लोकसभा में गृह मंत्री का वक्तव्य
अध्यक्ष महोदया,
कल 22 अप्रैल, 2015 को आम आदमी पार्टी द्वारा जंतर-मंतर, नई दिल्ली में आयोजित एक प्रदर्शन रैली के दौरान राजस्थान से आये एक व्यक्ति श्री गजेन्द्र सिंह की मृत्यु हुई। निश्चित रूप से यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई सूचना के अनुसार दौसा, राजस्थान के निवासी श्री गजेन्द्र सिंह रैली स्थल पर अपने हाथ में एक झाड़ू लेकर पेड़ पर चढ़ गये तथा उन्होंने कपड़े का एक सिरा अपने गले में तथा दूसरा सिरा पेड़ की डाल से बांध दिया। पुलिसकर्मियों ने तत्काल इस घटना की जानकारी नियंत्रण कक्ष को दी तथा एक लम्बी सीढ़ीयुक्त फायर ब्रिगेड वाहन को बुलाया, ताकि पेड़ की ऊंची डाली पर बैठे इस व्यक्ति को बचाया जा सके। पुलिस ने नीचे मौजूद लोगों से भी ताली बजाने और नारेबाजी रोकने का बार-बार अनुरोध किया, जिससे कि उस व्यक्ति श्री गजेन्द्र सिंह को उत्तेजित होने से रोका जा सके। ऐसे मामलों में वह व्यक्ति जो इस तरह का एक्सट्रीम एक्ट, अतिवादी क्रिया करने की कोशिश करता है, उसे बहुत ही चतुराई से बातचीत करके इंगेज रखा जाता है, उसे व्यस्त किया जाता है। जबकि इसके विपरीत इस मामले में भीड़ ने ताली बजाने और शोर मचाने का सिलसिला जारी रखा। किन कारणों से मृत्यु की दुर्घटना घटी है, इसकी जांच की जा रही है। उस दौरान रैली में शामिल हुए लोग पेड़ पर चढ़ गये तथा उसे खोल दिया, जो एक सिरा कपड़े का बंधा हुआ था, उसे खोल दिया। इस प्रक्रिया में वह व्यक्ति नीचे गिर पड़ा, उसे एक पुलिस वाहन में राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। जैसा मैंने पहले कहा था कि यह घटना बहुत ही दुखद है, ह्दय विदारक है और दुर्भाग्यपूर्ण है। भारतीय दंड संहिता की धारा 306, 186, 34 के अंतर्गत संसद मार्ग पुलिस थाने में एक एफ. आई. आर. संख्या 95/2015 दर्ज की गई है। इस मामले को अपराध शाखा, क्राइम ब्रांच को अग्रिम जांच हेतु स्थानांतरित किया जा चुका है। मैंने पुलिस आयुक्त, दिल्ली को इस मामले की पूरी समयबद्ध जांच करने का निर्देश दिया है।
अंत में मैं पुन: श्री गजेन्द्र सिंह, जिनकी मृत्यु हुई है, के परिवार के प्रति अपनी और अपनी सरकार की तरफ से संवेदना व्यक्त करना चाहता हूं।
कुछ माननीय सदस्यों द्वारा जो विचार व्यक्त किए गए हैं, मैं यहां पर उनकी चर्चा करना चाहूंगा। श्री दीपेन्द्र हुड्डा जी ने कहा कि जब यूपीए की सरकार थी, उस समय बहुत सारे कदम उठाए गए। मैं यह मानता हूं कि कोई भी सरकार हो, कोई सरकार यह दावा नहीं करेगी कि हमारी सरकार किसान विरोधी है। सारी सरकारें यही दावा करती हैं कि हम किसान समर्थक हैं और श्री मुलायम सिंह यादव ने भी जो बात कही है कि यह केवल सरकारी पक्ष की ही जिम्मेदारी नहीं बनती है, बल्कि सरकार और विपक्ष दोनों को मिल-बैठ कर इस समस्या के समाधान के संबंध में विचार करना चाहिए, ताकि किसानों को इस बदहाली के हालात से उबारा जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक इस हिन्दुस्तान का किसान धनवान नहीं होगा, तब तक हमारा यह हिन्दुस्तान भी किसी भी सूरत में धनवान नहीं हो सकता है।
अध्यक्ष महोदया, देखा जाए तो सन् 1950-51 से लेकर आज तक, 1950-51 में, पूरे सदन को इस बात की जानकारी थी कि उस दौरान कृषि का योगदान पूरे जीडीपी में 55 फीसदी हुआ करता था। आज जबकि 58 फीसदी आबादी पूरी तरह से कृषि पर आधारित है, अब उसका योगदान केवल 14 फीसदी रह गया है। मैं चाहूंगा कि इस संबंध में भी हमें विचार करना चाहिए कि इतनी बड़ी आबादी, 58 फीसदी योगदान जीडीपी में मात्र 14 फीसदी क्यों रह गया है अथवा वह लगातार क्यों घटता जा रहा है? सन् 1950-51 से लेकर हालात अब भी ऐसे बने हुए हैं कि 60 फीसदी आबादी को खाद्य सुरक्षा पर निर्भर रहना पड़ रहा है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप किसान विरोधी हैं और हम किसान समर्थक होने का दावा कर रहे हैं। जैसा कि आप दावा कर रहे हैं कि आपने भी किसानों की हालत सुधारने के लिए, गांवों में हालात सुधारने के लिए प्रयत्न किए हैं। मुलायम सिंह जी ने भी कहा कि उत्तर प्रदेश में भी इस संकट की घड़ी में किसानों को क्या राहत दी गई है, उन्हें कौन-कौन सी सुविधायें मुहैया कराई गई हैं, इसकी भी चर्चा की, लेकिन इस हकीकत को उन्होंने स्वीकार किया कि सब कुछ किए जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश में आत्महत्या की घटनायें लगातार हो रही हैं। यह मुलायम सिंह जी ने स्वयं स्वीकार किया है। ये सारे विषय सदन के सामने मैं इसलिए रख रहा हूं कि हम सबको इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। क्या कारण है कि लगातार 65-66 वर्षों से हम यह प्रयत्न कर रहे हैं कि किसानों की हालत सुधरनी चाहिए, गांवों की हालत सुधरनी चाहिए। फिर भी आज इस देश की 60 फीसदी से अधिक आबादी को खाद्य सुरक्षा पर निर्भर रहना पड़ रहा है।