Hindi Text of RM’s speech at ‘Sardar Gatha’ in Vadodara, Gujarat.
आज यहाँ गुजरात के वडोदरा जिले में सरदार वल्लभभाई पटेल के 150 वीं जयंती वर्ष के अंतर्गत आयोजित राष्ट्रीय पदयात्रा – ‘यूनिटी मार्च’ के क्रम में आज की इस सरदार सभा में भाग लेते हुए, जहाँ मुझे हर्ष की अनुभूति हो रही है, वहीं एक गौरव के भाव का भी मैं अनुभव कर रहा हूँ।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि आज हम जिस महापुरुष का 150 वीं जयंती वर्ष मना रहे हैं, वे भारत को एकता के सूत्र में पिरोने वाले एक ऐसे नायक थे, जिन्हें भारत को आज़ाद कराने में उनकी भूमिका और उनके निर्णायक नेतृत्व के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।
जो काम उन्होंने किया है, वह कितना दुष्कर था, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन समस्याओं के समाधान को ज़िन्मेदारी उन्हें नहीं दी गई, उनका समाधान करने में दशकों लगे हैं और कुछ समस्याओं का समाधान तो देश आज तक ढूढ़ रहा है।
इसलिए अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले मैं गुजरात की इस पवित्र भूमि पर खड़े होकर सरदार पटेल को स्मरण करते हुए नमन करता हूँ। उनकी जयंती के 150 वर्ष के साथ कई सुखद संयोग जुड़े हुए हैं।
सरदार पटेल को जयंती के साथ-साथ इस साल भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के भी डेढ़ सौ साल पूरे होने पर देश भर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। साथ ही इस साल भारतीय संविधान को भी लागू हुए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं।
मैं बधाई देता हूँ खेलकूद एवं युवा विकास मंत्री श्री मनसुख मांडविया जी को, जिन्होंने सरदार पटेल के 150 वर्ष में युवाओं द्वारा राष्ट्रीय पदयात्रा निकालने की योजना बनाई। जैसा मैं देख पा रहा हूँ, यह आयोजन काफ़ी सफल साबित हो रहा है। इस काम का महत्व इसलिए और भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि देश का युवा पदयात्रा करके समाज के बीच जा रहा है और सरदार पटेल की जो विरासत है, उससे उनका परिचय करा रहा है।
इसमें पदयात्रा में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों का भी मैं अभिवादन करता हूं। आपकी यह राष्ट्र भक्ति और भारत भक्ति ही वो ऊर्जा है, जो भारत को एक साथ जोड़ कर आगे ले जा रही है।
यह पदयात्रा इस बात का सबूत है कि आज भारत के वर्तमान ने अपने इतिहास के स्तंभ कहे जाने वाले सरदार पटेल के काम को जन-जन तक पहुँचाने की जिम्मेदारी उठायी है।
मेरे युवा साथियों, सरदार साहब का सामर्थ्य तब भारत के काम आया था, जब भारत माता आज़ाद होने के बावजूद साढ़े पांच सौ से ज्यादा रियासतों में विभाजित थी। उस समय विश्व के बड़े बड़े देशों को इस बात की आशंका थी कि भारत अपनी आजादी संभाल पायेगा या टूट कर बिखर जाएगा।
निराशा के उस दौर में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जो असरदार भूमिका निभाई उसका ही परिणाम है कि आज भारत एक है। सरदार पटेल में चाणक्य की कूटनीतिक और शिवाजी महाराज के शौर्य का समावेश था। जन्होंने जिस तरीके से जूनागढ़, निज़ामशाही और देश की कुछ अन्य रियासतों का भारत में विलय, वह काम केवल उनके जैसा व्यक्ति ही कर सकता था।
साथियों, मैं मानता हूँ कि सरदार पटेल की विरासत बहुत बड़ी है। आज का मजबूत और आत्मविश्वास से भरा भारत उनकी विरासत है। “एकजुट और अखंड भारत” सरदार पटेल की विरासत है।
अगर हमारे पास सक्षम प्रशासन और मजबूत सिविल सर्विस हैं तो यह भी सरदार पटेल की विरासत है। अगर किसान हमारे राष्ट्रीय चिंतन के केंद्र में हैं तो यह भी सरदार पटेल की विरासत है।
अगर सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, शुचिता और कर्तव्यबोध को महत्व दिया जाता है तो यह भी सरदार पटेल की विरासत है। और यदि ‘राष्ट्र हित’ को ‘व्यक्तिगत हित’ से ऊपर रखने की संस्कृति आज भी जीवित है तो यह भी सरदार पटेल से जुड़ी हुई विरासत ही है।
सरदार पटेल ने एक बार कहा था, “मैं नेता नहीं हूँ, मैं तो एक सैनिक हूँ।” और यह बात उनके जीवन पर पूरी तरह खरी उतरी है। उन्होंने आजीवन एक सैनिक की तरह ही काम किया। बिना विचलित हुए एक सैनिक की तरह उन्होंने अपने कर्तव्यों को निभाया। बड़े अनुशासन के साथ अपना जीवन जिया। देश को सबसे ऊपर रखा।
चाहे वह 1918 का खेड़ा सत्याग्रह हो या 1928 का बारडोली सत्याग्रह, सभी में उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
बारडोली सत्याग्रह में सरदार पटेल ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगान बढ़ाने का उन्होंने जमकर विरोध किया। इसके खिलाफ आंदोलन चलाया।
सरदार पटेल के इसी आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार मजबूर हुई और किसानों की मांगों को उन्होंने माना। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होनेके बाद, वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की थी।
हम लोग सुनते आए हैं कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पहली बार ‘पूर्ण स्वराज’ की माँग 1929 के कांग्रस के ‘लाहौर अधिवेशन’ के दौरान पारित हुई थी, मगर कम लोग यह बात जानते हैं कि 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में, सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में पहली बार ‘पूर्ण स्वराज्य’ को परिभाषित किया गया था।
इसी सत्र में राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम पर एक रेजोल्यूशन पास किया गया था। इसी में मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव को अपनाया गया था। सत्र में ‘निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा’ के प्रस्ताव को भी अपनाया गया था। यह सारे प्रस्ताव ही बाद में शिक्षा के अधिकार को लागू करने में प्रेरणा बने।
वर्ष 1935 में सरदार पटेल ने ‘किसान सभा’ की अध्यक्षता की और ज़मींदारी को समाप्त करने का प्रस्ताव पास कराया। सरदार पटेल ने ‘भूमि सुधार’ के लिए भी बहुत काम किए।
काँग्रेस के एक बड़े नेता ने एक बार कहा था कि गांधीजी ने जो सोचा, उसे सरदार पटेल ने सच किया और जमीन पर लागू किया। यानि गांधी जी के सत्याग्रह को सफल बनाने का श्रेय भी सरदार पटेल को दिया जा सकता है।
मेरे युवा साथियों, स्वतंत्रता के बाद उन्होंने एक सच्चे सैनिक की तरह राष्ट्र की एकता और संप्रभुता की रक्षा की। 560 से अधिक रियासतों को भारत में जोड़ा।
अंग्रेजी सेना के एक बड़े सैन्य अधिकारी ने सरदार पटेल के बारे में कहा था कि उनकी उपस्थिति और आचरण में कुछ ऐसी चट्टान जैसी बात थी, जिससे असाधारण विश्वास पैदा होता था।
आज अगर भारत एक है, एक झंडे के नीचे साँस लेता है, तो इसके पीछे सबसे बड़ा योगदान सरदार पटेल का है।
हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर के विलय में बहुत समस्याएं आयीं थी। इतिहास गवाह है कि कैसे सरदार पटेल के मजबूत इरादों और सशक्त नेतृत्व ने हैदराबाद और जूनागढ़ को भारत में विलय करने पर मजबूर कर दिया।
अगर कश्मीर के विलय के समय भी सरदार पटेल की सभी बातें मान ली गई होती तो, इतने लंबे समय तक भारत को ‘कश्मीर में समस्या’ का सामना नहीं करना पड़ता।
सरदार पटेल ने हमेशा बातचीत करके समस्याओं का समाधान निकालने का प्रयास किया। लेकिन जब रास्ते बंद हो गए, तब उन्होंने कठोर रास्ता भी चुना। हैदराबाद के विलय के लिए भी अंत में कठोर रास्ता चुनना पड़ा था।
हमारी सरकार ने भी इसी मूल्य को आदर्श बनाया है। हमने दुनिया को बता दिया कि ‘शांति और सद्भावना’ की भाषा नहीं समझने वाले लोगों को हम माकूल जवाब देना जानते हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में, सरदार पटेल के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के सपने को ओर भी मजबूत किया गया है। हमने धारा 370 को समाप्त किया। कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ा।
जिस कमजोरी पर दुनिया हमें उस समय ताने दे रही थी, उसी को ताकत बनाते हुए सरदार पटेल ने देश को रास्ता दिखाया था। उसी रास्ते पर चलते हुए संशय में घिरा हुआ भारत, आज दुनिया से अपनी शर्तों पर संवाद कर रहा है। दुनिया की बड़ी आर्थिक और सामरिक शक्ति बनने की तरफ हिन्दुस्तान आगे बढ़ रहा है। यह अगर संभव हो पाया है, तो उसके पीछे साधारण किसान परिवार में इसी गुजरात को धरती पर पैदा हुए, सरदार पटेल का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
चाहे जितना दबाव क्यों न हो, कितने ही मतभेद क्यों न हो, प्रशासन में गवर्नेंस को कैसे स्थापित किया जाता है, यह सरदार पटेल ने करके दिखाया। अगर सरदार साहब का संकल्प न होता, तो सिविल सेवा जैसे प्रशासनिक ढांचा खड़े करने में भारत को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता।
मेरे युवा साथियों, 21 अप्रैल, 1947 को अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाएँ के प्रोबेशनर्स को सम्बोधित करते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा था- “अब तक जो आईसीएस यानि इंडियन सिविल सर्विस थी, उसमें न तो कुछ इंडियन था, न वो सिविल थी और न ही उसमें सर्विस की कोई भावना थी।”
उन्होंने उस समय युवाओं से स्थिति को बदलने का आह्वान किया। उन्होंने नौजवानों से कहा था कि उन्हें पूरी पारदर्शिता के साथ, पूरी ईमानदारी के साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा का गौरव बढ़ाना है। उसे भारत के नव-निर्माण के लिए स्थापित करना है। यह सरदार की ही प्रेरणा थी कि भारत प्रशासनिक सेवा की तुलना स्टील फ्रेम से की गई।
सरदार पटेल का पूरा जीवन शुचिता और ईमानदारी का प्रतीक था। वे भ्रष्टाचार के प्रति बहुत सख्त थे। उन्होंने साफ कहा था कि किसी भी मंत्री के खिलाफ शिकायत आए, तो उसकी जाँच होनी चाहिए और यदि आरोप सही पाया गया, तो मंत्री को पद छोड़ना होगा। उन्होंने अपने साथियों को भी इसी कसौटी पर कसा।
सरदार पटेल के इन्ही उच्च आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए, हमने संविधान के 130वें संशोधन बिल को संसद में पारित करने का मन बनाया है, जिसके तहत सर्वोच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नैतिकता के आचरण की अपेक्षा है। यानि पद पर बैठे किसी व्यक्ति को तीस दिन से अधिक जेल में रहना पड़े, तो उसे अपने पद से त्यागपत्र देना होगा। मगर इस देश में कुछ लोग हैं, जो इसका भी विरोध कर रहे हैं। हमें ऐसे लोगों को ही उजागर करना है, जो देश की राजनीति को गंदा कर रहे हैं।
सरदार पटेल ने हमेशा ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना से कार्य किया। उन्हें बिल्कुल भी सत्ता का मोह नहीं था। उन्होंने गांधीजी को वचन दिया था कि वे पंडित नेहरू के साथ मिलकर काम करेंगे। नेहरू जी के साथ वैचारिक मतभेद होते हुए भी, सरदार पटेल ने उनके साथ मिलकर कार्य किया क्योंकि वे ‘देश हित’ को प्रथम रखते थे।
1946 में कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाना था। 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने ‘सरदार पटेल’ का नाम प्रस्तावित किया था। लेकिन जब गांधी जी ने सरदार पटेल से नामांकन वापिस लेने के लिए कहा, तो उन्होंने उस पर तुरंत अपनी सहमति दे दी।
साल 1929, 1936, 1939 के बाद ये चौथा मौका था, जब सरदार पटेल ने गाँधीजी के कहने पर अध्यक्ष पद से अपना नामांकन वापस लिया था। यह है उनकी विरासत – व्यक्तिगत हित और महत्वाकांक्षा के ऊपर शीर्ष नेतृत्व के फैसले और देशहित को रखना।
अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि सरदार पटेल की बहुत उम्र हो गई थी, इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया जा सकता था। यह सरासर मूर्खता पूर्ण बात है।
उनके पास इतनी ताकत और इतनी ऊर्जा थी कि वे ‘आजाद भारत के प्रधानमंत्री’ बन सकते थे। लेकिन उन्हें किसी पद की कोई लालसा नहीं थी, क्योंकि उन्होंने हमेशा देश को सर्वोपरि रखा।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमने सरदार पटेल के विज़न को आगे बढ़ाया है। हमने देश हित में कार्य किया है। इसी लिए 2014 से पहले, जहां हमारा देश अर्थव्यवस्था के साइज़ की दृष्टि से पूरी दुनिया में 11वे स्थान पर था, आज वह चौथे स्थान पर आ गया है। और टॉप 3 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है।
अभी जो नई तिमाही के आंकड़े आए हैं, उसके मुताबिक भारत की अर्थव्यस्था 8.2 फीसदी की तेजी से बढ़ रही है, जो पूरे विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक है।
2014 के बाद से हमने ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ के लक्ष्य के साथ कार्य किया है। सीधा-सीधा कहा जाए, तो हमने यह सुनिश्चित किया कि ‘काम ज्यादा हो, बात कम’। इससे हमारे देशवासियों का जीवन आसान हुआ है।
सरदार पटेल ने ‘आज़ाद भारत’ को राजनीतिक और भौगोलिक एकता के सूत्र में पिरोया था। हम सरदार पटेल की इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमारी सरकार भारत को सांस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और आर्थिक एकता के सूत्र में बांध रही है। हम “एक भारत – श्रेष्ठ भारत” के मूल्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं। वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के निर्माण के लिए काम कर रहे हैं।
आज जब हम सरदार पटेल को याद करते हैं, तो हमें उनकी सादगी और त्याग अपने देश के लोगों के जीवन को बेहतर करने की प्रेरणा देता है। इसी प्रेरणा के साथ हमने प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, जन-धन योजना, आयुष्मान भारत योजना जैसी जनकल्याण की योजनाएं शुरू की हैं। जिससे लोगों का जीवन सुगम हुआ है। और समावेशिता भी बढ़ी है।
सरदार पटेल अत्यंत उदार व्यक्ति थे। वे असल में पंथ निरपेक्ष थे। वे तुष्टीकरण में विश्वास नहीं रखते थे। जब पंडित नेहरू ने ‘बाबरी मस्जिद’ के मुद्दे पर सरकारी खजाने से पैसा खर्च करने की बात छेड़ी, तो सरदार पटेल ने तुरंत टोक दिया कि सरकार मस्जिद बनाने के लिए एक पैसा भी नहीं दे सकती।
फिर नेहरू जी ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का सवाल उठाया। सरदार ने शांत, पर दृढ़ स्वर में स्पष्ट किया कि सोमनाथ का मामला बिल्कुल अलग है; वहाँ 30 लाख रुपये जनता ने दान दिए हैं, एक ट्रस्ट बना है। इस काम में सरकार का एक कौड़ी भी खर्च नहीं हो रहा। इसी तरह, अभी अयोध्या में भी जो भव्य ‘राम मंदिर’ का निर्माण हुआ है, उसमें भी जनता द्वारा दिया गया दान ही है।
यही पंथ-निरपेक्षता की असली परिभाषा थी, जिसे सरदार पटेल ने व्यवहार में दिखाया। उनका मत साफ था तुष्टीकरण नहीं, सिर्फ और सिर्फ ‘राष्ट्र हित’। उन्होंने संविधान निर्माण में अग्रणी भूमिका निभायी। उन्होंने सेपरेट इलेक्टोरेट का विरोध किया। इससे भारत की एकता और अधिक बढ़ी।
साथियों, भारत के पड़ोसी देशों को देखते हुए सरदार पटेल ने ‘सेना के मॉडर्नाइजेशन’ पर जोर दिया था। आर्मी की जरूरत की चीजों को अपने ही देश में बनाने पर जोर दिया था। हथियार और गोला-बारूद के ‘स्वदेशी प्रोडक्शन’ पर जोर दिया था।
सरदार पटेल ने कहा था- “आधुनिक सेना तीर-कमान से लड़ाई करने वाली सेना नहीं है। आधुनिक सेना को बहुत सारी चीज़ें चाहियें, जो केवल मशीन से ही बनायी जा सकती हैं। और इसके लिए हमारे देश में घरेलू उद्योग होने चाहिए और उन्हें विकसित किया जाना चाहिए।”
शायद वे भारत के पहले राजनेता थे, जिन्होंने आर्म्स एंड अम्यूनिशन के उत्पादन के लिए अपने कारखानों की स्थापना करने पर जोर दिया था।
भारत का रक्षा उत्पादन “मेक इन इंडिया” पहल के शुभारंभ के बाद से काफ़ी तेज़ गति से बढ़ा है। आज भारत न केवल रक्षा उत्पाद में ‘आत्मनिर्भर’ बन रहा है बल्कि ‘डिफेंस एक्सपोर्ट’ करने वाला देश बन रहा है।
पिछले 11 वर्षों में हमारा ‘डिफेंस एक्सपोर्ट’ करीब 34 गुना बढ़ गया है। भारत का लक्ष्य साल 2029 तक, 3 लाख करोड़ रुपए का रक्षा उत्पादन व 50,000 करोड़ रुपए का रक्षा निर्यात करना है।
भारत में सहकारिता या कोऑपरेटिव्स के प्रेरणास्रोत सरदार वल्लभ भाई पटेल ही थे। सरदार पटेल ने गुजरात के दुग्ध उत्पादक किसानों को कोऑपरेटिव्स बनाने की सलाह दी थी। इसी से बाद में अमूल का जन्म हुआ।
आज प्रधानमंत्री मोदी जी ने कोऑपरेटिव्स की भावना को आगे बढ़ाया है। कोऑपरेटिव्स को सही दिशा और बल मिले इसके लिए ‘सहकारिता मंत्रालय’ का गठन किया गया है।
एक तरफ़ हम लोग सरदार पटेल को विरासत को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं कुछ लोगों ने सरदार पटेल की विरासत को छिपाने और मिटाने का हमेशा काम किया है।
सरदार पटेल के देहांत के बाद जनता ने श्रद्धापूर्वक एक स्मारक के लिए धन एकत्र किया था। लेकिन जब यह बात नेहरू जी तक पहुंची, तब उन्होंने यह कहा कि सरदार पटेल तो किसानों के नेता थे, इसलिए यह धन गाँवों में कुएँ और सड़क बनाने में खर्च कर दिया जाए।
सरदार पटेल आजीवन किसानों के लिए कार्य करते रहे। यह बात किसी से छुपी नहीं है। लेकिन कुएँ और सड़क बनाने का काम तो सरकार का होता ही है। उसके लिए स्मारक के पैसे का इस्तेमाल करने का सुझाव बेतुका लगता है।
इससे सिर्फ एक बात साफ होती है कि उस समय की सरकार हर कीमत पर सरदार पटेल की महान विरासत को दबाने की कोशिश कर रही थी।
नेहरू जी ने स्वयं को ही ‘भारत रत्न’ दिया। लेकिन सरदार पटेल का स्मारक नहीं बनाया।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी का निर्माण कराकर सरदार पटेल को उचित सम्मान देने का कार्य किया है। इसके लिए मोदी जी की जितनी सराहना को जाये कम है।
साथियों, इस देश में करोड़ों भारतीयों के मन में एक ही भावना थी कि जिस महापुरूष ने देश को एक करने के लिए इतना बड़ा पुरूषार्थ किया है, उनको वो सम्मान अवश्य मिलना चाहिए, जिसके वो हमेशा से हकदार रहे हैं। मुझे इस बात गर्व है कि प्रधानमंत्री मोदीजी ने देश की इस भावना का सम्मान करके केवड़िया में भव्य मूर्ति और स्मारक दोनों की स्थापना की है।
मेरे युवा साथियों, आज देश के लिए सोचने वाले आप जैसे युवाओं की शक्ति हमारे पास है। आपके हाथों में ही ‘विकसित भारत’ के स्वप्न को साकार करने का क्षमता और सामर्थ्य है। देश की एकता, अखंडता और सार्वभौमिकता को बनाए रखना, एक ऐसा दायित्व है, जो सरदार वल्लभ भाई पटेल, ‘भारत की भावी पीढ़ी’ को सौंप करके गए हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश और समाज को एकजुट रखें।
हमें यह प्रण करना है कि हम अपने सरदार के संस्कारों को पूरी निष्ठा और पवित्रता के साथ स्वयं के जीवन में तो उतारेंगे ही, साथ-साथ भावी पीढ़ियों को भी तैयार करेंगे। यही सरदार पटेल की विरासत के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
हमारे साथ बोलिए – “भारत माता की जय।”
आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद।