अल्लूरी सीताराम राजू कोई सामान्य warrior नहीं थे। उनके भीतर वह आग थी, जो centuries के संघर्षों को दिशा देती है: रक्षा मंत्री

Text of RM’s speech on the 128th Jayanti of Shri Alluri Sitaram Raju in Hyderabad

 

साथियों, आज हम यहां सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि देने के लिए नहीं, बल्कि हम सभी के भीतर मौजूद मान, सम्मान, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की भावना को फिर से जगाने के लिए एकत्रित हुए हैं। मैं हमेशा मानता हूँ कि यह मनुष्य के भीतर की सबसे बलवती भावना होती है।

साथियों, आज के इस खास अवसर पर हम सभी महान अल्लूरी सीताराम राजू जी की 128वीं जयंती और राम्पा revolution के 103 वर्ष पूरे होने पर, हम ‘मन्यम पीरुडु’, यानी जंगलों के वीर को नमन करते हैं, जिनका साहस और बलिदान, भारत का स्वाभिमान और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की पहचान बन गया।

अल्लूरी सीताराम राजू के रूप में आंध्र प्रदेश ने भारत को एक ऐसा महान warrior-saint दिया, जिसकी विरासत आज भी हमारे जंगलों की हवाओं में, हमारे इतिहास की किताबों के पन्नों में और हमारे राष्ट्रीय चेतना में गूंजती रहती है।

साथियों, हम जब भी उनके जीवन के बारे में सोचते हैं, तो हमारे मन में केवल एक warrior की image नहीं आती, बल्कि एक ऐसे Leader की तस्वीर आती है, जिसने अपनी जनता के लिए सब कुछ sacrifice कर दिया। उनके विचार, उनका दृष्टिकोण और उनकी वीरता, आज भी हमें यह याद दिलाती है, कि अन्याय के खिलाफ खड़ा होना नैतिक दायित्व है।

कभी-कभी मैं सोचता हूँ, कि आज जब हम modern India की बात करते हैं, जब एक नए भारत की बात करते हैं, तो इस भारत में New technology, Infrastructure development और Digital revolution जैसी चीज़ें तो ज़रूरी हैं ही। यह सारी चीज़ें तो विकास के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन जो चीज भारत को भारत बनाए रखती है, वह है हमारी सांस्कृतिक आत्मा। वह हमारी महान विभूतियों के व्यक्तित्व एवं कर्तव्य से आती है, और ऐसे ही एक महान विभूति थे, अल्लूरी सीताराम राजू।

उनका नाम आते ही न सिर्फ़ तेलंगाना या आंध्र प्रदेश, बल्कि पूरे भारत की छाती चौड़ी हो जाती है। क्योंकि वह एक freedom fighter होने के साथ-साथ अपने आप में एक आंदोलन थे। एक ऐसा आन्दोलन, जो जंगलों से उठा और उस समय दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी। उन्होंने बताया कि जब हम सच के साथ खड़े होते हैं तो सामने कोई भी हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

अल्लूरी सीताराम राजू कोई सामान्य warrior नहीं थे। उनके भीतर वह आग थी, जो centuries के संघर्षों को दिशा देती है। केवल 27 वर्ष की आयु में, उन्होंने वह कर दिखाया जो बड़े-बड़े सेनापति भी नहीं कर पाए। उन्होंने आदिवासी समाज को न केवल British Government के ख़िलाफ़ खड़ा किया, बल्कि उनमें pride, courage और comradery की भावना भी जागृत की। जंगलों में उनकी गुरिल्ला warfare ने अंग्रेज़ों को हैरान कर दिया। उनके पास न तो बड़ी सेना थी, न ही modern weapons, लेकिन उनके पास था एक mission जो किसी भी तोप, तलवार या हथियार से बड़ा था।

उन्होंने जिस तरह से tribal youth को जगाया, उनका आत्मबल बढ़ाया, और अंग्रेज़ों की oppressive policies के खिलाफ एक ऐसा जन आन्दोलन खड़ा किया, उसकी गूँज पूरे देश में सुनाई दी।

शुरुआत में वे non-violent तरीके से लोगों को न्याय की राह पर ले जाने के पक्षधर थे। उन्होंने आदिवासियों से कहा कि वे local पंचायतों से न्याय मांगे और British courts को ठुकरा दें। लेकिन जब अत्याचार बढ़ता गया और शांतिपूर्ण विरोध ineffective हो गया, तब उन्होंने हथियार उठाए, नफरत से नहीं, मजबूरी में। उनका निर्णय deep moral understanding से प्रेरित था। उन्हें पता था कि कब धैर्य रखना धर्म है, और कब कर्म करना कर्तव्य है।

साथियों, आंध्र प्रदेश में या एक तरह से देखें तो पूरे भारत में tribal communities को British rule के दौरान बहुत exploitation झेलना पड़ा। Tribals की जमीन पर अवैध कब्ज़ा हुआ। Tribals की खेती का जो traditional तरीका था, उस Podu agriculture पर restrictions लगे, जंगलों से उनकी livelihood छीनी गई।

ऐसे में अल्लूरी गारू ने लोगों को बताया कि जीवन सिर्फ जीने के लिए नहीं जिया जाना चाहिए बल्कि dignity  के साथ जिया जाना चाहिए। उन्होंने tribal rights की बात की।  और आज मुझे यह कहते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है, कि tribal development को लेकर उनके जो विचार थे, माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में हम उसको ground level पर लाने का काम कर रहे हैं।

हम उनकी thinking  को आगे बढ़ाते हुए tribal areas में education, health, infrastructure, tourism, और cultural identity जैसे अनेकों aspects पर ध्यान दे रहे हैं।

आज देश उनके Birthplace, Pandrangi   को restore होते हुए देख रहा है। Chintapalli जो उनकी कर्मभूमि थी, वहाँ के police station का national heritage के रूप में renovation हो रहा है। अब इन क्षेत्रों में tourists आएँगे, बच्चों को field trips के लिए एक purpose  मिलेगा। और उन बच्चों को भी गर्व होगा, उनके अंदर भी देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना आएगी।

यदि हम शिक्षा की बात करें तो आपने देखा होगा कि कैसे tribal areas में हमारी govt. ने schools के standard improve किए हैं। Hostels बनवाए गए हैं, ताकि बच्चियों को पढ़ने के लिए दूर न जाना पड़े। अभी कुछ महीने पहले हमने देखा कि कैसे आंध्र प्रदेश की इसी धरती पर 20,000 से भी अधिक tribal students, जिनमें majority लड़कियाँ थीं, उन्होंने एक साथ 108 सूर्य नमस्कार का record बनाया। वो 108 सूर्य नमस्कार, सिर्फ एक physical activity नहीं है, बल्कि वह उनके आत्मबल का symbol है। इस प्रकार का record इसी भूमि से बन सकता है, क्योंकि यह अल्लूरी सीताराम राजू जी की प्रेरणा और उनके सीख की धरती है।

अल्लूरी जी ने पूरे जीवन tribals के उत्थान के लिए काम किया। हालांकि यह एक राष्ट्र के रूप में हम सबके लिए मुश्किल भरा समय था, जब tribal areas को नक्सलवाद के जहर का सामना करना पड़ा। लेकिन अब बेहद तेजी से हम उस जहर से भी मुक्त हो रहे हैं। आज देश में नक्सलवाद की स्थिति यह है कि वह अब पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदीजी के नेतृत्व में सिर्फ 5-6 जिलों तक सिमट कर रह गया है। और वहां भी उनका आतंक बहुत दिनों तक नहीं रहेगा। गृहमंत्री श्री अमित शाह ने कहा है कि 31 मार्च 2026 से पहले पूरा देश नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा और अल्लूरी सीताराम राजू जी ने जिस tribal development का सपना देखा था, उस सपने को साकार करेंगे।

साथियों, आप सब ने भी देखा होगा, कि जो क्षेत्र पहले नक्सलियों के आतंक से काँपते थे, आज वहाँ सड़कें, स्कूल, और अस्पताल और अन्य नागरिक सुविधाएं पहुँच चुकी हैं। जो क्षेत्र कभी ‘Naxal hub’ हुआ करते थे, आज वो ‘Educational hub’ बन रहे हैं। आज वहाँ बच्चे mobile phones चला रहे हैं, computer चला रहे हैं, बड़े सपने देख रहे हैं। Red corridor के नाम से विख्यात भारत के वह क्षेत्र अब growth corridors में बदल रहे हैं।

आप सोचिये, कि tribal इलाकों में पहले नेटवर्क भी नहीं होता था, ना मोबाइल, ना इंटरनेट। आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी, अनेक क्षेत्रो में हमारे tribals, digital दुनिया से कटे हुए थे। Facebook, Instagram तो बहुत दूर की बात है, internet तक की बेसिक सुविधा भी उनके पास नहीं थी, क्योंकि उन इलाकों में mobile towers भी नहीं थे। लेकिन अब , ये सब कुछ हो रहा है।  हमारी सरकार ने उन इलाकों में 10 हजार से भी ज्यादा mobile towers को स्थापित करने की योजना बनाई, जिनमें से लगभग 8000 टावर्स चालू हो चुके हैं। 1 दिसंबर 2025 तक हर tribal क्षेत्र में mobile network पहुंच चुका होगा।

नक्सल प्रभावित tribal क्षेत्रों में ITI और skill development centres खोले गए। साथ ही, कई Eklavya Model residential schools शुरू किए गए। इनसे शिक्षा और रोज़गार का ऐसा Bridge बना, जिससे हज़ारों youth mainstream society से जुड़ रहे हैं। यही तो अल्लूरी जी का सपना था कि tribal area देश के बाकी क्षेत्रों से और mainstream development से जुड़े। और अब उनका सपना साकार हो रहा है।

लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जब हम विकास की बात करते हैं, तो environment की रक्षा भी उतनी ही जरूरी है। अल्लूरी सीताराम राजू जी जंगलों में पले-बढ़े। जंगलों के लिए और उसमें रहने वाले लोगों के लिए उन्होंने काम किया। उन्होंने हमें सिखाया कि nature के साथ संतुलन बनाकर जीना ही असली आज़ादी है। इसलिए हमें अपने tribal areas में sustainable development model को भी अपनाना होगा। जैसे bamboo-based industries, non-timber forest produce का value addition, और renewable energy projects develop किये जाएँ, जो environment को नुकसान भी न पहुंचाए और रोजगार भी दें।

साथियों, जब हम अल्लूरी सीताराम राजू के जीवन को देखते हैं, तो हम पाते हैं कि उन्होंने जिस समय British Empire से लड़ाई की थी, वो समय आसान नहीं था। न शिक्षा की व्यवस्था थी, न resources की कोई guarantee थी। हर कदम पर भय था पर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने आदिवासी समाज को संगठित किया, उनमें self-confidence और self-respect का संचार किया।

साथियों, जैसा कि मैंने प्रारंभ में ही कहा, श्री अल्लुरी गारू ने जीवन की राह उनकी एक Deep Moral Understanding सें गाईडेड/प्रेरित थी। वे इस बात की बहुत अच्छी समझ रखते थे कि कब धैर्य रखना है, कब धर्म का पालन करना है और कब कर्म करना है। कुछ हसी तरह की समझ हमारे देश की से सेनाओं में भी है।

जब पहलगाम में निर्दोष नागरिकों की आतंकवादियों द्वारा हत्या की गई तो हमने धैर्य, धर्म और कर्म सबका परिचय दिया। उन्होंने धर्म पूछकर निर्दोष नागरिकों को मारा तो सेना ने उनके कर्म के आधार पर उन्हें मारा।

जिन मोहि मारा, तिन मोहि मारा

भारतीय सेनाओं ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपने धैर्य का परिचय देते हुए अपने सैनय धर्म और कर्म से पूरी दुनिया को परिचय कराया और पाकिस्तान के भीतर मौजूद आतंकी ढांचों को तहस-नहस किया।

हमने उनके Military और Civil ठिकानों पर निशाना नहीं लगाया। इस बात की पूरी सावधानी बरती गई। इसके बाद जब पाकिस्तान ने अपनी हरकत बढ़ाई तो उनके कुछ मिलिट्री ठिकानों पर भी कार्रवाई की गई। भविष्य में भी आतंकवाद के खिलाफ हम हर तरह की कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र और सक्षम है। आज पूरी दुनिया यह जान चुकी हे कि आतंकवाद के खिलाफ भारत हर तरह की कार्रवाई करने में सक्षम है।

Extreme bravery और fearless struggle से बढ़कर, श्री अल्लूरी सीताराम राजू का जीवन social unity की मिसाल था। वो सिर्फ विदेशी शासन के खिलाफ़ warrior नहीं थे, बल्कि एक ऐसे नेता थे जिन्होंने caste और class की दीवारों को तोड़ने का काम किया। वे भले ही क्षत्रिय परिवार में जन्मे, लेकिन आज भी उन्हें देश याद करता है एक आदिवासी योद्धा के रूप में। सोचिए, इससे बड़ा social unity का संदेश और क्या हो सकता है?

श्री अल्लूरीजी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व वह होता है जो जात-पात से ऊपर उठकर हर समुदाय को अपनाता है, और सबको साथ लेकर चलता है। उनकी विरासत हमें बताती है कि हम discrimination की दीवारें गिराएं, और एकजुट होकर एक लक्ष्य, एक भविष्य और एक भारत के लिए आगे बढ़ें। हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी यही कहा है सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास।

Justice to all appeasement to none.

जुलाई 2025 में हम प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में बीते 11 वर्षों की transformative governance की यात्रा को भी याद कर रहे हैं। इन वर्षों में हमने सिर्फ सड़कें और मकान ही नहीं बनाए, बल्कि अपने इतिहास और अपनी roots से जुड़ाव को फिर से मजबूत किया। विकास की भी चिन्ता की और विरासत की भी चिन्ता की। राम मंदिर, उज्जैन महाकाल। अब श्री अल्लूरी सीताराम राजू जैसे वीर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को वह सम्मान और पहचान दी जा रही है, जिसके वे हकदार थे। ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत, देश उन unsung heroes को श्रद्धांजलि दे रहा है जिन्होंने केवल अपने नाम से नहीं बल्कि विश्वास, त्याग और बलिदान से देश की सेवा की।

भारत की आदिवासी जनजातियाँ सिर्फ statistical numbers नहीं हैं, बल्कि हमारी सभ्यता की धड़कन और संस्कृति की आत्मा हैं। 10 करोड़ से ज़्यादा आदिवासी भाई-बहन, जो देश की 8.6% आबादी हैं, राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान priceless है। सदियों से उन्होंने समृद्ध परंपराओं, भाषाओं और ज्ञान को संजोकर रखा है। वे nature के साथ तालमेल में जीने की कला सिखाते हैं, balance, respect और sustainable living का रास्ता दिखाते हैं। रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी उनके courage और moral force का ज़िक्र हुआ है। आज जब हम नए भारत का निर्माण कर रहे हैं, तो हमारा कर्तव्य है कि आदिवासी समाज को mainstream society में लाएँ, और ये कोई एहसान नहीं, बल्कि उनके हक का सम्मान है।

पिछले 11 वर्षों में हमारी सरकार ने tribal development के लिए कई ऐतिहासिक योजनाएँ शुरू की हैं, जिससे inclusive development को मजबूती मिली है। PM Tribal Development Mission के तहत ₹1612 करोड़ मंजूर किए गए हैं। एकलव्य मॉडल residential schools योजना से आदिवासी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। अभी तक 728 स्कूलों को मंजूरी, दी गई है। (2800 Cr.) Skill India Mission ने लाखों युवाओं को रोज़गार और skill से जोड़ा है। Vocal for local योजना से tribal handicrafts, forest produce और traditional knowledge को देश-विदेश में बाज़ार मिला है। 50,000 से अधिक forest wealth group और 4000 से ज्यादा development centres ने forest produce को branded products में बदलकर रोज़गार का साधन बनाया है। इन सभी प्रयासों में श्री अल्लूरी की सोच की गूंज सुनाई देती है। हर कदम पर हम उनके सपने को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। आदिवासी welfare के क्षेत्र में स्वास्थ्य एक बड़ा कदम रहा है। 1 जुलाई 2023 को प्रधानमंत्री ने sickle cell एनीमिया को 2047 तक खत्म करने के लिए राष्ट्रीय अभियान शुरू किया। यह आनुवंशिक यानि hereditary बीमारी आदिवासी समाज को पीढ़ियों से परेशान कर रही है। सरकार ने 7 करोड़ लोगों की जांच, जागरूकता और इलाज का लक्ष्य रखा है।

हमारी लोकतांत्रिक यात्रा का एक गौरवपूर्ण पल तब आया, जब इस सरकार में देश को पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिलीं। 75 साल में पहली बार सर्वोच्च संवैधानिक पद पर एक आदिवासी representative पहुंची है। हमारी राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी आदिवासी समाज से आती है और यह भारत के लोकतंत्र की शक्ति है कि वे उड़ीसा के आदिवासी इलाकों से निकल कर शिखर तक पहुंच गई है।

साथियों, मैं एक बात और कहना चाहूँगा कि खासी-गारो, मिजो और कोल जैसे आदिवासी आंदोलनों ने भी भारत की आज़ादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। महारानी वीर दुर्गावती का साहस और रानी कमलापति का बलिदान देश कभी नहीं भूल सकता। वीर महाराणा प्रताप की गाथा भी अधूरी है अगर हम उन आदिवासी योद्धाओं को न याद करें जिन्होंने उनके साथ लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर किए। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत आदिवासी वीरों ने अतुलनीय त्याग और शौर्य दिखाया, जिनकी विरासत आज भी हमें प्रेरणा देती है।

साथियों, मोदीजी के नेतृत्व में सरकार ने 2021 में 15 नवम्बर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ घोषित किया, भगवान बिरसा मुंडाजी की जयंती पर, ताकि पूरे देश में आदिवासी वीरों के साहस और योगदान को सम्मान मिल सके।

साथियों, 2024 से 2047 तक का समय सिर्फ आज़ादी की याद का नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण और समान भारत के निर्माण का संकल्प है। एक ऐसा भारत जहां विकास और विरासत साथ-साथ चलते हों, जहां modernity का मतलब अपनी जड़ों को भूलना नहीं, बल्कि उन्हीं से ताक़त लेना हो। यही है विकसित भारत का सार, एक ऐसा भारत जो अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करता है, constitutional values पर खड़ा है और युवाओं के सपनों से प्रेरित है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, अपनी समृद्ध परंपरा और अपार क्षमता के साथ, इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

आइए आज हम संकल्प लें, श्री अल्लूरी की गाथा हर स्कूल, हर घर तक पहुंचे। हर जनजाति, हर जंगल, हर आवाज़, विकसित भारत की यात्रा में शामिल हो और सबसे बड़ा संकल्प, एक ऐसा भारत बनाएं जो निडर हो, न्यायपूर्ण हो और सबके लिए अवसरों से भरा हो।

अंत में, अल्लूरी सीताराम राजू जी की जयंती पर, मैं बस इतना ही कहूंगा, कि उनकी सोच में सिर्फ Revolution  नहीं था, बल्कि अपने लोगों के लिए एक deep emotion था। उन्होंने ट्राईबल भाई-बहनों की तकलीफ को समझा, उनकी language में communicate किया और उनकी एक मजबूत आवाज बनकर सामने आए।

आज उनकी 128वीं जयंती पर हम सब अपनी तरफ से यही कर सकते हैं, कि हम यह pledge लें कि हम उनके बताए रास्ते पर चलते हुए राष्ट्र और समाज के लिए तथा Marginalised section के development के लिए, अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करेंगे।

इसी आशा और विश्वास के साथ, मैं अल्लूरी सीताराम राजू जी की जयंती पर उन्हें नमन करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ।

आप सभी को बहुत धन्यवाद।!

जय हिन्द, जय तेलंगाना!