण और प्रयोग की सरकारी सुविधाओं का फायदा उठाने तथा दस करोड़ रूपए तक की आर्थिक मदद देने जैसे कदम उठाए हैं। उद्योगों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए लाइसेंस हासिल करने के 900 से ज्यादा समझौते किए गए हैं।’
रक्षा मंत्री ने रणनीतिक साझेदारी मॉडल के माध्यम से लड़ाकू विमान,हेलीकॉप्टर,टैंक और पनडुब्बियों सहित रक्षा विनिर्माण के बड़े कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे आने वाले वर्षों में निजी कंपनियों को अपना कद बढ़ाने और वैश्विक दिग्गजों के रूप में उभरने का मौका मिलेगा।
श्री सिंह ने कहा कि ‘स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित उत्पाद खरीदें’, ‘भारतीय उत्पाद खरीदें’ और ‘भारत में बनाएं और खरीदें’ ये रक्षा मंत्रालय की खरीद नीति की तीन सबसे पसंदीदा श्रेणियां हैं। ‘ प्रत्यक्ष आयात पर इन्हें प्राथमिकता देकर हम निजी क्षेत्रों सहित स्थानीय उद्योग को अधिक से अधिक अवसर प्रदान करना चाहते हैं ताकि वह आत्मनिर्भरता और रोजगार सृजन में योगदान कर सकें।”
उन्होंने इस बात के लिए सरकार की सराहना की कि पिछले पांच वर्षों के दौरान उसने चार लाख करोड़ रुपए के 200 से अधिक ऐसे प्रस्तावों को मंजूरी दी जिससे भारतीय उद्योग को रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं के साथ मिलकर काम करने का अवसर मिलेगा।
सूक्ष्म,लघु एंव मध्यम उद्यमों को मूक प्रदर्शक बताते हुए श्री सिंह ने कहा कि रक्षा और एयरोस्पेस के क्षेत्र में इनकी भागीदारी को 8 हजार से बढ़ाकर 16 हजार किए जाने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए नवाचार को बढ़ावा देने की नीति इस उद्देश्य के साथ बनाई गई है कि ताकि रक्षा और एयरोस्पेस से संबंधित समस्याओं को सुलझाने, प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए स्टार्टअप्स को भी साथ लाया जा सके।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार ने 2024 तक एयरोनॉटिक्स उद्योग का आकार 30,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 60,000 करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए 90-सीटों वाले सिविल एयरक्राफ्ट, पीपीपी मॉडल में 5 बिलियन डॉलर का सिविल हेलिकॉप्टर उद्योग और डिफेंस कॉरिडोर में न्यू एयरो इंजन कॉम्प्लेक्स सहित कई प्रमुख प्लेटफार्मों की परिकल्पना एयरोस्पेस सेक्टर में की गई है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि रक्षा के क्षेत्र में भारत को एक बड़ी ताकत बनाने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेस के लिए एक रोड मैप तैयार किया है। इसके तहत 2024 तक कम से कम 25 रक्षा विशिष्ट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उत्पादों को विकसित करने की योजना है।
उन्होंने उद्योंगो को भरोसा दिलाया कि सरकार के दरवाजे नए विचारों के लिए हमेशा खुले हैं और वह रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की ऊर्जा और उद्यमशीलता की भावना का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए प्रतिबद्ध है।
इस अवसर पर विभिन्न नीति निर्माता, शिक्षाविद् और कॉर्पोरेट प्रमुख उपस्थित थे।