गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह द्वारा NHRC सेमिनार में दिए गए भाषण के मुख्य अंश

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गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह द्वारा NHRC सेमिनार में दिए गए भाषण के मुख्य अंश

जिन विषयों को लेकर NHRC/मानवाधिकार आयोग ने यह राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया है उसका संबंध एक प्रगतिशील भारत निर्माण से है और पूरे विश्व और मानव जगत के कल्याण से भी है।

सुशासन, विकास और मानवाधिकार के बीच एक गहरा संबंध है और इन तीनों विषयों के केन्द्र में अगर कोई है तो वह आम इंसान है। सुशासन और विकास के बारे में तो आज एक ‘सामान्य समझ’ लोगों में दिखाई देती है मगर मानवाधिकार के सवाल पर कई बार नजरिए बदल जाते हैं।

इसकी सबसे बड़ी वजह पूरब और पश्चिम के देशों की सोच और Approach का अन्तर है। अब हम Human Rights को यदि पश्चिमी नजरिए से देखे तो सबसे पहली बात हमारे सामने आती है तो वह है 1948 में United Nations General Assembly (UNGA) द्वारा पारित Universal Declaration of Human Rights (UDHR) जो Second World War के संघर्ष के बाद अस्तित्व में आया।

यह सही है कि आधुनिक Human Rights का आधार वर्ष 1215 के Magna Carta और American Revolution (1776) और French Revolution (1789) के विचारों से भी प्रेरित और प्रभावित है। मगर यदि हम बारीकी से देखे तो Western Human Rights जिसे हम Human Rights का Modern Thought भी कह सकते हैं वह संघर्ष और खून खराबे के लम्बे इतिहास से निकला है।

जबकि भारत की संस्कृति अधिकार को लेकर संघर्ष करने के बजाए एक ऐसी कल्याणकारी धारणा में विश्वास करती है जहां सबको अपने अपने कर्तव्य की चिंता है। कर्तव्य को भारतीय संस्कृति में धर्म के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भारतीय इतिहास में अधिकतर संघर्ष अधिकार को लेकर नहीं कर्तव्य/धर्म को लेकर हुए है।

भारतीय संस्कृति में अधिकारों को Isolation में नहीं देखा गया है बल्कि उसका उद्गम भी कर्तव्य में ही निहित है। इसलिए ही हमारे यहां माना गया है कि यदि सभी अपने कर्तव्यों का पालन करें तो सबके अधिकार सुरक्षित रहेंगे।

भारत हजारों साल पहले ही केवल Human और Animals के लिए ही नहीं बल्कि जड़ चेतन धरती आकाश सबके कल्याण और शक्ति के लिए एक Oral Universal Declaration दे चुका है। उसे हम शान्ति पाठ मंत्र के रूप में आज भी जपते हैं।

इसलिए हमें यह अन्तर समझना होगा कि पश्चिम Human Rights संघर्ष से निकले हैं जबकि भारत में Human Rights शान्ति और कल्याण की भावना में ही निहित है।

भारत के पुरातन ग्रंथों में मानवाधिकार और मानव कल्याण की ही नहीं बल्कि पूरे सृष्टि के कल्याण की चिंता की गई है। जहां तक सुशासन का सवाल है तो महाभारत का ‘शांति पर्व’ सुशासन का वर्णन करता है। उसमें राजा के दायित्व और कर्तव्य के साथ-साथ सुशासन के भी नियमों का उल्लेख किया गया है।

जिसे भारतीय परम्परा में ‘राजधर्म’ कहा गया है वह एक तरह से सुशासन और मानव कल्याण से ही जुड़ा हुआ है। यदि हम आधुनिक युग की बात करें तो हमारा संविधान वह दस्तावेज है जिसमें हर नागरिक के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ मानवीय अधिकारों का संरक्षण किया गया है।

आधुनिक भारत में संविधान ही वह ‘उद्गम स्थल’ है जहां से विकास, सुशासन और मानवाधिकार की त्रिवेणी निकलती है। दुर्भाग्य से आजादी के बाद इस ‘त्रिवेणी’ की पवित्रता पर जितना जोर दिया जाना चाहिए था उतना नहीं दिया गया। इसकी वजह से आजाद भारत में कई बार सुशासन, विकास और मानवाधिकार की धाराओं का बहाव बाधित और प्रदूषित हुआ है।

अगर मैं सुशासन की बात करूं तो उसमें सबसे बड़ा Role होता है Transparency, Accountability, Responsibility, Responsiveness और People’s Participation का। यानि सुशासन के लिए जरूरी है जवाबदेही, जिम्मेदारी, पारदर्शिता, तत्परता और जन-भागीदारी।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में जो सरकार केन्द्र में चल रही है उसने सुशासन को न केवल खुले दिल से अपनाया है बल्कि यह सरकार सुशासन ही ओढ़ती, पहनती और बिछाती है।

सुशासन का अर्थ सही निर्णय लेने से कहीं अधिक ऐसे Systems और Processes तैयार करना है जिनके माध्यम से सही निर्णय लेने में मदद मिल सके। मैं एक उदाहरण देना चाहूंगा। पिछली केन्द्र सरकार ने Coal Block Allocations की जो Policy बनाई उसमें Transparency न होने के कारण बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और धांधली हुई।

जब नई सरकार ने Coal Blocks Allocation की Transparent Policy बना कर E-Auction का प्रावधान किया तो जिन खदानों के आबंटन में 1.86 लाख करोड़ का नुकसान हो रहा था उन्हीं से दो लाख करोड़ की राशि भारत सरकार के खजाने में आने का रास्ता साफ हो गया है।

तात्पर्य यह है कि जब Systems में पारदर्शिता आती है तो सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और इससे सुशासन को बढ़ावा मिलता है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ Systems को मजबूत बनाना Good Governance का अहम हिस्सा है। केन्द्र में जब हमारी सरकार आई तो हमने सबसे पहला निर्णय ही कालेधन के खिलाफ SIT के गठन का लिया।

नोटबंदी जैसा साहसिक फैसला भी इस सरकार ने इसलिए लिया ताकि System में मौजूद illegal money, Black Money की Identification हो सके और उसकी Trail मिल सके। इसी तरह 28 सालों से ठण्डे बस्ते में पड़े बेनामी ट्रांजेक्शन एक्ट में संशोधन करके उसे लागू किया गया है ताकि पारदर्शिता के साथ-साथ सिस्टम को भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत बनाया जा सके।

कई ऐसे प्रशासनिक निर्णय भी इस सरकार ने लिए है जो Good Governance की दिशा में लिए गए सकारात्मक कदम हैं। उदाहरण के लिए केन्द्र सरकार ने C और D Class की नियुक्तियों में Interview को समाप्त करके न केवल System को Streamline किया है बल्कि उसमें होने वाली धांधली की संभावनाओं को समाप्त किया है।

इसी तरह से केन्द्र सरकार ने अब तक लगभग 1200 पुराने पड़ चुके कानूनों को समाप्त करके लोगों को बड़ी राहत दी है।

इस साल जुलाई से लागू किया गया GST भी सुशासन का एक जीता जागता नमूना है। GST लागू होने से देश में कई पुराने Taxes को न केवल खत्म किया गया है बल्कि एक Uniform और Efficient Tax System दिया गया है। इससे देश में Goods और Services के आदान-प्रदान में जो तेजी आएगी उसका लाभ इस देश के Economic System को मिलेगा।

सुशासन को Next Level पर ले जाने के लिए केन्द्र सरकार ने जो JAM Strategy बनाई है उसका जो क्रांतिकारी प्रभाव इस देश पर पड़ने वाला है उसका सही अनुमान अभी तक लोग लगा नहीं पा रहे हैं। कल्पना कीजिए जिस देश में करीब 1.20 अरब लोगों का बायोमेट्रिक डाटा Capture करके ‘आधार’ तैयार हो करीब 50 करोड़ स्मार्ट फोन्स हों। तीस करोड़ जनधन बैंक अकाउंट हो वहां जब DBT के माध्यम से सीधे लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंचने लगेगा तो कितना क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा।

मैं मानता हूं कि इक्कीसवीं शताब्दी में भारत विश्व की ‘Digital Democracy’ का सर्वश्रेष्ठ माडल बन कर उभरेगा।

सुशासन की चाबी से ही भारत की विकास की संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। सुशासन के माध्यम से हम योजनाओं का लाभ उन लोगों तक ले जा रहे हैं जिनके नाम पर योजनाएं तो बनती थी मगर उन योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचता ही नहीं था। हमारी सरकार का जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ का Commitment है वह जन भागीदारी के रास्तों से पूरा किया जा रहा है।

जब सुशासन, विकास के साथ जनभागीदारी का नाम जुड़ जाता है तो मानवाधिकारों की भी चिंता उससे जुड़ जाती है। केन्द्र सरकार ने अपनी विकास और सुशासन की योजनाओं में सर्वाधिक महत्व दिया है लोगों की Dignity को और उनके सम्मान को।

हमारी सरकार का लक्ष्य है ‘Development with Dignity’ और मैं मानता हूं कि हमारे इस लक्ष्य में ही सारे मानवाधिकार सुरक्षित और संरक्षित है।

मैं आप सबका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की ओर। इस देश में गरीब परिवारों की माताओं-बहनों को खाना बनाते समय जो कष्ट होता था उसको मिटाने के लिए देश के पांच करोड़ गरीब परिवार की महिलाओं को रसोई गैस कनेक्शन देने की योजना बनाई। उन गरीब माताओं-बहनों को भी विकास की योजना से जोड़ा भर नहीं गया बल्कि उनको एक Dignified Life भी इस सरकार ने प्रदान किया।

जब 2014 में केन्द्र में नई सरकार आई थी तो देश के 18000 से अधिक गांवों में बिजली की रोशनी नही थी। आज करीब 15000 गांवों में बिजली का उजाला पहुंचा कर केन्द्र सरकार ने उन गांव वासियों की जिंदगी में नई चमक पैदा की है। मई 2018 तक देश का एक भी गांव ऐसा नहीं बचेगा जहां बिजली का बल्ब न जलता हो। अगर मैं कहूं कि हमारी सरकार हर गांव को बिजली का अधिकार दे रही है तो अतिश्योक्ति नही है।

आज देश आजादी के सत्तर साल पूरे कर चुका है। हमारे प्रधानमंत्री ने संकल्प लिया है कि 2022 आते-आते देश के हर परिवार के सिर पर एक छत होगी। मनुष्य की रोटी, कपड़ा और मकान की तीन बुनियादी जरूरतें मानी गई है और इन्हें मानवाधिकारों की श्रेणी में माना जाता है क्योंकि इन तीनों से मनुष्य को एक Dignified Life प्राप्त होती है।

भारत के संसाधनों पर सबसे पहला हक भारतीयों का है। इसलिए हर भारतीय के इस मानवाधिकार का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है। कई बार मानवाधिकारेां के नाम पर ऐसी चीजों को बढ़ावा दिया जाता है जिससे भारतीय और भारतीयता दोनों ही खतरे में पड़ने का अंदेशा पैदा हो जाता है। दूसरों के मानवाधिकारों की चिंता करने से पहले हमें भारतीय नागरिकों के मनवाधिकारों और हितों की चिंता करनी है और उनका संरक्षण करना है।

आजकल मानवाधिकारों की चर्चा भारत में फिर से चल पड़ी है। कुछ लोग भारत में अवैध तरीके से घुस आए रोहिंग्या समुदाय के लोगों के मानवाधिकारों की बात कर रहे है। गृह मंत्रालय ने Affidavit देकर अपना नजरिया स्पष्ट कर दिया है कि इन Illegal Immigrants को Deport किया जाएगा। म्यानमार से भारत में घुस आए ये रोहिंग्या Refugees नहीं है। Refugee Status प्राप्त करने लिए एक प्रक्रिया होती है और इनमें से कोई भी उस Procedure के तहत नहीं आया है।

रोहिंग्या लोगों को भारत से Deport करके भारत किसी International Law का भी उल्लंघन नहीं करेगा क्योंकि वह 1951 के UN Refugee Convention का Signatory भी नही है।

लोग International Law के ‘Non Refoulement’ principle का जिक्र करके रोहिंग्या के Deportation को गलत बताने की कोशिश कर रहे है। मगर उनको भी यह मैं बताना चाहूंगा कि ‘Non-Refoulement’ का सिद्धान्त उन पर लागू होता है जो ‘शरणागत’ होते हैं। किसी भी रोहिंग्या को भारत में न तो Asylum प्राप्त है और न ही किसी ने इसकी कोई Applications दी है। इसलिए Human Rights का हवाला देकर Illegal Immigrants को Refugee बताने की गलती नही की जानी चाहिए।

कोई भी Sovereign देश इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह Illegal Immigrants के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। रोहिंग्या समुदाय के Illegal Immigration का एक पक्ष National Security से भी जुड़ा हुआ है जिसकी अनदेखी हमारी सरकार नही कर सकती।

इन सारी बातों के बावजूद भारत सरकार ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों को बांग्लादेश में Humanitarian Aid प्रदान की है। बांग्लादेश भी रोहिंग्या लोगों के Illegal Immigration से प्रभावित है।

दो दिन पहले म्यानमार की काऊंसिलर सुश्री सूची ने रोहिंग्या लोगों को वापस लेने के बारे में जो बयान दिया है वह उम्मीद जगाता है।

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